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Friday, 27 September 2024

महिलाएं अपने सारे राज़ नहीं बतातीं

 महिलाएं भी पुरुषों की तरह शारीरिक संबंधों की ओर आकर्षित होती हैं, लेकिन अक्सर वे अपनी रुचि को व्यक्त नहीं करतीं। वे अपने पति या साथी से भी इस बारे में खुलकर बात करने में हिचकिचाती हैं। इसके पीछे सामाजिक दबाव और दूसरों के विचारों की चिंता होती है। कई बार महिलाएं अपनी इच्छाओं को दबा देती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसके बारे में बात करने पर उन्हें गलत समझा जा सकता है।


महिलाएं आमतौर पर गुप्त संबंधों के बारे में खुलकर बात नहीं करतीं

पुरुष अक्सर एक-दूसरे से शारीरिक संबंधों के बारे में खुलकर बात कर लेते हैं, जबकि महिलाएं इस तरह की बातें दूसरों से साझा करने में संकोच करती हैं। ज्यादातर महिलाएं केवल अपनी एक-दो करीबी दोस्तों से ही गुप्त बातें साझा करती हैं। आप अपनी गर्लफ्रेंड से इस बारे में बात कर सकते हैं, लेकिन वह भी शायद इसे केवल अपनी सबसे करीबी दोस्त तक ही सीमित रखेगी।


महिलाओं को सफल पुरुषों में दिलचस्पी होती है

महिलाएं अक्सर ऐसे पुरुषों की ओर आकर्षित होती हैं जो सफल होते हैं। उनकी रुचि उन पुरुषों में अधिक होती है जो करियर और जीवन में सफल माने जाते हैं, जबकि पुरुष अक्सर सुंदर और आकर्षक महिलाओं की ओर आकर्षित होते हैं।


महिलाएं दिखावे पर ध्यान देती हैं

कई महिलाएं खुद को सुंदर और आकर्षक दिखाने के लिए हर संभव प्रयास करती हैं। वे नए कपड़े पहनने और स्टाइलिश दिखने पर जोर देती हैं। सज-संवर कर बाहर जाना एक सामान्य व्यवहार है क्योंकि वे दूसरों की नजर में खूबसूरत दिखने की कोशिश करती हैं।


कुंवारी लड़कियां अक्सर अपने आदर्श पुरुष के बारे में सोचती हैं

अधिकतर कुंवारी लड़कियां अकेले में अपने भविष्य के पति या ब्वॉयफ्रेंड के बारे में सोचती हैं। वे अपने आदर्श साथी और उनके साथ बिताए जाने वाले भविष्य के पलों की कल्पना करती हैं।


शारीरिक असंतोष से अवैध संबंधों की संभावना बढ़ती है

यदि एक महिला अपने साथी के साथ शारीरिक रूप से संतुष्ट नहीं होती, तो अवैध संबंध बनने की संभावना बढ़ जाती है। यह कई बार विवाहेतर संबंधों का प्रमुख कारण होता है।


कुंवारी माताओं की संख्या में वृद्धि

अध्ययनों के अनुसार, कुछ महिलाएं कुंवारी होते हुए भी मां बन जाती हैं। एक अध्ययन में पाया गया कि 30% महिलाएं इस स्थिति में होती हैं।


महिलाओं का सबसे अधिक उत्साहित होने का समय

वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, पीरियड्स के चार से पांच दिन बाद महिलाओं में शारीरिक और मानसिक उत्तेजना अधिक होती है।


महिलाओं को परिपक्व पुरुष पसंद आते हैं

अधिकांश महिलाएं परिपक्व और स्थिर पुरुषों की ओर आकर्षित होती हैं, जबकि पुरुष अक्सर छोटी उम्र की महिलाओं को प्राथमिकता देते हैं।


महिलाएं चाहती हैं कि लोग उनकी ओर देखें

अधिकतर महिलाएं सजने-संवरने में रुचि रखती हैं क्योंकि वे चाहती हैं कि जहां भी जाएं, लोग उनकी ओर ध्यान दें।


महिलाएं अपने सारे राज़ नहीं बतातीं

महिलाएं अपने गहरे राज़ कभी-कभी अपने साथी से भी साझा नहीं करतीं। वे कुछ बातें अपने तक ही रखना पसंद करती हैं।


महिलाएं भावनात्मक रूप से कमजोर होती हैं

महिलाएं आमतौर पर पुरुषों से अधिक भावनात्मक होती हैं। वे अपनी भावनाओं को ज्यादा महसूस करती हैं और छोटे-छोटे मामलों में भी आंसू बहा सकती हैं।


इस लेख का अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद! 🌸

Thursday, 26 September 2024

1993 में रिलीज हुई Indecent Proposal नामक फ़िल्म में कहानी है एक युगल "डेविड और डियाना" की,

 क्या हो कि आप भीषण दरिद्रता में जीवन बिता रहे हों और आपको कहीं से ऐसा ऑफर मिले, जिसमें जीवन भर के कष्ट दूर कर देने लायक धन का लालच हो - अपनी पत्नी की एक रात के बदले। 

सुनने में यह बड़ा अभद्र लगता है और कई लोग इस सिचुएशन को हाइपोथेटिकल करार देकर तुरंत मना कर देंगे। पर क्या हो, अगर ऑफर वास्तविक हो? 

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1993 में रिलीज हुई Indecent Proposal नामक फ़िल्म में कहानी है एक युगल "डेविड और डियाना" की, जो कर्जों में डूबे हुए हैं। घर बिकने की कगार पर है। जो कुछ जेब मे बचा होता है, उसे डबल करने के चक्कर में एक कैसिनों में जा कर ठन-ठन गोपाल हो जाते हैं। 

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उसी कैसिनो में मौजूद एक अरबपति बूढ़े "जॉन गेज" की नजर डियाना पर पड़ती है, जो एक नजर में उसे भा जाती है। और उसी रात जॉन इस युगल से दोस्ती करके बातों-बातों में एक मिलियन डॉलर का ऑफर देता है - डियाना की एक रात के बदले में। 

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फ़िल्म इंसानी जटिल मनोविज्ञान का क्या बख़ूबी चित्रण करती है - कुछ देर पहले उस अरबपति बूढ़े को इस ऑफर के लिए लताड़ के आये युगल की आंखों से नींद गायब हो गयी है। एक-दूसरे के मनोभावों को जान रहे दोनों बिस्तर पर करवटें बदल रहे हैं और अंततः एक-दूसरे से पूछ ही लेते हैं कि - तुम भी वही सोच रहे हो, जो मैं?

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इस ऑफर को कबूल करने के बाद इस युगल की जिंदगी में कुछ भी सामान्य नहीं रहता और वो रात उनके आगे के पूरे जीवन को खराब कर देती है। प्राइम पर मौजूद इस फ़िल्म को प्रेम और लालच के मिश्रण से उत्पन्न त्रासदी को समझने के लिए देखा जा सकता है। 

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और इस फ़िल्म की सबसे खास बात यह है कि फ़िल्म खत्म होते-होते प्रथमदृष्टया एक सनकी अरबपति बूढ़ा प्रतीत होते जॉन गेज के व्यक्तित्व से आप प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते और आपको उसके किरदार की गहराई से प्रेम हो चुका होता है।

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फ़िल्म के अंतिम दृश्य में डियाना को बिना अपराधबोध महसूस कराए डेविड के पास वापस भेजने के लिए जॉन गेज जानबूझकर एक नाटक करता है। जब डियाना उससे दूर जा रही होती है तो गेज का ड्राइवर उससे अचरज भरे स्वर में पूछता है कि - तुमने ऐसा क्यों किया?

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तो गेज जवाब देता है - क्योंकि कुछ देर पहले वो डेविड को जिन निगाहों से देख रही थी, उन निगाहों से वो मुझे कभी नहीं देखती। 

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फ़िल्म का सेंट्रल प्लाट इतना भर है कि - क्या पैसे से प्यार खरीदा जा सकता है? और मुझे लगता है कि इसी दृश्य में फ़िल्म अपना निष्कर्ष बता जाती है। 

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शायद पैसे से लोग खरीदे जा सकते हैं। उनका वक़्त, उनका साथ हासिल किया जा सकता है। 

पर उन निगाहों को हासिल कभी नहीं किया जा सकता - जिन निगाहों से कोई अपने प्रेम को देखता है। 

Wednesday, 25 September 2024

रेमंड ग्रुप के मालिक विजयपत सिंघानिया पैदल हो गए। बेटे ने पैसे-पैसे के लिए मोहताज कर दिया।

 दो खबरों पर जरा नजर डालिए। 

1- 12 हजार करोड़ रुपये की मालियत वाले रेमंड ग्रुप के मालिक विजयपत सिंघानिया पैदल हो गए। बेटे ने पैसे-पैसे के लिए मोहताज कर दिया। 

2- करोड़ों रुपये के फ्लैट्स की मालकिन आशा साहनी का मुंबई के उनके फ्लैट में कंकाल मिला।  

विजयपत सिंघानिया और आशा साहनी, दोनों ही अपने बेटों को अपनी दुनिया समझते थे। पढ़ा-लिखाकर योग्य बनाकर उन्हें अपने से ज्यादा कामयाबी की बुलंदी पर देखना चाहते थे। हर मां, हर पिता की यही इच्छा होती है। विजयपत सिंघानिया ने यही सपना देखा होगा कि उनका बेटा उनकी विरासत संभाले, उनके कारोबार को और भी ऊंचाइयों पर ले जाए। आशा साहनी और विजयपत सिंघानिया दोनों की इच्छा पूरी हो गई। आशा का बेटा विदेश में आलीशान जिंदगी जीने लगा, सिंघानिया के बेटे गौतम ने उनका कारोबार संभाल लिया, तो फिर कहां चूक गए थे दोनों। क्यों आशा साहनी कंकाल बन गईं, क्यों विजयपत सिंघानिया 78 साल की उम्र में सड़क पर आ गए। मुकेश अंबानी के राजमहल से ऊंचा जेके हाउस बनवाया था, लेकिन अब किराए के फ्लैट में रहने पर मजबूर हैं। तो क्या दोषी सिर्फ उनके बच्चे हैं..? 

अब जरा जिंदगी के क्रम पर नजर डालें। बचपन में ढेर सारे नाते रिश्तेदार, ढेर सारे दोस्त, ढेर सारे खेल, खिलौने..। थोड़े बड़े हुए तो पाबंदियां शुरू। जैसे जैसे पढ़ाई आगे बढ़ी, कामयाबी का फितूर, आंखों में ढेर सारे सपने। कामयाबी मिली, सपने पूरे हुए, आलीशान जिंदगी मिली, फिर अपना घर, अपना निजी परिवार। हम दो, हमारा एक, किसी और की एंट्री बैन। दोस्त-नाते रिश्तेदार छूटे। यही तो है शहरी जिंदगी। दो पड़ोसी बरसों से साथ रहते हैं, लेकिन नाम नहीं जानते हैं एक-दूसरे का। क्यों जानें, क्या मतलब है। हम क्यों पूछें..। फिर एक तरह के डायलॉग-हम लोग तो बच्चों के लिए जी रहे हैं। 

मेरी नजर में ये दुनिया का सबसे घातक डायलॉग है-'हम तो अपने बच्चों के लिए जी रहे हैं, बस सब सही रास्ते पर लग जाएं।' अगर ये सही है तो फिर बच्चों के कामयाब होने के बाद आपके जीने की जरूरत क्यों है। यही तो चाहते थे कि बच्चे कामयाब हो जाएं। कहीं ये हिडेन एजेंडा तो नहीं था कि बच्चे कामयाब होंगे तो उनके साथ बुढ़ापे में हम लोग मौज मारेंगे..? अगर नहीं तो फिर आशा साहनी और विजयपत सिंघानिया को शिकायत कैसी। दोनों के बच्चे कामयाब हैं, दोनों अपने बच्चों के लिए जिए, तो फिर अब उनका काम खत्म हो गया, जीने की जरूरत क्या है। 

आपको मेरी बात बुरी लग सकती है, लेकिन ये जिंदगी अनमोल है, सबसे पहले अपने लिए जीना सीखिए। जंगल में हिरन से लेकर भेड़िए तक झुंड बना लेते हैं, लेकिन इंसान क्यों अकेला रहना चाहता है। गरीबी से ज्यादा अकेलापन तो अमीरी देती है। क्यों जवानी के दोस्त बढ़ती उम्र के साथ छूटते जाते हैं। नाते रिश्तेदार सिमटते जाते हैं..। करोड़ों के फ्लैट की मालकिन आशा साहनी के साथ उनकी ननद, भौजाई, जेठ, जेठानी के बच्चे पढ़ सकते थे..? क्यों खुद को अपने बेटे तक सीमित कर लिया। सही उम्र में क्यों नहीं सोचा कि बेटा अगर नालायक निकल गया तो कैसे जिएंगी। जब दम रहेगा, दौलत रहेगी, तब सामाजिक सरोकार टूटे रहेंगे, ऐसे में उम्र थकने पर तो अकेलापन ही हासिल होगा।

इस दुनिया का सबसे बड़ा भय है अकेलापन। व्हाट्सएप, फेसबुक के सहारे जिंदगी नहीं कटने वाली। जीना है तो घर से निकलना होगा, रिश्ते बनाने होंगे। दोस्ती गांठनी होगी। पड़ोसियों से बातचीत करनी होगी। आज के फ्लैट कल्चर वाले महानगरीय जीवन में सबसे बड़ी चुनौती तो ये है कि खुदा न खासता आपकी मौत हो गई तो क्या कंधा देने वाले चार लोगों का इंतजाम आपने कर रखा है..? जिन पड़ोसियों के लिए नो एंट्री का बोर्ड लगा रखा था, जिन्हें कभी आपने घर नहीं बुलाया, वो भला आपको घाट तक पहुंचाने क्यों जाएंगे..?

