Search This Blog

Saturday, 31 August 2024

यह सम्मान होगा उस प्यार, देखभाल, दयाभाव और त्याग का जो एक आदमी अपने बच्चे के पालन के लिए कर सकता है

 बाप.💖..प्रस्तुत है वो कहानी जो मेरे अंतर्मन को छू गई .🌼

शहर के एक प्रसिद्ध अन्तरराष्ट्रीय के विद्यालय के बग़ीचे में तेज़ धूप और गर्मी की परवाह किये बिना, बड़ी लग्न से पेड़ - पौधों की काट छाँट में लगा था कि तभी विद्यालय के चपरासी की आवाज़ सुनाई दी, गंगादास! तुझे प्रधानाचार्या जी तुरंत बुला रही हैं।


गंगादास को आख़िरी के पांँच शब्दों में काफ़ी तेज़ी महसूस हुई और उसे लगा कि कोई महत्त्वपूर्ण बात हुई है जिसकी वज़ह से प्रधानाचार्या जी ने उसे तुरंत ही बुलाया है।

शीघ्रता से उठा, अपने हाथों को धोकर साफ़ किया और चल दिया, द्रुत गति से प्रधानाचार्या के कार्यालय की ओर। 


 उसे प्रधानाचार्या महोदया के कार्यालय की दूरी मीलों की लग रही थी जो ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही थी। उसकी हृदयगति बढ़ गई थी। 


 सोच रहा था कि उससे क्या ग़लत हो गया जो आज उसको प्रधानाचार्या महोदया ने तुरंत ही अपने कार्यालय में आने को कहा।


      वह एक ईमानदार कर्मचारी था और अपने कार्य को पूरी निष्ठा से पूर्ण करता था। पता नहीं क्या ग़लती हो गयी। वह इसी चिंता के साथ प्रधानाचार्या के कार्यालय पहुँचा......

       #मैडम, क्या मैं अंदर आ जाऊँ? आपने मुझे बुलाया था।


हाँ। आओ और यह देखो" प्रधानाचार्या महोदया की आवाज़ में कड़की थी और उनकी उंगली एक पेपर पर इशारा कर रही थी। 

       "पढ़ो इसे" प्रधानाचार्या ने आदेश दिया।

       "मैं, मैं, मैडम! मैं तो इंग्लिश पढ़ना नहीं जानता मैडम!" गंगादास ने घबरा कर उत्तर दिया। 

     "मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ मैडम यदि कोई गलती हो गयी हो तो। मैं आपका और विद्यालय का पहले से ही बहुत ऋणी हूँ। क्योंकि आपने मेरी बिटिया को इस विद्यालय में निःशुल्क पढ़ने की इज़ाज़त दी। मुझे कृपया एक और मौक़ा दें मेरी कोई ग़लती हुई है तो सुधारने का। मैं आप का सदैव ऋणी रहूंँगा।" गंगादास बिना रुके घबरा कर बोलता चला जा रहा था।

      उसे प्रधानाचार्या ने टोका "तुम बिना वज़ह अनुमान लगा रहे हो। थोड़ा इंतज़ार करो, मैं तुम्हारी बिटिया की कक्षा-अध्यापिका को बुलाती हूँ।"

      वे पल जब तक उसकी बिटिया की कक्षा-अध्यापिका प्रधानाचार्या के कार्यालय में पहुँची बहुत ही लंबे हो गए थे गंगादास के लिए। सोच रहा था कि क्या उसकी बिटिया से कोई ग़लती हो गयी, कहीं मैडम उसे विद्यालय से निकाल तो नहीं रहीं। उसकी चिंता और बढ़ गयी थी।

      कक्षा-अध्यापिका के पहुँचते ही प्रधानाचार्या महोदया ने कहा, "हमने तुम्हारी बिटिया की प्रतिभा को देखकर और परख कर ही उसे अपने विद्यालय में पढ़ने की अनुमति दी थी। अब ये मैडम इस पेपर में जो लिखा है उसे पढ़कर और हिंदी में तुम्हें सुनाएँगी, ग़ौर से सुनो।"

      कक्षा-अध्यापिका ने पेपर को पढ़ना शुरू करने से पहले बताया, "आज मातृ दिवस था और आज मैंने कक्षा में सभी बच्चों को अपनी अपनी माँ के बारे में एक लेख लिखने को कहा। तुम्हारी बिटिया ने जो लिखा उसे सुनो।" 

      उसके बाद कक्षा- अध्यापिका ने पेपर पढ़ना शुरू किया।

      "मैं एक गाँव में रहती थी, एक ऐसा गाँव जहाँ शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाओं का आज भी अभाव है। चिकित्सक के अभाव में कितनी ही माँयें दम तोड़ देती हैं बच्चों के जन्म के समय। मेरी माँ भी उनमें से एक थीं। उन्होंने मुझे छुआ भी नहीं कि चल बसीं। मेरे पिता ही वे पहले व्यक्ति थे मेरे परिवार के जिन्होंने मुझे गोद में लिया। पर सच कहूँ तो मेरे परिवार के वे अकेले व्यक्ति थे जिन्होंने मुझे गोद में उठाया था। बाक़ी की नज़र में तो मैं अपनी माँ को खा गई थी। मेरे पिताजी ने मुझे माँ का प्यार दिया। मेरे दादा - दादी चाहते थे कि मेरे पिताजी दुबारा विवाह करके एक पोते को इस दुनिया में लायें ताकि उनका वंश आगे चल सके। परंतु मेरे पिताजी ने उनकी 

एक न सुनी और दुबारा विवाह करने से मना कर दिया। इस वज़ह से मेरे दादा - दादीजी ने उनको अपने से अलग कर दिया और पिताजी सब कुछ, ज़मीन, खेती बाड़ी, घर सुविधा आदि छोड़ कर मुझे साथ लेकर शहर चले आये और इसी विद्यालय में माली का कार्य करने लगे। मुझे बहुत ही लाड़ प्यार से बड़ा करने लगे। मेरी ज़रूरतों पर माँ की तरह हर पल उनका ध्यान रहता है।"


    आज मुझे समझ आता है कि वे क्यों हर उस चीज़ को जो मुझे पसंद थी ये कह कर खाने से मना कर देते थे कि वह उन्हें पसंद नहीं है, क्योंकि वह आख़िरी टुकड़ा होती थी। आज मुझे बड़ा होने पर उनके इस त्याग के महत्त्व पता चला।"

     "मेरे पिता ने अपनी क्षमताओं में मेरी हर प्रकार की सुख - सुविधाओं का ध्यान रखा और मेरे विद्यालय ने उनको यह सबसे बड़ा पुरस्कार दिया जो मुझे यहाँ निःशुल्क पढ़ने की अनुमति मिली। उस दिन मेरे पिता की ख़ुशी का कोई ठिकाना न था।"

 यदि माँ, प्यार और देखभाल करने का नाम है तो मेरी माँ मेरे पिताजी हैं।


यदि दयाभाव, #माँ को परिभाषित करता है तो मेरे पिताजी उस परिभाषा के हिसाब से पूरी तरह मेरी माँ हैं।

यदि त्याग, माँ को परिभाषित करता है तो मेरे पिताजी इस वर्ग में भी सर्वोच्च स्थान पर हैं।


 यदि संक्षेप में कहूँ कि प्यार, देखभाल, दयाभाव और त्याग माँ की पहचान है तो मेरे पिताजी उस पहचान पर खरे उतरते हैं और मेरे पिताजी विश्व की सबसे अच्छी माँ हैं।


 आज मातृ दिवस पर मैं अपने पिताजी को शुभकामनाएँ दूँगी और कहूँगी कि आप संसार के सबसे अच्छे पालक हैं। बहुत गर्व से कहूँगी कि ये जो हमारे विद्यालय के परिश्रमी माली हैं, मेरे पिता हैं।


मैं जानती हूँ कि मैं आज की लेखन परीक्षा में असफल हो जाऊँगी। क्योंकि मुझे माँ पर लेख लिखना था और मैंने पिता पर लिखा,पर यह बहुत ही छोटी सी क़ीमत होगी उस सब की जो मेरे पिता ने मेरे लिए किया।

 धन्यवाद। 

आख़िरी शब्द पढ़ते - पढ़ते अध्यापिका का गला भर आया था और प्रधानाचार्या के कार्यालय में शांति छा गयी थी।


इस शांति में केवल गंगादास के सिसकने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। बग़ीचे में धूप की गर्मी उसकी कमीज़ को गीला न कर सकी पर उस पेपर पर बिटिया के लिखे शब्दों ने उस कमीज़ को पिता के आँसुओं से गीला कर दिया था। वह केवल हाथ जोड़ कर वहाँ खड़ा था।  


उसने उस पेपर को अध्यापिका से लिया और अपने हृदय से लगाया और रो पड़ा।


प्रधानाचार्या ने खड़े होकर उसे एक कुर्सी पर बैठाया और एक गिलास पानी दिया तथा कहा, "गंगादास तुम्हारी बिटिया को इस लेख के लिए पूरे 15/15नम्बर दिए गए है। यह लेख मेरे अब तक के पूरे विद्यालय जीवन का सबसे अच्छा मातृ दिवस का लेख है। 🌼🍀


हम कल मातृ दिवस अपने विद्यालय में बड़े ज़ोर - शोर से मना रहे हैं। इस दिवस पर विद्यालय एक बहुत बड़ा कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है। विद्यालय की प्रबंधक कमेटी ने आपको इस कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाने का निर्णय लिया है।🌼🍀


 यह सम्मान होगा उस प्यार, देखभाल, दयाभाव और त्याग का जो एक आदमी अपने बच्चे के पालन के लिए कर सकता है। यह सिद्ध करता है कि आपको एक औरत होना आवश्यक नहीं है एक पालक बनने के लिए।🌼🌼


 साथ ही यह अनुशंषा करता है उस विश्वाश का जो विश्वास आपकी बेटी ने आप पर दिखाया। हमें गर्व है कि संसार का सबसे अच्छा पिता हमारे विद्यालय में पढ़ने वाली बच्ची का पिता है जैसा कि आपकी बिटिया ने अपने लेख में लिखा। 🌼


गंगादास हमें गर्व है कि आप एक माली हैं और सच्चे अर्थों में माली की तरह न केवल विद्यालय के बग़ीचे के फूलों की देखभाल की बल्कि अपने इस घर के फूल को भी सदा ख़ुशबूदार बनाकर रखा जिसकी ख़ुशबू से हमारा विद्यालय महक उठा। तो क्या आप हमारे विद्यालय के इस मातृ दिवस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बनेंगे🌼

रो पड़ा गंगादास और दौड़ कर बिटिया की कक्षा के बाहर से आँसू भरी आँखों से निहारता रहा , अपनी प्यारी बिटिया को..🌼🍀🌺

आपको ये कहानी कैसी लगी ?

 अपने अनमोल विचार कमेंट्स में जरूर दीजियेगा 🙏

अच्छी लगी हो तो शेयर और फॉलो जरूर कीजियेगा 🙏

🙏धन्यवाद🙏

🧡💖💖💖🧡

आज के दौर में लड़कियाँ शादी से पहले लड़के की कमाई पर ध्यान देती हैं

 पति को संभोग सुख दो तो वो तुम्हें दुनिया के सारे सुख देगा।** यह बात मैं हमेशा अपनी सहेलियों, माँ, और चाची से सुनती आ रही थी। लेकिन असल में, बात कुछ और थी। जब मेरी शादी 35 साल की उम्र में हुई, तब मेरे पति की उम्र 37 साल थी। पहले लोग जल्दी शादी करने पर जोर देते थे, लेकिन आजकल लोग पहले करियर बनाने में लगे रहते हैं। कम उम्र में शादी से पार्टनर और परिवार से घुलने-मिलने में आसानी होती है, लेकिन देर से हुई शादी में लोग नए माहौल में ढलने में कठिनाई महसूस करते हैं। 💍


**35 की उम्र में शादी करने से शरीर में कामवासना का स्तर भी घटने लगता है, और 37 साल के पुरुष में भी उतनी ऊर्जा नहीं बचती।** जब मेरी शादी हुई, तो मुझे पता था कि मेरे पति की आय कम है, लेकिन 35 साल की उम्र हो जाने के कारण मेरी माँ को मेरी शादी की चिंता होने लगी थी। पापा की असमय मृत्यु के बाद, परिवार ने मुझे शादी करने की सलाह दी। सहेलियों ने कहा कि पति को खुश रखो, वो खुद मेहनत करके ज्यादा कमाएगा। 💰💔


**शादी के बाद, मैंने पाया कि पति के साथ जिम्मेदारी भी आती है।** मेरे पति जानते थे कि मैं उनकी कम आय से खुश नहीं थी। उन्होंने शादी की पहली रात ही मुझसे कहा, "मेरी आय कम है, लेकिन हम साथ में खुश रह सकते हैं। मैं तुम्हें सभी संसाधन नहीं दे सकता, लेकिन इतना जरूर दे सकता हूं कि हमारी जिंदगी अच्छे से चल सके।" **ऐसे ही 20-22 दिन बीत गए, लेकिन हमारे बीच पति-पत्नी का रिश्ता नहीं बन पाया। शायद उन्हें लगा कि मैंने उन्हें मन से स्वीकार नहीं किया है।** 😔💔


**फिर सहेलियों से बात हुई, उन्होंने फिर वही बात कही कि उन्हें खुश रखो।** महीने के अंत में, पति ने मुझे 20000 रुपये दिए और कहा कि मेरी जरूरतें सीमित हैं, ये पैसे तुम रखो। पर जब मैंने हिसाब लगाया तो पैसे कम पड़े। जब मैंने उनसे इस बारे में बात की, तो उन्होंने कहा कि वे दूसरी नौकरी की कोशिश कर रहे हैं। छह महीने बाद हमारा झगड़ा हुआ, और मैं मायके आ गई। उन्होंने कई बार मुझे बुलाया, लेकिन मैंने गुस्से में कहा कि जब आप अच्छा कमाने लगेंगे, तब आना। **इस बात से उन्हें गहरा आघात लगा। उन्होंने वकील से बात कर तलाक की पेशकश की।** 😢🛑


**तलाक के बाद, मैं घर पर रही और फिर नौकरी करने का निश्चय किया।** अब मेरी उम्र 37 साल हो गई थी। नौकरी पर आने के बाद पता चला कि काम कितना कठिन है और डिवोर्सी महिला के साथ कैसे व्यवहार किया जाता है। मेरी तनख्वाह 15000 रुपये थी, और अब समझ में आया कि नौकरी करना कितना कठिन है। पहले 20000 रुपये घर बैठे मिलते थे, लेकिन अब 15000 रुपये के लिए दिनभर की मेहनत करनी पड़ती थी। 🏢💼


**आज मेरे पति की तनख्वाह 86000 रुपये है।** मैंने रिश्ते को पैसे के पैमाने पर तोला, जो सही नहीं था। यदि प्यार से समझती, तो जीवन बेहतर होता। **आज के दौर में लड़कियाँ शादी से पहले लड़के की कमाई पर ध्यान देती हैं, लेकिन असल में चरित्र पर ध्यान देना चाहिए।** शादी जैसे बंधन को चलाने के लिए आपसी सहमति, समझौता और विश्वास जरूरी है। 👫💕


**मुझे यह बात तब समझ आई जब मैंने अपना रिश्ता खो दिया।** किसी अमीर से चार बातें सुनने से बेहतर है कि किसी कम आय वाले के साथ खुशी से रहो। **ये एक सत्य घटना है, आप बताइए, आपके हिसाब से रिश्ते चलाने के लिए पैसे कितने जरूरी हैं?**

शादीशुदा जिंदगी को एंजॉय करेंगे और उसके बाद बच्चे के बारे में सोचेंगे।

 जब मेरी शादी हुई, तो हर दिन और रात मेरे पति के साथ प्यार और रोमांस से भरे हुए थे। हम दोनों एक-दूसरे के साथ वक्त बिताना चाहते थे, और मैं उनके पास रहकर खुद को खो देती थी। लेकिन जैसे ही कुछ हफ्ते बीते, हम पर परिवार और समाज का दबाव बढ़ने लगा - "अब जल्दी से बच्चा दे दो, दूधो नहाओ, पूतो फलो।"  

💑

ऐसा लगने लगा कि लोग हमारी शादी केवल एक बच्चे की जरूरत के लिए चाहते थे। लेकिन मेरे पति और मैं पढ़े-लिखे थे और हमें पता था कि बच्चे की जिम्मेदारी बहुत बड़ी होती है। हमने पहले ही तय कर लिया था कि पहले दो साल अपनी शादीशुदा जिंदगी को एंजॉय करेंगे और उसके बाद बच्चे के बारे में सोचेंगे।  

📚


हम दोनों बहुत रोमांटिक थे और हमारे मूड बनते देर नहीं लगती थी। कई बार बिना प्रोटेक्शन के हमने संबंध बनाए। सुबह होते ही चिंता सताने लगती कि अब क्या होगा। गर्भनिरोधक गोलियां लेने का सहारा लिया, लेकिन हम दोनों जानते थे कि यह स्थायी समाधान नहीं है। डॉक्टर ने हमें प्रतिदिन लेने वाली एक दवा दी और कहा कि जब बच्चा करने का प्लान हो, तो 23 दिन पहले इसे बंद कर दें।  

💊

हमने पूरे दो साल इस दवा का सेवन किया और अपनी शादीशुदा जिंदगी को एंजॉय किया। लेकिन जब दो साल बाद बच्चा पैदा करने की स्थिति आई, तो हम दोनों ने बहुत कोशिश की, पर मैं गर्भधारण नहीं कर पाई। डॉक्टर ने बताया कि मेरी नली सुख चुकी है और गर्भधारण नहीं हो पा रहा है। एक साल इलाज के बाद मेरी रिपोर्ट सही आई, लेकिन फिर भी बच्चा नहीं हो पाया। इस बार मेरे पति की जांच हुई और पता चला कि अत्याधिक संबंध बनाने से वीर्य की क्वालिटी खराब हो गई है। उनके इलाज में भी एक साल लग गया।  

🩺😔


कुल मिलाकर, जब हमारी उम्र बच्चा पैदा करने की थी, तो हमने अपने पढ़े-लिखे होने के कारण फैसला लिया, लेकिन अब जब जरूरत है, तो हर कोशिश के बाद भी मैं मां नहीं बन पा रही हूं। आज मुझे समझ में आता है कि चंद किताबें पढ़ लेने से वह ज्ञान नहीं मिलता जो अनुभव से मिलता है। बड़े-बुजुर्गों की बात मानकर अगर मैंने पहले ही बच्चा किया होता, तो आज मुझे यह दिन नहीं देखना पड़ता।  

📖👵


हर चीज अपने समय से होना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। जीवन में सही समय पर सही निर्णय लेना जरूरी है, ताकि आगे चलकर पछताना न पड़े। यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में सही समय पर सही कदम उठाना कितना महत्वपूर्ण होता है। 🌸  

नीरा के बरसों से रुके आंसू उमड़ पड़े।

 नीरा बिस्तर पर लेटी हुई थी और छत पर घूमते पंखे की पंखुड़ियों को एकटक देख रही थी। जैसे ही पंखुड़ियाँ घूमती, नीरा के मन में पुराने समय की यादें उभरने लगीं। ⏳ उसकी यादों की किताब के पन्ने धीरे-धीरे खुलने लगे, जिसमें वक्त की स्याही भले ही धुंधली पड़ गई हो, लेकिन भावनाओं के निशान अब भी गहरे थे। 🕰️ उसे याद आया कि उसने सोलह साल की उम्र में ही शादी कर ली थी। उसके पति, राजीव, उससे सिर्फ दो साल बड़े थे - अल्हड़, मस्त और बेफिक्र। 💑 घर का पुश्तैनी बिज़नेस उनके पिता, सुरेश जी, संभाल रहे थे, इसलिए राजीव का दिन अपनी नई नवेली दुल्हन के इर्द-गिर्द घूमते हुए बीतता। 🏡 अम्मा अपने बेटे-बहू की हर दिन नज़र उतारतीं और उनके रिश्ते की बलैयाँ लेतीं। 


