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Tuesday, 20 August 2024

आपके पुत्र को रोटी ठंडी लगी!

 शादी के बाद विदाई का समय था नेहा अपनी माँ से मिलने के बाद अपने पिता से लिपट कर रो रही थीं।वहाँ मौजूद सब लोगों की आंखें नम थीं।नेहा ने घूँघट निकाला हुआ था,वह अपनी छोटी बहन के साथ सजाई गयी गाड़ी के नज़दीक आ गयी थी।


दूल्हा अविनाश अपने खास मित्र विकास के साथ बातें कर रहा था।


विकास -'यार अविनाश।


सबसे पहले घर पहुंचते ही होटल अमृतबाग चलकर बढ़िया खाना खाएंगे।


यहाँ तेरी ससुराल में खाने का मज़ा नहीं आया।


तभी पास में खड़ा अविनाश का छोटा भाई राकेश बोला।


हा यार..पनीर कुछ ठीक नहीं था।और रस मलाई में रस ही नहीं था।और वह ही ही ही कर जोर जोर से हंसने लगा।


अविनाश भी पीछे नही रहा।


अरे हम लोग अमृतबाग चलेंगे, जो खाना है खा लेना।


मुझे भी यहाँ खाने में मज़ा नहीं आया रोटियां भी गर्म नहीं थी।


अपने पति के मुँह से यह शब्द सुनते ही नेहा जो घूँघट में गाड़ी में बैठने ही जा रही थी,वापस मुड़ी, गाड़ी की फाटक को जोर से बन्द किया,घूँघट हटा कर अपने पापा के पास पहुंची,अपने पापा का हाथ अपने हाथ में लिया"मैं ससुराल नहीं जा रही पिताजी"मुझे यह शादी मंजूर नहीं।यह शब्द उसने इतनी जोर से कहे कि सब लोग हक्के बक्के रह गए।


सब नज़दीक आ गए।नेहा के ससुराल वालों पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा।मामला क्या था यह किसी की समझ में नहीं आ रहा था।तभी नेहा के ससुर राधेश्यामजी ने आगे बढ़कर नेहा से पूछा "लेकिन बात क्या है बहू ?"


शादी हो गयी है 


विदाई का समय है अचानक क्या हुआ कि तुम शादी को नामंजूर कर रही हो ?


अविनाश की तो मानो दुनिया लूटने जा रही थी।"वह भी नेहा के पास आ गया"अविनाश के दोस्त भी।सब लोग जानना चाहते थे कि आखिर एन वक़्त पर क्या हुआ कि दुल्हन ससुराल जाने से मना कर रही है।


नेहा ने अपने पिता दयाशंकरजी का हाथ पकड़ रखा था।

नेहा ने अपने ससुर से कहा"बाबूजी मेरे माता पिता ने अपने सपनों को मारकर हम बहनों को पढ़ाया लिखाया व काबिल बनाया है।आप जानते है एक बाप के लिए बेटी क्या मायने रखती है ??


आप व आपका बेटा नहीं जान सकते क्योंकि आपके कोई बेटी नहीं है।नेहा रोती हुई बोले जा रही थी-आप जानते है मेरी शादी के लिए व शादी में बारातियों की आवाभगत में कोई कमी न रह जाये,इसलिए मेरे पिताजी पिछले एक साल से रात को 2-3 बजे तक जागकर मेरी माँ के साथ योजना बनाते थे।खाने में क्या बनेगा,रसोइया कौन होगा 


पिछले एक साल में मेरी माँ ने नई साड़ी नही खरीदी क्योकि मेरी शादी में कमी न रह जाये।


दुनिया को दिखाने केलिए अपनी बहन की साड़ी पहन कर मेरी माँ खड़ी है।मेरे पिता की इस डेढ़ सौ रुपये की नई शर्ट के पीछे बनियान में सौ छेद है।"मेरे माता पिता ने कितने सपनों को मारा होगा।न अच्छा खाया न अच्छा पीया।बस एक ही ख्वाहिश थी कि मेरी शादी में कोई कमी न रह जाये।


आपके पुत्र को रोटी ठंडी लगी!


उनके दोस्तों को पनीर में गड़बड़ लगी व मेरे देवर को रस मलाई में रस नहीं मिला।


इनका खिलखिलाकर हँसना मेरे पिता के अभिमान को ठेस पहुंचाने के समान है।


नेहा हांफ रही थी।नेहा के पिता ने रोते हुए कहालेकिन बेटी इतनी छोटी सी बात।नेहा ने उनकी बात बीच मे काटी,यह छोटी सी बात नहीं है पिताजी।मेरे पति को मेरे पिता की इज्जत नहीं....


रोटी क्या आपने बनाई ?


रस मलाई,पनीर यह सब केटर्स का काम है।आपने दिल खोलकर व हैसियत से बढ़कर खर्च किया है।कुछ कमी रही तो वह केटर्स की तरफ से।आप तो अपने दिल का टुकड़ा अपनी गुड़िया रानी को विदा कर रहे है ???


आप कितनी रात रोयेंगे क्या मुझे पता नही,माँ कभी मेरे बिना घर से बाहर नही निकली,कल से वह बाज़ार अकेली जाएगी,जा पाएगी ?जो लोग पत्नी या बहू लेने आये हैं वह खाने में कमियां निकाल रहे हैं।


मुझमे कोई कमी आपने नहीं रखी,यह बात इनकी समझ में नही आई ??दयाशंकर जी ने नेहा के सर पर हाथ फिराया।अरे पगली, बात का बतंगड़ बना रही है।


मुझे तुझ पर गर्व है कि तू मेरी बेटी है लेकिन बेटा इन्हें माफ कर दे।तुझे मेरी कसम, शांत हो जा।


तभी अविनाश ने आकर दयाशंकर जी के हाथ पकड़ लिए,"मुझे माफ़ कर दीजिए बाबूजी।मुझसे गलती हो गयी।मैं ...मैं उसका गला बैठ गया था।रो पड़ा था वह।


तभी राधेश्यामजी ने आगे बढ़कर नेहा के सर पर हाथ रखा।मैं तो बहू लेने आया था लेकिन ईश्वर बहुत कृपालु है।उसने मुझे बेटी दे दी,व बेटी की अहमियत भी समझा दी।


मुझे ईश्वर ने बेटी नहीं दी शायद इसलिए कि तेरे जैसी बेटी मेरी नसीब में थी।अब बेटी इन नालायकों को माफ कर दें,मैं हाथ जोड़ता हूँ तेरे सामने।"मेरी बेटी नेहा मुझे लौटा दे।"और राधेश्याम जी ने सचमुच हाथ जोड़ दिए थे व नेहा के सामने सर झुका दिया।


नेहा ने अपने ससुर के हाथ पकड़ लिए...'बाबूजी।


राधेश्यामजी ने कहा


"बाबूजी नहीं..पिताजी।"


नेहा भी भावुक होकर राधेश्याम जी से लिपट गयी थी।


दयाशंकर जी ऐसी बेटी पाकर गौरव की अनुभूति कर रहे थे।नेहा अब राजी खुशी अपने ससुराल रवाना हो गयी थीं।


पीछे छोड़ गयी थी आंसुओं से भीगी अपने माँ पिताजी की आंखें,अपने पिता का वह आँगन जिस पर कल तक वह चहकती थी।आज से इस आँगन की चिड़िया उड़ गई थी किसी दूर प्रदेश में।और अब किसी दुसरे पेड़ पर अपना घरौंदा बनाएगी...

#वत्स ...❤...

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