याद कीजिए दो फिल्मों को। एक अवतार, दूसरी बागबां। अवतार फिल्म में नायक अवतार (राजेश खन्ना) बेटों से बेदखल होकर अगर जिंदगी में दोबारा उठ खड़ा हुआ तो उसके पीछे दो वजहें थीं। एक तो अवतार के दोस्त थे, दूसरे एक वफादार नौकर, जिसे अवतार ने अपने बेटों की तरह पाला था। वक्त पड़ने पर यही लोग काम आए। बागबां के राज मल्होत्रा (अमिताभ बच्चन) बेटों से बेइज्जत हुए, लेकिन दूसरी पारी में बेटों से बड़ी कामयाबी कैसे हासिल की, क्योंकि उन्होंने एक अनाथ बच्चे (सलमान खान) को अपने बेटे की तरह पाला था, उन्हें मोटा भाई कहने वाला दोस्त (परेश रावल) था, नए दौर में नई पीढ़ी से जुड़े रहने की कूव्वत थी।  

विजयपत सिंघानिया के मरने के बाद सब कुछ तो वैसे भी गौतम सिंघानिया का ही होने वाला था, तो फिर क्यों जीते जी सब कुछ बेटे को सौंप दिया..? क्यों संतान की मुहब्बत में ये भूल गए कि इंसान की फितरत किसी भी वक्त बदल सकती है। जो गलती विजयपत सिंघानिया ने की, आशा साहनी ने की, वो आप मत कीजिए। रिश्तों और दोस्ती की बागबानी को सींचते रहिए, ये जिंदगी आपकी है, बच्चों की बजाय पहले खुद के लिए जिंदा रहिए। आप जिंदा रहेंगे, बच्चे जिंदा रहेंगे। अपेक्षा किसी से भी मत कीजिए, क्योंकि अपेक्षाएं ही दुख का कारण हैं।

उसकी शादी गांव की एक सीधी-साधी लड़की से करवा दी। लड़की का नाम कुमुद है।

 मेरे बेटे की शादी मैंने मुश्किल से करवाई। वह एक लड़की से प्यार करता था, लेकिन मैं नहीं चाहती थी कि उसकी शादी उसी से हो।


मैंने उसे बहुत समझाया और उसकी शादी गांव की एक सीधी-साधी लड़की से करवा दी। लड़की का नाम कुमुद है।


मुझे पता था कि यह लड़की मेरे बेटे और इस घर के लिए बहुत अच्छी है, इसलिए मैंने उस लड़की की शादी मेरे बेटे से करवा दी।


कुमुद हमारे घर में आई। लड़की घरेलू थी, बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करती थी और घर का काम भी करती थी। अभी 10 ही महीने हुए थे शादी को, लेकिन मुझे लगने लगा कि मैंने अपने बेटे की शादी इस लड़की से करवा कर अच्छा किया। मेरा बेटा अरविंद भी खुश लग रहा था।


लेकिन उस रात के बाद मेरी यह सोच बदल गई। एक रात करीब 2 बजे मेरे बेटे के कमरे से चीखने की आवाज आने लगी।


ये चीखें मेरी बहू की थीं। मैंने थोड़ी देर तक सुना फिर वह चीखना बंद हो गया। अरविंद के पिता, मेरे पति, को यह सब सुनाई दिया था लेकिन फिर हमने उन्हें रात में पूछना उचित नहीं समझा। इसलिए दरवाजा नहीं खटखटाया। सुबह मेरी बेटी भी बोल रही थी कि मम्मी, रात को कौन चीख रहा था?


मैंने उसकी बात काट दी, कहा कि कोई नहीं, शायद कोई बाहर से चीख रहा था। मेरी बहू का स्वभाव उस दिन से बदल गया। वह चुप थी सारा दिन।


मैंने सोचा शायद पति-पत्नी के बीच की कोई बात होगी, इसलिए मैंने कुछ पूछा नहीं। अगली रात फिर 2 बजे वही हुआ, मेरे बेटे के कमरे से फिर चीखने और रोने की आवाज आने लगी। इस रात वह आवाज करीब 10 मिनट तक चली। मेरी बेटी उठ गई और उसने हमारे कमरे का दरवाजा बजाया।


मैंने दरवाजा खोला। देखा तो वह बहुत डरी हुई थी। बोली, मम्मी, यह क्या है? भाभी रोज रात को रोती और चीखती क्यों है? क्या होता है?


कमरे के अंदर चलो, अभी दरवाजा खुलवाते हैं। मैं दरवाजे के पास जाने लगी तो मेरे पति ने मुझे रोक लिया, कहा कि रुको, अभी बात मत करो, कल सुबह दोनों से बात करते हैं।


उस रात को मेरा सोना मुश्किल हो गया था। सुबह मेरी बहू जल्दी उठकर घर के काम में लग गई। मैंने सुबह अपने बेटे के कमरे में जाकर पूछा कि क्या बात है, रात को बहू रोती क्यों है? उसका चेहरा पूरा उतर चुका था। उसने कहा कुछ नहीं। उसकी बातों और आंखों से साफ दिखाई दे रहा था कि वह कुछ छिपा रहा है। उन्होंने भी उससे पूछा लेकिन वह कुछ नहीं बोल कर घर से बाहर चला गया। मैंने अपनी बहू से पूछा। वह कुछ काम कर रही थी।


उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे रात में ठीक से सोई नहीं है। आंखें साफ बता रही थीं। मैंने उसे पूछा, क्या हुआ, तुम रात को रो क्यों रही थी?


वह बोली, रो रही थी कब? नहीं, मैं तो सो रही थी और मुझे तो कोई आवाज नहीं आई। आप क्या बात कर रही हैं? उस कमरे में ऐसा क्या हो रहा था, यह बात या तो मेरी बहू जानती थी या बेटा, लेकिन दोनों ही कुछ नहीं बता रहे थे। लेकिन दोनों के चेहरे से साफ पता चल रहा था कि कुछ है जो ये दोनों छिपा रहे हैं। लेकिन क्या?


अब जब भी रात आती, मुझे नींद ही नहीं आती। क्यों कि आधी रात को फिर वही होता। बहू ज़ोर से चीखती और रोती।


मेरे मन में कई सवाल थे, क्या होता है उस कमरे में? फिर एक रात करीब 2 बजे मेरे घर में वो हुआ जो मैंने सोचा भी नहीं था।


मेरी बहू रात को कमरे से बाहर आ गई। उसके कपड़े कहीं भी जा रहे थे, उसे कुछ होश ही नहीं था। बाल खुले थे और वह घर के चौक में आकर बैठ गई। ज़ोर से चीखने और रोने लगी। हम सभी घर वाले बाहर आ गए। मेरा बेटा भी कमरे से डरा हुआ बाहर आया। बहू की ऐसी हालत देखकर हम सब ही डर गए थे।


मैंने अपने बेटे से पूछा, यह क्या है? वह बोला, बस माँ, देख लो, यह रोज रात 2 बजे ऐसी ही करती है। मैं आप लोगों को क्या बताता?


सुबह जब उसे पूछता हूं तो उसे कुछ याद ही नहीं रहता है। बोलती है मैंने तो कुछ नहीं किया। बहू जब थोड़ी देर बाद शांत हुई तो मेरे बेटे ने उसे कमरे में ले जाकर सुला दिया।


मैं सोच रही थी, यह क्या है? मैंने अपने बेटे को कहा, तू उसे उसके घर छोड़ आ सुबह। मैं उसकी माँ से बात करूंगी।


सुबह होते ही मेरे बेटे ने उसे कुछ बहाना करके उसके घर छोड़ दिया। मैंने उसकी माँ से बात की। उसकी माँ ने कहा, यह क्या बोल रही हैं? मेरी बेटी बिल्कुल ऐसा नहीं करती है। मैंने जो सोचकर अरविंद की शादी उससे की थी, वैसा हो नहीं सका। बहू को छोड़े अब 20 दिन हो चुके थे।


इस दौरान उसके घर से फोन आता रहा लेकिन मैंने टाल दिया। मेरा बेटा भी कह रहा था कि मेरे वह दिन कैसे निकले हैं, मैं ही जानता हूं।


मैंने उस पर फिर ज्यादा दबाव नहीं डाला। पर मैं अपने आप को कोस रही थी कि मैंने अपने बेटे की शादी उस लड़की से क्यों करवाई। अब मेरे घर में कोई नहीं चाहता था कि वह वापस आए। इन्हीं सब बातों में 3 महीने निकल गए।


फिर एक दिन अचानक ही मेरी बहू अपने सामान के साथ वापस मेरे घर आ गई। वह आते ही मुझसे कहती है, माँजी, मैं जानती हूं कि आप मेरे बारे में क्या सोच रही हैं, लेकिन सच क्या है, यह आपको पता नहीं है।


उसकी बातों से मुझे लगा कि कुछ है जो वह बताना चाहती है। मेरा बेटा घर आया और उसे देखकर गुस्सा हो गया, कहा, यह यहाँ वापस आ गई। मैं अब इस घर में नहीं रह सकता, मैं जा रहा हूं। मेरी बहू ने उसी समय कहा, क्यों, सच सामने आ जाएगा, इसलिए डर रहे हैं। बताइये सबको सच क्या है। मैं उस तरह से क्यों करती थी।


बेटा बोला, क्या सच, सच यह है कि तुम पागल हो और रोज रात उस तरह से करती हो। बहू बोली, माँजी, आज अगर सबसे ज्यादा दुखी और परेशान है तो वह और कोई नहीं, मैं हूं।


मैंने अपने पति की बात मानी, उन पर विश्वास किया। मैंने कहा, तुम क्या कहना चाहती हो? फिर मेरी बहू ने जो बताया, उसे सुनकर मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई।


वह बोली, आपके बेटे ने मुझे पहली रात से यह नाटक करने को कहा था, लेकिन मैंने नहीं माना। वह कहते थे कि हम दोनों अलग बड़े शहर में जाकर रहेंगे। उन्हें कहा कि अगर ऐसे मेरे घर वाले मुझे नहीं छोड़ेंगे, लेकिन तुम इस तरह का नाटक करोगी तो वे डर जाएंगे और फिर हम अलग रहेंगे।


पहले मैंने बोला कि यहाँ सबके साथ अच्छा है, लेकिन फिर जब वह मुझसे बात नहीं करते थे तो मुझे उनकी बात माननी पड़ी। और फिर मैंने जब सब नाटक किया तो उन्होंने मुझे घर छोड़ दिया। मुझे आप सभी की नजरों में पागल और न जाने क्या साबित कर दिया।


उसके बाद मेरा फोन भी नहीं उठाया। मैं उनका वहाँ मेरे घर इंतजार कर रही थी लेकिन वह नहीं आए। मैंने समझ लिया कि उन्होंने मुझे बेवकूफ बनाया है। मुझसे झूठ बोला है। यह मुझे अपनी ज़िंदगी से भगाना चाहते थे। मैं इस बात को समझ गई। अब मैं खुद ही इनसे दूर चली जाऊंगी लेकिन मैं चाहती थी कि सच आप सभी के सामने आ जाए।


मुझे बहू की बातों पर पूरा विश्वास हो गया था। मेरे बेटे ने कहा, तुम्हें इसे रखना है तो रखो। मेरी शादी तुमने उससे नहीं होने दी जिससे मैं चाहता था और इस गाँव की लड़की से करवा दी। मैं चाहता था कि यह भी यहाँ से चली जाए। तुम परेशान हो, सोचो कि मैंने क्या किया।


अब भी मैं इसे अपनी पत्नी नहीं मानता। मैंने अपने बेटे को कहा कि बेटा, तुझे इस घर में रहना है या नहीं, इसका फैसला तू कर ले। मेरी बहू इस घर में ही रहेगी। और जो इसे इसका हक और इज़्ज़त नहीं देगा, वह इस घर में नहीं रह सकता। तू इस तरह की साज़िश कर सकता है, वो भी सिर्फ अपनी माँ से बदला लेने के लिए। एक भोली लड़की को कुछ भी करने को कह सकता है। लेकिन बेटा, जरा सोच, तूने इसे जो करने को कहा, इसने किया अपने बारे में और किसी के बारे में कुछ नहीं सोचा। सिर्फ तेरा सोचा। सोच ऐसी पत्नी कहाँ मिलेगी। तू बहुत बड़ा अभागा है जो इस लड़की को छोड़ेगा। मैंने अपने बेटे की शादी के लिए हीरा चुना था, लेकिन शायद मेरा बेटा ही उसके लायक नहीं था। मैंने अपनी बहू को प्यार से गले लगाया। मेरा बेटा भी कहीं नहीं गया। थोड़े समय तक जरूर नाराज़ रहा। लेकिन मुझे पता था कि उस लड़की से प्यार किए बिना कैसे रह सकता था। आखिर धीरे-धीरे सब ठीक होने लगा।

हर इंसान की ज़िंदगी में किसी ना किसी से प्यार होता है एक बार, जब दिल टूट जाता है तो फिर वैसी मोहब्बत नही होती दुबारा, जिस से प्यार हो उसी से शादी हो कोई ज़रूरी नहीं, होता है लेकिन, सच्चा प्यार मिलता कहा है आजकल 

Tuesday, 24 September 2024

सुहागरात की वो घटना मेरे जीवन की एक यादगार और मजेदार घटना है

 सुहागरात की वो घटना मेरे जीवन की एक यादगार और मजेदार घटना है, जिसे याद कर आज भी हंसी आ जाती है। उस रात मैं और मेरी पत्नी रिया एक-दूसरे के साथ समय बिता रहे थे, जब अचानक हमारे पलंग पर एक अनचाहा मेहमान आ गया—एक मकड़ी। 🕷


रिया मकड़ी देखकर जोर से चीख उठी, और उसकी चीख ने मुझे हैरान कर दिया। मुझे लगा कि शायद मुझसे कोई गलती हो गई है, लेकिन जब रिया ने मकड़ी की ओर इशारा किया, तब जाकर मुझे असली वजह समझ में आई। मैं हंसते हुए मकड़ी को भगाने में जुट गया। उस वक्त मकड़ी जैसे हमारे प्यारे पल को बर्बाद करने की पूरी कोशिश कर रही थी। आखिरकार, मैंने उस मकड़ी से निजात पा ली और हमारी प्यारी रात फिर से सामान्य हो गई। 


