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Sunday, 18 August 2024

बड़ी दुकान पर आकर आम का भाव पूछा तो वह बोला 120 रूपये किलो हैं

 ड्यूटी से फ्री होते ही मैं घर फ़ोन करता हूँ कि कुछ लाना तो नहीं है।

तो आज घर वालों ने कहा एक किलो आम 

 लेते आना। 

तभी मुझे सड़क किनारे मीठे और ताज़ा आम बेचते हुए 

एक बीमार सी दिखने वाली बुढ़िया दिख गयी।

वैसे तो वह फल हमेशा जिओ मार्ट से

ही लेता था, 

पर आज मुझे लगा कि क्यों न 

बुढ़िया से ही खरीद लूँ ?

मैंने बुढ़िया से पूछा, "माई, आम कैसे दिए" 

बुढ़िया बोली, बाबूजी 70 रूपये किलो, 

मैं बोला, माई 50 रूपये दूंगा। 

.

बुढ़िया ने कहा, 60 रूपये दे देना, 

दो पैसे मै भी कमा लूंगी। 

.

मैं बोला, 50 रूपये लेने हैं तो बोलो, 

बुझे चेहरे से बुढ़िया ने,"न" मे गर्दन हिला दी।

मैं बिना कुछ कहे चल पडा 

और फल की बड़ी दुकान पर आकर आम का भाव पूछा तो वह बोला 120 रूपये किलो हैं 

.

बाबूजी, कितने दूँ ? 

मैं बोला, 5 साल से फल तुमसे ही ले रहा हूँ,  

ठीक भाव लगाओ। 

.

तो उसने सामने लगे बोर्ड की ओर इशारा कर दिया। 

बोर्ड पर लिखा था- "मोल भाव करने वाले माफ़ करें" 

मुझ को उसका यह व्यवहार बहुत बुरा लगा, 

मैं कुछ सोचकर वापस हुआ


.सोचते सोचते उस बुढ़िया के पास पहुँच गया। 

बुढ़िया ने मुझे पहचान लिया और बोली, 

.

"बाबूजी आम दे दूँ, पर भाव 55 रूपये से कम नही लगाउंगी। 

मैं ने मुस्कराकर कहा, 

माई एक नही दो किलो दे दो और भाव की चिंता मत करो। 

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बुढ़िया का चेहरा ख़ुशी से दमकने लगा। 

आम देते हुए बोली। बाबूजी मेरे पास थैली नही है ।

फिर बोली, एक टाइम था जब मेरा आदमी जिन्दा था 

.

तो मेरी भी छोटी सी दुकान थी। 

सब्ज़ी, फल सब बिकता था उस पर। 

आदमी की बीमारी मे दुकान चली गयी, 

आदमी भी नही रहा। अब खाने के भी लाले पड़े हैं। 

किसी तरह पेट पाल रही हूँ। कोई औलाद भी नही है 

.

जिसकी ओर मदद के लिए देखूं। 

इतना कहते कहते बुढ़िया रुआंसी हो गयी, 

और उसकी आंखों मे आंसू आ गए ।

.

मैंने 200 रूपये का नोट बुढ़िया को दिया तो 

वो बोली "बाबूजी मेरे पास छुट्टे नही हैं। 

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मैं ने "माई चिंता मत करो, रख लो, 

अब मै तुमसे ही फल खरीदूंगा, 

और कल मै तुम्हें 1000 रूपये दूंगा। 

धीरे धीरे चुका देना और परसों से बेचने के लिए 

मंडी से दूसरे फल भी ले आना। 

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बुढ़िया कुछ कह पाती उसके पहले ही 

मैं घर की ओर रवाना हो गया।

रास्ते भर,मैं सोचते आया 

न जाने क्यों हम हमेशा मुश्किल से 

पेट पालने वाले, थड़ी लगा कर सामान बेचने वालों से 

मोल भाव करते हैं किन्तु बड़ी दुकानों पर 

मुंह मांगे पैसे दे आते हैं। 

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शायद हमारी मानसिकता ही बिगड़ गयी है। 

गुणवत्ता के स्थान पर हम चकाचौंध पर 

अधिक ध्यान देने लगे हैं।

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अगले दिन मैंने बुढ़िया को 500 रूपये देते हुए कहा, 

"माई लौटाने की चिंता मत करना। 

जो फल खरीदूंगा, उनकी कीमत से ही चुक जाएंगे। 

जब मैंने अपने दोस्तों को ये किस्सा बताया तो 

सबने बुढ़िया से ही फल खरीदना प्रारम्भ कर दिया। 

लगभग तीन महीने उसने हाथठेला भी खरीद लिया।

बुढ़िया अब बहुत खुश है।

उचित खान पान के कारण उसका स्वास्थ्य भी 

पहले से बहुत अच्छा है ।

जीवन मे किसी बेसहारा की मदद करके देखो यारों, 

अपनी पूरी जिंदगी मे किये गए सभी कार्यों से 

ज्यादा संतोष मिलेगा...

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