नीरा भी अम्मा के साथ बैठकर अमिया छीलती या चावल बीनती। 😌 वह घूंघट की ओट से तिरछी नज़रों से राजीव को देखती, और उसकी शरारती निगाहें राजीव के दिल के आर-पार हो जातीं। 💕 अम्मा उनकी प्रेम लीला देखकर भी अनदेखा कर देतीं। राजीव ने ब्याह से पहले ही महंगी मोटरसाइकिल खरीदी थी। 🏍️ सुरेश जी ने कहा भी था कि कार ले लो, बहू आएगी तो आराम रहेगा, पर राजीव का सपना था कि उसकी बहुरिया उसकी कमर पकड़कर बाइक पर पीछे बैठे और वे लॉंग ड्राइव पर जाएं। 🚗


प्रेम के सागर में डूबते-उतरते एक साल बीत गया और नीरा एक प्यारे से बेटे की माँ बन गई। 👶 पूरे नौ महीने सुरेश जी, उनकी पत्नी और राजीव ने नीरा को धरती पर पैर नहीं रखने दिया। अम्मा ने पोता होने की खुशी में अपना नौलखा हार नीरा को दे दिया। 💍 नीरा को डर लगता था कि कहीं किसी की नज़र न लग जाए। 😌


बेटे की छठी पर राजीव ने कहा कि वह नौलखा हार पहन ले, पर नीरा की तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए वह हार पहन नहीं पाई। बेटे के पहले जन्मदिन की धूमधाम से तैयारी हो रही थी, और नीरा को एक सुंदर लाल बनारसी साड़ी में सजाया गया। 🎉 राजीव ने उसे देखा तो बस देखता ही रह गया। 😍 उसने कहा, "अब मैं सब्र नहीं कर सकता, बस तुम्हें अम्मा का नौलखा हार पहने देखना चाहता हूँ," और वह एक मिनट में बाइक उठाकर हार लाने चला गया। 


नीरा जैसे ही गले में नौलखा हार डालने वाली थी, तभी शोर मचा कि गली के नुक्कड़ पर एक तेज रफ्तार कार ने राजीव को टक्कर मार दी। 🚗💥 राजीव के हाथ में नीरा का मनपसंद सफेद मोगरे का गजरा था, जिसे लेने वह जल्दी में गया था। अस्पताल ले जाते-ले जाते राजीव नीरा और अपने माता-पिता को बिलखता छोड़कर इस दुनिया से चला गया। 😢 नन्हा सोनू तो अपनी मस्ती में था, उसे समझ ही नहीं आया कि उसके सर से पिता का साया उठ गया। 


राजीव के बिना जीना नीरा के लिए असंभव था, उसकी दुनिया तो राजीव से शुरू होकर उसी पर खत्म होती थी। 💔 लेकिन धीरे-धीरे, नीरा ने उन तीनों के लिए खुद को संभाला जो राजीव के बाद उसकी जिम्मेदारी बन गए थे। सुरेश जी और उनकी पत्नी ने नीरा से दोबारा घर बसाने की बात की, लेकिन नीरा ने साफ इंकार कर दिया। उसने सुरेश जी के साथ बिज़नेस संभालना शुरू किया और सोनू को पढ़ा-लिखाकर बड़ा करने में जुट गई। 📚


समय बीतता गया, सोनू इंजीनियर बन गया और सुरेश जी ने सारा बिज़नेस नीरा और सोनू के नाम कर दिया। 🏢 सोनू की शादी शीना से हो गई और सुरेश जी और उनकी पत्नी भी चल बसे। नीरा के पास सब कुछ था, लेकिन मन का सुकून नहीं था। 😔 राजीव के बिना उसका जीवन अधूरा था। एक दिन उसने शीना को सोनू से कहते सुना, "मम्मी के पास नौलखा हार है, उन्हें क्या वह बुढ़ापे में पहनेंगीं? मैं तो उनसे वह नौलखा हार लेकर रहूंगी।" 😡


शीना ने आकर नीरा से नौलखा हार मांगा। नीरा ने कहा, "वह मनहूस नौलखा हार मैं कभी तुम्हारे गले में नहीं पहनाऊंगी। राजीव उसे देखने की ललक में चला गया और अब सोनू? नहीं, कभी नहीं। इसे बेच देंगे और इसके पैसे किसी गरीब लड़की के विवाह में दान कर देंगे।" 💔


कहते हुए नीरा के बरसों से रुके आंसू उमड़ पड़े। 😢 सोनू और शीना का सिर दुःख और शर्म से झुक गया। 😔


मनुष्य कुछ सोचता है, लेकिन होता कुछ और है। किसी के चले जाने से जीवन रुकता नहीं, वक्त का पहिया अपनी रफ्तार से चलता रहता है। ⏳ जीना पड़ता है दूसरों के लिए, बिना किसी मंजिल के। नीरा भी राजीव के संग मर तो नहीं सकी, लेकिन अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए जीना पड़ा, जो काम राजीव अधूरे छोड़ गया था, उन्हें पूरा करने के लिए। 🌹 लेकिन ऐसा अधूरा जीवन, जीवन नहीं कहलाता। 😔

लड़की अपने बॉयफ्रेंड से पूछती है,

 लड़की अपने बॉयफ्रेंड से पूछती है, "अच्छा, किसी दूसरे लड़के से मेरा विवाह हो जाए तो तुम क्या करोगे?" 

लड़का जवाब देता है, "तुम्हें भूल जाऊंगा।" (लड़के ने बहुत छोटा सा जवाब दिया)  


ये सुनकर लड़की गुस्से में दूसरी तरफ घूम कर बैठ गई। फिर लड़के ने कहा, "सबसे बड़ी बात कि तुम मुझे भूल जाओगी। जितना जल्दी मैं तुम्हें भुला सकूंगा, उससे ज्यादा जल्दी तुम मुझे भुला दोगी।"  

"कैसे?" लड़की ने पूछा।  

लड़के ने बोलना शुरू किया, "सोचो, विवाह का पहला दिन है। तुम एक नए घर में हो, शरीर पर जेवर, चेहरे पर मेकअप, चारों तरफ कैमरे का फ्लैश और लोगों की भीड़। तुम चाह कर भी मुझे याद नहीं कर पाओगी।"  


"और मैं तुम्हारे विवाह की खबर सुनकर दोस्तों के साथ कुछ उटपटांग पीकर किसी कोने में पड़ा रहूंगा। फिर जब मुझे होश आएगा, तो मैं तुम्हें धोखेबाज बेवफा बोलकर गाली दूंगा।"  


"फिर जब तुम्हारी याद आएगी, तो दोस्त के कंधे पर सर रखकर रो लूंगा। विवाह के बाद तुम्हारा बिजी टाइम शुरू होगा। तुम अपने पति और हजार तरह के रस्मों को निभाने में बिजी रहोगी। फिर कभी-कभी तुम्हें मेरी याद आएगी जब तुम अपने पति का हाथ पकड़ोगी या उसके साथ बाइक पर बैठोगी।"  


"और मैं आवारा की तरह इधर-उधर घूमता रहूंगा, जैसे जिंदगी का कोई मकसद ही नहीं। अपने दोस्तों को समझाऊंगा कि 'कभी प्यार मत करना, कुछ नहीं मिलता, जिंदगी खतम हो जाती है प्यार के चक्कर में।'"  


"कुछ वक्त बाद तुम अपने पति के साथ हनीमून पर जाओगी। नया घर होगा, शॉपिंग होगी, नई जिम्मेदारियां होंगी। तब अचानक तुम्हें मेरी याद आएगी और तुम सोचोगी, 'पता नहीं किस हाल में होगा।' मेरी खुशी की प्रार्थना मांगते हुए वापस अपने परिवार में बिजी हो जाओगी।"  

🌅💼 मै अब तक मम्मी, पापा, भाई या फिर दोस्तों से डांट सुन-सुन कर लगभग सुधर गया हूं। सोच लिया है, अब कोई काम करना है, एक अच्छी सी लड़की से विवाह करके तुम्हें भी दिखा देना है। सबको यही बोलूंगा कि भुला दिया है मैंने तुम्हें, लेकिन तब भी मैं तुम्हारे मैसेजेस को आधी रात को निकालकर पढूंगा और सोचूंगा, शायद मेरे प्यार में ही कमी थी जो तुम्हें न पा सका। फिर अपनी तकलीफ को कम करने की कोशिश करूंगा।"  

📱😢


"दो वर्ष बाद अब तुम कोई प्रेमिका या नई दुल्हन नहीं रही, अब तुम माँ बन चुकी हो। पुराने आशिक की याद और पति के प्यार को छोड़कर तुम अपने बच्चे के लिए सोचोगी। अब तुम अपने बच्चे के साथ बिजी रहोगी, मतलब अब तक मैं तुम्हारी जिंदगी से परमानेन्टली डिलीट हो चुका हूं।"  

👶💔


"इधर मुझे भी एक अच्छा काम मिल गया है, विवाह की बात चल रही है और लड़की भी पसंद आ गई है। अब मेरा बिजी टाइम शुरू हो गया है। अब मैं तुम्हें सचमुच भूल गया हूं। अगर किसी जोड़ी को देखता हूं तो तुम्हारी याद आती है, लेकिन अब तकलीफ नहीं होती।"  

यहां तक सुनने के बाद लड़के ने देखा, लड़की की आंखों में आंसू छलक रहे हैं। लड़की भरी आंखों से लड़के की तरफ देखती है। दोनों बिल्कुल चुप हैं, पर आंखें बरस रही हैं। थोड़ी देर बाद लड़की ने पूछा, "तो क्या सब कुछ यहीं खतम हो जाएगा?"  

लड़के ने जवाब दिया, "नहीं। किसी दिन जब तुम रूठ जाओगी अपने पति से किसी बात पर, लेकिन तुम्हारे पति आराम से सो रहे होंगे। पर उस रात तुम्हारी आंखों में नींद नहीं होगी। इधर मैं भी अपनी पत्नी से किसी बात पर खफा होकर तुम्हारी तरह जागूंगा। पूरी दुनिया सो रही होगी सिर्फ हम दोनों के अलावा। फिर हम अपने अतीत को याद करके खूब रोएंगे, एक दूसरे को बहुत महसूस करेंगे, लेकिन इस बात का भगवान के अलावा और किसी को पता नहीं चलेगा।"  

उम्मीद है कि मेरे इस अनुभव से आप सभी को कुछ सीख मिलेगी

 शादी के शुरुआती दिनों में जो सुकून और खुशी मिलती है, उसका अनुभव शायद हर नई दुल्हन ने किया होगा। खासकर ठंड के मौसम में, जब अपने पति के साथ वक्त बिताने का अलग ही मज़ा होता है। मेरी शादी नवंबर में हुई थी, और मुझे एक प्यार करने वाला, रोमांटिक पति मिला था। हमारे बीच एक खास जुड़ाव था, और वो हर पल को रोमांटिक बना देते थे। वो कहते थे कि प्यार और विश्वास में गहराई लाने के लिए यह जरूरी है, और सच कहूं तो, उनके साथ वक्त बिताना मेरी जिंदगी का सबसे हसीन अनुभव था।


जनवरी का महीना था और कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। रात के एक बजे सभी अपने-अपने कमरों में आराम कर रहे थे। हम भी अपने कमरे में बातें कर रहे थे, लेकिन ठंड के कारण हमारी बातें अचानक से किसी और दिशा में मुड़ गईं। जैसे ही कुछ खास होने वाला था, मम्मी जी ने जोर से पुकारा। मैं तुरंत बाहर गई तो उन्होंने कहा कि बर्तन ऐसे ही पड़े हैं, यह शुभ नहीं है। मन में तो यही आ रहा था कि इतना अच्छा मूड था, फालतू में मम्मी जी ने बुला लिया। लेकिन मैंने बर्तन साफ किए और वापस आई।


समय बीतने के साथ, घर की जिम्मेदारियां और काम का बोझ बढ़ने लगा। मम्मी जी मुझे हर काम में टोकने लगीं। उनकी सबसे बड़ी शिकायत यह थी कि मैं काम में देरी कर रही हूँ। धीरे-धीरे, यह बातें मेरी जेठानी तक पहुंचने लगीं, और घर का माहौल तनावपूर्ण हो गया। एक दिन, जब नाश्ता और लंच तैयार नहीं हो पाया, तो मम्मी जी ने हमें डांटा। मैंने जब इस बात की शिकायत अपने पति से की, तो उन्होंने भी मुझसे ही कहा कि मुझे समय का ध्यान रखना चाहिए। इसके बाद, घर का रूटीन बिगड़ने लगा। खाना देर से बनता, और हम दोनों देवरानी-जेठानी ने काम को जल्दी निपटाने के चक्कर में हर काम आधे मन से करना शुरू कर दिया।


घर का माहौल धीरे-धीरे और बिगड़ने लगा। मेरे पति, जो पहले बहुत प्यार करते थे, अब चिढ़ने लगे थे। एक दिन, सासु माँ ने हमसे हमारे फोन मांग लिए और कहा कि अब से फोन सिर्फ दोपहर 1 बजे से रात 7 बजे तक मिलेगा। इस बात पर हमें गुस्सा आया, लेकिन फिर भी हम चुप रहे। रक्षा बंधन पर जब मैंने यह बात अपने घरवालों को बताई, तो उन्होंने भी मुझे समझाया कि सासु माँ की बातों पर ध्यान देना चाहिए।


इस घटना के बाद, मैंने और मेरी जेठानी ने देखा कि जबसे हमने फोन का इस्तेमाल कम किया, हमारे काम तेजी से निपटने लगे। शॉर्ट वीडियो और रील्स देखने की आदत ने हमें इतना व्यस्त कर दिया था कि हम घर के काम में देरी कर रहे थे, और इसका असर हमारे रिश्तों पर भी पड़ रहा था। लेकिन जब हमने यह आदत छोड़ी, तो सब कुछ सामान्य होने लगा।


अब सोचिए, यह शॉर्ट्स और रील्स कितनी खतरनाक हो सकती हैं। यह मीठा जहर हमारे समय को चुपचाप खा जाता है, और हमें पता भी नहीं चलता। अगर आपको भी लगता है कि आपका समय जल्दी खत्म हो जाता है और आप कुछ खास नहीं कर पाते, तो एक महीने के लिए रील्स देखना बंद कर दीजिए। यह छोटा सा कदम आपके जीवन में बड़ा बदलाव ला सकता है। उम्मीद है कि मेरे इस अनुभव से आप सभी को कुछ सीख मिलेगी, और आप भी अपने जीवन को बेहतर बना पाएंगे।

आज खाना खाकर तुमने मेरा कितना बड़ा सम्मान किया मुझे माफ कर दो

 ग्रामीण बैंक में मैनेजर की पोस्टिंग होने के बाद पहली बार राजेश किराए के नए घर में शिफ्ट हुऐ थे. पर आज ही सीढ़ियों से फिसलने के कारण प्रिया के पैरों में जबरदस्त मोच आ गयी थी. डॉक्टर ने घर पर आकर पट्टियाँ तो बाँध दी. साथ ही साथ सख्त हिदायत दे दीं कि चलना फिरना बिल्कुल मना है.

एक सप्ताह पहले आये नए घर के आस पास कोई जान पहचान के लोग भी नहीं थे. ये तो बहुत अच्छी बात रही कि पिछले कुछ दिनों में प्रिया ने किचन के साथ साथ पूरे घर को व्यवस्थित कर लिया था.

चार साल पहले राजेश और प्रिया की परिवार वालों की सहमति से अर्रेंज मैरेज हुई थी. प्रिया खुद भी पढ़ने में काफी तेज थी और पढ़ लिख कर जीवन मे कुछ बनना चाहती थी. लेकिन पापा को कैंसर का पता चला और उसी वक़्त राजेश के यहाँ से रिश्ता आया तो मजबूरी के चलते शादी करनी पड़ी.

शादी के बाद प्रिया पूरी तरह से ससुरालवालों की खुशियों के लिए खुद को न्योछावर कर दी. वो पूरी तरह से आदर्श बहू बन गयी. ससुराल में सब उसकी तारीफ करते नहीं थकते थे. उसके व्यवहार ,कार्यकुशलता से सभी प्रभावित थे.

कुछ ही दिनों में उसने अपने ससुराल की काया बदल कर रख दी थी. पहले हर चीज जैसे तैसे होती थी. अब हर चीज साफ सुथरी और व्यवस्थित रहने लगी. खाना भी वो बड़े जतन से बनाती थी. हर लोग उसके बनाये लजीज खाने की खूब तारीफ करते. सिवाय उसके पति राजेश के.

राजेश को जरा भी खाने में नमक कम या ज्यादा लगता या मसाला कम होता तो वो एक कोर खाना खाकर छोड़ देता था. परसों खीर में थोड़ी चीनी कम क्या हुई? प्रिया के लाख मिन्नतों के बाद भी उसने खाने को दुबारा हाथ तक नहीं लगाया.

सबसे ज्यादा राजेश को मटर पनीर पसंद थी. कुछ दिनों पहले जब मटर पनीर बनी और मटर थोड़ी गल गयी तो भी राजेश ने खाना नहीं खाया. जबकि घर के सभी सदस्यों ने खूब मजे से खाये.

प्रिया के लाख मिन्नतें करने और मनाने के बाद भी राजेश खाना नहीं खाता था. और राजेश जब भूखा सो जाता तो प्रिया भी भूखी सो जाती थी. महीने में कई बार ऐसा होता था. अब पहली बार राजेश नौकरी के लिए घर से दूर आया था.

प्रिया को पलँग पर अच्छे से सुलाकर राजेश आज जिंदगी मे पहली बार खाना बनाने के ख्याल से घुसा. किचन में हर चीज प्रिया ने व्यवस्थित रखा था. राजेश ने एक तरफ थोड़ा सा चावल गैस चूल्हे पर चढ़ा दिया और दूसरी तरफ थोड़ी सी दाल एक पतीले में चढ़ा दी.

फिर वो थोड़े आलू प्याज लेकर भुजिया काटने लगा. काफी मेहनत के बाद बहुत ही बेतरतीब ढंग से आलू और प्याज कटे. उसे आभास होने लगा था खाना बनाने में बहुत मेहनत लगती है. दो घंटे की मेहनत के बाद उसने किसी तरह खाना बनाने में सफलता पाई.

एक थाली में भात और कटोरी में दाल और प्लेट में भुजिया लेकर वो पलँग पर प्रिया को अपने हाथों से खाना खिलाने लगा. वो कोर कोर प्रिया को खाना खिलाता जाता था और प्रिया बड़े आराम से खुशी-खुशी खाना खाती जाती थी.

खाना खत्म होने के बाद राजेश ने प्रिया से पूछा कैसा लगा खाना? प्रिया ने कहा बहुत अच्छा. मैं कितनी खुशनसीब हूँ आज जिन्दगी में पहली बार पति के हाथों बना गरमागरम खाना खाने को मिला. राजेश से सुनकर बहुत खुश हुआ. आखिर दो घंटे कड़ी मेहनत करके उसने खाना बनाया था.

खाने की तारीफ सुनकर वह फूला न समाया. उसे लगा उसकी मेहनत सफल रही. प्रिया को खाना खिलाने के बाद वो खुद खाना खाने बैठा. उसे जोरों की भूख लगी थी. दाल भात मिलाकर थोड़ी भुजिया का कोर बनाकर जैसे ही मुँह में डालकर राजेश ने चबाना शुरू किया. तेजी से वाश बेसिन की तरफ दौड़ा और मुँह का सारा खाना वाश बेसिन में उगल दिया.

चावल कच्चा पक्का था. दाल में नमक बहुत ज्यादा था. भुजिया भी कच्चा था. ऐसा घटिया खाना प्रिया ने बिना कोई शिकायत के खा लिया. सिर्फ इसलिए कि मैंने इतनी मेहनत से बनाया था. छोटी-छोटी बात पर पिछले सारे खाना न खाने वाले वक़्त की उसे याद आने लगी.

उसके दोनों आँखों से आँसू निकल पड़े. अपने बनाये जिस जिस खाने को वो एक कोर भी न खा सका. प्रिया ने बिना कुछ कहे पूरे खाने को खा लिए. राजेश प्रिया के सामने सर झुकाए हाथ जोड़े धीरे से बोला- "पिछले चार सालों में कई बार खाना न खाकर मैंने तुम्हारा जो अपमान किया. आज खाना खाकर तुमने मेरा कितना बड़ा सम्मान किया मुझे माफ कर दो.

प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा, दूध गर्म कर चूड़ा के साथ आज खा लीजिए. एक दो दिनों में मैं ठीक हो जाऊँगी. फिर आपको कभी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा.

