लगातार दरवाजे पर पीटने की आवाज़ से मेरी आँख खुल गई। आँखों में अधूरी नींद और थकान के काँटे चुभने लगे। मन किया कि बस फिर से आँखें बंद कर लूं, लेकिन जिम्मेदारियों का बोझ ऐसा होता है कि सोचना भी मुश्किल हो जाता है। दस साल से बिना सास के इस गृहस्थी का जुआ मेरे ही कंधों पर था। हर चीज़ की जिम्मेदारी मुझे ही निभानी पड़ती थी। अभी तो तीन दिन पहले ही बड़े अरमानों से देवर की शादी कराके घर लाई थी, नाजुक सी देवरानी श्वेता। मैं और मेरी दोनों ननदें, नेहल और निकिता, उसकी बलैयां लेते नहीं थक रहे थे।
जब शादी का शोर थमा, तो बड़ी ननद नेहल ने मेरे सूजे हुए पैरों को देखकर लाड़ से कहा, "बड़ी भाभी, अब आराम करो, छोटी भाभी आ गई है, अब तुम्हारा काम हल्का हो जाएगा। जैसे तुमने दस साल पहले मेरा किया था, याद है?" उसने हंसते हुए निकिता की ओर देखा और कहा, "इस आफत की पुड़िया को तुम्हारे पास छोड़कर ही तो मैं ससुराल जा पाई थी।"
मैं भी हंस पड़ी। वो दिन याद आ गए जब निकिता बिना खटखटाए कमरे में आ जाती थी, और हम दोनों के बीच सो जाती थी। कभी-कभी तो वह फरमाइशों का पूरा पुलिंदा लेकर बैठ जाती थी। अब उसने मज़ाक में कहा था, "भाभी, अब छोटी भाभी मेरी दोस्त होगी। आपकी नसीहतों से छुटकारा मिल जाएगा।"
मन में उन पुरानी यादों में डूबी ही थी कि दरवाजे पर फिर से जोर से आवाज़ हुई। अनमने से स्वर में मैंने कहा, "दरवाजा खुला है, आ जाओ।"
दरवाजा खुलते ही निकिता रोती हुई अंदर आई और उसके पीछे श्वेता की कड़क आवाज़ गूंज रही थी, "इतनी बड़ी हो गई हो, लेकिन मैनर्स सब भूल चुकी हो क्या? बिना दरवाजा खटखटाए अंदर आ जाती हो, और फरमाइशें करती हो। शरबत बना दो, ये बना दो, वो बना दो। खाना खाते वक्त पेट नहीं भरा था क्या?"
मैं हक्का-बक्का रह गई। निकिता की आंखों में आँसू थे और वह मेरे गले लग गई। मैंने उसे चुप कराया, पीठ पर हाथ फेरा और उससे पूछा कि क्या हुआ। उसने सुबकते हुए बताया कि कैसे श्वेता ने पहले दिन से ही उसे उपेक्षित महसूस कराया था। उसने बताया कि पिछली शाम जब वह तैयार होकर चाट खाने के लिए जाने वाली थी, तो श्वेता और देवर उसे बिना बताए चले गए थे। और आज, जब वह छोटे भैया के पीछे-पीछे कमरे में गई, तो श्वेता ने उसे झिड़क कर बाहर निकाल दिया।
निकिता की बातों से मेरा दिल बैठ गया। वह रोते हुए कह रही थी, "भाभी, आपकी भी तो नई शादी थी, लेकिन आपने कभी मुझे अलग महसूस नहीं कराया। मैं आज भी आपकी लाडली हूँ, तो फिर अब ऐसा क्यों हो रहा है?"
मैं और नेहल उसे समझाने की कोशिश कर रहे थे, तभी निकिता ने अचानक कहा, "भाभी, आप तो मेरी कोहिनूर हो, लेकिन एक बात कहूं? छोटी भाभी आपसे आगे निकल गईं। जो बात आप दस साल में नहीं सिखा पाईं, वो श्वेता भाभी ने तीन दिन में सिखा दी। कि ससुराल में क्या-क्या नहीं करना चाहिए।"
उसकी ये बात सुनकर मेरे मन में खामोशी छा गई, लेकिन सच्चाई का एहसास भी गहरा था।
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