हम दोनों काफी देर बाद सोए और अगली सुबह जब मैं उठकर बाहर आया, तो सामने भाभीजी खड़ी थीं। उन्होंने मुस्कुराते हुए पूछा, "रात को कोई हॉरर फिल्म देख रहे थे?" मैं थोड़ा असहज हो गया, लेकिन फिर हंसते हुए सच्चाई बता दी कि कमरे में एक मकड़ी आ गई थी, जिसकी वजह से रिया चिल्ला उठी थी। भाभीजी ने भी हंसते हुए कहा, "अरे, मकड़ियां तो इन दिनों हर जगह हैं, ध्यान रखना कहीं काट न लें।"

उसके बाद मैंने सोचा, अगर भाभीजी ने रात की आवाजें सुनीं, तो शायद मेरे छोटे भाई-बहन ने भी सुनी होंगी, लेकिन उन्होंने इस बारे में कभी कुछ नहीं कहा। हालांकि, मुझे अंदर ही अंदर यह एहसास हुआ कि उन दोनों के मन में भी कुछ न कुछ जरूर आया होगा। 

उस घटना के बाद हमने यह सुनिश्चित किया कि कमरे में कोई और अनचाहा मेहमान न हो। हम दोनों ने मिलकर पूरा कमरा छान मारा और फिर जाकर अगली रात चैन से सो पाए।

Monday, 23 September 2024

समाज की नाक ऊंची रखने के लिए मुझे अपने प्यार को खोना पड़ा।

 मैंने दीप्ति के सारे कपड़े उतार दिए,पहली बार मुझे किसी लड़की के शरीर को महक इतनी ज्यादा अच्छी लग रही थी जिसके आगे सारे सेंट फेल थे


वो इस लिए, क्यों की मुझे उससे बहुत प्रेम था दीप्ति से मेरी मुलाकात मुंगेर में हुई थी, जब मैं बंगलोर में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम कर रहा था। एक दिन, जब मैं स्टेशन पर उतरा, मेरी ट्रॉली का व्हील टूट गया था। जैसे-तैसे मैं उसे उठा कर ले जा रहा था, तभी एक लड़की ने मेरी हालत देख कर कहा,


"भैया, दिक्कत हो रही है तो मैं उठा दूं।"


पहले तो मैंने मना कर दिया, लेकिन फिर सोचा कि इतनी सीढ़ियां चढ़नी हैं। शरमाते हुए मैंने कहा,


"एक तरफ से पकड़ लीजिए तो सीढ़ी चढ़ जाएंगे।"


उसने मदद की और हम सीढ़ियां चढ़ गए। बाहर निकलने पर मैंने शुक्रिया कहा और उसने मुस्कुरा कर कहा, "कोई बात नहीं भैया।" उस समय मुझे एहसास हुआ कि बड़े शहर के लोग मदद करते समय खुद को छोटा नहीं समझते, जबकि हमारे शहर के लोग अजनबियों की भी सहायता के लिए हाथ बढ़ाते हैं।


कुछ दिनों बाद, एक दुकान पर मुझे दीप्ति फिर से दिखी। हमने थोड़ी बात की और मुझे पता चला कि वह मेरे घर के पास वाले मुहल्ले में रहती है। हमने नंबर साझा किए और रात में मैंने उसे फोन किया। हमारी बातचीत में, दीप्ति ने बताया कि वह एक गरीब परिवार से है और अपने परिवार को सुविधाओं के अभाव में संभाल रही है। उसकी सादगी और संघर्ष ने मुझे प्रभावित किया और मुझे उससे प्रेम हो गया।


मैं बंगलोर वापस आया और रात में दीप्ति से बात करता तो मेरे मन को शांति मिलती। मैंने उसे अपने प्रेम के बारे में बताया और उसने भी सकारात्मक उत्तर दिया। हमारी बातचीत और प्यार गहरा हो गया। मैंने दीप्ति को बंगलोर आने का न्योता दिया और उसने इसे स्वीकार कर लिया।


तकरीबन तीन महीने बाद दीप्ति बंगलोर आई और मेरे घर रुकी। पहले दिन हमने बंगलोर की कई जगहें घूमीं और रात में घर आकर सो गए। सुबह जब मैं उठा तो देखा दीप्ति एक पत्नी की तरह मेरे लिए चाय और नाश्ता बना रही थी। इसे देख कर मुझे अजीब सी खुशी हुई। हमने साथ में नाश्ता किया और अपनी जिंदगी के बारे में बातें कीं।


अगले दिन फिर से हम घूमने निकले और शाम को दीप्ति ने कहा कि वह बाहर का खाना पसंद नहीं करती और घर पर खाना खाएंगे। उसने बिहारी अंदाज में दाल-चावल और भुजिया बनाया, जो बहुत स्वादिष्ट था। उसे देखकर मेरे दिल में उसके लिए इज्जत और प्यार और बढ़ गया।


रात में जब हम सोने जा रहे थे, हमने बातें की और मैंने दीप्ति के गालों को चूम लिया। दीप्ति थोड़ा असहज थी, लेकिन उसने मना नहीं किया। हमने एक-दूसरे के साथ समय बिताया और हमारे बीच पति-पत्नी जैसा संबंध बना।


दीप्ति को वापस जाना था और हम दोनों दुखी थे। मैंने अपनी मां को दीप्ति के बारे में बताया और शादी की इच्छा व्यक्त की। मां ने उसकी फोटो देखकर कहा कि वह एक डांसर है और लोगों की शादियों में नाचकर अपना खर्चा चलाती है। यह सुनकर मैं स्तब्ध रह गया क्योंकि हमने कभी इस बारे में बात नहीं की थी।


मां-पापा ने दीप्ति से शादी करने से मना कर दिया और कहा कि अगर मैंने शादी की तो मुझे परिवार से रिश्ता तोड़ना पड़ेगा। मैंने कई बार समझाया लेकिन वे समाज के डर से राजी नहीं हुए।


आज इस बात को 5 साल हो गए हैं और मुझे किसी और लड़की से प्यार नहीं हुआ। दीप्ति ने भी मेरे लिए अपना काम छोड़ दिया था और अब उसे भी काम मिलने में दिक्कत हो रही है। मैंने कई बार उसे आर्थिक सहायता देने की कोशिश की, लेकिन उसने मना कर दिया।


आज, मैं खुद को और दीप्ति को इस स्थिति का दोषी मानता हूं। समाज की नाक ऊंची रखने के लिए मुझे अपने प्यार को खोना पड़ा।


Sunday, 22 September 2024

शादी का आधार संभोग होता है ये अच्छा तो सब अच्छा

 शादी का आधार संभोग होता है ये अच्छा तो सब अच्छा 

पर मॉर्डन जमाने में एक जरूरत और है वो है स्टेबल नौकरी पैसा और अच्छी लाइफस्टाइल 

जब मैं छोटी थी, तो मेरे ख्वाब बड़े थे। मुझे हमेशा लगता था कि मेरी शादी किसी अमीर और वेल-सेटल लड़के से होगी, जिसके पास बड़ी गाड़ी, शानदार घर, और बेहतरीन लाइफस्टाइल हो। मेरे पापा, मोहनलाल, हमेशा कहते थे कि पैसे में ही जिंदगी का सारा सुख नहीं होता, लेकिन मेरे लिए पैसा ही सब कुछ था। मुझे यकीन था कि अगर पैसा हो, तो सारी खुशियां अपने आप मिल जाती हैं।


फिर एक दिन, पापा ने मेरी शादी अर्जुन से तय कर दी। अर्जुन साधारण इंसान था, न उसके पास बड़ी गाड़ी थी, न ही महंगा घर। जब पापा ने यह रिश्ता तय किया, तो मुझे बहुत बुरा लगा। मुझे लगा कि मेरी पूरी जिंदगी के सपने बर्बाद हो गए हैं, और मैं कभी खुश नहीं रह पाऊंगी। 


शादी के बाद जब मैंने अर्जुन के साथ जीवन शुरू किया, तो उसका साधारण जीवन मुझे बहुत अखरता था। हर दिन मैं यह सोचती थी कि मेरी जिंदगी कैसी हो सकती थी, अगर मेरी शादी किसी अमीर व्यक्ति से हुई होती। अर्जुन बहुत ही साधारण था, लेकिन उसने कभी मुझे किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होने दी। उसने हर छोटी-बड़ी बात का ध्यान रखा और मुझे सम्मान दिया। फिर भी, मैं उसकी इन अच्छाइयों पर ध्यान नहीं दे रही थी, क्योंकि मेरा ध्यान बस उन चीज़ों पर था जो मेरे पास नहीं थीं।


कुछ महीने बीतने के बाद, मैंने अर्जुन की सादगी और ईमानदारी की गहराई को समझना शुरू किया। उसने बिना किसी भव्यता के, मेरे प्रति जो प्यार और सम्मान दिखाया, वह मेरी जिंदगी में असली खुशी लेकर आया। धीरे-धीरे मुझे एहसास हुआ कि जो चीजें मैंने अर्जुन के बारे में पहले नजरअंदाज की थीं, वे ही मेरी सच्ची खुशी की कुंजी थीं। 

आज, मैं अपने जीवन को देखती हूँ और महसूस करती हूँ कि मेरे पास वह सब कुछ है जिसकी मुझे ज़रूरत है। अर्जुन ने मेरे दिल को प्यार और सम्मान से भर दिया, और अब मुझे समझ में आता है कि असली दौलत पैसों में नहीं, बल्कि सच्चे प्यार और समझ में है। 

जब मैंने यह बात अपने पापा को बताई, तो वह मुस्कुराए और बोले, "बेटी, एक साधारण व्यक्ति दिल से प्यार और सम्मान करता है, और यही जीवन का असली सुख है।" अब मैं समझ चुकी हूँ कि असली दौलत प्यार और सम्मान में है, और मैं खुद को दुनिया की सबसे खुशकिस्मत लड़की मानती हूँ।

जीवन पुनरुक्त नहीं होता।

 मैंने सुना है कि एक रात ऐसा हुआ, एक पति घर वापस लौटा थका—मादा यात्रा से। प्यासा था, थका था। आकर बिस्तर पर बैठ गया। उसने अपनी पत्नी से कहा कि पानी ले आ, मुझे बड़ी प्यास लगी है। पत्नी पानी लेकर आयी, लेकिन वह इतना थका—मादा था कि लेट गया, उसकी नींद लग गयी। तो पत्नी रातभर पानी का गिलास लिए खड़ी रही बिस्तर के पास। क्योंकि उठाए, तो ठीक नहीं, नींद टूटेगी। खुद सो जाए, तो ठीक नहीं, पता नहीं कब नींद टूटे और पानी की मांग उठे, क्योंकि पति प्यासा सो गया है। तो रातभर गिलास लिए खड़ी रही।


सुबह पति की आंख खुली, तो उसने कहा, पागल, तू सो गयी होती! उसने कहा, यह संभव न था। तुम्हें प्यास थी, तुम कभी भी उठ आते! तो तू उठा लेती, पति ने कहा। उसने कहा, वह भी मुझसे न हो सका, क्योंकि तुम थके भी थे और तुम्हें नींद भी आ गयी थी। तो यही उचित था कि तुम सोए रहो, मैं गिलास लिए खड़ी रहूं। जब नींद खुलेगी, पानी पी लोगे। नहीं नींद खुलेगी, तो कोई हर्जा नहीं, एक रात जागने से कुछ बिगड़ा तो नहीं जाता है।


यह बात पूरे गांव में फैल गयी। सम्राट ने गांव के उस पत्नी को बुलाकर बहुत हीरे—जवाहरातों से स्वागत किया। उसने कहा कि ऐसी प्रेम की धारा मेरी इस राजधानी में थोड़ी भी बहती है, तो हम अभी मर नहीं गए हैं; अभी हमारी संस्कृति का प्राण जीवित है, स्पंदित है।


पड़ोस की महिला इससे बड़ी ईर्ष्या से भर गयी कि यह भी कोई खास बात थी! एक रात गिलास हाथ में लिए खड़े रहे, इसके लिए लाखों रुपए के हीरे—जवाहरात दे दिए हैं! यह भी कोई बात है?


उसने अपने पति से कहा कि देखो जी, आज तुम थके—मांदे होकर लौटना। आते से ही बिस्तर पर बैठ जाना। पानी मांगना। मैं पानी लेकर आ जाऊंगी। लेकिन तुम आंख बंद करके सो जाना और मैं खड़ी रहूंगी रातभर। और सुबह जब तुम्हारी आंख खुले, तो तुम इस—इस तरह के वचन मुझसे बोलना, कि तू क्यों रातभर खड़ी रही? तू उठा लेती। मैं कहूंगी, कैसे उठा सकती थी? तुम थके —मांदे थे। कि तू सो जाती! तो मैं कहूंगी, कैसे सो जाती? तुम्हें प्यास लगी थीं। और इतने जोर से यह बात चाहिए कि पड़ोस में लोगों को पता चल जाए, सुनाई पड़ जाए। क्योंकि यह तो हद हो गयी! जरा रातभर... और किसको पक्का पता है कि खड़ी भी रही कि नहीं, क्योंकि रात सो ली हो, झपकी ले ली हो और फिर सुबह उठ आयी हो, और बात फैला दी हो! मगर हमें भी यह सम्राट से पुरस्कार लेना है।


पति सांझ थका—मादा वापस लौटा। लौटना पड़ा, जब पत्नी कहे, थके—मांदे लौटो, लौटना पड़ा। आते ही बिस्तर पर बैठा। कहा, प्यास लगी है। पत्नी पानी लेकर आयी। पति आंख बंद करके लेट गया। कोई नींद तो आई नहीं, लेकिन मजबूरी है। जब पत्नी कहती है, तो मानना पड़ेगा। और फिर लाखों—करोड़ों के हीरे—जवाहरात उसके मन को भी भा गए।


अब पत्नी ने सोचा कि बाकी दृश्य तो सुबह ही होने वाला है। अब कोई रातभर बेकार खड़े रहने में भी क्या सार है? और किसको पता चलता है कि खड़े रहे कि नहीं खड़े रहे? वह भी सो गयी गिलास—विलास रखकर।


सुबह उठकर उसने जोर से बातचीत शुरू की कि पड़ोस जान ले। सम्राट के द्वार से उसके लिए भी बुलावा आया, तो बहुत प्रसन्न हुई। लेकिन जब दरबार में पहुंची, तो बड़ी हैरान हुई; सम्राट ने वहा कोड़े लिए हुए आदमी तैयार रखे थे, और उस पर कोड़ों की वर्षा करवा दी। वह चीखी—चिल्लाई कि यह क्या अन्याय है? एक को हीरे—जवाहरात; मुझे कोड़े? किया मैंने भी वही है!