इसके बाद कोई भी ऐसा वक़्त नहीं आया. जब प्रिया का बनाया खाना राजेश ने खुशी खुशी न खाया हो. एक बार खाना बनाने में लगी मेहनत ने राजेश को पत्नी का सम्मान करना सीख गया था।

दोपहर में पति के संभोग करने में जो सुकून है वो दुनिया के किसी और काम में नही है,

 ठंड के दिनों में दोपहर में पति के संभोग करने में जो सुकून है वो दुनिया के किसी और काम में नही है, खास तौर पर जब आप की नई नई शादी हुई है, और एक हैंडसम खूब प्यार करने वाला पति मिला हो

वो लड़कियाँ इस बात को ज्यादा समझ पाएंगी जिनकी नई-नई शादी हुई हो। नवंबर में मेरी शादी हुई थी, मुझे एक अच्छा परिवार और प्यार करने वाला पति मिला था। दोस्त की तरह एक ननद और दो जेठानियाँ मिली थीं। पतिदेव इतने रोमांटिक थे कि जब भी मौका मिले, शुरू हो जाते थे। उनका कहना था कि ऐसा करने से प्यार और विश्वास में गहराई आती है। सच कहूं तो प्यार और विश्वास का तो ज्यादा नहीं पता, पर पति रोमांटिक मिल जाए तो जिंदगी मजेदार हो जाती है।

जनवरी का महीना था और कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। तकरीबन एक बजे रात को खाना खाकर सभी अपने-अपने कमरे में आराम करने चले गए। मैं और मेरे पतिदेव भी अपने कमरे में चले गए। थोड़ी बातें हो रही थीं, लेकिन ठंडी में बातें कहाँ से कहाँ पहुंच जाती हैं, कोई नहीं जानता।

हम दोनों का भी यही हाल था। जैसे ही कुछ होने वाला था, तभी मम्मी जी ने जोर से बुलाया। तुरंत दरवाजा खोला और बाहर चली गई। मम्मी जी ने कहा, "बर्तन ऐसे ही पड़े हैं, ये शुभ नहीं है। जाओ आराम करो, आगे से ध्यान देना। मैं साफ कर देती हूँ अभी।"

मैंने कहा, "मम्मी, आप रहने दीजिए, मैं कर देती हूँ।" और मन ही मन सोचने लगी कि इतना अच्छा सीन था, फालतू मम्मी जी ने बुला लिया।

धीरे-धीरे, जैसे-जैसे पुरानी होती गई, मम्मी जी मुझे हर चीज पर टोकने लगीं। उनका सबसे ज्यादा गुस्सा इस बात पर होता कि मैं काम करने में देरी कर रही हूँ, जबकि मैं हर काम अपने हिसाब से करती थी। धीरे-धीरे यह बात जेठानी जी को भी कहने लगीं।

एक दिन सभी को ऑफिस जाना था, लेकिन नाश्ता और लंच तैयार नहीं हो पाया। इस पर मां जी ने हमें डांटा। शाम को जब पतिदेव घर आए तो मैंने यह बात बताई, तो वो मेरे ऊपर ही बोलने लगे कि तुम्हें ध्यान देना चाहिए, ऑफिस का समय इधर-उधर नहीं हो सकता।

धीरे-धीरे, पता नहीं कैसे, शाम का खाना जो पहले 8 बजे तक हो जाता था, अब 11 बजे तक होने लगा था। माँ का गुस्सा हम पर फूटने लगा कि तुम लोगों ने आते ही घर का सारा रूटीन बदल दिया। 11 बजे खाने के बाद सोते-सोते 1 बज जाता, और सुबह उठने में तकलीफ होती। फिर नाश्ता बनाने में आलस आता। हम दोनों देवरानी-जेठानी इस चक्कर में पड़ गए कि जल्दी से बिना मेहनत का खाना बना दें।

इस बात का फर्स्ट्रेशन पतिदेव और बड़े भैया में भी देखने को मिलने लगा था, लेकिन गलती कहाँ हो रही थी, समझ में नहीं आ रहा था। धीरे-धीरे घर की शांति भी भंग होने लगी। जो आदमी शादी के समय इतना प्यार करता था, वो अब हर सवाल का जवाब चिढ़कर देने लगा।

फिर एक दिन हद हो गई। सासु माँ ने हम दोनों से कहा कि तुम दोनों अपना फोन मुझे दे दो। हम दोनों को गुस्सा आता है। मैं तो कुछ नहीं बोलती, पर जेठानी जी बोल देती हैं कि मम्मी घर को घर रहने दीजिए, इसे जेल मत बनाइए। उन्होंने एक ना सुनी और फोन ले लिया और कहा, "अब से फोन सिर्फ दोपहर 1 बजे से रात 7 बजे तक मिलेगा।"

हमें अपनी सास का यह रवैया काफी खराब लगा। दो दिन बाद रक्षा बंधन था। मैंने माँ और पापा से सारी बात बताई जब मैं अपने भाई को राखी बांधने गई थी। मेरी माँ और भाई भड़क गए और बोले कि अभी बात करता हूँ, किसी की पर्सनल चीज को लेने का क्या हक बनता है।

पापा ने भाई को समझाया और बोले, "तुम इतने बड़े नहीं हुए हो जो इसकी सास से ऐसे पेश आओ।" फिर पापा मुझे कोने में ले जाते हैं और बोलते हैं, "बेटा, तुम्हारी सास तुमसे उम्र में बड़ी है, एक बार उनकी बात मानो, आखिर इसमें कुछ सच्चाई हो।"

मैं घर आती हूँ और अगले दिन सुबह जल्दी उठकर खाना बनाती हूँ, समय पर सबको खाना देती हूँ और घर के सारे काम भी निपटा देती हूँ। लगभग एक महीने बाद मुझे और मेरी जेठानी को यह बात समझ आई कि हम दोनों का हाथ धीमा क्यों चल रहा था। जो काम पहले 8 बजे होता था, वो अब 11 बजे क्यों हो रहा था। इसके पीछे कारण था मोबाइल, और मोबाइल में भी सबसे खतरनाक चीज छोटी शॉर्ट वीडियो, जो एक के बाद एक देखते जाओ, कैसे समय को खा रही है, पता ही नहीं चलता।

मैंने यह भी देखा कि जबसे शॉर्ट देखना बंद किया, किसी चीज पर ज्यादा ध्यान टिकने लगा। कोई भी बात काफी जल्दी समझ में आने लगी। और सबसे बड़ी बात, पहले घर का सारा काम करके 2 बजे खाली होते थे, अब 12 बजे हो जाते हैं।

मुझे और जेठानी जी को इस बात को समझने में समय लगा, लेकिन आज एक साल हो गया है। अब सुबह उठकर फोन ना देखना अपने आप में एक अच्छी आदत बन गई है। शायद मेरे पापा यह बात जानते थे, इसलिए बड़ी सहूलियत से बोल दिया कि जो सासु माँ बोल रही हैं, कुछ दिन करके देखो। हमारे घर में होने वाली किचकिच खत्म हो गई।

अब सोचिए, ये शॉर्ट्स कितनी खतरनाक चीज है। मेरा जो हाल था, वही हाल आज की हर लड़की और लड़के का है। शॉर्ट और रील के चक्कर में जो काम 10 मिनट का है, वो 2 घंटे में पूरा होता है।

यदि आप भी अपने परिवार को ठीक से संभाल नहीं पा रहे हैं या आपको लगता है कि समय बहुत जल्दी खत्म हो जाता है और आप सारा दिन कुछ कर नहीं पाते, तो मात्र 1 महीने के लिए रील देखना बंद कर दीजिए। यह मीठा जहर है, जो अंदर से दिमाग और हमारे समय को धीरे-धीरे खा रहा है।

उम्मीद है, मेरे इस अनुभव से बहुत सी गृहणियों को कुछ फायदा होगा। कमेंट करके यह भी बताएं कि क्या आपने यह नोटिस किया है कि रील देखने से बिना अंदाज का समय नष्ट होता है

अरे भाग्यवान तुम्हारा बेटा किसी का पति भी है

 *# अरे भाग्यवान तुम्हारा बेटा किसी का पति भी है*


रात के 11:00 बज चुके थे। श्रीनाथ जी को बहुत नींद आ रही थी, पर पत्नी थी कि अभी तक बेटे तरुण के कमरे से निकलकर नहीं आई थी। दो बार श्रीनाथजी उसके कमरे में चक्कर लगाकर आ चुके थे और अपनी पत्नी को बुला चुके थे। आखिर बहू नव्या को रसोई में जाते देखकर उठ गए और तरुण के कमरे में जाकर बोले,


"अरी भाग्यवान, कब तक तरुण के कमरे में ही बैठी रहोगी? अब इन्हें भी सोने दो और खुद भी सो जा"


" आपको भी क्या चैन नहीं है? कुछ पल मेरे बेटे से बातें कर रही हूँ लेकिन आपको वो भी नहीं सुहाता"


" अरे मुझे तो सब सुहाता है। पर तुम दवाई लेना भूल जाती हो और फिर मुझ से ही झगड़ा करती हो कि आप याद नहीं दिला सकते थे क्या?"

" हां तो ठीक है ना, दवाई लेकर आ कर बैठ जाती हूं"


" नहीं नहीं, तुम दवाई कमरे में ही लो और फिर आराम करो। डॉक्टर ने दवा लेने के बाद आराम करने के लिए कहा है"

" लेकिन कब?"

" इस बार जब गए थे तब डॉक्टर ने कहा था"

" पर मेरे सामने तो ऐसा कुछ नहीं कहा"

" अरे तुम बाहर निकल गई थी तब कहा था"


आखिर सुषमा जी को मन मार कर अपने कमरे में आना पड़ा। सुषमा जी के कमरे में आते ही श्रीनाथजी ने कहा,

" क्या तुम बच्चों के कमरे में बैठी रहती हो। अच्छा लगता है क्या?"

" इसमें अच्छा लगने की क्या बात है? मेरे बेटे से ही तो बात कर रही हूँ। पहले भी तो रात को मैं उससे बातें करती थी"

" पर पहले की बात और थी। अब बात और है। अब घर में बहू आ चुकी है। और पहले कौन सा तुम उसके कमरे में ग्यारह बारह बजे तक बैठी रहती थी"


" तो? बहू के आने के बाद भी मेरा बेटा तो बेटा ही रहेगा ना"

सुषमा जी ने तुनक कर कहा और अपनी दवाई लेकर सोने चली गईं। श्रीनाथजी अपना सिर पकड़ कर बैठ गए।

दूसरे दिन सुबह श्रीनाथजी अपने मॉर्निंग वॉक से लौट कर आए तो घड़ी में 8:00 बज चुके थे। तरुण अपना नाश्ता कर रहा था और सुषमा जी वहीं डाइनिंग टेबल पर बैठी हुई थीं जबकि बहू नव्या नाश्ता सर्व कर रही थी। सुषमा जी नव्या को बिल्कुल भी तरुण के पास रुकने नहीं दे रही थीं। जैसे ही नव्या कुछ सर्व करने के लिए भी आती तो सुषमा जी बर्तन उसके हाथ से ले लेतीं।


श्रीनाथजी अपने साथ गरमा गरम कचोरियां लेकर आए थे। उसे नव्या को देकर बोले,

" ले बहू तरुण को भी परोस दे"


नव्या कचौरियाँ लेकर तरुण की तरफ बढ़ ही रही थी कि सुषमा जी ने उसके हाथ से कचोरियाँ भी ले लीं और उससे कहा,

" जा बहू तू तरुण का टिफिन पैक कर दे। मैं ही कचौरियाँ परोस दूंगी"


'हे भगवान! इस औरत को कब समझ आएगा' यही बात सोचते हुए श्रीनाथजी वहीं सोफे पर बैठ गए। और सुषमा जी के तमाशे देखने लगे। थोड़ी देर बाद तरुण घर से निकलने लगा तो उसने नव्या को आवाज देकर कहा,

" नव्या शाम को जल्दी तैयार हो जाना। प्रवीण के यहाँ पार्टी में जाना है। मेरे सारे दोस्त आ रहे हैं"

इससे पहले कि नव्या कुछ कहती सुषमा जी बोलीं,


" अरे फिक्र मत कर बेटा, हम लोग टाइम से तैयार हो जाएंगे। तू जा"

सुषमा जी की बात सुनकर तरुण एक पल के लिए रुक गया। यहां तक कि श्रीनाथजी भी हैरानी से अपनी पत्नी की तरफ देखने लगे तो सुषमा जी ने कहा,

"अरे खड़ा क्या है? जाता क्यों नहीं? देर हो जाएगी ऑफिस में"

तरुण ने अपने पापा की तरफ देखा, तो उन्होंने उसे जाने का इशारा किया। अपने पापा का आश्वासन पाते हैं वो वहां से रवाना हो गया, वहीं नव्या भी रसोई में चली गई। आखिर बोलती भी तो बोलती क्या?

वहीं सुषमा जी कमरे में आकर अलमारी खोलकर अलमारी के सामने खड़ी हो गईं। पीछे पीछे श्रीनाथजी भी कमरे में आ गए,

" क्या कर रही हो भाग्यवान?"


" अरे शाम की पार्टी के लिए क्या पहनूँ? बस यही सोच रही हूं"

" मैं यही तो पूछना चाहता हूं कि तुम कर क्या रही हो?"

" मतलब???"

" तुम्हें कुछ समझ है कि नहीं या तरुण की शादी के बाद समझ बेच खाई। तरुण के दोस्तों की पार्टी है, वहां तुम कहां अच्छी लगोगी?"

" अरे तो मैं तो उसके सारे दोस्तों को जानती हूं। वो सब भी तो मेरे बच्चे जैसे ही हैं"

" अरे बच्चे जैसे हैं तो भी तो उन्हें स्पेस तो चाहिए ना"

" ऐसा है तो वो अकेला चला जाएगा। जरूरी है क्या नव्या को साथ लेकर जाना? नव्या तो उसके सारे दोस्तों को भी ठीक से जानती भी नहीं"

" अरे नहीं जानती तो जान जाएगी। वो दोनों पति पत्नी हैं। तुम्हें शोभा देता है क्या बच्चों के साथ जाना"

" अरे! पर तरुण मेरा बेटा है"

" पर भाग्यवान, तुम्हारा बेटा अब किसी का पति भी है। अगर इतना ज्यादा इन दोनों के रिश्ते के बीच में आओगी तो एक दिन ऐसा आएगा कि तुम इस घर में अकेली रह जाओगी। हर रिश्ते की अपनी मर्यादा होती है। इतनी मर्यादा क्या तोड़ना कि मजबूर होकर बेटे बहू को तुम्हारे सामने खड़े होकर बोलना पड़े."

" ऐसे कैसे जी? मेरी बड़ी जीजी ने भी अपने बच्चों को कितनी छूट दी थी। क्या हुआ? बाद में बहू बेटे को लेकर के हमेशा हमेशा के लिए अलग हो गई। ना बाबा ना, मैं अपने बेटे को इस तरह अकेला नहीं छोड़ सकती और मैं नव्या को कोई मौका नहीं दूंगी कि वो मेरे बेटे को लेकर अलग हो"


" जब इतना ही डर था तो फिर बेटे की शादी ही क्यों की थी? देखो भाग्यवान, हर बात के दो पहलू होते हैं। जीजी का बेटा बहू लेकर अलग हुई। इल्जाम लगाना आसान है पर क्या उनके बेटे में अक्ल नहीं थी"

" लेकिन"

" लेकिन वेकिन कुछ नहीं। शाम को सिर्फ नव्या और तरुण जा रहे हैं। कुछ तो अपने संस्कारों पर भी विश्वास करो। थोड़ा स्पेस तो दो बच्चों को। और आइंदा मैंने इस तरह की हरकत देखी ना तो याद रखना मैं तरुण को कह दूंगा कि अपना ट्रांसफर दूसरे शहर करवा ले। फिर बैठी रहना अकेली."


जब श्रीनाथजी ने थोड़ा सख्त होते हुए कहा, तब जाकर सुषमा जी चुप हो गईं। आखिर पति को गुस्से में देख कर उन्होने चुप रहना ही ठीक समझा। क्योंकि वो जानती थीं, आखिर गलत वो खुद ही हैं। आखिर शाम को तरुण और नव्या ही पार्टी में गए।

रिश्तों मे नफा नुकशान नही देखा जाता।

 रिश्तों मे नफा नुकशान नही देखा जाता।


विनोद हाईवे पर गाड़ी चला रहा था।

सड़क के किनारे उसे एक 12-13 साल की लड़की तरबूज बेचती दिखाई दी। विनोद ने गाड़ी रोक कर पूछा "तरबूज की क्या रेट है बेटा? " लड़की बोली " 50 रुपये का एक तरबूज है साहब।"


पीछे की सीट पर बैठी विनोद की पत्नी बोली " इतना महंगा तरबूज नही लेना जी। चलो यहाँ से। "विनोद बोला "महंगा कहाँ है इसके पास जितने तरबूज है कोई भी पांच किलो के कम का नही होगा। 50 रुपये का एक दे रही है तो 10 रुपये किलो पड़ेगा हमें। बाजार से तो तू बीस रुपये किलो भी ले आती है। "


विनोद की पत्नी ने कहा तुम रुको मुझे मोल भाव करने दो।” फिर वह लड़की से बोली "30 रुपये का एक देना है तो दो वरना रहने दो। " लड़की बोली " 40 रुपये का एक तरबूज तो मै खरीद कर लाती हूँ आंटी। आप 45 रुपये का एक ले लो। इससे सस्ता मै नही दे पाऊँगी।"


विनोद की पत्नी बोली" झूठ मत बोलो बेटा। सही रेट लगाओ देखो ये तुम्हारा छोटा भाई है न? इसी के लिए थोड़ा सस्ता कर दो।" उसने खिड़की से झाँक रहे अपने चार वर्षीय बेटे की तरफ इशारा करते हुए कहा।


सुंदर से बच्चे को देख कर लड़की एक तरबूज हाथों मे उठाते हुए गाड़ी के करीब आ गई। फिर लड़के के गालों पर हाथ फेर कर बोली " सचमुच मेरा भाई तो बहुत सुंदर है आँटी।" विनोद की पत्नी बच्चे से बोली "दीदी को नमस्ते बोलो बेटा। " बच्चा प्यार से बोला "नमस्ते दीदी। लड़की ने गाड़ी की खिड़की खोल कर बच्चे को बाहर निकाल लिया फिर बोली " "तुम्हारा नाम क्या भैया? "


लड़का बोला " मेरा नाम गोलू है दीदी। " बेटे को बाहर निकालने के कारण विनोद की पत्नी कुछ असहज हो गई। तुरंत बोली "अरे बेटा इसे वापस अंदर भेजो। इसे डस्ट से एलर्जी है।"लड़की उसकी आवाज पर ध्यान न देते हुए लड़के से बोली "तु तो सचमुच गोल मटोल है रे भाई। तरबूज खाएगा? "लड़के ने हाँ मे गर्दन हिलाई तो लड़की ने तरबूज उसके हाथों मे थमा दिया।


पाँच किलो का तरबूज गोलू नही संभाल पाया। तरबूज फिसल कर उसके हाथ से नीचे गिर गया और फूट कर तीन चार टुकड़ों मे बंट गया। तरबूज के गिर कर फुट जाने से लड़का रोने लगा।


लड़की उसे पुचकारते हुए बोली अरे भाई रो मत। मै दूसरा लाती हूँ। फिर वह दौड़कर गई और एक और बड़ा सा तरबूज उठा लाई।


जब तक वह तरबूज उठा कर लाई इतनी देर मे विनोद की पत्नी ने बच्चे को अंदर गाड़ी मे खींच कर खिड़की बन्द कर ली। लड़की खुले हुए शीशे से तरबूज अंदर देते हुए बोली "ले भाई ये बहुत मिठा निकलेगा।” विनोद चुपचाप बैठा लड़की की हरकतें देख रहा था।


विनोद की पत्नी बोली "जो तरबूज फूटा है मै उसके पैसे नही दूँगी। वह तुम्हारी गलती से फूटा है। "लड़की मुस्कराते हुए बोली "उसको छोड़ो आंटी। आप इस तरबूज के पैसे भी मत देना। ये मैने अपने भाई के लिए दिया है। "

इतना सुनते ही विनोद और उसकी पत्नी दोनों एक साथ चौंक पड़े। विनोद बोला " नही बिटिया तुम अपने दोनों तरबूज के पैसे लो।" फिर सौ का नोट उस लड़की की तरफ बढ़ा दिया। लड़की हाथ के इशारे से मना करते हुए वहाँ से हट गई। औ अपने बाकी बचे तरबुजों के पास जाकर खड़ी हो गई।


विनोद भी गाड़ी से निकल कर वहाँ आ गया था। आते ही बोला "पैसे ले लो बेटा वरना तुम्हारा बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा।" लड़की बोली "माँ कहती है जब बात रिश्तों की हो तो नफा नुकसान नही देखा जाता। आपने गोलू को मेरा भाई बताया मुझे बहुत अच्छा लगा। मेरा भी एक छोटा सा भाई था मगर.."


