दिनभर की थकान से चूर वह स्त्री जैसे ही झुग्गी में दाखिल हुई, उसके सामने बैठे उसके शराबी पति ने जोर से आवाज दी, "आ गई? चल जल्दी से २० रुपए निकाल, तीन दिन से गला सूखा पड़ा है।"
स्त्री ने बिना कुछ कहे पानी पीने के लिए कदम बढ़ाए ही थे कि फिर से पति की कर्कश आवाज गूंजी, "साली, सुनती नहीं है? जल्दी कर!"
स्त्री ने शांत स्वर में जवाब दिया, "पैसे नहीं हैं मेरे पास।"
पति का चेहरा क्रोध से लाल हो गया। वह बोला, "झूठ बोलती है! सारा दिन बाहर रही और कहती है पैसे नहीं हैं। अच्छा, १० ही दे दे, किसी से दो घूंट लेकर पी लूंगा।"
स्त्री ने फिर से वही बात दोहराई, "कहा ना, काम नहीं मिला आज।"
यह सुनते ही शराबी पति का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसकी मर्दानगी को जैसे किसी ने चुनौती दे दी हो। वह उठा और अंदर का क्रूर इंसान जाग उठा। बिना सोचे-समझे, वह औरत पर लात-घूंसों की बौछार करने लगा। वह गालियाँ बकता रहा, उसे पीटता रहा, और वह बेचारी चुपचाप मार खाती रही।
इस पूरे घटनाक्रम को चारपाई के नीचे छुपा उसका पाँच वर्ष का बेटा सिसकते हुए देख रहा था। उसकी मासूम आँखों में डर और असहायता की गहरी छाप थी।
स्त्री मार खाती-खाती सोच रही थी, उसकी माँ हमेशा कहती थी कि पति परमेश्वर होता है। उसका घर ही तेरा घर है। मायके से लड़की डोली में जाती है और ससुराल से अर्थी पर। उसने कितनी बार सोचा कि इस दुख और पीड़ा से मर ही जाए, पर बेटे के लिए जीना है, इसलिए हर बार अपने आपको संभाल लेती थी।
चार-पाँच घंटे तक पीटने के बाद जब उसका शराबी पति थक गया, तो बड़बड़ाता हुआ सो गया। वह रातभर दर्द और आँसुओं में डूबी रही, अपनी किस्मत को कोसती रही। सुबह जब सूरज की किरणें झुग्गी के अंदर आईं, तो उसका बेटा धीरे से उसके पास आकर बोला, "माँ, मैं आज स्कूल नहीं जाऊँगा। सबने अपनी फीस जमा कर दी है, मुझे छोड़कर। कल मास्टर जी ने मुझे मुर्गा बनाया था, आज छड़ी से मारेंगे।"
माँ ने अपने बेटे की दुखभरी आँखों को देखा और उसका दर्द महसूस किया। उसने अपने पेटी कोट के घेरे से २० रुपए निकालते हुए कहा, "मेरे लाल, तू स्कूल में ना पीटे, इसलिए तेरी माँ रातभर पिटती रही। ये ले, अपनी फीस जमा कर दे।"
बेटे की आँखें खुशी से चमक उठीं। उसने रोती माँ के आँसू पोछते हुए कहा, "माँ, जब मैं पढ़-लिखकर बड़ा हो जाऊँगा ना, तब कभी तेरी आँखों में आँसू नहीं आने दूँगा।"
माँ ने अपने बेटे को गले से लगा लिया, आँसुओं में डूबे उस क्षण में भी उसने एक उम्मीद की किरण देखी।
दोस्तों, यह कहानी केवल एक माँ की नहीं है, बल्कि दुनिया की हर माँ की है, जो अपने बच्चों के भविष्य के लिए हर तरह के दुख और दर्द को सहन करती है। वह दिन-रात मेहनत करती है, केवल इस उम्मीद में कि उसका बच्चा बड़ा होकर एक सफल और खुशहाल व्यक्ति बने।
लेकिन अफसोस, कुछ बच्चे बड़े होकर अपनी माँ के किए बलिदानों को भूल जाते हैं। वे यह सोचने लगते हैं कि वे अपनी माँ को पाल रहे हैं, जबकि सच तो यह है कि वही माँ उनकी जिंदगी की नींव रखती है। उन्होंने उन्हें नौ महीने अपनी कोख में रखा, तीन साल तक सीने से चिपकाए रखा, और जिंदगी भर अपने दिल में जगह दी। अगर वह माँ न होती, तो शायद उनका अस्तित्व भी न होता।
इसलिए, हमें अपनी माँ के बलिदानों को हमेशा याद रखना चाहिए, उन्हें कभी भी बोझ नहीं समझना चाहिए। वे ही हमारे जीवन का असली आधार हैं। उनके प्रेम और त्याग का सम्मान करना ही हमारी सच्ची जिम्मेदारी है।
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