अनीता और रवि की शादी 22 अप्रैल 2005 को हुई थी। उस समय दोनों ही पढ़ाई कर रहे थे। दोनों परिवार एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानते थे, इसलिए शादी भी सहमति से हुई। दो साल बाद अनीता की बैंक में नौकरी लग गई और इसी बीच उनके जीवन में एक बेटा, समीर (जिसे वे प्यार से "आर्यन" कहते थे), भी आ गया।
शुरुआत में, जब नौकरी और बच्चे की जिम्मेदारी एक साथ संभालना मुश्किल हो रहा था, तो रवि ने अनीता का पूरा साथ दिया। वह हमेशा कहता, "तुम बैंक जाओ, मैं आर्यन का ध्यान तुमसे भी बेहतर रखूंगा।" अनीता ने कई बार डे केयर की सलाह दी, लेकिन रवि ने किसी और के भरोसे अपने बेटे को छोड़ने से साफ इनकार कर दिया।
समय बीतता गया और धीरे-धीरे रवि एक घरेलू पुरुष बन गए। अनीता की नौकरी और घर की जिम्मेदारियां हंसी-खुशी से चल रही थीं, लेकिन एक समस्या ने उनके जीवन में दरार डाल दी। अनीता के मायके वाले, खासकर उसका भाई अमन, बार-बार घर के मामलों में दखल देने लगे। कोई भी समान खरीदने से पहले अनीता के पास फोन आता, और अमन उसे पेमेंट करने के लिए कहता। अनीता बिना किसी सवाल के भुगतान कर देती थी, लेकिन रवि के लिए यह सब बर्दाश्त से बाहर हो गया।
रवि ने अनीता को समझाने की कई बार कोशिश की, लेकिन अनीता उसकी बातों को अनसुना कर देती, जैसे रावण ने मंदोदरी की सलाह को अनदेखा किया था। एक बार अनीता के पिता सुरेश ने फोन करके कहा, "बेटी, तुम्हारी माँ सविता तीज व्रत के लिए एक कान के बूंदे खरीदना चाहती हैं। वह 26 हजार का है, तुम पेमेंट कर दो।" अनीता ने बिना सोचे-समझे पेमेंट कर दी।
लेकिन इस बार रवि का गुस्सा सातवें आसमान पर था। उसने कहा, "तुम्हारे लिए अमन का कहा ही सब कुछ है, मेरी बात की कोई कीमत नहीं। मैं चुप रहता हूँ, लेकिन अब और नहीं सह सकता। तुम्हारी माँ तीज व्रत में नया जेवर पहन सकती है, लेकिन मेरी माँ के पास एक नई साड़ी तक नहीं है। गलती मेरी है, मैंने घर संभाला और तुमने बाहर। हम एक होकर भी अलग हैं। अपनी माँ की तरह मेरी माँ का भी कभी ख्याल रख लिया करो।"
रवि की ये बातें अनीता को बहुत नागवार गुजरीं और उसने गुस्से में आकर अपने बेटे को लेकर मायके चली आई। वह वहीं से बैंक जाने लगी और दो साल तक उसने और रवि ने एक-दूसरे से कोई संपर्क नहीं किया।
एक रविवार को रवि अचानक अनीता के घर आया और बोला, "अनीता, घर चलो। नहीं तो मेरे माता-पिता मुझ पर दूसरी शादी का दबाव बना रहे हैं।" लेकिन अनीता नहीं मानी। रवि ने एक कड़वा सच कह दिया, "कहते हैं, महिलाएं अपने तेवर और जेवर संभाल कर रखती हैं। लेकिन तुम्हारे साथ ऐसा कुछ नहीं है, क्योंकि तुम्हारे पास पैसा है।"
कुछ साल बाद, अनीता को पता चला कि रवि ने दूसरी शादी कर ली है। उसकी एक बेटी भी है और उसने एक राशन की दुकान खोल ली है। अब उसकी गृहस्थी खुशहाल है। इधर, अनीता के माता-पिता सुरेश और सविता स्वर्ग सिधार गए, और उसका भाई अमन मेरठ में अपने नए घर में बस गया।
अनीता का बेटा आर्यन, जो अब दसवीं की परीक्षा दे चुका था, अपने पिता से मिलने गया। वहां से उसने फोन करके कहा, "माँ, मैं यहां से ही ग्यारहवीं और बारहवीं करूंगा। यहाँ माँ है, बहन है, पापा हैं, दादा-दादी हैं।" अनीता गुस्से में बोली, "बेटा, वह तुम्हारी सौतेली माँ है।" बेटे ने मासूमियत से जवाब दिया, "माँ, सब सौतेली माँ बुरी नहीं होतीं।"
अनीता को अब एहसास हो चुका था कि पैसे का गरूर और खुद की अहमियत में डूबकर उसने अपने रिश्तों को नजरअंदाज किया। अब उसके पास सिर्फ यादें थीं, और जीवन के आकाश में खालीपन था। रिश्तों की गिरहें खुल गईं और अब बस वह अपने निर्णयों के साथ एक खाली जीवन जी रही थी, जिसमें पछतावा ही उसका साथी था।
अज्ञात सांभार
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