विनोद बोला "क्या हुआ तुम्हारे भाई को? "

वह बोली "जब वह दो साल का था तब उसे रात मे बुखार हुआ था। सुबह माँ हॉस्पिटल मे ले जा पाती उससे पहले ही उसने दम तौड़ दिया था। मुझे मेरे भाई की बहुत याद आती है। उससे एक साल पहले पापा भी ऐसे ही हमे छोड़ कर गुजर गए थे।


विनोद की पत्नी बोली "ले बिटिया अपने पैसे ले ले। " लड़की बोली "पैसे नही लुंगी आंटी।"

विनोद की पत्नी गाड़ी मे गई फिर अपने बैग से एक पाजेब की जोड़ी निकाली। जो उसने अपनी आठ वर्षीय बेटी के लिए आज ही तीन हजार मे खरीदी थी। लड़की को देते हुए बोली। तुमने गोलू को भाई माना तो मै तुम्हारी माँ जैसी हुई ना। अब तू ये लेने से मना नही कर सकती।


लड़की ने हाथ नही बढ़ाया तो उसने जबरदस्ती लड़की की गोद मे पाजेब रखते हुए कहा "रख ले। जब भी पहनेगी तुझे हम सब की याद आयेगी। "इतना कहकर वह वापस गाड़ी मे जाकर बैठ गई।


फिर विनोद ने गाड़ी स्टार्ट की और लड़की को बाय बोलते हुए वे चले पड़े। विनोद गाड़ी चलाते हुए सोच रहा था कि भावुकता भी क्या चीज है। कुछ देर पहले उसकी पत्नी दस बीस रुपये बचाने के लिए हथकण्डे अपना रही थी।कुछ देर मे ही इतनी बदल गई जो तीन हजार की

पाजेब दे आई।


फिर अचानक विनोद को लड़की की एक बात याद आई "रिश्तों मे नफा नुकसान नही देखा जाता।"


विनोद का प्रॉपर्टी के विवाद को लेकर अपने ही बड़े भाई से कोर्ट मे मुकदमा चल रहा था।।

उसने तुरंत अपने बड़े भाई को फोन मिलाया। फोन उठाते ही बोला " भैया मै विनोद बोल रहा हूँ। "


भाई बोला "फोन क्यों किया? " विनोद बोला "भैया आप वो मैन मार्केट वाली दुकान ले लो। मेरे लिए मंडी वाली छोड़ दो। और वो बड़े वाला प्लॉट भी आप ले लो। मै छोटे वाला ले लूंगा। मै कल ही मुकदमा वापस ले रहा हूँ। " सामने से काफी देर तक आवाज नही आई।


फिर उसके बड़े भाई ने कहा "इससे तो तुम्हे बहुत नुकसान हो जाएगा छोटे? "विनोद बोला " भैया आज मुझे समझ मे आ गया है रिश्तों मे नफ़ा-नुकसान नही देखा जाता। एक दूसरे की खुशी देखी जाती है। उधर से फिर खानोशी छा गई। फिर विनोद को बड़े भाई की रोने की आवाज सुनाई दी।


विनोद बोला "रो रहे हो क्या भैया?" बड़ा भाई बोला " इतने प्यार से पहले बात करता तो सब कुछ मै तुझे दे देता रे। अब घर आ जा। दोनों प्रेम से बैठ कर बंटवारा करेंगे। इतनी बड़ी कड़वाहट कुछ मीठे बोल बोलते ही न जाने कहाँ चली गई थी। कल जो एक एक इंच जमीन के लिए लड़ रहे थे वे आज भाई को सब कुछ देने के लिए तैयार हो गए थे।


कहानी का मोरल:-

त्याग की भावना रखिये। अगर हमेशा देने को तत्पर रहोगे तो लेने वाले का भी हृदय परिवर्तन हो जाएगा।

याद रखे रिश्तों मे नफा-नुकसान नही देखा जाता।

अपनो को करीब रखने के लिए अपना हक भी छोड़ना पड़ता है

🐄🐄🚩🚩🙏🙏

शारीरिक संबंध के दौरान फोरप्ले और आफ्टरप्ले से आप भी हैं अनजान? 🤔

 शारीरिक संबंध के दौरान फोरप्ले और आफ्टरप्ले से आप भी हैं अनजान? 🤔


खुशहाल दांपत्य जीवन के लिए कपल्स के बीच सेक्सुअल एक्टिविटी आवश्यक होती है। कुछ लोग सेक्स को प्यार और प्रेम इज़हार करने का तरीका मानते हैं, तो कुछ के लिए यह बच्चे पैदा करने का साधन है। अगर आप भी सेक्स की बुनियादी बातों से अनजान हैं, तो नीचे पूरा लेख पढ़िये। 📚


अधिकतर महिलाओं की शिकायत होती है कि सेक्स के बाद पति उनकी तरफ ध्यान नहीं देते, जिससे उन्हें बहुत बुरा लगता है। उन्हें लगता है कि पति सिर्फ अपनी संतुष्टि के बारे में सोचते हैं। दरअसल, इसमें पुरुषों की गलती नहीं होती। सेक्स को स्त्री और पुरुष दोनों अलग तरह से महसूस करते हैं। पुरुष के लिए सेक्स में शारीरिक भागीदारी ज्यादा मायने रखती है, जबकि स्त्री के लिए यह मन से जुड़ा रिश्ता होता है। 💑


पुरुष बिना प्यार के अपनी इच्छा से सेक्स कर सकता है, लेकिन स्त्री जब तक किसी पुरुष को मन से नहीं चाहेगी, वह सेक्स के लिए तैयार नहीं होगी। पुरुष सेक्स को तन से जोड़कर देखते हैं, लेकिन स्त्री के लिए मानसिक जुड़ाव ज्यादा जरूरी है। इसीलिए महिलाओं को सेक्स से पहले फोरप्ले और सेक्स के बाद आफ्टरप्ले की जरूरत होती है। 💕🔥


सेक्स से पहले पति-पत्नी जब फोरप्ले करते हैं, एक-दूसरे के बॉडी पार्ट्स को छूते हैं, किस करते हैं, तो इससे उनमें उत्तेजना बढ़ती है और वे शारीरिक संबंध को एंजॉय करते हैं। इसी तरह, सेक्स के बाद स्त्री की इच्छा होती है कि पति कुछ पल उसके पास रहे, उसे छुए, प्यार करे। ऐसा करने से स्त्री को संतुष्टि मिलती है। 🥰💋


कई पुरुष अपनी पत्नी से प्यार तो बहुत करते हैं, लेकिन उसकी शारीरिक जरूरतों को समझ नहीं पाते, जिसके कारण बिना गलती के पत्नी उन्हें दोषी मान लेती है। सेक्स को लेकर महिलाओं की क्या इच्छाएं और जरूरतें हैं, इसके बारे में उन्हें पति से बात जरूर करनी चाहिए। इससे पति आपके मन की बात समझ पाएंगे और आपकी सेक्स लाइफ और हेल्दी हो जाएगी। 💌💑


यह एक सामान्य जानकारी है। अगर आप किसी भी बीमारी से ग्रसित हैं या कोई भी परेशानी, कारण या लक्षण दिखा रहे हैं, तो इन लक्षणों को नजरअंदाज न करें। अगर इससे संबंधित कोई भी समस्या हो रही है, तो आपको डॉक्टर से जरूर सलाह लेना चाहिए और डॉक्टर के सुझावों के आधार पर ही कोई निर्णय लेना चाहिए। इलाज कराना भी जरूरी है। 🩺👩‍⚕️


कमेंट करेगा उसका जवाब सबसे पहले दूंगा। तो जल्दी से कमेंट करना याद से! 😉💬

"एक पत्नी अपने पति से प्यार करती है

 अप्रैल का महीना था और शादी-विवाह का सीजन जोरों पर था। मैं भी एक बारात में शामिल होने का मौका पाकर काफी उत्साहित था। मेरे नजदीकी दोस्त श्याम नारायण जी के साढ़ू भाई के घर से बारात जानी थी। हम दोनों दोपहर को ही वहां पहुंच गए। जैसे ही पहुंचे, उनके साढ़ू भाई ने हमें स्वागत करते हुए पानी मंगवाया। थोड़ी देर में एक नौजवान महिला, जो बहुत आकर्षक और सजी-धजी हुई थी, पानी और मिठाई लेकर आई। मैंने उसे नमस्ते किया, और उसने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया। मैंने मजाक में कहा, "पहचान नहीं रही हैं क्या?" वह मुस्कुराई और बोली, "क्यों नहीं, पिछली बार भी तो आप आए थे, याद है।"


यह जानकर मुझे तसल्ली हुई कि उसने मुझे पहचाना था। उसके बाद वह वापस अंदर चली गई। मैंने नारायण जी के साढ़ू भाई से उसके बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि वह दूर के रिश्ते में उनकी बहन लगती है और उसका नाम सोनम है।


शाम होते ही दूल्हे को तैयार किया गया और बारात निकलने की तैयारी शुरू हो गई। डी.जे. बजने लगा और औरतें खुशी से नाचने लगीं। सोनम भी उनमें शामिल थी। उसका नृत्य बहुत ही मनमोहक और सजीव था, जो सबका ध्यान खींच रहा था। कुछ देर बाद, शायद वह थक गई और उसने नाचना बंद कर तालियाँ बजाने लगी। मैं वहां पास खड़ा होकर यह सब देख रहा था, और उसकी कला की प्रशंसा कर रहा था। तभी सोनम की नजर मुझ पर पड़ी। वह पास आई और मुझे भी नाचने के लिए खींचने लगी। मैं मन रखने के लिए थोड़ा नाचने लगा। नृत्य खत्म होते ही मैंने उसकी तारीफ की, "आप बहुत अच्छा नाचती हैं।" वह मुस्कुराई और बोली, "आप भी बहुत अच्छे लगते हैं।"


बारात के भोजन और नाश्ते के बाद, गांव के कुछ लोग बारात से जल्दी घर लौटने की योजना बनाने लगे। मैंने भी सोचा कि क्यों न हम भी लौट चलें, ताकि सुबह जल्दी उठकर इलाहाबाद के लिए निकल सकें।


रात करीब एक बजे हम लोग बारात से घर लौट आए। गांव के बाराती अपने-अपने घर चले गए, और हम दोनों बैठे थे। घर के सामने एक बैठका था, जिसमें हमने दो चारपाई बिछाई। नारायण जी अंधेरे में अंदर की तरफ की चारपाई पर लेट गए, और मैं दरवाजे के पास की चारपाई पर, जहां बाहर की रोशनी पड़ रही थी। मैंने उनसे एक चादर मांगी, तो उन्होंने कहा कि जाओ, घर से मांग लो, औरतें अभी जाग रही हैं।


मैं घर के अंदर गया और देखा कि औरतें अभी भी नाच-गाने में मगन थीं। मैंने आवाज दी, तो साढ़ू भाई की मां खुद आईं। मैंने उनसे एक चादर मांगी, और वे उसे लेने अंदर चली गईं। तभी सोनम ने उन्हें देखा और उनसे चादर ले ली, "मां जी, आप बैठिए, मैं दे आती हूं।" वह चादर लेकर आई और मुस्कुराते हुए बोली, "चलो, बिछा दूं?" मैं हंसते हुए मजाक किया, "अरे नहीं, अभी आप सोने के लिए भी कह देंगी, तो?" वह हंसकर बोली, "नहीं-नहीं, आपको खोजने की जरूरत नहीं पड़ेगी।"


मैंने चादर ली और अपनी चारपाई पर बिछाकर बैठ गया। सोचते-सोचते कि सोनम कितनी मजाकिया और खुशदिल है, मुझे नींद आने लगी। करीब पैंतालीस मिनट बाद, जब मैं लेटने ही वाला था, तभी वह फिर से आई और अचानक मुझे पकड़कर चारपाई पर लेटा दिया। वह मुझसे किस करने की कोशिश कर रही थी। मैं हड़बड़ाकर बोला, "अरे...रे...रे, ये क्या?" वह बोली, "मैंने कहा था न, आप बहुत अच्छे लगते हैं।"


इस पर मेरी आवाज सुनकर नारायण जी भी हड़बड़ा कर उठ बैठे और बोले, "अरे, क्या हुआ? कौन है?" सोनम नारायण जी की आवाज सुनकर सन्न रह गई और तेजी से वहां से चली गई।


मेरे दिल में एक अजीब सी राहत महसूस हुई, और मैंने सोचा कि ये सब कितना गलत था। मैंने नारायण जी से कहा, "मैं तो समझ रहा था कि वह एक अच्छी महिला है, लेकिन यह तो बिल्कुल गलत निकली। उसे शर्म नहीं आई, लाज नहीं आई?" नारायण जी बोले, "अरे कैसी लाज? उसका पति विदेश में है और वह चरित्रहीन है। तुम्हें चुपचाप मजे लेने चाहिए थे, मौका गंवा दिया।"


मैंने गंभीरता से कहा, "नारायण जी, आप कैसी बातें कर रहे हैं? वह एक महिला है, और अगर वह अपने पति के अलावा किसी और के साथ संबंध बनाती है, तो यह उसका चरित्र है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम भी अपना चरित्र गिराकर उसी स्तर पर आ जाएं। मैं अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता हूं, और अगर मेरी पत्नी ऐसा कुछ करे, तो मुझे बहुत बुरा लगेगा।"


मैंने आगे कहा, "एक पत्नी अपने पति से प्यार करती है और उम्मीद करती है कि उसका पति भी उससे वफादार रहेगा। एक पत्नी किसी के साथ अपना सब कुछ साझा कर सकती है, लेकिन अपने पति को नहीं। इसलिए हमें भी अपने रिश्ते और खुद की इज्जत करनी चाहिए।"


उस रात के बाद, मैंने तय कर लिया कि मैं अपने मूल्यों और आदर्शों से कभी समझौता नहीं करूंगा, चाहे हालात कुछ भी हों।

Friday, 30 August 2024

अमर विश्वास’

 मेरी बेटी की शादी थी, और मैं कुछ दिनों की छुट्टी लेकर शादी की तैयारियों में व्यस्त था। उस दिन, जब मैं सफर से लौटकर घर आया, तो मेरी पत्नी ने मुझे एक लिफाफा थमाया। लिफाफा अनजान था, लेकिन प्रेषक का नाम देखकर मेरी जिज्ञासा और आश्चर्य बढ़ गया।


**‘अमर विश्वास’**—एक ऐसा नाम, जिसे मिले हुए वर्षों बीत गए थे। मैंने लिफाफा खोला, तो उसमें **1 लाख डॉलर का चेक** और एक चिट्ठी थी। इतनी बड़ी राशि, वह भी मेरे नाम पर! मैंने जल्दी से चिट्ठी खोली और एक सांस में ही सब कुछ पढ़ डाला। पत्र किसी परी कथा जैसा था, जिसने मुझे अचंभित कर दिया। लिखा था...


**"आदरणीय सर, मैं एक छोटी सी भेंट आपको दे रहा हूं। मुझे नहीं लगता कि आपके एहसानों का कर्ज मैं कभी उतार पाऊंगा। यह उपहार मेरी अनदेखी बहन के लिए है। घर पर सभी को मेरा प्रणाम।"**


**आपका,

अमर।**


मेरी आँखों में वर्षों पुरानी यादें चलचित्र की तरह तैरने लगीं।


एक बार, मैं चंडीगढ़ में टहलते हुए एक किताबों की दुकान पर अपनी पसंदीदा पत्रिकाएं देख रहा था। तभी मेरी नजर बाहर, पुस्तकों के ढेर के पास खड़े एक लड़के पर पड़ी। वह लड़का हर संभ्रांत व्यक्ति से कुछ अनुनय-विनय करता, और कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर वापस अपनी जगह पर लौट जाता। मैं काफी देर तक उसे देखता रहा। उसकी निराशा सामान्य नहीं थी। वह बार-बार नई उम्मीद के साथ अपनी कोशिश करता, लेकिन फिर वही निराशा उसके चेहरे पर लौट आती।


आखिरकार, मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पाया और उस लड़के के पास जाकर खड़ा हो गया। वह कुछ सामान्य सी विज्ञान की पुस्तकें बेच रहा था। मुझे देखकर उसमें फिर से उम्मीद जगी और उसने बड़ी ऊर्जा के साथ मुझे पुस्तकें दिखानी शुरू कीं। मैंने ध्यान से देखा—साफ-सुथरा चेहरा, आत्मविश्वास झलकता हुआ, लेकिन पहनावा साधारण। ठंड का मौसम था, और उसने केवल एक हल्का सा स्वेटर पहना हुआ था। 


**"बच्चे, ये सारी पुस्तकें कितने की हैं?"** मैंने पूछा।


**"आप कितना दे सकते हैं, सर?"**


**"अरे, कुछ तुमने सोचा तो होगा।"**


**"आप जो दे देंगे,"** लड़का थोड़ा निराश होकर बोला।


**"तुम्हें कितना चाहिए?"** मैंने पूछा, अब यह समझते हुए कि वह मेरे साथ समय बिता रहा है।


**"5 हजार रुपए,"** वह लड़का कुछ कड़वाहट के साथ बोला।


**"इन पुस्तकों का कोई 500 भी दे दे तो बहुत है,"** मैंने अनायास कह दिया, उसे दुखी नहीं करना चाहता था, लेकिन यह सुनकर उसके चेहरे पर निराशा का बादल छा गया। मुझे अपनी बात पर पछतावा हुआ, और मैंने अपना हाथ उसके कंधे पर रखकर सांत्वना भरे शब्दों में फिर पूछा, **"देखो बेटे, मुझे तुम पुस्तक बेचने वाले नहीं लगते, सच बताओ, क्या जरूरत है?"**


लड़का तब जैसे फूट पड़ा। **"सर, मैं 10+2 कर चुका हूं। मेरे पिता एक छोटे से रेस्तरां में काम करते हैं। मेरा मेडिकल में चयन हो चुका है। अब प्रवेश के लिए पैसे की जरूरत है। कुछ मेरे पिताजी दे रहे हैं, कुछ का इंतजाम वह अभी नहीं कर सकते,"** उसने एक ही सांस में अच्छी अंग्रेजी में कहा।


**"तुम्हारा नाम क्या है?"** मैंने मंत्रमुग्ध होकर पूछा।


**"अमर विश्वास।"**


**"तुम विश्वास हो और दिल छोटा करते हो? कितना पैसा चाहिए?"**


**"5 हजार,"** उसने इस बार दीनता से कहा।


**"अगर मैं तुम्हें यह रकम दे दूं, तो क्या मुझे वापस कर पाओगे? इन पुस्तकों की इतनी कीमत तो है नहीं,"** मैंने थोड़ा हंसते हुए पूछा।


**"सर, आपने ही कहा कि मैं विश्वास हूं। आप मुझ पर विश्वास कर सकते हैं। मैं पिछले 4 दिन से यहां आता हूं, आप पहले आदमी हैं जिसने इतना पूछा। अगर पैसे का इंतजाम नहीं हो पाया, तो मैं भी आपको किसी होटल में कप प्लेटें धोता हुआ मिलूंगा,"** उसके स्वर में अपने भविष्य की अनिश्चितता थी।


उसके स्वर ने मेरे दिल में उसके लिए सहानुभूति और मदद की भावना जगा दी। मैंने अपने पर्स से 5 हजार रुपए निकाले, जिन्हें मैं शेयर मार्केट में निवेश करने की सोच रहा था, और उसे दे दिए। वैसे इतने रुपए मेरे लिए भी मायने रखते थे, लेकिन न जाने किस भाव ने मुझसे वह पैसे निकलवा दिए।


**"देखो बेटे, मैं नहीं जानता कि तुम्हारी बातों में कितना दम है, लेकिन मेरा दिल कहता है कि तुम्हारी मदद करनी चाहिए, इसलिए कर रहा हूं।"** मैंने पैसे उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा।


अमर हतप्रभ था। उसकी आँखों में आंसू थे। उसने मेरे पैर छुए और कहा, **"सर, ये पुस्तकें मैं आपकी गाड़ी में रख दूं?"**