सम्राट ने कहा, किया वही है, हुआ नहीं है। और होने का मूल्य है, करने का कोई मूल्य नहीं है। और जीवन में यह रोज होता है। अगर हृदय में स्पंदन न हो रहा हो, तो तुम कर सकते हो, लेकिन उस करने से क्या अर्थ है?


सारे मंदिर, मस्जिद, गिरजे, गुरुद्वारे कर रहे हैं। धर्म क्रियाकांड है। हो नहीं रहा है। गीता पढ़ी जा रही है, की जा रही है; हो नहीं रही है। तुमने सुन लिया है कि गीता को पढ़ने वाले पाप से मुक्त हो गए, मोक्ष को उपलब्ध हो गए। तुमने सोचा, हम भी हो जाएं! तुमने भी पढ़ ली। लेकिन तुम्हारा पढ़ना उस दूसरी पत्नी जैसा है। तुम परमात्मा को धोखा न दे पाओगे। साधारण सम्राट भी धोखा न खा सका, वह भी समझ गया कि ऐसी घटनाएं रोज नहीं घटती। और पड़ोस में ही घट गई! और वही की वही घटी, बिलकुल वैसी ही घटी! यह तो कोई नाटक हुआ।


जीवन पुनरुक्त नहीं होता। हर भक्त ने परमात्मा की प्रार्थना अपने ढंग से की है, किसी और के ढंग से नहीं। हर प्रेमी ने प्रेम अपने ढंग से किया है। कोई मजनू और शीरी और फरिहाद, उनकी किताब रखकर और पन्ने पढ़—पढ़कर और कंठस्थ कर—करके प्रेम नहीं किया है।


कोई जीवन नाटक नहीं है कि उसमें पीछे प्राम्पटर खड़ा है, और वह कहे चले जा रहा है, अब यह कहो, अब यह कहो। जीवन जीवन है। तुम उसे पुनरुक्त करके खराब कर लोगे। गीता तुम हजार दफे पढ़ लो; लेकिन जैसे अर्जुन ने पूछा था, वैसी जिज्ञासा न होगी, वैसी प्राणपण से उठी हुई मुमुक्षा न होगी। तो जो कृष्ण को सरल हुआ कहना, जो अर्जुन को संभव हुआ समझना, वह तुम्हें न घट सकेगा।

दोहराया जा ही नहीं सकता जगत में कुछ। प्रत्येक घटना अनूठी है। इसलिए सभी रिचुअल, सभी क्रियाकाड धोखाधड़ी है, पाखंड है। तुम भूलकर भी किसी की पुनरुक्ति मत करना, क्योंकि वहीं धोखा आ जाता है और प्रामाणिकता खो जाती है।

प्रामाणिक के लिए मुक्ति है, पाखंड के लिए मुक्ति नहीं है। और तुम कितना ही लाख सिर पटको और कहो कि मैंने भी तो वैसा ही किया था, मैंने भी तो ठीक अक्षरश: पालन किया था नियम का, फिर यह अन्याय क्यों हो रहा है? अक्षरश: पालन का सवाल ही नहीं है। हृदय के साथ उठे स्वर। ....

पांच सालों के बाद भी मीरा प्रेग्नेंट नहीं हो पाई थी।

 पांच सालों के बाद भी मीरा प्रेग्नेंट नहीं हो पाई थी। आदित्य और मीरा ने बहुत से डॉक्टरों से सलाह ली, टेस्ट करवाए, लेकिन कोई भी इलाज सफल नहीं हुआ।


मीरा को बच्चे की बहुत चाह थी, और वह इस बात को लेकर अंदर ही अंदर टूट रही थी। वह देखती कि उसकी सहेलियों के बच्चे हो गए थे, और वे सभी अपनी मां बनने की खुशी में मग्न थीं। हर बार जब मीरा किसी गर्भवती महिला को देखती, उसकी आँखों में उदासी और निराशा घर कर जाती।


आदित्य, जो एक बेहद समझदार और धैर्यवान पति था, हमेशा मीरा को हिम्मत दिलाता रहता था। उसने कभी मीरा को इस बात के लिए दोषी नहीं ठहराया और उसे समझाया कि वे दोनों किसी और उपाय के बारे में सोच सकते हैं—जैसे कि सरोगेसी या गोद लेना। लेकिन मीरा को यह सब विकल्प सही नहीं लगते थे। वह खुद माँ बनना चाहती थी, वह अपने बच्चे को अपनी कोख में पालना चाहती थी।


एक दिन, मीरा के मन में एक अजीब ख्याल आया। उसने सोचा, "अगर आदित्य और मैं बच्चे के माता-पिता नहीं बन सकते, तो क्या आदित्य का कोई दोस्त मुझे प्रेग्नेंट कर सकता है?" यह ख्याल अजीब था, लेकिन मीरा को लगता था कि यह एकमात्र उपाय हो सकता है।


आदित्य का सबसे करीबी दोस्त राहुल था, जो उनके परिवार का हिस्सा जैसा था। राहुल की शादी नहीं हुई थी, और वह मीरा और आदित्य के साथ काफी वक्त बिताता था। मीरा को राहुल पर हमेशा भरोसा था और वह उसे अपना अच्छा दोस्त मानती थी। धीरे-धीरे, मीरा के मन में यह ख्याल पक्का होता गया कि अगर वह राहुल से इस बारे में बात करे, तो शायद राहुल उनकी मदद करने के लिए तैयार हो जाए।


लेकिन यह बात आसान नहीं थी। मीरा जानती थी कि यह निर्णय न सिर्फ उनके रिश्ते को, बल्कि आदित्य और राहुल की दोस्ती को भी प्रभावित कर सकता है।


मीरा ने कई दिनों तक इस ख्याल को अपने दिल में रखा, लेकिन उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि वह राहुल से यह बात कैसे कहे। वह एक शाम राहुल और आदित्य के साथ बैठी हुई थी, जब राहुल ने मजाक में कहा, "तुम दोनों के बच्चे कब आएंगे? मैं तो चाचा बनने के लिए तैयार बैठा हूँ।"


मीरा का दिल धड़क उठा। उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "शायद तुम्हें ही कुछ करना पड़े।"


राहुल ने इसे मजाक के रूप में लिया, लेकिन मीरा के मन में यह बात बहुत गंभीर थी। उसने सोचा कि अब समय आ गया है कि वह राहुल से इस बारे में खुलकर बात करे।


कुछ दिन बाद, जब आदित्य ऑफिस में था, मीरा ने राहुल को मिलने के लिए बुलाया। वह बेहद नर्वस थी, लेकिन उसने साहस जुटाया और अपनी बात कहनी शुरू की।


"राहुल, मुझे तुमसे एक बहुत ही व्यक्तिगत और गंभीर बात करनी है," मीरा ने कहा, उसकी आवाज़ कांप रही थी।


राहुल ने ध्यान से उसकी ओर देखा और गंभीरता से कहा, "क्या हुआ मीरा? तुम तो परेशान लग रही हो। बताओ, मैं तुम्हारी कैसे मदद कर सकता हूँ?"


मीरा ने गहरी सांस ली और कहा, "राहुल, मैं और आदित्य पांच साल से बच्चे की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मैं प्रेग्नेंट नहीं हो पा रही हूँ। हमने सारे मेडिकल विकल्प आजमा लिए, लेकिन कुछ भी काम नहीं आया।"


राहुल ने सहानुभूति से सिर हिलाया, "यह बहुत दुखद है, मीरा। लेकिन तुम मुझसे यह क्यों कह रही हो?"


मीरा ने हिचकिचाते हुए कहा, "राहुल, मैं तुमसे कुछ मांगना चाहती हूँ, लेकिन मुझे नहीं पता कि तुम इसे कैसे लोगे। मैं चाहती हूँ कि तुम मेरी मदद करो... मैं चाहती हूँ कि तुम मुझे प्रेग्नेंट करने में मदद करो।"


राहुल चौंक गया और कुछ देर तक कुछ नहीं बोला। उसकी आँखों में आश्चर्य और उलझन साफ दिखाई दे रही थी। "मीरा, यह तुम क्या कह रही हो? तुम समझ रही हो कि यह कितना बड़ा कदम है?"


मीरा ने आँसू भरी आँखों से कहा, "मैं जानती हूँ, राहुल। लेकिन मुझे लगता है कि यह एकमात्र उपाय हो सकता है। आदित्य को हमसे बहुत उम्मीदें हैं, और मैं चाहती हूँ कि हम माता-पिता बनें। लेकिन मैं उसे धोखा नहीं देना चाहती। मैं चाहती हूँ कि यह सब उसकी जानकारी और सहमति से हो।"


राहुल के लिए यह स्थिति बेहद कठिन थी। वह आदित्य का सबसे अच्छा दोस्त था और वह कभी नहीं चाहता था कि उसके दोस्त की शादी या उसकी दोस्ती पर कोई आंच आए। उसने मीरा की आँखों में देखा और फिर गहरी सोच में डूब गया।


कुछ देर की चुप्पी के बाद, राहुल ने कहा, "मीरा, मैं समझता हूँ कि तुम किस दर्द से गुजर रही हो। लेकिन यह रास्ता सही नहीं है। यह न सिर्फ तुम्हारे और आदित्य के रिश्ते को प्रभावित करेगा, बल्कि हमारी दोस्ती को भी खत्म कर सकता है। इस तरह की चीज़ें बहुत जटिल होती हैं। अगर तुम और आदित्य चाहो, तो कोई दूसरा वैज्ञानिक या सामाजिक उपाय ढूंढ सकते हो।"


मीरा ने अपनी आँखों से आँसू पोंछते हुए राहुल की बातों को सुना। वह समझ गई कि जो ख्याल उसके मन में था, वह गलत था। राहुल की बातों ने उसे यह समझाया कि रिश्तों में कोई भी कदम उठाने से पहले उसकी नैतिकता और भावनात्मक परिणामों के बारे में सोचना जरूरी होता है।


नई दिशा:

राहुल के समझदारी भरे जवाब ने मीरा को अपनी गलती का एहसास कराया। उसने महसूस किया कि उसका यह कदम उनके रिश्तों को और ज्यादा उलझा सकता था।


जब आदित्य घर आया, मीरा ने उससे खुलकर बात की और अपनी भावनाओं और संघर्षों के बारे में बताया। आदित्य ने उसकी बातें ध्यान से सुनीं और उसे समझाया कि वे दोनों मिलकर इसका कोई और हल निकाल सकते हैं। दोनों ने एक साथ मिलकर गोद लेने के बारे में सोचा, और उन्होंने तय किया कि वे एक बच्चे को गोद लेंगे और उसे अपना सच्चा प्यार देंगे।


निष्कर्ष:

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कोई भी निर्णय लेते समय उसके दीर्घकालिक परिणामों और रिश्तों पर पड़ने वाले प्रभावों को समझना जरूरी होता है। कठिन परिस्थितियों में भी नैतिकता और रिश्तों की गरिमा बनाए रखना सबसे महत्वपूर्ण होता है। प्यार और रिश्तों में मुश्किलें आ सकती हैं, लेकिन उनका समाधान सोच-समझकर और ईमानदारी से किया जाना चाहिए।

Saturday, 21 September 2024

ननंद उसी दिन अपने घर चली गई.

 शादी कीं पहली रात ही मेरी ननंद नें मेरे पति के बारे ऐसी बात बताई जिसे सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गये.


हम लोग उनके मुकाबले कुछ भी नहीं है. पिताजी के पुराने परिचित होने के वजह से मेरी शादी उस घर में हो गई. विदा होकर घर में जाते ही मुझे पता चला कीं वो लोग कितने बड़े है. घर बहुत बड़ा था. पहली बार था जब उनका घर मैंने देखा था. सबकुछ बहुत अच्छा था.रात को मेरी ननंद मुझे अकेले में लें गई. मेरे समझ नहीं आया मुझे लगा कुछ बात करना होंगी.


उनका चहेरा उतरा हुआ था, जैसे की कोई बात वो मुझसे करना चाहती हो. मैंने उन्हें पूछा क्या हुआ आप डरी हुई सी क्यों हो?


मेरी नंद बोली भाभी मैं आपको कुछ बताना चाहती हूं . लेकिन तुम यह सुनकर आप हिम्मत रखना. इस बात को हमारे बीच में ही रखना. यह बड़ा घर है यहाँ बात फ़ैलते ज्यादा समय नहीं लगता और वो बात सबके सामने आ गई तो हमारे घर कीं इज़्ज़त मिट्टी में मिल जायेगी.


अब आप इस घर की बहू हो और आपको इस घर का मान रखना होगा. उनकी बाते सुनकर में सच में थोड़ा डर गई. मुझे समझ नहीं आए रहा था की वो क्या बोलना चाह रही है.


मैंने कहां आप बताये मुझे क्या बात है? मेरी नंद बोली की भाभी मेरा भाई आपको कोई सुख नहीं दे सकता.उसमें कुछ शारीरिक कमियां है जो कि मुझे पता है .आपसे यह बात छुपा कर शादी की गई है.


