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Sunday, 8 September 2024

"मैं, साक्षी। दरवाजा खोलो

 "कौन है?" दरवाजे पर कई बार दस्तक देने के बाद अंदर से धीमी सी आवाज आई, पर दरवाजा अब भी नहीं खुला था। खिड़की से हल्का सा पर्दा हिला, जैसे किसी ने झाँका हो।


"मैं, साक्षी। दरवाजा खोलो," साक्षी बोली, "कब से दरवाजा खटखटा रही हूँ।"


"सॉरी," श्रुति ने नींद से जागकर उबासी लेते हुए कहा, "तू कहीं और कमरा ढूंढ ले।"


"कमरा ढूंढ लूं?" साक्षी ने हैरानी से श्रुति की ओर देखा, "कमरा तुझे ढूंढना है, मुझे क्यों?"


"अब मुझे नहीं, तुझे कमरा तलाशना है," श्रुति ने ठंडे स्वर में कहा।


"क्यों?" साक्षी ने चौंकते हुए पूछा।


"क्योंकि मैंने और आदित्य ने शादी कर ली है," श्रुति ने अपनी उंगलियों से सिंदूर को हल्के से छूते हुए कहा।


"क्या?" साक्षी का चेहरा हतप्रभ हो गया। उसने श्रुति के माथे की बिंदी और मांग में भरा सिंदूर देखा। ये सब उसके नए जीवन की पुष्टि कर रहे थे।


"अब पतिपत्नी के बीच तेरा क्या काम?" श्रुति ने हल्की मुस्कान के साथ कहा और खिड़की का पर्दा पूरी तरह से बंद कर लिया।


साक्षी दरवाजे के बाहर खड़ी-खड़ी कभी खिड़की को देखती, तो कभी दरवाजे को। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसका इतना करीबी दोस्त, जिसे वह अपना समझती थी, अब किसी और का हो चुका था। उसका मन अतीत की यादों में खोने लगा, जहाँ आदित्य और उसकी कहानी ने शुरुआत की थी।


साक्षी और आदित्य ने एक साथ दिल्ली के एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ाई की थी। दोनों ने साथ पढ़ाई की, साथ प्लेसमेंट्स के लिए तैयारी की, और आखिरकार दोनों की नौकरी मुंबई की एक बड़ी कंपनी में लग गई। मुंबई में नए जीवन की शुरुआत करते हुए उन्होंने साथ रहने का निर्णय लिया और लिव-इन रिलेशनशिप में रहने लगे। वे एक-दूसरे के बेहद करीब आ गए थे।


एक रात, जब आदित्य ने साक्षी का हाथ पकड़ते हुए उसकी ओर खींचा, तो साक्षी चौंकते हुए बोली, "क्या कर रहे हो आदित्य?"


"प्यार... तुम्हारे बिना नहीं रह सकता," आदित्य ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा।


"नहीं, अभी नहीं। हम शादीशुदा नहीं हैं," साक्षी ने थोड़ा झिझकते हुए कहा।


"क्या शादी से पहले प्यार करना गलत है?" आदित्य ने सवाल किया।


"हमारे संस्कार यही कहते हैं," साक्षी ने समझाने की कोशिश की। "हम शादी के बाद ही यह सब करेंगे।"


"शादी की ज़रूरत ही क्या है? हम दोनों साथ हैं, यही काफी नहीं है?" आदित्य ने तर्क दिया। "शादी बस एक औपचारिकता है।"


साक्षी को आदित्य पर पूरा विश्वास था, और आदित्य ने अपने प्यार का यकीन दिलाकर उसे भी इस रिश्ते में खींच लिया। साक्षी ने धीरे-धीरे खुद को आदित्य के हवाले कर दिया। शुरू में उसे थोड़ी हिचक थी, लेकिन बाद में वह भी इस रिश्ते में डूब गई। उसे आदित्य के प्यार पर पूरा भरोसा था। वह मानने लगी थी कि शादी का बंधन सिर्फ एक औपचारिकता है। वह आदित्य से कभी शादी की बात भी नहीं करती, क्योंकि उसे यकीन था कि आदित्य हमेशा उसका रहेगा।


लेकिन जब श्रुति उनकी जिंदगी में आई, तो सबकुछ बदल गया।


श्रुति हाल ही में उनकी कंपनी में जॉइन हुई थी। वह दिल्ली की थी और मुंबई में उसका कोई जान-पहचान वाला नहीं था। जब तक उसे कोई जगह नहीं मिल जाती, आदित्य और साक्षी ने उसे अपने साथ रहने का ऑफर दिया। साक्षी को तब तक अंदाजा भी नहीं था कि उसकी जिंदगी में तूफान आने वाला है।


श्रुति बेहद खूबसूरत और आत्मविश्वास से भरी हुई लड़की थी। आदित्य धीरे-धीरे उसकी तरफ आकर्षित होने लगा। श्रुति की हाजिरजवाबी और उसकी शरारतों ने आदित्य को उस पर मोहित कर दिया। आदित्य, जो साक्षी को दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की मानता था, अब श्रुति के इर्द-गिर्द मंडराने लगा।


साक्षी ने कई बार आदित्य को चेताया, लेकिन उसने उसकी बातों को अनसुना कर दिया। धीरे-धीरे साक्षी को लगने लगा कि अगर उसने आदित्य को शादी के बंधन में नहीं बाँधा, तो वह उसे खो देगी। उसने इस बारे में अपनी माँ से बात करने का निर्णय लिया और छुट्टी लेकर दिल्ली चली गई। उसने माँ से अपने और आदित्य के रिश्ते की पूरी कहानी बताई। उसकी माँ ने उसे डांटते हुए कहा, "देर मत कर, जाकर उससे शादी कर ले।"


साक्षी जल्दी-जल्दी वापस मुंबई आई, ताकि आदित्य से शादी की बात कर सके। लेकिन जब वह वापस आई, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। आदित्य और श्रुति ने उससे पहले ही शादी कर ली थी।


साक्षी, जिसने आदित्य पर पूरी तरह विश्वास किया था, अब ठगी सी महसूस कर रही थी। उसने अपने प्यार, अपने विश्वास और अपनी भावनाओं को पूरी तरह आदित्य के नाम कर दिया था। लेकिन इस सबके बावजूद वह उसे अपना नहीं बना सकी।


अब वह दरवाजे के बाहर खड़ी थी, और उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके जीवन का यह मोड़ उसे कहाँ लेकर जाएगा। उसने अपनी पूरी दुनिया आदित्य के नाम कर दी थी, और अब वही दुनिया उसके सामने ढह रही थी।


साक्षी के दिल में एक अजीब सी खालीपन था, लेकिन उसने खुद को कमजोर नहीं होने दिया। वह जानती थी कि अब उसे अपने जीवन की दिशा खुद तय करनी होगी।

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