**"कोई जरूरत नहीं। यह मेरा कार्ड है, जब भी कोई जरूरत हो तो मुझे बताना।"**


वह मूक खड़ा रहा और मैंने उसका कंधा थपथपाया, फिर कार स्टार्ट कर दी। कार चलाते हुए वह घटना मेरे दिमाग में घूम रही थी और मैं अपने फैसले पर सोच रहा था।


दिन गुजरते गए। अमर ने अपने मेडिकल में दाखिले की सूचना मुझे एक पत्र के माध्यम से दी। मुझे अपनी मदद में कुछ मानवता नजर आई। मैंने फिर उसके पते पर कुछ और पैसे भेजे। दिन हवा होते गए। उसका संक्षिप्त सा पत्र आता, जिसमें वह मुझे और मिनी को याद करता। मैं कभी उसके पास जाकर अपने पैसे का उपयोग देखने नहीं गया, न कभी वह मेरे घर आया। कुछ साल तक यही क्रम चलता रहा। एक दिन उसका पत्र आया कि वह उच्च शिक्षा के लिए ऑस्ट्रेलिया जा रहा है। उसने छात्रवृत्तियों का जिक्र किया और एक लाइन मिनी के लिए भी लिखी।


समय पंख लगा कर उड़ता रहा। अमर ने अपनी शादी का कार्ड भेजा। मिनी भी अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी। अब मुझे मिनी की शादी की तैयारियाँ करनी थीं, और इस बीच वह चेक? मैं फिर अपनी दुनिया में लौट आया और मिनी की शादी का एक कार्ड अमर को भी भेज दिया।


शादी की गहमागहमी के बीच, मैं और मेरी पत्नी व्यवस्थाओं में व्यस्त थे। अचानक एक बड़ी सी गाड़ी पोर्च में आकर रुकी। एक संभ्रांत व्यक्ति, जिसकी गोद में एक बच्चा था, गाड़ी से बाहर निकले। मैं उन्हें देखता रहा। 


उन्होंने आकर मेरे और मेरी पत्नी के पैर छुए। 


**"सर, मैं अमर..."** वह श्रद्धा से बोले।


मेरी पत्नी अचंभित रह गई, और मैंने गर्व से उसे सीने से लगा लिया। 🌟

वैसे उस की गलती क्या है

 जब मां का फोन आया, तब मैं बाथरूम से बाहर निकल रहा था. मेरे रिसीवर उठाने से पहले ही शिखा ने फोन पर वार्त्तालाप आरंभ कर दिया था. मां उस से कह रही थीं, ‘‘शिखा, मैं ने तुम्हें एक सलाह देने के लिए फोन किया है. मैं जो कुछ कहने जा रही हूं, वह सिर्फ मेरी सलाह है, सास होने के नाते आदेश नहीं. उम्मीद है तुम उस पर विचार करोगी और हो सका तो मानोगी भी…’’


‘‘बोलिए, मांजी?’’ ‘‘बेटी, तुम्हारे देवर पंकज की शादी है. वह कोई गैर नहीं, तुम्हारे पति का सगा भाई है. तुम दोनों के व्यापार अलग हैं, घर अलग हैं, कुछ भी तो साझा नहीं है. फिर भी तुम लोगों के बीच मधुर संबंध नहीं हैं बल्कि यह कहना अधिक सही होगा कि संबंध टूट चुके हैं. मैं तो समझती हूं कि अलगअलग रह कर संबंधों को निभाना ज्यादा आसान हो जाता है.


‘‘वैसे उस की गलती क्या है…बस यही कि उस ने तुम दोनों को इस नए शहर में बुलाया, अपने साथ रखा और नए सिरे से व्यापार शुरू करने को प्रोत्साहित किया. हो सकता है, उस के साथ रहने में तुम्हें कुछ परेशानी हुई हो, एकदूसरे से कुछ शिकायतें भी हों, किंतु इन बातों से क्या रिश्ते समाप्त हो जाते हैं? उस की सगाई में तो तुम नहीं आई थीं, किंतु शादी में जरूर आना. बहू का फर्ज परिवार को जोड़ना होना चाहिए.’’ ‘‘तो क्या मैं ने रिश्तों को तोड़ा है? पंकज ही सब जगह हमारी बुराई करते फिरते हैं. लोगों से यहां तक कहा है, ‘मेरा बस चले तो भाभी को गोली मार दूं. उस ने आते ही हम दोनों भाइयों के बीच दरार डाल दी.’ मांजी, दरार डालने वाली मैं कौन होती हूं? असल में पंकज के भाई ही उन से खुश नहीं हैं. मुझे तो अपने पति की पसंद के हिसाब से चलना पड़ेगा. वे कहेंगे तो आ जाऊंगी.’’


‘‘देखो, मैं यह तो नहीं कहती कि तुम ने रिश्ते को तोड़ा है, लेकिन जोड़ने का प्रयास भी नहीं किया. रही बात लोगों के कहने की, तो कुछ लोगों का काम ही यही होता है. वे इधरउधर की झूठी बातें कर के परिवार में, संबंधों में फूट डालते रहते हैं और झगड़ा करा कर मजा लूटते हैं. तुम्हारी गलती बस इतनी है कि तुम ने दूसरों की बातों पर विश्वास कर लिया. ‘‘देखो शिखा, मैं ने आज तक कभी तुम्हारे सामने चर्चा नहीं की है, किंतु आज कह रही हूं. तुम्हारी शादी के बाद कई लोगों ने हम से कहा, ‘आप कैसी लड़की को बहू बना कर ले आए. इस ने अपनी भाभी को चैन से नहीं जीने दिया, बहुत सताया. 


‘‘अगर शादी से पहले हमें यह समाचार मिलता तो शायद हम सचाई जानने के लिए प्रयास भी करते, लेकिन तब तक तुम बहू बन कर हमारे घर आ चुकी थीं. कहने वालों को हम ने फटकार कर भगा दिया था. यह सब बता कर मैं तुम्हें दुखी नहीं करना चाहती, बल्कि कहना यह चाहती हूं कि आंखें बंद कर के लोगों की बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए. खैर, मैं ने तुम्हें शादी में आने की सलाह देने के लिए फोन किया है, मानना न मानना तुम्हारी मरजी पर निर्भर करता है,’’ इतना कह कर मां ने फोन काट दिया था. मां ने कई बार मुझे भी समझाने की कोशिश की थी, किंतु मैं ने उन की पूरी बात कभी नहीं सुनी. बल्कि,? उन पर यही दोषारोपण करता रहा कि वह मुझ से ज्यादा पंकज को प्यार करती हैं, इसलिए उन्हें मेरा ही दोष नजर आता है, पंकज का नहीं. 


लेकिन सचाई तो यह थी कि मैं खुद भी पंकज के खिलाफ था. हमेशा दूसरों की बातों पर विश्वास करता रहा. इस तरह हम दोनों भाइयों के बीच खाई चौड़ी होती चली गई. लेकिन फोन पर की गई मां की बातें सुन कर कुछ हद तक उन से सहमत ही हुआ. मां यहां नहीं रहती थीं. शादी की वजह से ही पंकज के पास उस के घर आई हुई थीं. वे हम दोनों भाइयों के बीच अच्छे संबंध न होने की वजह से बहुत दुखी रहतीं 


इसमें दोष शिखा का नहीं, मेरा था. मैं ही अपने निकटतम रिश्तों के प्रति ईमानदार नहीं रहा. जब मैं ने ही उन के प्रति उपेक्षा का भाव अपनाया तो मेरी पत्नी शिखा भला उन रिश्तों की कद्र क्यों करती?


कुछ बातों को नजरअंदाज क्यों नहीं कर पाते? तिल का ताड़ क्यों बना देते हैं? मैं सोचने लगा, पंकज मेरा सगा भाई है. यदि जानेअनजाने उस ने कुछ गलत किया या कहा भी है तो आपस में मिलबैठ कर मतभेद मिटाने का प्रयास भी तो कर सकते थे. गलतफहमियों को दूर करने के बदले हम रिश्तों को समाप्त करने के लिए कमर कस लें, यह तो समझदारी नहीं है. असलियत तो यह है कि कुछ शातिर लोगों ने दोस्ती का ढोंग रचाते हुए हमें एकदूसरे के विरुद्ध भड़काया, हमारे बीच की खाई को गहरा किया. हमारी नासमझी की वजह से वे अपनी कोशिश में कामयाब भी रहे, क्योंकि हम ने अपनों की तुलना में गैरों पर विश्वास किया.


शिखा की सिसकियों की आवाज से मेरा ध्यान भंग हुआ. वह बाहर वाले कमरे में थी. उसे मालूम नहीं था कि मैं नहा कर बाहर आ चुका हूं और फोन की पैरलेल लाइन पर मां व उस की पूरी बातें सुन चुका हूं. मैं सहजता से बाहर गया और उस से पूछा, ‘‘शिखा, रो क्यों रही हो?’’ ‘‘मुझे रुलाने का ठेका तो तुम्हारे घर वालों ने ले रखा है. अभी आप की मां का फोन आया था. आप की मां ने आरोप लगाया है कि मैंने अपनी शादी से पहले अपनी भाभी को बहुत सताया है, कह कर वह जोर से रोने लगी.


‘‘बस, यही आरोप लगाने के लिए उन्होंने फोन किया था?’’ ‘‘उन के हिसाब से मैं ने रिश्तों को तोड़ा है. फिर भी वे चाहती हैं कि मैं पंकज की शादी में जाऊं. मैं इस शादी में हरगिज नहीं जाऊंगी, यह मेरा अंतिम फैसला है. 


 मैं चाहते हुए भी तुम्हें पंकज के यहां चलने के लिए बाध्य नहीं करना चाहता.,तो तुम जाओगे? पंकज तुम्हारे व मेरे लिए जगहजगह इतना जहर उगलता फिरता है, फिर भी जाओगे?’’


‘‘उस ने कभी मुझ से या मेरे सामने ऐसा नहीं कहा. लोगों के कहने पर हमें पूरी तरह विश्वास नहीं करना चाहिए. लोगों के कहने की परवाह मैंने की होती तो तुम को कभी भी वह प्यार न दे पाता, जो मैं ने तुम्हें दिया है. अभी तुम मांजी द्वारा आरोप लगाए जाने की बात कर रही थीं. पर वह उन्होंने नहीं लगाया. लोगों ने उन्हें ऐसा बताया होगा. आज तक मैं ने भी इस बारे में तुम से कुछ पूछा या कहा नहीं. आज कह रहा हूं… तुम्हारे ही कुछ परिचितों व रिश्तेदारों ने मुझ से भी कहा कि शिखा बहुत तेजमिजाज लड़की है. अपनी भाभी को इस ने कभी चैन से नहीं जीने दिया. लेकिन मैं ने उन लोगों की परवाह नहीं की…’’ तुम ने उन की बातों पर विश्वास कर लिया? अगर विश्वास किया होता तो तुम से शादी न करता. तुम से बस एक सवाल करना चाहता हूं, लोग जब किसी के बारे में कुछ कहते हैं तो क्या हमें उस बात पर विश्वास कर लेना चाहिए.’’


‘‘मैं तो बस इतना जानती हूं कि वह सब झूठ है. हम से जलने वालों ने यह अफवाह फैलाई थी. इसी वजह से मेरी शादी में कई बार रुकावटें आईं.’’ ‘‘मैं ने भी उसे सच नहीं माना, बस तुम्हें यह एहसास कराना चाहता हूं कि जैसे ये सब बातें झूठी हैं, वैसे ही पंकज के खिलाफ हमें भड़काने वालों की बातें भी झूठी हो सकती हैं. उन्हें हम सत्य क्यों मान रहे हैं?’’


‘‘लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे बातें झूठी हैं. खैर, लोगों ने सच कहा हो या झूठ, मैं तो नहीं जाऊंगी. एक बार भी उन्होंने मुझ से शादी में आने को नहीं कहा.’’ ‘‘कैसे कहता, सगाई पर आने के लिए तुम से कितना आग्रह कर के गया था. यहां तक कि उस ने तुम से माफी भी मांगी थी. फिर भी तुम नहीं गईं. इतना घमंड अच्छा नहीं. उस की जगह मैं होता तो दोबारा बुलाने न आता.’’


‘‘सब नाटक था, लेकिन आज अचानक तुम्हें हो क्या गया है? आज तो पंकज की बड़ी तरफदारी की जा रही है?’’


तभी द्वार की घंटी बजी. पंकज आया था. उस ने शिखा से कहा, ‘‘भाभी, भैया से तो आप को साथ लाने को कह ही चुका हूं, आप से भी कह रहा हूं. आप आएंगी तो मुझे खुशी होगी. अब मैं चलता हूं, बहुत काम करने हैं.’’ पंकज प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा किए बिना लौट गया.


मैं ने पूछा, ‘‘अब तो तुम्हारी यह शिकायत भी दूर हो गई कि तुम से उस ने आने को नहीं कहा? अब क्या इरादा है?’’


‘‘इरादा क्या होना है, हमारे पड़ोसियों से तो एक सप्ताह पहले ही आने को कह गया था. मुझे एक दिन पहले न्योता देने आया है. असली बात तो यह है कि मेरा मन उन से इतना खट्टा हो गया है कि मैं जाना नहीं चाहती. मैं नहीं जाऊंगी.’’ ‘‘तुम्हारी मरजी,’’ कह कर मैं दुकान चला गया.


थोड़ी देर बाद ही शिखा का फोन आया, ‘‘सुनो, एक खुशखबरी है. मेरे भाई हिमांशु की शादी तय हो गई है. 10 दिन बाद ही शादी है. उस के बाद कई महीने तक शादियां नहीं होंगी. इसीलिए जल्दी शादी करने का निर्णय लिया है.’’


‘‘बधाई हो, कब जा रही हो?’’ ‘‘पूछ तो ऐसे रहे हो जैसे मैं अकेली ही जाऊंगी. तुम नहीं जाओगे?’’


‘‘तुम ने सही सोचा, तुम्हारे भाई की शादी है, तुम जाओ, मैं नहीं जाऊंगा.’’ ‘‘यह क्या हो गया है तुम्हें, कैसी बातें कर रहे हो? मेरे मांबाप की जगहंसाई कराने का इरादा है क्या? सब पूछेंगे, दामाद क्यों नहीं आया तो


क्या जवाब देंगे? लोग कई तरह की बातें बनाएंगे…’’ ‘‘बातें तो लोगों ने तब भी बनाई होंगी, जब एक ही शहर में रहते हुए, सगी भाभी हो कर भी तुम देवर की सगाई में नहीं गईं…और अब शादी में भी नहीं जाओगी. जगहंसाई क्या


यहां नहीं होगी या फिर इज्जत का ठेका तुम्हारे खानदान ने ही ले रखा है, हमारे खानदान की तो कोई इज्जत ही नहीं है?’’


‘‘तो क्या तुम्हारा अंतिम फैसला है कि तुम मेरे भाई की शादी में नहीं जाओगे?’’ ‘‘अंतिम ही समझो. यदि तुम मेरे भाई की शादी में नहीं जाओगी तो


मैं भला तुम्हारे भाई की शादी में क्यों जाऊंगा?’’


‘‘अच्छा, तो तुम मुझे ब्लैकमेल कर रहे हो?’’ कह कर शिखा ने फोन रख दिया.


दूसरे दिन पंकज की शादी में शिखा को आया देख कर मांजी का चेहरा खुशी से खिल उठा था. पंकज भी बहुत खुश था.


मांजी ने स्नेह से शिखा की पीठ पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘बेटी, तुम आ गई, मैं बहुत खुश हूं. मुझे तुम से यही उम्मीद थी.’’ ‘‘आती कैसे नहीं, मैं आप की बहुत इज्जत करती हूं. आप के आग्रह को कैसे टाल सकती थी?’’


मैं मन ही मन मुसकराया. शिखा किन परिस्थितियों के कारण यहां आई, यह तो बस मैं ही जानता था. उस के ये संवाद भले ही झूठे थे, पर अपने सफल अभिनय द्वारा उस ने मां को प्रसन्न कर दिया था. यह हमारे बीच हुए समझौते की एक सुखद सफलता थी.

ये स्त्री के मूल में ही नहीं है...

 स्त्री कभी संतुष्ट नहीं होती ..... स्त्री से प्रेम में अगर आप ये उम्मीद करते हैं कि वो आपसे पूरी तरह खुश है तो आप नादानी में हैं

ये स्त्री के मूल में ही नहीं है अगर आप बहुत ज्यादा केयर करते है तो उससे भी ऊब जाएगी


अगर आप बहुत उग्र हैं तो वो उससे भी बिदक जाएगी


अगर आप बहुत ज्यादा विनम्र हैं तो वो उससे भी चिढ जाएगी


अगर आप उससे बहुत ज्यादा बात करते हैं तो वो आपको टेक इट फौर ग्रांटड लेने लगेगी


अगर आप उससे बहुत कम बात करते हैं तो वो मान लेगी कि आपका चक्कर कहीं और चल रहा है


यानी आप कुछ भी कर लीजिए वो संतुष्ट नहीं हो सकती


ये उसका स्वभाव है वो एक ऐसा डेडली काॅम्बीनेशन खोजती है जो बना ही न हो बन ही न सकता हो


ठीक वैसे ही जैसे कपड़ा खरीदने जाती है तो कहती कि इसी कलर में कोई दूसरा डिजाइन दिखाओ,


इसी डिजाइन में कोई दूसरा कलर दिखाओ


कपड़े का गट्ठर लगा देती है...


बहुत परिश्रम के बाद एक पसंद आ भी गया, तो भी संतुष्ट नहीं हो सकती...


आखिरी तक सोचती है कि इसमे ये डिजाइन ऐसे होता तो परफैक्ट होता...


इन सबके बावजूद एक बहुत बड़ी खूबी भी है स्त्री के अंदर ...


एक बार उसे कुछ पसंद आ गया तो उसे आखिरी दम तक सजो के रखती है वो चाहे रिश्ते हो या चूड़ी


रंग उतर जाएगा चमक खत्म हो जाएगी पर खुद से जुदा नहीं करेगी


बस यही खूबी स्त्री को विशिष्ट बनाती है


स्त्री से प्रेम में अगर आप ये उम्मीद करते हैं कि वो आपसे पूरी तरह खुश है तो आप नादानी में हैं...


ये स्त्री के मूल में ही नहीं है...

सेक्स एक ऐसा विषय है..

 सेक्स एक ऐसा विषय है.......