मेरा भाई रात में अक्सर बाथरूम में ही रहता है. पता नहीं वहाँ क्या करता जब भी उसे पूछो तो यही कहता है कीं उसका पेट ख़राब है.

कमरे में जानें के पहले अपने पति के लिये यह बाते सुनकर मुझे समझ नहीं आ रहा था कीं में क्या करू. 

मेरी ननंद ने कहा कि आप उनसे कोई बात मत करना, थोड़ा समय उसके साथ बिताओ. फिर उनसे खुल कर बात करो. अगर हमसे कुछ हो सकता है तो हम जरूर करेंगे. हम तुम्हारे साथ है

आपको अकेला नहीं छोडेंगे. 


सुहागरात वाली रात यह सब सुनकर मैं अपने कमरे में जा रही थी. मुझे अब डर लगने लगा था.

यही सब सोच रही थी, की मेरे पति कमरे में आये. कमरे का दरवाजा बंद किया. और दरवाजे से ही पेट पर हाथ लगाते हुऐ आये बिस्तर पर मेरी तरफ पीठ करके बैठ गए, और बोले कीं उनका पेट ख़राब. कुछ ही सेकंड में वो उठकर बाथरूम में चले गये. बिलकुल वैसा ही हुआ जैसा कीं मेरी नंद नें मुझसे कहा था.


पेट ख़राब हो तो थोड़ी देर बाद वो बाथरूम से बाहर आ जाते लेकिन वो करीब 1 घंटे तक बाथरूम में ही रहें. मैं बाहर चुपचाप अपने बिस्तर पर बैठी रही.


उन्हें मैंने आवाज भी नहीं दी. बस यही सब सोचते सोचते मैं बिस्तर पर लेट गई. करीब 2 घंटे बाद वो बाथरूम से निकले.


मेरा अब उनसे बात करने का मन ही नहीं था. मुझे लगा की मेरे साथ धोखा किया गया. वो भी अपने बिस्तर कीं साइड पर जाकर सो गये.


सुबह तक मैं अपने आप को खुश किस्मत मान रही थी और रात होते होते अपनी किस्मत को कोसने लगी. सुबह में जल्दी उठी और बाथरूम में गई.


बाथरूम में जैसे ही गई मेरे होश उड़ गये क्यों कीं बाथरूम में एक नयी नाइटी थी. साथ ही मेकअप का समान. यह सब क्या था मुझे समझ नहीं आ रहा था.


एक ऐसे इंसान से मेरी शादी क्यों करवा दी. सुबह मेरी ननंद नें मुझसे पूछा क्या हुआ रात में. मैंने कहा वही जो आपने बताया था .यह कहकर मैं रोने लगी.


मेरी ननंद ने कहां मैं माँ से कह रही थी ऐसे किसी लड़की की ज़िन्दगी ख़राब मत करो, लेकिन किसी नें मेरी बात नहीं मानी. अब आप क्या ऐसे ही घुट घुट कर यहाँ रहेगी?


मेरी ननंद बोली की आप जो भी फैसला लेंगी मैं आपके साथ हूं लेकिन आपको यह वचन देना होगा की यह राज बाहर नहीं निकलेगा.


अगली रात फिर वो कमरे में आये. मुझे अब उनकी तरफ देखने का भी मन नहीं हो रहा था. मैं चुपचाप अपनी साइड पर सो गई,क्योंकी अब बात करने को रखा क्या था.


उन्होंने भी अभी तक कुछ बात नहीं की,उसकी वजह भी मैं जानती थी. थोड़ी देर वो बिस्तर पर बैठे रहें और फिर उठकर वो बाथरूम में चले गये. मैं समझ गई थी कीं वो क्या करने गये है. थोड़ी देर बाद बाथरूम से चीज़े गिरने की आवाज आने लगी, कुछ टूटने की. थोड़ी देर बाद आवाज रुकी और इस बार वो जल्दी ही बाथरूम से बाहर आ गये. आकर बिस्तर पर सो गये.


हमारे बीच कोई बात नहीं हो रही थी. मैं सोच रही थी की मैं क्या करूं?


यही सब सोचते सोचते नींद आ गई. सुबह जल्दी उठी और फिर में बाथरूम में गई. लेकिन इस बार बाथरूम में जब गई तो सब कुछ बिखरा हुआ था. नयी नाइटी को फाड़ दिया था, मेकअप का समान बिखरा हुआ था. बाथरूम में कचरे में एक कागज भी था, जिस पर लिखा था टू माय बूटीफुल वाइफ.


मेरे मन में अब शक आया की यह समान और कपडे कहीं मेरे लिये तो इन्होने नहीं रखें. लेकिन फिर मैंने सोचा की मेरी ननंद मुझसे झूठ क्यों बोलेगी. अभी मैंने उनसे कुछ बात नहीं की. 


सुबह मेरी ननंद फिर मुझसे सहानुभूति जता रही थी मुझे उनकी बातो से लगा की वो चाहती है की मैं इस घर को छोड़ कर इस घर से चली जाऊं. मुझे अब मेरी ननद पर शक हुआ.


मैंने घर की पुरानी नौकरानी से बात की. मैंने बातों बातों उससे पूछा की मेरे पति कैसे इंसान है? वो बोली की वो तो बहुत सीधे है. उनकी माँ और बहन तो चाहती थी की उनकी शादी उनकी बहन के पति के रिश्तेदार से हो. बहन और माँ ने तो बहुत कोशिश कीं लेकिन उनके पिताजी नहीं माने और उनके दोस्त की बेटी यानि आपसे शादी करवा दी. वो दोनों तो आपकी शादी के खिलाफ थे. कई दिनों तक घर में विवाद भी होता था.


अब मुझे अब पता चल गया था की मेरी ननंद मुझे क्यों भगाना चाहती थी. इसलिये उन्होंने मुझसे झूठ कहा था. उन्होंने शायद मेरे पति यानी कि अपने भाई से भी मेरे बारे में कुछ कहा होगा. 


रात को मैं अपने पति से बात करने का इंतजार कर रही थी. वो कमरे में आये. तो उनका मुँह तो उतरा हुआ था.


यह पहली बार था जब मैं उनसे बात करने वाली थी. उनके आते ही मैंने कहा, आप मुझसे कुछ बात करना चाहते है? 


वो बोले अब बात करने को रखा क्या है? पापा का विश्वास था की वो घर अच्छा है. इसलिये मैंने माँ और बहन की ना सुनकर तुमसे शादी की और तुमने सच छिपाया. 

मैंने बोला सच, कौन सा सच?


यह सच की तुम मुझसे शादी नहीं करना चाहती थी. तुम्हारी ज़िन्दगी में अभी भी कोई और है. 


यह बात तुमने ही तो मेरी बहन को बताई थी. घर की इज़्ज़त और पापा के कारण मैं चुप हूं. कुछ कदम नहीं उठा रहा. मैंने भी देख लिया कि तुम्हारे लिए मैं कितना मायने रखता हूं.


सुहागरात ज़िन्दगी में बहुत स्पेशल होती है. लेकिन मेंरे बाथरूम में 2 घंटे रहने पर भी तुम्हे फर्क नहीं पड़ा. बहन नें सही कहा था, की तुम आवाज़ भी नहीं दोगी, बात भी नहीं करोगी.


मैंने पूछा आपसे बाथरूम में रुकने को उन्होंने कहा था? उन्होंने बोला, हां उसने ही कहा था कि तुम्हारी सच्चाई देखनी है तो मुझे यह करना ही पड़ेगा? 


और वो कपडे और मेकअप? 


वो मेरी बहन नें रखा था, कहा था पहली रात का गिफ्ट है, तुम्हारे लिये . 


मैं उठकर उनके पास गई और उनसे कहा आपको पता है उन्होंने मुझे क्या कहा? 


फिर मैंने उन्हें सारी बात समझाई. हम दोनों को यह बात समझ में आ चुकी थी कि वह चाहती थी, हम दोनों में गलतफहमी हो और हम अलग हो जाये. ताकि वो जो चाहती है वो पूरा हो जाये.


सारी सच्चाई जानकर मेरे पति को बहुत गुस्सा आया, लेकिन मैंने कहा नहीं, अब हम इस बात को यही ख़तम करेंगे और किसी को कुछ नहीं कहेँगे. 


उस रात मेरी सारी परेशानी और ग़लतफहमी दूर हो गई. वो थी मेरी सही मायने में सुहागरात. 


अगली सुबह मेरी ननंद नें मुझसे पूछा की मेरा क्या फैसला है? मैं क्या करने वाली हूं? 


मैंने कहा की मैं इस घर की बहू बनकर सारी जिंदगी इस घर में रहना चाहती हूं, जिसे सुनकर मेरी ननंद हैरान हो गई.

मेरे चेहरे पर मुस्कान देखकर उनका चेहरा उतर गया और उन्हें समझ में आ गया कि हम दोनों को सारी सच्चाई पता चल चुकी है और हमारे बीच की सारी गलतफहमियां दूर हो गई है. ननंद उसी दिन अपने घर चली गई.


Thursday, 19 September 2024

माँ-बाप कभी अपने बच्चों पर बोझ नहीं बनते, पर बच्चे उन्हें बोझ मानने लगते हैं।

 पिताजी के अचानक घर आने पर पत्नी का चेहरा नाराजगी से भर गया।


"लगता है, बूढ़े को फिर से पैसों की जरूरत आ गई है। नहीं तो यहाँ कौन आने वाला था? खुद का पेट ठीक से भर नहीं पाते, और घरवालों का कैसे भरोगे?"


मैंने उसकी बातों को अनसुना करते हुए नजरें चुरा लीं और दूसरी ओर देखने लगा। पिताजी नल के पास खड़े होकर सफर की थकान मिटाने के लिए हाथ-मुँह धो रहे थे। इस बार हालात कुछ ज्यादा ही खराब थे। बड़े बेटे के जूते फट चुके थे, और वह हर रोज़ स्कूल जाते वक्त शिकायत करता था। पत्नी की दवाइयाँ भी पूरी नहीं खरीदी जा सकी थीं, और अब पिताजी भी आ गए थे, जिससे घर में एक अजीब सी चुप्पी छा गई थी।


खाना खत्म होने के बाद पिताजी ने मुझे अपने पास बुलाया। मन में सवाल उठने लगे कि कहीं वह किसी आर्थिक समस्या को लेकर तो नहीं आए। पिताजी ने कुर्सी पर आराम से बैठते हुए कहा, “सुनो बेटा, खेतों में काम बहुत बढ़ गया है, और मुझे रात की गाड़ी से वापस जाना है। तीन महीने हो गए, तुम्हारी कोई चिट्ठी नहीं आई। जब तुम परेशान होते हो, तब हमेशा ऐसा ही होता है।”


इसके बाद उन्होंने अपनी जेब से सौ-सौ के पचास नोट निकाले और मेरी ओर बढ़ाते हुए बोले, "रख लो, काम आएंगे। धान की फसल इस बार अच्छी हुई है। घर में सब सही है। तुम बहुत कमजोर लग रहे हो, अपना ध्यान रखो और बहू का भी ख्याल रखना।”


मेरी आवाज जैसे गले में अटक गई। कुछ कहने से पहले ही पिताजी ने हंसते हुए कहा, "क्या हुआ, बड़े हो गए हो क्या?"


“नहीं तो,” मैंने धीरे से कहा और हाथ आगे बढ़ा दिया। पिताजी ने वह पैसे मेरी हथेली पर रख दिए।


कई साल पहले, पिताजी मुझे स्कूल भेजने से पहले इसी तरह मेरी हथेली पर चुपचाप पैसे रख दिया करते थे। पर उस वक्त मेरी नजरें झुकी नहीं होती थीं, जैसे आज हैं।


दोस्तों, एक बात हमेशा याद रखिए... माँ-बाप कभी अपने बच्चों पर बोझ नहीं बनते, पर बच्चे उन्हें बोझ मानने लगते हैं।

जीवन में कठिन परिस्थितियां कितनी भी बड़ी क्यों न हों, मेहनत, विश्वास और सही सोच से सबकुछ हासिल किया जा सकता है

 सरला एक विधवा महिला थी, और उसकी एक प्यारी बेटी कविता थी। कविता के पिता, रघुवीर, का दो साल पहले अचानक निधन हो गया था। रघुवीर ने अपनी बेटी की पढ़ाई के लिए काफी कर्ज लिया था, ताकि वह अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके। लेकिन उनकी असामयिक मृत्यु के बाद सरला और कविता पर घर चलाने के साथ-साथ उस कर्ज को चुकाने का भारी बोझ आ गया।


सरला: "बेटी, अब क्या होगा? हम कैसे कर्जा चुकाएंगे और अपना पेट कैसे पालेंगे?"


कविता: "माँ, तुम चिंता मत करो। मैंने एमबीए किया है। मुझे किसी कंपनी में नौकरी मिल जाएगी, और फिर हम बैंक से लोन लेकर सारा कर्ज चुका देंगे।"


कविता दिन-रात नौकरी ढूंढती रही, लेकिन उसे कहीं भी नौकरी नहीं मिली। एक दिन जब वह घर लौटी, तो उसने देखा कि एक आदमी उसकी माँ से लड़ रहा था। कविता को देखते ही वह आदमी घर से बाहर चला गया।


कविता: "माँ, ये कौन था और तुमसे क्या कह रहा था?"


सरला: "बेटी, यही आदमी है, जिससे तेरे पापा ने उधार लिया था। अब ये धमकी दे रहा है कि अगर हमने पैसे नहीं चुकाए, तो यह हमारे मकान पर कब्जा कर लेगा।"


कविता: "माँ, तुम चिंता मत करो। हम अब नौकरी के भरोसे नहीं बैठ सकते। मैंने काफी कोशिश की, लेकिन नौकरी नहीं मिली। अब मैंने बिजनेस करने का सोचा है।"


सरला: "बेटी, जब खाने के लिए भी पैसे नहीं हैं, तो बिना पैसों के बिजनेस कैसे करोगी?"


कविता: "माँ, तुम बस मुझ पर भरोसा रखो। सब हो जाएगा। बस एक बार मुझे करने दो।"


अगले दिन, कविता दोपहर में एक हाथ ठेला लेकर घर आई।


सरला: "ये क्या है? इसे क्यों लाईं?"


कविता: "माँ, इसी ठेले से हम अपना बिजनेस शुरू करेंगे।"


सरला: "लेकिन, तुम करोगी क्या?"


कविता: "माँ, तुम्हें तो पता है कि मुझे कुकिंग का कितना शौक है। मैंने एमबीए भी किया है, तो बिजनेस की समझ भी है। हम दोनों मिलकर टिक्की और चाट का ठेला लगाएंगे। मैंने एक दुकान वाले से बात की है, जो पापा को अच्छे से जानता था। वह हमें एक महीने के लिए सामान उधार देगा। बाद में हम उसे पैसे चुका देंगे।"


सरला: "मैंने और तेरे पापा ने तुझे इसी दिन के लिए पढ़ाया था कि तू बाजार में ठेली लगाए? समाज में हमारी इज्जत धूल में मिल जाएगी। यह सब बंद कर और कोई छोटी-मोटी नौकरी कर ले। मैं यह नहीं करने दूंगी।"


कविता: "माँ, मेरी पढ़ाई बेकार नहीं जाएगी। उसी पढ़ाई के दम पर मैं एक बिजनेस खड़ा करूंगी और दूसरों को नौकरी दूंगी। मुझे बस एक साल यह करने दो, अगर यह नहीं चला, तो मैं नौकरी कर लूंगी।"


सरला: "नहीं, मैं तुझे यह सब नहीं करने दूंगी।"


कविता: "माँ, मुझ पर भरोसा करो। आपको पापा की कसम है।"


आखिरकार, सरला मान गई और एक शर्त रखी कि अगर एक साल बाद बिजनेस नहीं चला, तो कविता को नौकरी करनी पड़ेगी। अगले दिन से सरला और कविता ने मिलकर टिक्की बेचने का काम शुरू किया।


संघर्ष की शुरुआत:

पहले दिन बहुत कम टिक्की बिकीं, और काफी सामान खराब होकर फेंकना पड़ा। अगले दिन भी ज्यादा कमाई नहीं हुई।


सरला: "मैंने पहले ही कहा था कि यह नहीं चलेगा।"


कविता: "माँ, देखती जाओ। मैं कुछ नया करके दिखाऊंगी।"


अगले दिन कविता ने ठेले पर एक बड़ा बैनर लगवाया, जिस पर लिखा था—'एमबीए टिक्की वाली: एक टिक्की के साथ एक फ्री'।


सरला: "अरे, इससे तो बहुत नुकसान हो जाएगा।"


कविता: "नहीं माँ, यह बिजनेस का एक तरीका है। पहले हम लोगों को फ्री देंगे, जिससे वे हमारे स्वाद को पसंद करेंगे। बाद में, यह स्कीम बंद कर देंगे और तब तक लोग हमारे ग्राहक बन जाएंगे। वैसे भी, जो सामान बचता है, वह फेंक ही देते हैं।"


कुछ दिनों के भीतर, कविता की टिक्कियां मशहूर हो गईं। लोग फ्री वाली स्कीम के बाद भी उसकी टिक्कियों के दीवाने हो गए और रोज़ ठेले पर लाइन लगने लगी।


मुसीबत का सामना:

एक दिन, जब सरला और कविता टिक्कियां बना रही थीं, वही आदमी फिर से आ धमका।


आदमी: "तुम यहां मजे से दुकान चला रही हो, और मेरे पैसे देने का नाम नहीं ले रही हो?"


सरला: "आप नाराज मत होइए। हम धीरे-धीरे पैसे इकट्ठे कर रहे हैं और जल्द ही आपका कर्ज चुका देंगे। थोड़ा समय दीजिए।"


आदमी: "कल तक मेरे पैसे नहीं मिले, तो मैं ठेला फेंक दूंगा।"


तभी एक नौजवान लड़का, राहुल, वहां आया और बोला—


राहुल: "माँजी, ये आदमी आपको क्यों परेशान कर रहा है?"


आदमी: "तुझे क्या मतलब? चल भाग यहां से।"


राहुल: "माँजी, क्या बात है?"


सरला ने राहुल को सारी बात बताई।


राहुल: "देखो, कल तक पैसे तैयार रहेंगे। इसके बाद अगर तुमने इन्हें फिर से तंग किया, तो मैं तुम्हें पुलिस के हवाले करवा दूंगा।"


आदमी ने धमकी दी, "कल मेरे पैसे तैयार रखना, वरना अंजाम बुरा होगा।" कहकर वह चला गया।


सरला चिंता में डूब गई।


सरला: "बेटा, कल कहां से पैसे आएंगे?"


राहुल: "माँजी, चिंता मत करो। मैं आपके कर्ज का भुगतान करूंगा, और इसके साथ ही मैं आपके बिजनेस में भी पैसा लगाऊंगा।"


राहुल ने सारा कर्ज चुका दिया और कविता के बिजनेस में भी पैसा लगाना शुरू कर दिया। उसकी मदद से कविता ने पूरे शहर में टिक्की की छोटी-छोटी दुकानों की श्रृंखला शुरू कर दी। कुछ ही समय में उनका बिजनेस तेजी से बढ़ने लगा और उन्हें बहुत मुनाफा हुआ।


नई शुरुआत:

समय के साथ, सरला और कविता का बिजनेस बहुत सफल हो गया। राहुल की मदद से उन्होंने अपने सपने को साकार किया। एक दिन सरला ने राहुल से बात की और उसे अपनी बेटी के लिए सबसे अच्छा जीवन साथी माना।

जल्द ही, सरला ने राहुल और कविता की शादी करा दी। दोनों ने मिलकर अपने टिक्की बिजनेस को और भी ऊँचाइयों तक पहुंचाया, और वे शहर के मशहूर उद्यमी बन गए।

निष्कर्ष:

यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में कठिन परिस्थितियां कितनी भी बड़ी क्यों न हों, मेहनत, विश्वास और सही सोच से सबकुछ हासिल किया जा सकता है। कविता ने अपने पिता के कर्ज को चुकाने और समाज की बाधाओं के बावजूद सफलता हासिल की। उसने साबित कर दिया कि सही दृष्टिकोण से किसी भी सपने को साकार किया जा सकता है।

रिश्ता एक दोस्ती और समझदारी का प्रतीक बन गया

 रवि, 22 साल का एक होनहार और पढ़ाई में व्यस्त युवक, अपने माता-पिता के साथ एक छोटे से मोहल्ले में रहता था। उस मोहल्ले की सबसे बड़ी रौनक थी नेहा भाभी, जो अपनी खूबसूरती और सादगी से सभी का ध्यान आकर्षित करती थीं। 28 वर्षीय नेहा की शादी को तीन साल हो चुके थे, लेकिन उनके पति विनोद, जो एक बिजनेसमैन थे, अक्सर काम के सिलसिले में बाहर रहते थे। इस कारण नेहा को ज्यादातर वक्त अकेले ही गुजारना पड़ता था।


रवि का कमरा ठीक नेहा के आँगन की ओर था, और दीवार काफी छोटी होने के कारण, अक्सर वह नेहा भाभी को देखता रहता। धीरे-धीरे, नेहा के प्रति रवि के दिल में एक अलग सा आकर्षण पनपने लगा। उसकी मासूमियत और सहजता रवि को दिल से छूने लगी। 


एक दिन, रवि छत पर पढ़ाई कर रहा था, तभी उसने देखा कि नेहा भाभी आँगन में पौधों को पानी दे रही थीं। गुलाबी साड़ी में लिपटी हुई नेहा की खूबसूरती ने रवि के दिल को बेचैन कर दिया। वह इस बात को समझ रहा था कि यह केवल एकतरफा आकर्षण था, लेकिन अपने दिल की धड़कनों को रोक पाना उसके लिए मुश्किल हो गया था।


नेहा भाभी, जो सुलझी हुई और हंसमुख महिला थीं, रवि की मासूमियत से काफी प्रभावित थीं। कभी-कभी वह उसे अपने छोटे-छोटे कामों में मदद करने के लिए बुला लेतीं, और रवि इस बात से बेहद खुश हो जाता था। एक दिन नेहा ने रवि से कहा, "रवि, क्या तुम मेरे साथ बाजार चल सकते हो? मुझे कुछ सामान लेना है, और अकेले जाना ठीक नहीं लग रहा।" 


यह सुनकर रवि का दिल खुशी से झूम उठा। उसे नेहा के साथ कुछ समय बिताने का मौका जो मिल रहा था। बाजार जाते हुए, हल्की-फुल्की बातचीत के बीच, रवि ने अचानक कहा, "भाभी, आप बहुत अच्छी हैं, और मैं आपको बहुत पसंद करता हूँ।"


नेहा हैरान होकर रुक गईं। उन्होंने थोड़ी मुस्कान के साथ पूछा, "रवि, ये क्या कह रहे हो?"


रवि ने धीरे से कहा, "भाभी, मुझे पता है कि यह सही नहीं है, लेकिन मैं आपको भूल नहीं पाता। शायद यह सिर्फ एकतरफा है, लेकिन मुझे लगा कि आपको बताना चाहिए।"


नेहा ने रवि के मासूम चेहरे की ओर देखा, उसकी आँखों में सच्चाई और मासूमियत दिखाई दी। वह जानती थीं कि यह आकर्षण उम्र और परिस्थितियों के कारण था। उन्होंने समझाते हुए कहा, "रवि, तुम्हारी भावनाएँ बहुत प्यारी हैं, लेकिन यह सिर्फ एक आकर्षण है। प्यार और आकर्षण में फर्क होता है। समय के साथ ये भावनाएँ बदल जाएंगी। तुम एक अच्छे इंसान हो, और तुम्हें अपनी जिंदगी में बहुत कुछ हासिल करना है।"


रवि ने सिर झुका लिया और समझ गया कि नेहा सही कह रही थीं। वह अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने लगा। इसके बाद, रवि ने खुद को पढ़ाई में और भी ज्यादा डूबा लिया और नेहा को एक आदर्श और प्रेरणा के रूप में देखने लगा।

समय बीता, और रवि ने अपनी पढ़ाई पूरी करके एक सफल करियर बनाया। नेहा भाभी अब उसकी प्रेरणा थीं, और वह उन्हें एक मार्गदर्शक के रूप में देखने लगा, न कि किसी आकर्षण के रूप में। 

**कहानी का संदेश:** 

यह कहानी हमें सिखाती है कि उम्र के साथ हमारी भावनाएं बदलती रहती हैं। कभी-कभी हमें उन लोगों से प्यार हो जाता है जो हमारी पहुंच से बाहर होते हैं, लेकिन सही मार्गदर्शन और समझदारी से हम उन भावनाओं को सही दिशा में मोड़ सकते हैं। रवि और नेहा का रिश्ता एक दोस्ती और समझदारी का प्रतीक बन गया, जिसमें आपसी सम्मान और भावना की सही समझ थी। 😊❤️

प्यार में सादगी और सम्मान भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने कि भावनाएँ।

 मेरी शादी मेरी मर्जी के खिलाफ एक साधारण लड़के के साथ कर दी गई थी। उसका नाम था अमन। उसके परिवार में बस उसकी माँ, सविता जी थीं। न कोई भाई, न बहन, और न ही कोई बड़ा परिवार। घर की हालत भी कुछ खास नहीं थी। शादी में उसे ढेर सारे उपहार और पैसे मिले थे, मगर मेरा दिल कहीं और था। मैं अरमान नाम के एक लड़के से प्यार करती थी, और उसने भी मुझसे शादी करने का वादा किया था। पर किस्मत ने मुझे कहीं और ला खड़ा किया—अमन के ससुराल में।


शादी की पहली रात, अमन मेरे पास एक कप दूध लेकर आया। मेरी नज़रें उसकी सादगी और शांति पर टिकी थीं। मैंने गुस्से में उससे पूछा, "एक पत्नी की मर्जी के बिना अगर पति उसे छूता है, तो क्या उसे बलात्कार कहेंगे या फिर हक?" अमन मेरी आंखों में देखकर शांतिपूर्वक बोला, "आपको इतनी गहराई में जाने की जरूरत नहीं है। मैं सिर्फ शुभ रात्रि कहने आया हूँ," और बिना कोई बहस किए, वह कमरे से बाहर चला गया।


उस समय, मैं सोच रही थी कि कोई झगड़ा हो, ताकि मैं इस अनचाहे रिश्ते से छुटकारा पा सकूं। मगर, अमन ने मुझसे कोई सवाल नहीं पूछा, कोई दबाव नहीं डाला। दिन बीतते गए, और मैं उस घर में रहते हुए भी कभी किसी काम में हाथ नहीं लगाती थी। मेरा दिन इंटरनेट पर बीतता—अक्सर अरमान से बातें करती, या सोशल मीडिया पर समय बिताती। सविता जी, अमन की माँ, बिना किसी शिकायत के घर का सारा काम करती रहतीं। उनके चेहरे पर हमेशा एक प्यारी मुस्कान होती, मानो किसी तपस्वी की शांति हो।


अमन भी दिन-रात अपनी साधारण नौकरी में मेहनत करता रहता। वह एक छोटे से कार्यालय में काम करता था, और उसकी ईमानदारी की लोग मिसाल दिया करते थे। हमारी शादी को एक महीना बीत चुका था, लेकिन हम कभी पति-पत्नी की तरह एक साथ नहीं सोए। मैंने मन ही मन तय कर लिया था कि इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है।