जिसे हर कोई अनुभव करना चाहता है, चाहे वह महिला हो या पुरुष। कामुकता और सेक्स से जुड़ी बातें हर किसी को आकर्षित करती हैं, और ऐसा होना स्वाभाविक है क्योंकि यह हमारी प्रकृति का हिस्सा है। सहमति से किया गया सेक्स बिल्कुल गलत नहीं है, बल्कि इसे भी अन्य सामान्य क्रियाओं की तरह ही समझा जाना चाहिए। 


सेक्स, जब सही ढंग से किया जाए, तो यह सबसे सुखद अनुभव हो सकता है। महर्षि वात्स्यायन जैसे महान दार्शनिक ने कामसूत्र जैसी पुस्तक में सेक्स का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है, जो दर्शाता है कि यह विषय चर्चा के योग्य है और इसे खुले मन से स्वीकार किया जाना चाहिए। 


हालांकि, समाज में कुछ लोग खुद को अत्यधिक संस्कारवान दिखाने का प्रयास करते हैं। जब भी कोई सेक्स की बातें करता है, तो ये लोग बड़ी मर्यादा और नैतिकता का दिखावा करते हैं, जैसे वे इस विषय से बिल्कुल अनभिज्ञ हों। परंतु, वास्तविकता यह है कि यही लोग कामवासना में सबसे अधिक लिप्त होते हैं और अकेले में पोर्न वीडियो देखने से भी नहीं चूकते, लेकिन सबके सामने एक अलग चेहरा दिखाते हैं। 


महान दार्शनिक रजनीश ओशो ने कहा है कि जैसे नहाना, खाना, सोना-जागना हमारी दैनिक क्रियाएं हैं, ठीक वैसे ही सेक्स भी एक सामान्य क्रिया है। यह बस एकांत में की जाने वाली क्रिया है, लेकिन इसके बारे में बात करने में कोई बुराई नहीं होनी चाहिए। 


मैं हर विषय पर खुलकर लिखता हूं, चाहे वह सेक्स हो या कोई अन्य मुद्दा। सेक्स पर बात करने में कोई बुराई नहीं है, क्योंकि बुराई तो किसी भी अच्छे काम में ढूंढी जा सकती है। इसलिए, क्यों न हम इस डर को छोड़कर इस पर भी खुलकर चर्चा करें? ✨

     सुनिल राठौड़   👈👈👈

हमें जो चीजें बहुत सुख देती हैं उसमें धन की कोई भूमिका नहीं होती

 हमें जो चीजें बहुत सुख देती हैं उसमें धन की कोई भूमिका नहीं होती। जैसे बॉयफ्रेंड/गर्लफ्रेंड के साथ बाहों में बाहें डालकर घूमना, चुम्बन, सेक्स। मुक्त होकर घूमना। पेड़ पर चढ़ जाना। खरगोश, बिल्ली, कुत्ते के साथ खेलना। नदी किनारे गर्लफ्रेंड/बॉयफ्रेंड के साथ बैठना, पानी के बहाव को निहारना,पानी मे दूर तक कंकड़ फेंकना। यूँ ही टहलते रहना।

इसमें किसी चीज में धन का रोल नहीं है। केवल पेट भरने के लिए धन को इतना जरूरी कर दिया गया, उसके बाद इतनी आवश्यकताएं क्रिएट की गईं कि सुख वाली चीजें लोग भूल ही गए। उन पर नैतिकता के इतने पहरे लगा दिए गए कि वह अपराध बन गया। 

असल चीज वह बन चुकी है जिसका हमारे सुख से दरअसल कोई लेना देना ही नहीं है। एक इल्यूजन में हम जीने को बाध्य हैं और वहाँ सुख ढूंढते हैं जहां सुख है ही नहीं।

देखो बे लौंडों! जब कभी जिंदगी में इतना टूट जाओ

 देखो बे लौंडों! जब कभी जिंदगी में इतना टूट जाओ और लगे कि सब कुछ खत्म हो चुका है अब साला कुछ नही बचा जीने को! सुसाइड का खयाल आए और सोंचने लगो कि अब मर ही जातें हैं, या पागल होने के कगार पर पहुँच जाओ...मतलब एकदम वर्स केस हो जाए, चाहें वो किसी ऐसे के चले जाने की वजह से हो जिसे तुम अपना सब कुछ मानते थे या फिर साला ये emi भरने के लिए नौकरी करने की वजह से हो या फिर चाहें जो कुछ भी रीज़न हो तो एक काम करना। सब कुछ छोड़-छाड़ के निकल जाना बस। अगर नौकरी करते हो तो नौकरी छोड़ देना अगर पढ़ाई करते हो तो पढ़ाई बन्द कर देना क्योंकि भोसd के जीना बहुत जरूरी है और जिंदगी उतनी ही खूबसूरत है पर ये सब बातें तुम तभी जान पाओगे जब ये सारा बुरा फेस बिताकर जिंदा बच जाओगे। जानता हूँ कि ये सब इतना आसान नही है पर बस तुम सोचना मत, कर देना इतना! क्योंकि मर जाना सबसे आसान होता है। 


देखो! पढ़ाई या नौकरी छोड़कर जायेंगे भी कहाँ। कब तक भागेंगे यही ना? तो बस 2-3 महीने के लिए घर पर चले आओ सबसे पहले तो। और साला एक बात बताएं! जिंदगी में चाहें कितनी भी परेशानियां हो न अगर तुम्हारे पास 2-4 ढंग के दोस्त हैं न तो सब ठीक हो जाता है और अगर वो नही हैं न तो साला तुम आज तक जी ही नही रहे थे। तो फ़ोन करो उन्हें या जाओ उन ख़ास दोस्तों के पास और मन भर रो लो। जितना मन करे खुल के रो लो पहिले। ऐसा नही है कि एक बार रो देने भर से तुम्हारे सारे आँसू निकल जाएंगे या सारा दर्द। रोने का ये सिलसिला चलता रहेगा अभी कुछ दिनों तक पर यकीन करो बहुत कुछ हल्का हो जाएगा एक बार किसी के सामने खुल के रो लेने पर।


कुछ बहुत बुरा होने के बाद इससे पहले कि तुम खुद को शराब और सिगरेट में झोंकों उससे पहले ही मेडिटेशन की तरफ मुड़ जाओ। ऐसे बहुत से फ्री कोर्सेज हैं जो तुम्हें हफ्ते-दश दिन अपने पास रखेंगे और तुम्हारे अंदर बहुत कुछ सकारात्मक बदलाव ले आएंगे! तो उनको करो। फिर जब निकलो तो अगर पैसे-रुपये ना हों तो उधार लो दोस्तों से और निकल पड़ो किसी भी शहर में। यूँ ही भटकने को। किसी दिन पूरी दोपहरी किसी चौराहे पर पेड़ के नीचे बैठकर यूँ ही लोगों को आते जाते देखते हुए बिता दो। हाँ पता है यही कहोगे कि अकेलेपन में बुरी चीजें और भी याद आती हैं पर नही बे! जब तुम किसी दुपहरी को ऐसे बिता दोगे न तो देखोगे और खुद ही समझ पाओगे कि साला सच में दुनिया क्या है और क्या तमाशा चल रहा है यहाँ और यकीन मानो वो चीज़ बिना तुम्हारे खुद के अनुभव किए बिना नही आएगी और ना ही कोई समझा पाएगा तुम्हें।


साला ऐसे टाइम में सबसे ज्यादा जरूरत होती है प्यार की! पर कभी भी ऐसे बुरे वक्त में प्यार मत करना। क्योंकि इस वक़्त इंसान प्यार कम सहारा ज्यादा ढूंढ़ता है और ऐसे में तुम्हें तो सहारा मिल जाता है और अच्छा भी लगने लगता है पर कुछ समय बाद जब होश आता है तो पता चलता है कि तुम सामने वाले इंसान की फीलिंग्स के साथ पूरी तरह से न्याय नही कर पा रहे हो और कहीं न कहीं धोका दे रहे हो उसे और अगर उस वक्त तुम्हारा जमीर फिर से जाग गया! जो कि जागेगा ही क्योंकि अगर तुम्हारे अंदर अगर जमीर नही होता तो तुम्हारी ये कंडीशन ही नही होती, तो उस वक्त गुरु! तुम्हें मरने से कोई नही बचा नही बचा पाएगा। तो इन सब चूतियापे में मत पड़ना कि एक सब्स्टीट्यूट के सहारे तुम ठीक हो जाओगे। अगर सब्स्टीट्यूट वाले तुम होते न तुम्हारी इतनी गांd ही नही फटती कभी। 


बाकी तुम्हें अगर सेक्स चाहिए तो करो! और हो सके तो किसी ऐसे इंसान से करो जिसको तुम्हारी न बोली समझ आती हो न भाषा! इसका एक बड़ा फायदा ये होगा कि तुम्हारे अंदर के जज़्बात उसके साथ नही जुड़ पाएंगे न ही उस वक्त तुम्हारी एकतरफा कही बातों का कोई मतलब होगा। तो जाओ उसके पास और रोते हुए जो कुछ भी कहना चाहते थे किसी और से सब कह लो! और सेक्स करने के लिए हैं बहुत से लीगल जगहें तो इस बात का ख़ास ध्यान रखना कि इसके लिए किसी की फीलिंग्स के साथ मत खेलना कभी, किसी को नुकसान ना पहुंचाना। जो करना है करो, जितनी तकलीफें देनी हैं दो! लेकिन खुद को! पर बेटीचो* जिंदा रहो! बस कुछ दिन! साला अगर मर गए न झांt ये देखकर अफसोस करने को भी नही मिलेगा कि जिंदगी कितनी खूबसूरत थी। जो जाना चाहता है उसे जाने दो! जो गया उसे भूल जाओगे! सबको अपनी जिंदगी जीने का हक अपने हिसाब से है तो इस बात का रंDरोना मत रोओ कि मेरे साथ ऐसा क्यों किया या मेरे साथ वैसा क्यों किया। तुम्हारे साथ न कोई अच्छा कर सकता है और न कोई बुरा जब तक तुम न चाहो। बाकी जीने दो सबको खुशी-खुशी! फिर धीरे-धीरे देखोगे की कैसे साला जिंदगी मजे से पटरी पर चढने लगती है और फिर से फूल रफ्तार में भागना शुरू कर देती है। बस जिंदा रहना और कभी जरूरत हो तो बताना! लव गुरु खाली fm पर नही मिला करते 🖤


मलाल

किसी भी गरीब** की गरीबी का मजाक बनाने के बजाय उसकी **प्रतिभा** का उचित सम्मान करें। 😀

 एक **फटी धोती** और **फटी कमीज** पहने एक व्यक्ति अपनी **15-16 साल की बेटी** के साथ एक बड़े होटल में पहुंचा। उन्हें कुर्सी पर बैठते देख एक वेटर ने उनके सामने **दो गिलास साफ ठंडा पानी** रख दिया और पूछा, "आपके लिए क्या लाना है?" 💧


उस व्यक्ति ने कहा, "मैंने मेरी बेटी से वादा किया था कि यदि तुम **कक्षा दस में जिले में प्रथम** आओगी तो मैं तुम्हें शहर के सबसे बड़े होटल में एक **डोसा** खिलाऊंगा। इसने वादा पूरा कर दिया। कृपया इसके लिए एक **डोसा** ले आओ।" 🥇🥘


वेटर ने पूछा, "आपके लिए क्या लाना है?" उसने कहा, "मेरे पास एक ही डोसे का पैसा है।" 💔


पूरी बात सुनकर वेटर मालिक के पास गया और पूरी कहानी बताकर कहा, "मैं इन दोनों को भर पेट नाश्ता कराना चाहता हूँ। अभी मेरे पास पैसे नहीं हैं, इसलिए इनके बिल की रकम आप मेरी सैलरी से काट लेना।" 🤝


मालिक ने कहा, "आज हम होटल की तरफ से इस होनहार बेटी की सफलता की **पार्टी** देंगे।" 🎉


होटलवालों ने एक **टेबल** को अच्छी तरह से सजाया और बहुत ही शानदार ढंग से सभी उपस्थित ग्राहकों के साथ उस गरीब बच्ची की सफलता का जश्न मनाया। मालिक ने उन्हें एक बड़े थैले में **तीन डोसे** और पूरे मोहल्ले में बांटने के लिए **मिठाई** उपहार स्वरूप पैक करके दे दी। इतना **सम्मान** पाकर आंखों में **खुशी के आंसू** लिए वे अपने घर चले गए। 🎁😢


समय बीतता गया और एक दिन वही लड़की **I.A.S.** की परीक्षा पास कर उसी शहर में **कलेक्टर** बनकर आई। उसने सबसे पहले उसी होटल में एक सिपाही भेजकर कहलवाया कि **कलेक्टर साहिबा** नाश्ता करने आएंगी। होटल मालिक ने तुरन्त एक **टेबल** को अच्छी तरह से सजा दिया। यह खबर सुनते ही पूरा होटल ग्राहकों से भर गया। 🏛️👮‍♂️


कलेक्टर रूपी वही लड़की होटल में मुस्कराती हुई अपने माता-पिता के साथ पहुंची। सभी उसके सम्मान में खड़े हो गए। होटल के मालिक ने उन्हें **गुलदस्ता** भेंट किया और ऑर्डर के लिए निवेदन किया। 🌸🙇‍♂️


उस लड़की ने खड़े होकर होटल मालिक और उस वेटर के आगे **नतमस्तक** होकर कहा, "शायद आप दोनों ने मुझे पहचाना नहीं। मैं वही लड़की हूँ जिसके पिता के पास दूसरा **डोसा** लेने के पैसे नहीं थे और आप दोनों ने **मानवता की सच्ची मिसाल** पेश करते हुए, मेरे पास होने की खुशी में एक शानदार पार्टी दी थी और मेरे पूरे मोहल्ले के लिए भी मिठाई पैक करके दी थी।" 🥰🙏


"आज मैं आप दोनों की बदौलत ही **कलेक्टर** बनी हूँ। आप दोनों का **एहसान** मैं सदैव याद रखूंगी। आज यह **पार्टी** मेरी तरफ से है और उपस्थित सभी ग्राहकों एवं पूरे होटल स्टाफ का बिल मैं दूंगी। कल आप दोनों को '**श्रेष्ठ नागरिक**' का सम्मान एक नागरिक मंच पर किया जाएगा।" 🎖️👩‍💼


### **शिक्षा**

**किसी भी गरीब** की गरीबी का मजाक बनाने के बजाय उसकी **प्रतिभा** का उचित सम्मान करें। 😀

संस्कार.परिवार.प्रेम.जीवन

 शादी के कुछ महीने बाद, मैं यह सोचता था कि अगर मैं अपनी पत्नी की सभी ज़रूरतें पूरी कर दूं, तो ज़िन्दगी में कोई परेशानी नहीं आएगी। मेरे खुद के व्यापार के चलते, मुझे एक ऐसी लड़की चाहिए थी जो स्मार्ट हो, मेरे काम में मेरा हाथ बंटा सके, और समाज में अच्छी तरह से मिलजुल सके। अंजली से मेरी शादी हुई, जो खूबसूरती और दिमाग, दोनों में बेमिसाल थी।


शुरुआत के तीन महीने शानदार थे। हमारे बीच जिस्मानी रिश्ते बहुत अच्छे थे, और मुझे लगा कि मैंने सही जीवनसाथी चुना है। मुझे विश्वास था कि एक सफल शादी के लिए शारीरिक सुख सबसे महत्वपूर्ण है। लेकिन धीरे-धीरे, सेक्स से भी मन हटने लगा और व्यापार के दबाव के कारण इस ओर ध्यान देने का समय भी कम हो गया।


लेकिन असली समस्या तब शुरू हुई जब अंजली ने मुझसे कहा कि वह अपने माता-पिता से अलग एक फ्लैट में रहना चाहती है। मैंने चौंकते हुए पूछा, "क्यों? ऐसा क्या दिक्कत है यहाँ?"


अंजली ने जवाब दिया, "मुझे प्राइवेसी चाहिए। मम्मी-पापा के साथ रहते हुए वो संभव नहीं है।" मैंने कहा, "लेकिन अपना घर है, अपना कमरा है। जैसा मन करो, वैसे रहो।"


उसने बताया, "तुम्हें शायद यह आसान लगता है, लेकिन मुझे दिनभर सलवार-सूट में रहना पड़ता है, जबकि मैं शर्ट्स और टी-शर्ट में ज्यादा कंफर्टेबल महसूस करती हूँ। मायके में पापा के सामने भी निक्कर और टी-शर्ट पहन सकती हूँ, लेकिन यहाँ मर्यादा का ख्याल रखना पड़ता है।"


मैंने सोचा, "बात तो सही कह रही है।" फिर मैंने मां-पापा से इस बारे में बात की। पापा को कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन मां ने साफ मना कर दिया। उनका कहना था कि बहू को उनके हिसाब से रहना होगा।


मैं दुविधा में पड़ गया—एक ओर मां, जिन्होंने मुझे जन्म दिया, और दूसरी ओर पत्नी, जिसके साथ पूरी ज़िन्दगी गुजारनी है। शादी को केवल आठ महीने हुए थे और अब यह सवाल उठने लगा था कि किसके साथ खड़ा रहूं।


इसी दौरान, मैंने एक दिन अंजली के फोन पर इंस्टाग्राम खोला और देखा कि वह रील्स देख रही थी। एक रील में बताया जा रहा था कि कैसे माता-पिता से अलग रहने से शादीशुदा जिंदगी बेहतर होती है। दूसरी रील में सास-ससुर के साथ रहने से महिलाओं की आजादी पर असर पड़ने की बात कही गई थी। मैंने तुरंत समझ लिया कि असली समस्या "प्राइवेसी" नहीं, बल्कि ये सोशल मीडिया क्रिएटर्स हैं जो ऐसे विचार फैला रहे हैं।


मैंने सोचा, भले ही ये बातें सही लग सकती हैं, लेकिन हमारे संस्कार और परिवार का महत्व इससे कहीं अधिक है। मैंने तय किया कि किसी भी कीमत पर मां-पापा को नहीं छोड़ूंगा। बल्कि अंजली को इस सोशल मीडिया के प्रभाव से दूर करना ज्यादा जरूरी है।


उस दिन के बाद से, मैंने अंजली को ऑफिस में अपने साथ लाना शुरू किया। जब भी वह रील देखती, मैं उसे कोई काम दे देता। ऑफिस में आए बड़े डॉक्टरों ने भी उसे बताया कि रील्स देखने से होने वाले नुकसान क्या-क्या हो सकते हैं। धीरे-धीरे, अंजली ने रील्स देखना बंद कर दिया और "अलग घर" या "प्राइवेसी" की बातें भी खत्म हो गईं। 😊


अब जब कभी मैं उसे छेड़ता हूँ और कहता हूँ, "चलो, अलग घर ले लेते हैं, ताकि तुम आराम से छोटे कपड़े पहन सको," तो वह मुझे आंखें दिखाने लगती है। 😜


दोस्तों, यह समस्या सिर्फ मेरे घर में नहीं, बल्कि कई घरों में है। एक बार जरूर सोचिए कि यह मोबाइल और सोशल मीडिया अनजाने में हमारे परिवार और संस्कारों को तोड़ने का काम कर रहा है। ❤️


#संस्कार #परिवार #प्रेम #जीवन

वह पुरुष जो सचमुच तुमसे प्यार करता हैं

 #प्रेम_का_अंत


वह पुरुष जो सचमुच तुमसे प्यार करता हैं 

तुम्हें छोड़कर जानें का फैसला एक पल में नहीं करता, महीनों-सालो वह ख़ुद को समझाता हैं..

वह तुम्हारे याद में महिनों-सालों और बरसों तक

चेतना-शुन्य हों जाता हैं..


तुम्हें पाने के लिए वह इंतज़ार करता हैं की तुम कभी-न-कभी आओगी

पर उसका इंतज़ार तो एक कहानी 

बनकर रह जाता हैं..

कुछ पुरुष ख़ुद को सम्भलना और समझना सीख जाते है, सीख जाते हैं जीवन जिना..वह जानते है मेरे बुढे मां-बाप का सहारा मै ही हूं..


पर इन सब के बिच कुछ होते हैं ऐसे पुरुष जिन्हें तुम्हें पाना ही उनका आख़िरी मक़सद है 

अगर तुम मिल जाओ तो उनके लिए एवरेस्ट फतह होंगी...


तुम्हें उस दिन डरना चाहिए जिस दिन तुम्हारे प्रेम में पड़े 

किसी पुरुष को छोड़ कर हमेशा-हमेशा के लिए चली जाती हो..

ये वही पुरुष हैं जो तुमसे मिले प्रेम को अपने दिल में बसा लेते हैं ,और हमेशा-हमेशा के लिए दिल के दरवाज़े तुम्हारे लिए खुला रखतें हैं.. यह उसका अंतिम फैसला होता है , तुम्हें छोड़ कर जाने का, विद्रोही भीं नहीं होते, विद्रोह करने से पहले वह बार-बार तुम्हें एहसास कराते है कि' अब पहले जैसा प्रेम महसूस नहीं हो रहा हैं, प्रेम को कुछ वक्त दिया करो..


पर तुम उसे और उसकी बातों को लापरवाही से टाल देती हों, और एक दिन वह तमाम यादें और प्रेम समेट कर तुमसे दूर चला जाता है हमेशा-हमेशा के लिए..


तुम्हारे जिस प्रेम ने उसे कोमल और संतुलित बनाया था, तुम्हारा वही प्रेम उसे जीवन भर के लिए कठोर और निष्ठुर बना देता है..


हमेशा लापरवाह और अपनी मौज में रहने वाले पुरुष जो हमेशा उल्टी सीधी हरकते करते थे,

वो तुम्हारे प्रेम में आने के बाद बहुत बदल गये..


पर आज वही पुरुष जिसे तुमने छोड़ा है 

अपनी चाहतें अपना प्यार ,अपनी ख्वाहिशों की हत्या कर चुका है,जो वादा करता था अपने और तुम्हारे परिवार का हम सहारा बनेंगे 

आज बुढे मां बाप ख़ुद उसके सहारे बने हैं...


वह कभी बद्दुआ नहीं देता तुम्हें, पर वो मान लेता है की हमेशा-हमेशा के लिए तुम मर चुकी हो, हो चुका है अंत उसके प्यार का और बिना किसी से कहे, करवा लेता है अपना मुंडन, मिटा देता है दिल से हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारा नाम..