एक दिन, मैंने जानबूझकर सविता जी के बनाए खाने को बुरा-भला कह दिया और खाने की थाली ज़मीन पर फेंक दी। इस बार अमन ने पहली बार मुझ पर हाथ उठाया। लेकिन उसकी आंखों में कोई क्रोध नहीं था, बल्कि एक अजीब सा दर्द था। वह चिल्लाया नहीं, बस मुझे घूरते हुए बोला, "इतनी नफरत क्यों है?" मुझे उसी बहाने की तलाश थी। मैंने पैर पटके, दरवाजा खोला, और सीधा अरमान के पास चली गई। मैंने उससे कहा, "चलो, कहीं भाग चलते हैं। अब इस जेल में नहीं रहना मुझे।"


अरमान, जो कभी मुझसे प्यार की बातें किया करता था, आज कुछ अजीब सा व्यवहार कर रहा था। वह बोला, "इस तरह हम कैसे भाग सकते हैं? मेरे पास भी कुछ नहीं है, और तुम्हारे पास भी अब कुछ नहीं बचा।" उसकी बातें सुनकर मेरा दिल टूट गया। वह मुझसे प्यार नहीं करता था, वह बस मेरे पैसों और गहनों का लालच रखता था।


वहां से लौटने के बाद, मैं सीधी अपने ससुराल आई। घर खाली था, अमन और उसकी माँ कहीं बाहर गए थे। मेरे मन में हलचल थी। मैंने अमन की अलमारी खोली, और जो मैंने देखा, वह मेरे पैरों तले जमीन खिसका देने वाला था। अलमारी में मेरी सारी चीजें—मेरे बैंक पासबुक, एटीएम कार्ड, गहने—सब वहाँ सुरक्षित रखे हुए थे। और पास में ही एक खत रखा था, जिसमें अमन ने लिखा था, "मैं जानता हूँ कि यह रिश्ता तुम्हारे लिए बोझ है। लेकिन मैंने तुम्हारी हर चीज को संभालकर रखा है, ताकि एक दिन जब तुम खुद को इस घर का हिस्सा मानोगी, तो यह सब तुम्हारा हो।"


खत में उसने यह भी लिखा था, "मैं तुम्हें प्यार करता हूँ, और तुम्हारी मर्जी का हमेशा सम्मान करूंगा। मैं जबरदस्ती से नहीं, बल्कि तुम्हारे प्यार से तुम्हें अपनी पत्नी बनाना चाहता हूँ।"


इस खत को पढ़ने के बाद, मेरे मन में अमन के प्रति एक नई भावना जागी। उसने कभी मुझ पर कोई हक नहीं जमाया, उसने हमेशा मेरा सम्मान किया। मुझे एहसास हुआ कि सच्चा प्यार सिर्फ अरमान जैसे दिखावे में नहीं होता, बल्कि अमन जैसे सादगी में भी हो सकता है।


अगली सुबह, मैंने पहली बार अपनी मांग में सिंदूर गाढ़ा किया और अपने पति के ऑफिस पहुँची। सबके सामने मैंने कहा, "अमन, हमें लंबी छुट्टी पर जाना है। अब से सब कुछ ठीक है।"


उस दिन मुझे समझ आया कि जो फैसले मैंने गलत समझे थे, वे मेरे लिए सबसे सही साबित हुए। मेरे माता-पिता ने मेरे लिए जो सोचा था, वही मेरे जीवन का सबसे अच्छा फैसला था। अमन ने मुझे बिना कुछ कहे, बिना कुछ जताए, सच्चे प्यार का एहसास कराया।


अब मैं अपने ससुराल को अपना घर मान चुकी थी। और अमन, जो कभी मुझे साधारण लगता था, मेरे लिए अब दुनिया का सबसे अनमोल व्यक्ति था।**


यह कहानी सिखाती है कि कभी-कभी जिंदगी में हमें जो मिलता है, वह हमारे अपने सपनों से कहीं बेहतर होता है। प्यार में सादगी और सम्मान भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने कि भावनाएँ।

हर पिता के भाग्य में बेटी नहीं होती*

 **हर पिता के भाग्य में बेटी नहीं होती**

राजा दशरथ जब अपने चारों बेटो की बरात लेकर जनक के द्वारा पहुंचे तो राजा जनक ने सम्मानपूर्वक बारात का स्वागत किया 

तभी दशरथ जी ने आगे बढ़कर जनक जी के चरण छु लिए 

चौंककर जनक जी ने दशरथ जी को थाम लिया और कहा महराज आप बड़े है वरपक्ष वाले हैं ये उल्टी गंगा कैसे बह रहा है 

इस पर दशरथ जी ने बड़ी सुंदर बात कही महराज आप दाता है कन्यादान कर रहे हैं मैं तो याचक हु आपके द्वारा कन्या लेने आया हूं अब आप ही बताइए दाता 

         और

याचक में कौन बड़ा है 

यह सुनकर जनक जी के नेत्रों से आंसु बह निकली भाग्यशाली हैं वो जिनके घर बेटियां हर बेटी के भाग्य में पिता होता है लेकिन हर पिता के भाग्य में बेटी नहीं होती 

     **जय श्री राम**

रसोई बनाने के कुछ नियम....!!

 कितनी बार पोस्ट कर चूका हूँ ओर करता रहूंगा शायद इसे पढ़ कर कुछ ओर लोग शाकाहारी बन जायें...!


रसोई बनाने के कुछ नियम....!!


गुस्से से अगर खाना बनाया गया है उसे सात्विक अन्न नही कहेंगे, इसलिए खाना बनाने वालों को कभी भी नाराज, परेशान स्थिति में खाना नही बनाना चाहिए।


और कभी भी माँ, बीबी, बहनों को (या जो खाना बनाते है उनको) डांटना नहीं, उनसे कभी लड़ना नहीं क्योंकि वो रसोईघर में जाके और आपके ही खाने में गुस्से वाली Vibrations मिला के.....आपको ही एक घंटे में खिलाने वाले है... ये ध्यान में रखने वाली अत्यन्त ही महत्वपूर्ण बात है।


 किसी को डांट दो, गुस्सा कर दो और बोलो जाके खाना बनाओ.....अब....?

खाना तो हाथ बना रहा है मन क्या कर रहा है अन्दर मन तो लगतार खिन्न है -......तो वो सारे प्रभाव खाने के अंदर जा रहे है..


 भोजन तीन प्रकार का होता है-

1. जो हम होटल में खाते है

2. जो घर में माँ बनाती है और 

3. जो हम मंदिर और गुरूद्वारे में खाते है

तीनो के प्रभाव अलग अलग होते हैं ।


(1) जो Hotel में खाना बनाते है उनके Vibration कैसे होते है 

आप खाओ और हम कमायें जो ज्यादा बाहर खाता है ... असल मे उनका रोज़ रोज़ बाहर खाना ही उसकी सारी कमाई खा जाता है।


(2) घर में जो माँ खाना बनाती है

वो बड़े प्यार से खाना बनाती है...

परंतु ,घर में आजकल जो Cook (नौकर) रख लिए है खाना बनाने के लिए और वो जो खाना बना रहे है वो भी.. इसी सोच से कि आप खाओ हम कमाए.... एक बच्चा अपनी माँ को बोले कि..एक रोटी और खानी है तो माँ का चेहरा ही खिल जाता है।कितनी प्यार से वो एक और रोटी बनाएगी। कि मेरे बच्चे ने रोटी तो और मांगी वो उस रोटी में बहुत ज्यादा प्यार भर देती है... अगर आप अपने खाना बनाने वाले नौकर को बोलो एक रोटी और खानी है.... तो..? वो सोचेगा ...रोज 2 रोटी खाते है, आज एक और चाहिए आज ज्यादा भूख लगी है अब मेरे लिए एक कम पडेगी या ..आटा भी ख़त्म हो गया अब और आटा गुंथना पड़ेगा एक रोटी के लिए..मुसीबत...!!!

 ऐसी रोटी नही खानी है..ऐसी रोटी खाने से..ना खाना ही भला....


(3) जो मंदिर और गुरूद्वारे में

खाना बनता है प्रसाद बनता है वो किस भावना से बनता है...वो परमात्मा को याद करके खाना बनाया जाता है, सबके पेट और आत्मतृप्ति के लिए वह भोजन पकाया जाता है तो , क्यों न हम अपने घर में परमात्मा की याद में प्रसाद बनाना शुरू कर दें. 


करना क्या है ... ?

घर, रसोई साफ़, मन शांत, रसोई में अच्छे गीत चलाये और उनको सुनते हुए खाना बनाये ।

या फिर,

 घर में जो समस्या है उसके लिए जो समाधान है उसके बारे में परमात्मा को याद करते हुए खाना बनाये.

 परमात्मा को कहे मेरे बच्चे के कल परीक्षा है, इस खाने में बहुत ताकत भर दो.! शांति भर दो.! ताकि मेरे बच्चे का मन एकदम शांत हो, ताकि उसकी सारी चिंता खत्म हो जाये. 

हे परमात्मा, मेरे पति को व्यवसाय में बहुत चिंता है और वो बहुत गुस्सा करते हैं, इस खाने में ऐसी शक्ति भरो, कि उनका मन शांत हो जाये... 

जैसा अन्न वैसा मन..

 जादू है खाने में। 

    असर है पकाने में।

शुद्ध शाकाहारी 

रोटी

आलू 

दही

सलाद❤️🙏

जिसका प्रेम बदलता रहता हैं वो तलाश में ही रहते हैं, अगर मन चित इस्थिर नही हैं तो उसकी इच्छा आकांशा बदलता रहता हैं,

 प्रेम तो सब करना चाहते हैं,पर प्रेम में कोई होना नहीं चाहते हैं। कहते हैं प्रेम कभी भी हो सकता हैं और कितने बार भी हो सकता हैं। पर आज मैं आप को कहता हूँ ,

प्रेम में सिर्फ़ आप एक बार ही हो सकते हो और यदि आप एक बार जिसके भी हो जाओगे उसके बाद आप कभी किसी के नही हो पाओगे, यही तो सास्वत प्रेम की निसानी हैं। 

यंहा सब को शिकवा शिकायत हैं कि

मेरा वाला मुझसे प्यार नहीं करता,

मुझें याद नही करता, मुझे समय नही देता, मुझें समझता नहीं, ये अपेक्षा करने से पहले ये तो जान लो कि तुम क्या करते हो,

प्रतीक्षा के बिना प्रेम और मन शांति के बिना ध्यान, या काहू की बिना कर्मकाण्ड के पूजा कभी संभव नही हुआ हैं ।

नही ना फिर बिना धैर्य और बिना प्रतीक्षा का तुम प्रेम कैसे कर पाओगे,

जिसका प्रेम बदलता रहता हैं वो तलाश में ही रहते हैं, अगर मन चित इस्थिर नही हैं तो उसकी इच्छा आकांशा बदलता रहता हैं,

प्रेम में एक भावना होता हैं आपका भावना और सामने वाले के भावना में अंतर ही प्रेम की परिधि हैं।

आप इच्छा से नही स्वेक्षा से प्रेम करिये इच्छा बदलता रहता हैं स्वेक्षा कभी नहीं बदलता और जो इच्छा से करते हैं वो भटकते हैं और जो स्वेक्षा के करते हैं वो निखड़ जाते हैं, वो इस बनावटी दुनिया से अलग हो जाते हैं।

हो सकता हैं इन बातों से आप इत्तिफ़ाक़ नहीं रखते हो पर कभी चिंतन करना मालूम हो जायेगा प्रेम इतना भी जटिल नहीं हैं। बस जरूरत हैं तो स्वार्थ को तिलांजलि देने का निःस्वार्थ में प्रेम करिये फिर देखिए ज़िन्दगी कैसे हसीन हो जाता हैं।

सुनिल राठौड़ 

सच्चाई का एहसास भी गहरा था।

 लगातार दरवाजे पर पीटने की आवाज़ से मेरी आँख खुल गई। आँखों में अधूरी नींद और थकान के काँटे चुभने लगे। मन किया कि बस फिर से आँखें बंद कर लूं, लेकिन जिम्मेदारियों का बोझ ऐसा होता है कि सोचना भी मुश्किल हो जाता है। दस साल से बिना सास के इस गृहस्थी का जुआ मेरे ही कंधों पर था। हर चीज़ की जिम्मेदारी मुझे ही निभानी पड़ती थी। अभी तो तीन दिन पहले ही बड़े अरमानों से देवर की शादी कराके घर लाई थी, नाजुक सी देवरानी श्वेता। मैं और मेरी दोनों ननदें, नेहल और निकिता, उसकी बलैयां लेते नहीं थक रहे थे।


जब शादी का शोर थमा, तो बड़ी ननद नेहल ने मेरे सूजे हुए पैरों को देखकर लाड़ से कहा, "बड़ी भाभी, अब आराम करो, छोटी भाभी आ गई है, अब तुम्हारा काम हल्का हो जाएगा। जैसे तुमने दस साल पहले मेरा किया था, याद है?" उसने हंसते हुए निकिता की ओर देखा और कहा, "इस आफत की पुड़िया को तुम्हारे पास छोड़कर ही तो मैं ससुराल जा पाई थी।"


मैं भी हंस पड़ी। वो दिन याद आ गए जब निकिता बिना खटखटाए कमरे में आ जाती थी, और हम दोनों के बीच सो जाती थी। कभी-कभी तो वह फरमाइशों का पूरा पुलिंदा लेकर बैठ जाती थी। अब उसने मज़ाक में कहा था, "भाभी, अब छोटी भाभी मेरी दोस्त होगी। आपकी नसीहतों से छुटकारा मिल जाएगा।"


मन में उन पुरानी यादों में डूबी ही थी कि दरवाजे पर फिर से जोर से आवाज़ हुई। अनमने से स्वर में मैंने कहा, "दरवाजा खुला है, आ जाओ।"


दरवाजा खुलते ही निकिता रोती हुई अंदर आई और उसके पीछे श्वेता की कड़क आवाज़ गूंज रही थी, "इतनी बड़ी हो गई हो, लेकिन मैनर्स सब भूल चुकी हो क्या? बिना दरवाजा खटखटाए अंदर आ जाती हो, और फरमाइशें करती हो। शरबत बना दो, ये बना दो, वो बना दो। खाना खाते वक्त पेट नहीं भरा था क्या?"