बस साथ रह जाती हैं कुछ यादें, जिसे महसूस करके हंसता या रो लेता है... ख़त्म हो जाती है उसकी दुनिया...जिसे वो दुनिया मान चुका था, 

वह वेवफा भी नहीं कह पाता है, क्योंकि तुम्हें अपना जो मान चुका था..❤️🥀

कौन सा पति खरीदूँ...

 *कौन सा पति खरीदूँ...?*

शहर के बाज़ार में एक बड़ी दुकान खुली जिस पर लिखा था - *“यहाँ आप पतियों को ख़रीद सकती है |”*

देखते ही देखते औरतों का एक हुजूम वहां जमा होने लगा. सभी दुकान में दाख़िल होने के लिए बेचैन थी, लंबी क़तारें लग गयी.दुकान के मैन गेट पर लिखा था -

*“पति ख़रीदने के लिए निम्न शर्ते लागू”* 👇👇👇

✡ *इस दुकान में कोई भी औरत सिर्फ एक बार ही दाख़िल हो सकती है, आधार कार्ड लाना आवश्यक है ...*

✡ *दुकान की 6 मंज़िले है, और प्रत्येक मंजिल पर पतियों के प्रकार के बारे में लिखा है....*

✡ *ख़रीदार औरत किसी भी मंजिल से अपना पति चुन सकती है....*

✡ *लेकिन एक बार ऊपर जाने के बाद दोबारा नीचे नहीं आ सकती, सिवाय बाहर जाने के...*

एक खुबसूरत लड़की को दूकान में दाख़िल होने का मौक़ा मिला...

*पहली मंजिल* के दरवाज़े पर लिखा था - *“इस मंजिल के पति अच्छे रोज़गार वाले है और नेक है."*लड़की आगे बढ़ी ..

*दूसरी मंजिल* 

पर लिखा था - *“इस मंजिल के पति अच्छे रोज़गार वाले है, नेक है और बच्चों को पसंद करते है.”*लड़की फिर आगे बढ़ी ...

*तीसरी मंजिल* के दरवाजे पर लिखा था - *“इस मंजिल के पति अच्छे रोज़गार वाले है, नेक है और खुबसूरत भी है.”*यह पढ़कर लड़की कुछ देर के लिए रुक गयी मगर यह सोचकर कि चलो ऊपर की मंजिल पर भी जाकर देखते है, वह आगे बढ़ी...

*चौथी मंजिल* के दरवाज़े पर लिखा था - *“इस मंजिल के पति अच्छे रोज़गार वाले है, नेक है, खुबसूरत भी है और घर के कामों में मदद भी करते है.”*

यह पढ़कर लड़की को चक्कर आने लगे और सोचने लगी *“क्या ऐसे पति अब भी इस दुनिया में होते है ?*

यहीं से एक पति ख़रीद लेती हूँ...लेकिन दिल ना माना तो एक और मंजिल ऊपर चली गयी...

*पांचवीं मंजिल* पर लिखा था - *“इस मंजिल के पति अच्छे रोज़गार वाले है , नेक है और खुबसूरत है , घर के कामों में मदद करते है और अपनी बीबियों से प्यार करते है.”*

अब इसकी अक़ल जवाब देने लगी वो सोचने लगी *इससे बेहतर और भला क्या हो सकता है ?* मगर फिर भी उसका दिल नहीं माना और आखरी मंजिल की तरफ क़दम बढाने लगी...

*आखरी मंजिल*

 के दरवाज़े पर लिखा था - *“आप इस मंजिल पर आने वाली 3339 वीं औरत है , इस मंजिल पर कोई भी पति नहीं है , ये मंजिल सिर्फ इसलिए बनाई गयी है ताकि इस बात का सबूत सुप्रीम कोर्ट को दिया जा सके कि महिलाओं को पूर्णत संतुष्ट करना नामुमकिन है.*

हमारे स्टोर पर आने का धन्यवाद ! बांयी ओर 8सीढियाँ है जो बाहर की तरफ जाती है !


*सांराश - आज समाज की सभी कन्याओं और वर पक्ष के माता पिता यह सब कर रहे है एवं 'अच्छा' और "अच्छा" ... के चक्कर में शादी की सही उम्र तो खत्म ही हो रही है...

🌷🙏

Thursday, 29 August 2024

सरकारी नौकरी** की चाहत ने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी।

 **सेक्स एक औरत के शरीर को पूर्ण करता हैं** और सही उम्र में यदि संभोग ना हो तो एक औरत का शरीर उभर नहीं पाता। रति क्रिया के समय जब एक महिला संतुष्टि की प्राप्ति करती है, तब उसके शरीर में कुछ ऐसे **हार्मोन** बनते हैं जो मासिक धर्म की समस्या, चेहरे की चमक और उदर समस्या का समाधान करते हैं। 🌸


कॉलेज खत्म होने के बाद मेरी उम्र महज **23 साल** की थी। **पापा, चाचा** सभी मेरे लिए रिश्ता देख रहे थे। कई लड़कों के रिश्ते आते थे, पर किसी को सही नहीं समझा जाता था। कारण था **सरकारी नौकरी**। घर में **माँ** तरह-तरह के टोटके करती रहतीं कि मेरी शादी जल्दी हो जाए। एक दिन मैंने माँ से कहा, "माँ, इन टोटकों से क्या होगा? जहां शादी होनी होगी, वहीं हो जाएगी।" 😕


माँ ने जवाब दिया, "**तुम चुप रहो**। शादी-ब्याह अपने समय पर हो तो ठीक है।" मैं उनकी बात सुनकर हट गई।


तकरीबन **6 महीने** बाद एक लड़का मिला जो सरकारी विभाग में नौकरी करता था। उसकी उम्र **37 साल** थी, मुझसे तकरीबन **14 साल** बड़ा। सरकारी नौकरी देखकर **पापा-चाचा** ने हां कर दी, माँ ने भी हां कर दी। मुझसे पूछा भी नहीं गया कि क्या मुझे लड़का पसंद है या नहीं। 😔


फिर उनके घर वाले मेरे घर आए और मुझे देखकर पसंद कर लिया। मैंने उन्हें देखा, वो उम्र में काफी बड़े थे, पर इस बारे में कोई सवाल करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। हम दोनों को बात करने के लिए कमरे में छोड़ दिया गया, पर मेरे अंदर हिम्मत नहीं हो रही थी कि कुछ पूछूं। 🤐


जब सब चले गए, तो बहुत दबे मन से मैंने माँ से कहा कि ये उम्र में काफी बड़े हैं। माँ ने डांटकर बैठा दिया और बोली, **"इतना अंतर चलता है।"** माँ-पिता की मर्जी को मैं आशीर्वाद मानकर स्वीकार कर लिया, और हमारी शादी हो गई। 💍


**शादी की पहली रात** हम दोनों के बीच कुछ नहीं हुआ। मुझे लगा, शायद स्ट्रेस की वजह से है। धीरे-धीरे **2 हफ्ते** बीत गए। मैंने उनसे पूछा, "क्या मैं आपको पसंद नहीं हूं जो आप मेरे करीब नहीं आना चाहते?" उन्होंने हाथ पकड़कर कहा, **"ऐसा नहीं है।"**


फिर मौका देखकर मैं ही उनके करीब आई और जो एक लड़की का हक होता है, वो करने की कोशिश की। हम संभोग करने ही वाले थे कि तभी मेरे पति का सब कुछ हो गया। वो शर्मिंदा होकर कमरे से बाहर चले गए। मैंने उन्हें भरपूर समय दिया और एक हफ्ते बाद उनसे पूछा कि क्या इस समस्या के लिए डॉक्टर को दिखाया है। 😓


उन्होंने कहा, "**पिछले 2 साल से इलाज कर रहा हूँ, कोई फायदा नहीं हुआ।**" मेरा मन बैठ गया। एक स्त्री को जब संभोग सुख नहीं मिलता, तो वह पूर्ण महसूस नहीं कर पाती और ना ही वह माँ बन सकती। धीरे-धीरे हमारे बीच दूरी बढ़ने लगी। जब मैं डॉक्टर के पास गई, तो पता चला **अधिक उम्र** होने की वजह से नसें सूख चुकी हैं और इस उम्र में काम के प्रेशर से साथ लड़कों में कामेच्छा की कमी भी होने लगती है, जिसकी वजह से समस्या जल्दी ठीक नहीं होती। 🧑‍⚕️


मेरी उम्र **24 साल** थी, जहां मेरा शरीर संभोग सुख की डिमांड कर रहा था, और दूसरी तरफ **38 साल** के पति, जिनमें कामेच्छा मर सी गई थी। यह मेरे लिए जीते जी मरने के समान था। मेरे पति मुझे **शारीरिक सुख** नहीं दे सकते, पर इंसान अच्छे हैं। मैं भी उनसे प्रेम करती हूँ और वो भी मुझसे। ❤️


पर **सरकारी नौकरी** की चाहत ने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी। मुझे लगता है, अगर अपने **हम उम्र** के लड़के के साथ शादी करती, भले ही वो कम पैसा कमाता, पर मुझे खुश रखता। आज स्थिति ऐसी है कि सारी सुख-सुविधाएं भी फीकी पड़ती जा रही हैं। 😔


मैं सभी लड़कियों के **माता-पिता** से कहना चाहूंगी कि सरकारी नौकरी की तलाश में अपने बच्चे की जिंदगी से खिलवाड़ मत कीजिए। जीवन में खुश रहने के लिए **पैसे** ही सबकुछ नहीं होते। सही समय पर, सही उम्र के लड़के के साथ शादी करें। 👰


आज के जमाने में **50 साल** के बूढ़े में भी 25 साल के लड़के जैसी ताकत नहीं रहती। आज तो लोग **30 में** ही बूढ़े हो रहे हैं। जीवन एक बार मिलता है, इसे अच्छे से जीएं और सही समय पर सही फैसले लें। 🌟

अर्जुन ने हमें सिखाया कि सच्ची खुशी और सुकून कहीं और नहीं, बल्कि अपने परिवार और अपनों के साथ ही मिलती है।

 मेरा मित्र, अर्जुन, जिसे मैंने पांच साल पहले आखिरी बार देखा था, अचानक दुबई चला गया था। उसकी जिंदगी का मकसद बड़ा स्पष्ट था—अपनी बहनों की शादियाँ करना, घर का कर्ज़ उतारना, और अपने बूढ़े माता-पिता की सेवा करना। हालांकि, हम फेसबुक पर अक्सर बात कर लिया करते थे, फिर भी जब वह पांच साल बाद लौटकर आया, तो उसकी आँखों में एक अलग ही गहराई दिखी। उसकी जिंदगी की कहानी कुछ ऐसी थी जिसे सुनकर हम सभी मित्र मंडली गहरी सोच में डूब गए।


एक दिन हम सभी दोस्तों ने मिलकर अर्जुन को घेरा और उससे पूछा, "और भाई, कैसी रही अरब की जिंदगी?"


अर्जुन ने गहरी सांस ली, जैसे एक लंबी कहानी कहने की तैयारी कर रहा हो। फिर उसने कहना शुरू किया:


"देखो, भाई, पाँच साल हो गए थे सऊदी में काम करते हुए। पहले साल की सारी कमाई तो कर्ज़ उतारने में चली गई। दूसरा साल बहनों की शादियों में खर्च हो गया। तुम जानते हो ना, परिवार की जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। तीसरे साल कुछ पैसे बचाने की सोची, लेकिन अब्बा की तबियत खराब हो गई। लौटने की हिम्मत नहीं हो रही थी, फिर अब्बा भी दुनिया से चले गए। चौथा साल अब्बा के इलाज और उनकी मौत के सदमे में निकल गया।"


हम सबके चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं। अर्जुन ने कहानी को जारी रखते हुए कहा, "अम्मा बूढ़ी हो गई थीं, घर पर अकेली थीं, लेकिन मेरे पास कोई बचत नहीं थी। पांच साल सऊदी में बिताने के बाद भी, जब घर लौटने का समय आया, तो खाली हाथ लौटना पड़ा। अम्मा की जिद और बहनों की पुकार ने मेरी हिम्मत बढ़ाई, 'भाई, बस आ जाओ, हमें कुछ नहीं चाहिए।' सोचा, चलो अब यहां ही कुछ कर लेंगे।"


अर्जुन ने गहरी नजरों से हमारी तरफ देखा और फिर बोला, "जब घर लौटा, तो लगा कि ये पांच साल जैसे एक सपना था, एक ऐसा सपना जिसे पूरा करने की जद्दोजहद में सब कुछ दांव पर लग गया। अगले ही दिन बहनों से मिलने गया। पहली बहन के बच्चों के हाथ पर सौ रुपये रखकर आया, लेकिन जब दूसरी बहन के घर पहुंचा, तो पास में एक भी पैसा नहीं बचा था। सोचा, चलो ये तो अपनी है, समझ जाएगी। पर वह समझी नहीं। घर वापस आया तो अम्मा ने बताया कि बड़ी बहन का फोन आया था। उसने कहा, 'भाई पांच साल बाद सऊदी से आया था, बच्चों के हाथों पर सौ रुपये रखकर गया, इतना तो किसी फकीर को भी दे देते हैं।'"


अर्जुन की आवाज में दर्द साफ झलक रहा था। उसने आगे कहा, "दूसरी बहन बोली, 'भाई, पांच साल बाद सऊदी से आए और बच्चों के हाथ पर दस रुपये भी नहीं रखे। बच्चों ने कहा कि मामू आए थे, खाली हाथ। मेरी ससुराल में मेरी नाक कटवा दी।'"


हम सब सुनकर चुप हो गए। अर्जुन की आँखों में एक अजीब सी निराशा थी। उसने कहा, "मैं खड़ा था, और अपने पिछले पाँच सालों की कमाई का हिसाब लगा रहा था। ये सिर्फ मेरी कहानी नहीं है, भाई। हम में से कई लोग, जो पैसे कमाने के लिए घर से दूर जाते हैं, उनके साथ यही होता है। जब आप कमा रहे होते हैं, तो सब आपको सर पर उठाते हैं, लेकिन जब कभी कमाने का सिलसिला टूट जाता है, तो सब कुछ मिट्टी में मिल जाता है। मान-सम्मान, रिश्ते, सब एक पल में धुंधले हो जाते हैं।"


अर्जुन की बात ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया। उसने हमें एक ऐसी सच्चाई दिखाई, जिसे हम शायद अपने आरामदायक जीवन में कभी समझ ही नहीं पाए थे। हमने अपने दोस्त के साथ वो समय बिताया, उसकी बातें सुनीं और महसूस किया कि जिंदगी में धन और दौलत से बढ़कर भी कुछ है—समय, प्रेम, और वो रिश्ते जिनकी कद्र शायद हम अक्सर भूल जाते हैं।


अर्जुन ने हमें सिखाया कि सच्ची खुशी और सुकून कहीं और नहीं, बल्कि अपने परिवार और अपनों के साथ ही मिलती है।

भाई सिर्फ नाम से नहीं, बल्कि दिल से भी होते हैं।

 शिवानी का रिजर्वेशन जिस बोगी में था, उसमें ज्यादातर लड़के ही थे। टॉयलेट जाने के बहाने शिवानी पूरी बोगी घूम आई थी, और उसे वहां मुश्किल से दो-तीन महिलाएं दिखीं। मन अनजाने भय से घबराने लगा।


यह पहली बार था जब शिवानी अकेली सफर कर रही थी, इसलिए वह पहले से ही चिंतित और डरी हुई थी। उसने खुद को सहज रखने की कोशिश करते हुए चुपचाप अपनी सीट पर बैठकर मैगज़ीन निकाल ली और पढ़ने लगी।


वहीं, पास के कुछ नवयुवक, जो शायद किसी कैम्प के लिए जा रहे थे, जोर-जोर से हंसी-मजाक और चुटकुले कर रहे थे। उनके शोर ने शिवानी की हिम्मत को और भी तोड़ दिया। उसका दिल तेजी से धड़कने लगा, जैसे हर पल कुछ अनहोनी की आशंका हो।


शिवानी के मन में उठ रहे भय और घबराहट के बीच रात धीरे-धीरे उतरने लगी। अचानक सामने बैठे एक युवक ने कहा, "हेलो, मैं विनय हूँ, और आप?" शिवानी ने भय से कांपते हुए धीरे से कहा, "जी, मैं...," इससे पहले कि वह कुछ और कह पाती, विनय ने मुस्कुराते हुए कहा, "कोई बात नहीं, नाम बताने की ज़रूरत नहीं। वैसे, कहाँ जा रही हैं आप?"


शिवानी ने हिचकिचाते हुए कहा, "वाराणसी।"


विनय ने उत्साहित होकर कहा, "अरे वाह, वाराणसी तो मेरी मामी का घर है! इस रिश्ते से तो आप मेरी बहन हुईं, है न?" विनय की इस बात पर शिवानी थोड़ी हैरान हुई, लेकिन वह उसकी बातों में रुचि लेने लगी। विनय ने उसे वाराणसी की कई बातें बतानी शुरू कर दीं। उसने कहा कि उसके मामा एक प्रसिद्ध व्यक्ति हैं, और उसके मामा के बेटे सेना में उच्च पदों पर हैं। इन सब बातों ने शिवानी को कुछ हद तक आराम दिया, और वह धीरे-धीरे सामान्य हो गई।


शिवानी पूरी रात विनय से बातें करती रही। उसके साथ उसने अपना भय और अनिश्चितता भूलकर कुछ सुकून के पल बिताए। उसे लगा जैसे वह वास्तव में अपने भाई के साथ है। रात जैसे कुँवारी आई थी, वैसे ही पवित्र कुँवारी गुजर गई।


सुबह होते ही शिवानी ने विनय से कहा, "लीजिए, मेरा पता रख लीजिए। कभी वाराणसी आना हो, तो जरूर मिलने आइएगा।"


विनय ने हंसते हुए जवाब दिया, "बहन, सच कहूं तो मैंने कभी वाराणसी देखा ही नहीं है। मैंने सिर्फ आपको सहज महसूस कराने के लिए ये बातें गढ़ीं।"


शिवानी चौंक गई, "क्या? आपने तो कहा था कि..."


विनय ने उसकी बात काटते हुए कहा, "बहन, ऐसा नहीं है कि सभी लड़के बुरे होते हैं। हर किसी का इरादा खराब नहीं होता। हम में ही तो वे लोग होते हैं जो पिता, भाई और मित्र बनते हैं। यह समाज वैसा नहीं है जैसा हम अक्सर सोचते हैं।"


इतना कहकर विनय ने प्यार से शिवानी के सिर पर हाथ फेरा और मुस्कुराते हुए बोला, "अपना ख्याल रखना, बहन।"


शिवानी उसे देखती रही, जैसे कोई अपना भाई उससे विदा ले रहा हो। उसकी आंखें गीली हो चुकी थीं। वह सोच रही थी, काश, इस संसार में सभी ऐसे ही होते—न कोई अत्याचार, न कोई व्यभिचार। एक भयमुक्त समाज का स्वरूप, जहां हर बहन-बेटी खुली हवा में सांस ले सके, निर्भय होकर कहीं भी, कभी भी जा सके। जहां हर कोई एक-दूसरे का मददगार हो।


तभी एक रिक्शे वाले ने आवाज दी, "बहन, कहां चलना है?"


शिवानी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "कॉलेज तक, भाई। ले चलोगे?"


आज, वह डर नहीं रही थी। क्योंकि अब वह जान गई थी कि भाई सिर्फ नाम से नहीं, बल्कि दिल से भी होते हैं।

रिश्तों का महत्व समझें, उन्हें संजोएं,

 सुनैना एक प्रतिष्ठित बैंक में उच्च पद पर कार्यरत थी। शादी के बाद से वह अपने ससुराल में अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने और करियर के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रही थी। घर में बस तीन लोग थे—सुनैना, उसके पति अनुराग, जो खुद का व्यापार करते थे, और उनके वृद्ध ससुर, श्री रमेश तिवारी। सुनैना की सास का देहांत एक साल पहले ही हो चुका था, और उसके बाद से ही घर का माहौल थोड़ा सा उदासीन हो गया था।


हर दिन, जब सुनैना सुबह जल्दी उठकर घर के काम निपटाकर ऑफिस के लिए तैयार होती, ठीक उसी समय उसके ससुर, जो अक्सर अपने कमरे में रहते थे, उसे बुलाते और कहते, "बहू, मेरा चश्मा साफ कर दो, और मुझे दे दो।" सुनैना को ऑफिस के लिए देर हो रही होती थी, और वह मन ही मन झुंझलाती, लेकिन ससुर की बात का मान रखते हुए चश्मा साफ कर देती थी। यह सिलसिला रोज़ का हो गया था, और सुनैना के लिए यह बात धीरे-धीरे असहनीय हो चली थी।


एक दिन, जब यह रोज़ की बात उसके सहनशक्ति की सीमा को पार करने लगी, तो उसने यह बात अपने पति अनुराग से साझा की। अनुराग को भी यह सुनकर आश्चर्य हुआ, क्योंकि उनके पिता ने कभी ऐसी आदत नहीं दिखाई थी। अनुराग ने सुनैना को सलाह दी, "तुम सुबह उठते ही पिताजी का चश्मा साफ करके उनके कमरे में रख दिया करो, शायद इससे उनका बार-बार बुलाना बंद हो जाए।"


सुनैना ने पति की सलाह मान ली और अगले दिन से हर सुबह सबसे पहले ससुर का चश्मा साफ कर उनके कमरे में रख आती। लेकिन ससुर के बुलाने का सिलसिला थमा नहीं। सुनैना के प्रयास के बावजूद, जब वह ऑफिस के लिए निकलने लगती, तो ससुर फिर से उसे चश्मा साफ करने के लिए बुला लेते। इस आदत से सुनैना और भी अधिक परेशान हो गई थी।


समय के साथ, सुनैना ने इस स्थिति को अनदेखा करना शुरू कर दिया। ससुर की आवाज़ अब उसके लिए कोई महत्व नहीं रखती थी, और वह अपने काम में मग्न रहती। धीरे-धीरे, रिश्तों में वह गर्माहट भी कम होने लगी थी। फिर एक दिन, ससुर अचानक बीमार हो गए और कुछ ही दिनों में चल बसे। सुनैना के दिल में कहीं न कहीं पछतावा था, लेकिन उसने खुद को व्यस्त रखकर उस दर्द को दबा दिया।


ससुर के देहांत के दो साल बाद, एक दिन सुनैना ने सोचा कि घर की सफाई की जाए। सफाई करते समय, उसे अपने ससुर की एक पुरानी डायरी मिली। सुनैना ने वह डायरी खोली और उसमें लिखे पन्ने पलटने लगी। एक पन्ने पर लिखा था:


"दिनांक 24-08-09... आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चे अक्सर घर से निकलते समय बड़ों का आशीर्वाद लेना भूल जाते हैं। यही आशीर्वाद उनके जीवन की कठिनाइयों में ढाल बनता है। इसलिए, जब तुम चश्मा साफ कर मुझे देने के लिए झुकती थी, तो मैं मन ही मन तुम्हारे सिर पर अपना हाथ रखकर तुम्हें आशीर्वाद देता था। तुम्हारी सास ने मुझसे वादा लिया था कि मैं तुम्हें अपनी बेटी की तरह ही प्यार दूंगा और तुम्हें कभी महसूस नहीं होने दूंगा कि तुम अपने ससुराल में हो, बल्कि हमेशा ऐसा लगे कि यह तुम्हारा अपना घर है।"


डायरी के ये शब्द पढ़ते ही सुनैना की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने महसूस किया कि जिस आशीर्वाद को वह अनदेखा करती आई थी, वही उसकी असली ताकत थी। अपने ससुर के उस अनकहे प्यार और आशीर्वाद की गहराई को समझकर वह फूट-फूटकर रोने लगी।


आज भी, ससुर के जाने के वर्षों बाद, सुनैना रोज़ सुबह घर से निकलते समय उनका चश्मा साफ कर, उसी टेबल पर रख देती है। उसे यह यकीन है कि उसके ससुर की आत्मा कहीं न कहीं से उसे देख रही होगी और उसे अपने आशीर्वाद से सराबोर कर रही होगी।


इस घटना ने सुनैना को रिश्तों की असली महत्ता सिखाई। अब वह समझ गई थी कि रिश्ते शब्दों से नहीं, भावनाओं से सहेजे जाते हैं। वह जीवनभर उस आशीर्वाद को संजोकर रखेगी, जो ससुर के हाथों से उसे अनकहे मिलते रहे।


रिश्तों का महत्व समझें, उन्हें संजोएं, क्योंकि जब हम उन्हें खो देते हैं, तब उनकी कीमत का एहसास होता है।

Wednesday, 28 August 2024

माता-पिता के विश्वास का सम्मान करना चाहिए,

 "माँ...!" रीना ने हल्की हिचकिचाहट के साथ कहा, "मैं सोच रही थी कि आज रात शालिनी के घर रुक जाऊं। थोड़ी ग्रुप स्टडी करनी है, और परसों मैथ्स का टेस्ट भी है, उसी की तैयारी करनी है।" रीना अपनी किताबें समेटते हुए उत्साहित होकर बोलती जा रही थी।


"बेटा, रात को किसी के घर रुकना मुझे ठीक नहीं लगता," माँ, सुनीता, ने अपने संकोच को जाहिर करते हुए कहा।


"माँ!!", रीना ने नाराज होते हुए कहा, "पापा, देखिए ना, माँ मुझे जाने नहीं दे रहीं!"


रीना के पिता, रोहित, जो हमेशा अपने बच्चों की बात मानते थे, सुनीता पर हल्का सा नाराज होते हुए बोले, "अरे, रुक जाने दो ना रीना को उसकी सहेली के घर, एक रात की ही तो बात है। हमें अपने बच्चों पर विश्वास करना सीखना चाहिए। जाओ बेटा, जाओ!"


रीना ने अपने पापा को धन्यवाद कहा और उत्साहित होकर अपनी स्कूटी से शालिनी के घर की ओर निकल पड़ी।


रात का एक बज चुका था, जब फोन की घनघनाहट ने रोहित जी को जगा दिया। फोन उठाते ही उन्होंने एक अनजान आवाज सुनी, "मि. रोहित, आप तुरन्त थाना सिविल लाइन्स आने का कष्ट करें।"


रोहित जी का दिल धक-धक करने लगा, उन्हें कुछ अनहोनी का आभास हो रहा था। उनकी सांसें जैसे गले में अटक गईं। बदहवास होकर वे थाने पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि लगभग दस-पंद्रह युवक-युवतियां मुंह छिपाए बैठे थे। रोहित जी ने अपनी बेटी, रीना, को पहचानने में जरा भी देर नहीं लगाई। उनका दिल टूट गया था, जैसे किसी ने उनके विश्वास को कुचल दिया हो।


"देखिए, मि. रोहित," थानेदार ने गुस्से से कहा, "ये बच्चे शहर के बाहर एक फार्महाउस में ड्रग्स के साथ रेव पार्टी करते हुए पकड़े गए हैं! आप लोग आखिर किस तरह के संस्कार अपने बच्चों को देते हैं? इतनी रात गए घर से बाहर जाने की परमिशन कैसे दे देते हैं? आपको शर्म आनी चाहिए!"


रोहित जी का सिर शर्म से झुक गया। वे बस एक ही बात सोच रहे थे, "मैंने अपनी बेटी पर इतना विश्वास किया, लेकिन आखिर क्यों उसने मेरे साथ विश्वासघात किया?"


दोस्तों, इस दुनिया में अगर कोई है जो आपका सबसे ज्यादा ख्याल रखता है, आपका भला चाहता है, तो वो आपके माता-पिता हैं। उनके सख्त होने के पीछे भी आपके लिए अपार प्रेम छिपा होता है। कभी भी आपको उस प्रेम का नाजायज फायदा नहीं उठाना चाहिए। माता-पिता के विश्वास का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि एक बार खोया हुआ विश्वास शायद कभी लौटकर नहीं आता।

बिजली बिल से पीड़ित आम नागरिक की व्यथा

 बिजली विभाग के दफ्तर के बाहर राजू केले बेच रहा था।

बिजली विभाग के एक बड़े अधिकारी ने पूछा : " केले कैसे दिए" ?

राजू: केले किस लिए खरीद रहे हैं साहब ?

अधिकारी:- मतलब ?? 

राजू:- मतलब ये साहब कि,

*मंदिर* के प्रसाद के लिए ले रहे हैं तो 10 रुपए दर्जन। 

*वृद्धाश्रम* में देने हों तो 15 रुपए दर्जन। 

बच्चों के *टिफिन* में रखने हों तो 20 रुपए दर्जन। 

*घर* में खाने के लिए ले जा रहे हों तो, 25 रुपए दर्जन 

और अगर *पिकनिक* के लिए खरीद रहे हों तो 30 रुपए दर्जन।

अधिकारी: - ये क्या बेवकूफी है ? अरे भई, जब सारे केले एक जैसे ही हैं तो,भाव अलग अलग क्यों बता रहे हो ??

राजू: - ये तो पैसे वसूली का, आप ही का स्टाइल है साहब। 

1 से 100 रीडिंग का रेट अलग, 

100 से 200 का अलग, 

200 से 300 का अलग। 

अरे आपके बाप की बिजली है क्या ?

आप भी तो एक ही खंभे से बिजली देते हो। 

तो फिर घर के लिए अलग रेट, 

दूकान के लिए अलग रेट, 

कारखाने के लिए अलग रेट, 

फिर इंधन भार, विज आकार.....

और हाँ, एक बात और साहब, 

*मीटर का भाड़ा।*

मीटर क्या अमेरिका से आयात किया है ? 25 सालों से उसका भाड़ा भर रहा हूँ। आखिर उसकी कीमत है कितनी ?? आप ये तो बता दो मुझे एक बार।

*जागो ग्राहक जागो* अधिकारी चुप चाप अपने ऑफिस में चला गया l 

🎺🎺🎺 

बिजली बिल से पीड़ित  आम नागरिक की व्यथा🤔😎

Monday, 26 August 2024

एक पत्नी को शादी के कुछ साल बाद यह विचार आया कि अगर वह अपने पति को छोड़ कर कहीं चली जाए, तो उसका पति कैसा महसूस करेगा?

 एक पत्नी को शादी के कुछ साल बाद यह विचार आया कि अगर वह अपने पति को छोड़ कर कहीं चली जाए, तो उसका पति कैसा महसूस करेगा?


पत्नी ने अपने इस विचार को जानने और परखने के लिए एक सादे कागज पर लिखा, "अब मैं तुम्हारे साथ और नहीं रह सकती। मैं तुम्हारे साथ से उब चुकी हूं। मैं घर छोड़ कर हमेशा के लिए जा रही हूं।”


उस कागज को उसने टेबल पर रखा और जब पति के आने का समय हुआ, तो उसकी प्रतिक्रिया देखने के लिए वह पलंग के नीचे छुप गई।


पति आया और उसने टेबल पर रखे कागज को पढ़ा। कुछ देर की चुप्पी के बाद उसने उस कागज पर कुछ लिखा। फिर वह खुशी में जोर-जोर से सीटी बजाने लगा, गीत गाने लगा, उछल-उछल कर नाचने लगा और फिर अपने कपड़े बदलने लगा।


उसके बाद उसने अपने फोन से किसी को फोन किया और कहा, "आज मैं मुक्त हो गया! शायद मेरी मूर्ख पत्नी को समझ आ गया कि वह मेरे लायक नहीं थी। इसलिए आज वह घर से हमेशा के लिए चली गई। अब मैं आजाद हूं, तुमसे मिलने के लिए। मैं आ रहा हूं कपड़े बदलकर तुम्हारे पास। तुम तैयार होकर मेरे घर के सामने वाले पार्क में अभी आ जाओ।”


पति बाहर निकल गया।


पति के जाने के बाद पत्नी रोते-बिलखते बेड के नीचे से निकली और कांपते हाथों से कागज पर लिखी लाइन पढ़ी, जिसमें लिखा था,


"बेड के नीचे से तेरे पैर दिख रहे हैं पगली। पार्क के पास वाली दुकान से ब्रेड लेकर तुरंत आ रहा हूं। तब तक चाय बना लेना। मेरी जिंदगी में खुशियां तेरे बहाने से हैं। आधी तुझे सताने से हैं और आधी तुझे मनाने से हैं!! लव यू मच..!!"

Sunday, 25 August 2024

अभिनव" नाम से एक फ्रेंड रिक्वेस्ट देख सुरभि हैरान हो गई थी। उसने अनायास ही प्रोफाइल खोलकर देखा

 कई वर्षों बाद "अभिनव" नाम से एक फ्रेंड रिक्वेस्ट देख सुरभि हैरान हो गई थी। उसने अनायास ही प्रोफाइल खोलकर देखा। प्रोफाइल फोटो देखते ही उसकी शंका यकीन में बदल गई। यह अभिनव ही था। सुरभि ने उत्सुकता से अभिनव का पूरा प्रोफाइल खंगाल डाला—पत्नी, बच्चे, व्यवसाय, दोस्तों की तस्वीरें, और कामयाबी की दास्तां। सुरभि मुस्कुराई, उसे यह देखकर अच्छा लगा कि इतने वर्षों बाद भी अभिनव ने उसे याद रखा है। सालों गुजर गए थे...


वह दिन याद आते ही सुरभि के मन में अतीत की परतें खुलने लगीं। इंटर कॉलेज का प्रतियोगिता होने वाला था। सुरभि बहुत अच्छा गाती थी, और यह उसका अंतिम वर्ष था। कॉलेज के बाद कौन मिल पाता है? यह सोचकर उसने सिंगिंग कॉम्पिटिशन में अपना नाम लिखवा दिया था। उसकी शिक्षिका ने भी उसे प्रोत्साहित किया, हालांकि उन्होंने यह भी कहा, "लड़कियों में तो तुम हर बार जीतती हो, लेकिन हमारे कॉलेज से कोई भी लड़का उस अभिनव से नहीं जीत पाता। पिछले दो सालों से वही जीत रहा है।" अभिनव दूसरे कॉलेज का छात्र था। सुरभि ने पहली बार उसे मंच पर गाते देखा था। उसकी आवाज में इतनी मिठास और सहजता थी कि सुरभि मंत्रमुग्ध हो गई थी। जब वह विजेता घोषित हुआ, तो सुरभि दिल से खुश हुई थी। दोनों की मुलाकातें सीमित थीं, लेकिन अभिनव सुरभि की आवाज से बहुत प्रभावित हुआ था।


कॉलेज खत्म होने के बाद, सुरभि की आकाशवाणी में नौकरी लग गई। एक दिन, एक कार्यक्रम के दौरान, सुरभि को पता चला कि उसके शहर के गायक कलाकारों का इंटरव्यू हो रहा है, जिसमें होस्ट वह खुद थी। और वहां उपस्थित अभिनव को देख सुरभि एक बार फिर अचंभित हो गई। उसे पहचानने में उसे देर न लगी। कार्यक्रम के बाद, औपचारिक बातों के बीच, अभिनव ने सुरभि से पूछा, "क्या हम कहीं और मिल सकते हैं?"


"क्यों?" सुरभि ने थोड़ा हैरानी से पूछा।


"बस ऐसे ही," अभिनव ने हंसते हुए कहा।


सुरभि ने मना नहीं किया। अभिनव के व्यक्तित्व में एक अलग सा आकर्षण था, जो उसे खींच रहा था।


काफी हाउस के एक कोने में बैठकर, अभिनव ने अचानक सुरभि से पूछा, "तुम्हारा विवाह कब हो रहा है?"


सुरभि इस प्रश्न से थोड़ा चौंक गई। मजेदार बात यह थी कि दोनों ही एक ही जाति से थे, लेकिन सुरभि एक साधारण परिवार से थी, जबकि अभिनव एक प्रतिष्ठित परिवार से था। सुरभि ने उत्तर दिया, "अभी तो कुछ सोचा नहीं है, पहले दीदी की शादी हो जाए, फिर मेरी होगी।"


अभिनव कुछ और कहने से पहले रुक गया, लेकिन इस मुलाकात ने दोनों के दिलों में एक नाजुक सा रिश्ता पनपा दिया।


फिर भी, दोनों अपनी-अपनी दुनिया में लौट गए। न कोई वादा, न कोई करार, बस एक अनकहा सा जुड़ाव...


कुछ समय बाद, सुरभि के मामा की बेटी की शादी में वह एक और समारोह में शामिल होने गई। वहां, वह अभिनव से फिर से मिली। दोनों एक-दूसरे को देखकर खुश और हैरान थे, लेकिन यह खुशी दोनों के चेहरे पर साफ झलक रही थी।


बंगाली विवाह की रस्मों के बीच, उस रात, सौरभ ने अपने दिल की बात कह दी, "क्या तुम मुझसे शादी करोगी?"


सुरभि थोड़ा झिझकी, फिर बोली, "देखिए, मैं इस बारे में अभी कुछ नहीं कह सकती। आप घर में रिश्ता भेजिए।" और वह शर्माते हुए वहां से चली गई।


रिश्ते की बात चली भी, लेकिन दहेज की मांग के कारण मामला अटक गया। और फिर, दोनों का मिलना बंद हो गया।


फेसबुक पर अभिनव की फ्रेंड रिक्वेस्ट देखकर सुरभि एक बार फिर अतीत की यादों में खो गई थी। उसने रिक्वेस्ट स्वीकार की और मन ही मन मुस्कुराई। एक सुखद आश्चर्य यह था कि अभिनव भी उसी शहर में रह रहा था। एक प्रोग्राम के दौरान, दोनों आमने-सामने आए।


अभिनव को देखकर सुरभि चौंक गई। वह काफी उम्रदराज लग रहा था, आंखों के नीचे काले घेरे साफ दिखाई दे रहे थे। बात भी बहुत कम ही हुई। अभिनव की पत्नी और बच्चे साथ थे, और वह शायद कुछ असहज महसूस कर रहा था।


बहरहाल, उस प्रोग्राम में सुरभि का एक जानने वाला भी था, जिसने जो कुछ अभिनव के बारे में बताया, उसे सुनकर सुरभि हैरान रह गई। "अभिनव दादा अब बहुत पीने लगे हैं, पत्नी और बच्चे की भी नहीं सुनते। उन्होंने गाना भी छोड़ दिया है। कहते हैं, 'सब कुछ है मेरे पास, बस सुकून नहीं है।'"


सुरभि समझ नहीं पा रही थी कि वह कैसे अभिनव को समझाए।


दूसरे दिन उसने अभिनव को फोन किया। औपचारिक बातें करते-करते सुरभि ने कहा, "आप बहुत कमजोर लग रहे हैं, क्या कोई तकलीफ है?"


"नहीं भी और हां भी," अभिनव ने उत्तर दिया।


"क्या तकलीफ है, बता सकते हैं?" सुरभि ने चिंता से पूछा।


"कुछ छूट गया है, सुरभि, पीछे कहीं।"


सुरभि का दिल धड़क उठा। क्या अभिनव अब भी उसे भूला नहीं था?


"आज मन की बात कह लेने दो, सुरभि, प्लीज," अभिनव ने कहा। "मैंने मन ही मन तुम्हें अपनी पत्नी मान लिया था। लेकिन घर के दबाव में आकर मुझे शादी करनी पड़ी। विवाह की रात मैंने सोचा था कि सबकुछ अपनी पत्नी को बता दूंगा, लेकिन तुम्हारे सम्मान के लिए चुप रहा।"


गहरी सांस लेकर अभिनव ने कहा, "मेरी पत्नी पहले से ही गर्भवती थी। मैंने उसके जुड़वा बच्चों को अपना नाम दिया। लेकिन मेरे मन में हमेशा तुम्हारे लिए एक जगह रही, सुरभि।"


सुरभि सन्न रह गई। उसके मन में हजारों सवाल घूम रहे थे, लेकिन वह कुछ नहीं कह पाई। उसने फोन रख दिया और देर तक रोती रही।


अगले दिन, सुरभि के पास एक और फोन आया। "दीदी, अभिनव दादा नहीं रहे। उनके गले में कैंसर था। अंत तक उन्होंने किसी से कुछ नहीं कहा।"


सुरभि, जो अब किसी और की पत्नी थी, समझ नहीं पा रही थी कि वह खुद को क्या समझे। वह कैसे इस धर्मसंकट से निकले? निढाल होती सुरभि, केवल अपने आंसुओं से अभिनव को श्रद्धांजलि दे रही थी।

 हो सकता है मैं कभी प्रेम ना जता पाऊं तुमसे.. लेकिन कभी पीली साड़ी में तुम्हे देखकर थम जाए मेरी नज़र... तो समझ जाना तुम... जब तुम रसोई में अके...