मैं हक्का-बक्का रह गई। निकिता की आंखों में आँसू थे और वह मेरे गले लग गई। मैंने उसे चुप कराया, पीठ पर हाथ फेरा और उससे पूछा कि क्या हुआ। उसने सुबकते हुए बताया कि कैसे श्वेता ने पहले दिन से ही उसे उपेक्षित महसूस कराया था। उसने बताया कि पिछली शाम जब वह तैयार होकर चाट खाने के लिए जाने वाली थी, तो श्वेता और देवर उसे बिना बताए चले गए थे। और आज, जब वह छोटे भैया के पीछे-पीछे कमरे में गई, तो श्वेता ने उसे झिड़क कर बाहर निकाल दिया।


निकिता की बातों से मेरा दिल बैठ गया। वह रोते हुए कह रही थी, "भाभी, आपकी भी तो नई शादी थी, लेकिन आपने कभी मुझे अलग महसूस नहीं कराया। मैं आज भी आपकी लाडली हूँ, तो फिर अब ऐसा क्यों हो रहा है?"


मैं और नेहल उसे समझाने की कोशिश कर रहे थे, तभी निकिता ने अचानक कहा, "भाभी, आप तो मेरी कोहिनूर हो, लेकिन एक बात कहूं? छोटी भाभी आपसे आगे निकल गईं। जो बात आप दस साल में नहीं सिखा पाईं, वो श्वेता भाभी ने तीन दिन में सिखा दी। कि ससुराल में क्या-क्या नहीं करना चाहिए।"


उसकी ये बात सुनकर मेरे मन में खामोशी छा गई, लेकिन सच्चाई का एहसास भी गहरा था।

यदि आपको कोई देखे तो कुत्ता कैसे देख रहा है और न देखे तो कुत्ता देखता भी नहीं है

 🤷‍♀️मैंने एक पोस्ट कि थी तो उस पर🤷‍♀️

 एक सज्जन ने बहुत ही अच्छा कमेंट किये है 

हमें उनकी कमेंट bahut👙अच्छी लगी 

आप भी पढ़ कर बताये 

🤷‍♀️आपको कैसी लगी🤷‍♀️


 🌹आपने मात्र एक पक्ष ही रखा है, कभी दूसरा पक्ष भी रखकर देखिए सोचिए और लिखिए 

हमारी संस्कृति में स्त्री चार स्वरूप में स्वीकृत की गई है जिसमें प्रथम स्वरूप माँ है दूसरा स्वरूप बहिन है, तीसरा स्वरूप पुत्री है और चौथा स्वरूप है सहधर्मिणी जिसे धर्मपत्नी भी कहा जाता है। 

यह प्राकृतिक स्वरूप है कि एक उम्र आने पर मनुष्यों में विपरीत लिंगी को देखकर कामोत्तेजक परिवर्तन होते हैं यह स्वाभाविक प्रक्रिया है। जहां स्त्री अपनी कामोत्तेजना को नियंत्रित करने में स्वाभाविक रूप से सक्षम है वहीं कामोत्तेजना को नियंत्रित करने में पुरुष की सक्षमता स्त्रियों की तुलना में कम है।

हम जिस देश में रहते हैं उस देश में गाँव मुहल्ले के परिवार की बेटी सारे गांव मुहल्ले की बहिन बेटी तो होती है माँ, भाभी चाची मामी बुआ भी होती है लेकिन गांव के किसी एक व्यक्ति की पत्नी सारे गांव की पत्नी नहीं होती।

आज के समय में यदि पड़ौसी की बहिन बेटियों के प्रति यह सम्मान कम हुआ है तो इसके लिए आप मात्र पुरुषों को दोषी नहीं ठहरा सकते। फिल्मों में होते प्यार, वैवाहिक जीवन के अंतरंग दृश्य प्रेम प्रसंगों के प्रदर्शन में उत्तेजकता से भरे दृश्यों ने पुरुषों की मानसिकता में ठीक वैसा ही परिवर्तन किया है जैसा परिवर्तन स्त्रियों में ड्रेसिंग सेंस को लेकर हुआ है।

फिल्मों में चलती हुई स्त्री के नितम्ब और कमर पर कैमरा केन्द्रित होना, क्लीबेज गले से झांकते स्तन, दौड़ते और चलते हुए मात्र स्तनों पर कैमरे का केन्द्रित होना इन सबने पुरुषों के दृष्टिकोण को बदल दिया। धीरे-धीरे यह कामोत्तेजना को बढाने वाले दृश्यों की ऐसी परिणति हुई है अब हर स्त्री में स्त्री ही दिखती है बहिन बेटी माता आदि नहीं।

आप जड़ पर प्रहार कीजिए अभिनय के नाम पर परोसी जा रही अश्लीलता रोकने का प्रयास कीजिए पुरुषों की मानसिकता स्वयमेव बदल जाएगी। 

यह जो फेमिनिज्म के नाम पर लड़कियां छोटी छोटी चड्डी से छोटी जीन्स और ऐसे टॉप जिनसे स्तन बाहर निकलने को आतुर रहते हैं निश्चित ही पुरुषों की कामोत्तेजना को बढ़ाते हैं, कोढ़ में खाज तब होती है जब मोबाईल अश्लीलतम कंटेंट भरे पड़े हैं, ऐसे में सक्षम पुरुष अपनी पत्नी के साथ अपनी उत्तेजना शांत कर लेता है, पत्नी नहीं है तो देहजीवाओं के पास चला जाता है लेकिन जिनके पास दोनों ही नहीं हैं वह लोग अपनी उत्तेजना को शांत करने के लिए अन्य साधनों का प्रयोग करते हैं जिसमें अंतिम साधन रेप होता है, ध्यान रहे हम यहां रेप का समर्थन नहीं कर रहे और न ही स्त्रियों की स्वतंत्रता का हम तो अश्लील फिल्म, अश्लील वीडियो, अश्लील साहित्य, सहजता से उपलब्ध नशा और अश्लील पहनावे के साथ साथ अश्लील भरी चाल, कामोत्तेजना को बढ़ाते मेकप आदि के दुष्प्रभाव को बता रहे हैं।


आप विचार करना कि टॉप से झांकते स्तन, जींस में से बाहर निकलने को आतुर नितम्ब चटख लिपस्टिक स्लीवलेस टॉप या ब्लाऊज़ या इस तरह के अन्य वस्त्र पहिनकर बाहर निकलने की आवश्यकता क्या है ❓ क्यों दिखाना चाहते हैं कि आप के स्तन या नितम्ब कैसे हैं ❓ जब लोग देखते हैं तो धारणा भी बनाते हैं और आपको धारणा बनाने पर आपत्ति है मतलब चित भी मेरी पट भी मेरी और अंटा भी मेरा वाह जी मुस्कान जी वाह सही जा रहे हैं 

यदि आपको कोई देखे तो कुत्ता कैसे देख रहा है और न देखे तो कुत्ता देखता भी नहीं है 

करें तो क्या करें

Wednesday, 18 September 2024

महाभारत का सार मात्र नौ पंक्तियों में।

 महाभारत का सार मात्र नौ पंक्तियों में।


1. अगर आप अपने बच्चों की अनुचित मांगों और इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रखते हैं, तो आप जीवन में असहाय हो जाएंगे जैसे *"गांधारी"*।

2. आप चाहे कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों, अगर आप अधर्म का साथ देंगे, तो आपकी ताकत, हथियार, कौशल और आशीर्वाद सब बेकार हो जाएंगे जैसे *"कर्ण"*।

3. अपने बच्चों को इतना महत्वाकांक्षी न बनाएं कि, वे अपने ज्ञान का दुरुपयोग करें और कुल विनाश का कारण बनें जैसे *"अश्वत्थामा"*।

4. कभी भी ऐसे वादे न करें कि आपको अधर्मियों के सामने आत्मसमर्पण करना पड़े जैसे *"भीष्म पितामह"*।

5. धन, शक्ति, अधिकार का दुरुपयोग और गलत काम करने वालों का समर्थन अंततः पूर्ण विनाश की ओर ले जाता है जैसे *"दुर्योधन"*।

6. सत्ता की बागडोर कभी भी किसी अंधे व्यक्ति को न सौंपें, अर्थात जो स्वार्थ, धन, अभिमान, ज्ञान, आसक्ति या वासना से अंधा हो, क्योंकि यह विनाश की ओर ले जाएगा *"धृतराष्ट्र"*।

7. यदि ज्ञान के साथ बुद्धि भी हो, तो आप निश्चित रूप से विजयी होंगे जैसे *"अर्जुन"*।

8. छल आपको हर समय सभी मामलों में सफलता नहीं दिलाएगा जैसे *"शकुनि"*।

9. यदि आप नैतिकता, धर्म और कर्तव्य को सफलतापूर्वक बनाए रखते हैं, तो दुनिया की कोई भी शक्ति आपको नुकसान नहीं पहुँचा सकती... "युधिष्ठिर"*।

Tuesday, 17 September 2024

इंसान की असली पहचान*

 *इंसान की असली पहचान*

        *मनुष्य की असली पहचान उसकी कद काठी और अच्छे पहनावे से नहीं, बल्कि उसके अपने व्यवहार से होती है और उसमें भी मधुर वाणी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वेश भूषा, कद काठी और अच्छा पहनावा तो एक बाहरी पहचान है जो मस्तिष्क में अंकित हो जाती है। वहीं मधुर वाणी और व्यवहार से बनी पहचान अमिट हो जाती है क्योंकि यह ह्रदय और मन में अंकित होती है।*

        *व्यक्ति का आकार, रंग रूप, समय यह सब परिस्थितियों के साथ बदल जाता है । उसे पहचानना मुश्किल हो जाता है, लेकिन मधुर वाणी और व्यवहार से बनने वाली पहचान व्यक्ति की असली पहचान के रूप में मन में स्थिर होती है और इससे दूसरों को भी प्रेरणा मिलती है । इसलिए अच्छे कपड़े और चेहरे की तरह अपनी पहचान में सुधारकर संवारना ही हितकारी है।* 

    

शरीर फिट हो तो सेक्स का मजा दोगुना हो जाता है। और मुरझाए हुए फलों को कौन खाना चाहेगा?"

 शरीर फिट होता है तो सेक्स का आनंद दोगुना हो जाता है। नहीं तो मुरझाया हुआ फल कौन खाना चाहेगा?" ये शब्द मेरे कानों में गूंज रहे थे। मैं इन्दौर में अपनी नई नौकरी पर था, और एक बड़े शहर में पहली बार इतने फिट लोगों को देखकर खुद को काफी कमजोर महसूस कर रहा था। मेरा नाम सुनिल राठौड़ है, और मैं मध्य प्रदेश के एक छोटे से शहर, बुरहानपुर, से आता हूँ। वहाँ का माहौल थोड़ा पुराना और पारंपरिक था। घर में मुझे कभी किसी अजनबी लड़की से बात करने की भी इजाजत नहीं थी, बहनें ही मेरी दुनिया थीं।

इन्दौर आकर जब मैंने देखा कि यहाँ सब लोग अपने शरीर का कितना ख्याल रखते हैं, तो मेरी तोंद और गले की बढ़ी हुई चर्बी मुझे खलने लगी। काम की वजह से कंप्यूटर के सामने दिनभर बैठने से मेरे शरीर का आकार बिगड़ चुका था। तभी मेरे दोस्त ऋतिक ने मुझसे कहा, "भाई, जिम जॉइन कर लो। फिटनेस बहुत जरूरी है।"

मैंने सोचा, "ठीक है, जिम तो जाना चाहिए," और पास के एक जिम में गया। वहां के सीन देखकर मेरी आंखें खुली की खुली रह गईं। मेरे छोटे शहर में ₹300 में महीना जिम मिल जाता था, और यहां ₹20,000 तीन महीने का एडवांस देना था। अगर ट्रेनर चाहिए तो ₹10,000 और। मुझे तो पता ही नहीं था कि ट्रेनर क्या होता है! मैंने बिना ट्रेनर के जिम में एडमिशन ले लिया।

परंतु एक महीने की कड़ी मेहनत के बाद भी पेट जस का तस रहा। दोस्त ऋतिक ने कहा, "भाई, एक ट्रेनर ले लो, शायद फायदा हो।" फिर मैंने जिम मैनेजर से बात की और उन्होंने एक ट्रेनर का इंतजाम किया।

ट्रेनर के रूप में एक दमदार और हट्टी-कट्टी लड़की सामने आई। उसका शरीर देख कर लगा कि हर अंग जैसे तराशा हुआ हो। मैंने पहली बार देखा कि कोई इतनी फिट हो सकती है। उसकी सख्त निगाहें और मजबूत शरीर देखकर मेरी बोलती बंद हो गई। मैंने मैनेजर से कहा, "भाई, इसे हटाकर कोई पुरुष ट्रेनर दे दो," लेकिन उन्होंने कहा कि अभी सिर्फ वही खाली है।

मैं मन मसोस कर रह गया, और अगले दिन से उस ट्रेनर के साथ कसरत शुरू कर दी। एक हफ्ते बाद ही, उसने अपनी टी-शर्ट उतार कर सिर्फ स्पोर्ट्स ब्रा पहन ली और मेरे सामने एक्सरसाइज करवाने लगी। मैंने अपनी ओर से तो कसरत पर ध्यान देने की कोशिश की, पर उसकी बॉडी देखकर मेरे मन में हलचल मचने लगी। इस पर उसने हंसते हुए मजाक में कहा, "अपने मन को काबू में रखो।"

मैं शर्मिंदा हो गया। लेकिन उसकी बातें और उसके छोटे होते कपड़े मुझे और असहज करने लगे। कभी उसके अंग मुझसे छू जाते, कभी वह मेरे बहुत करीब आकर बैठती। एक दिन उसने कहा, "शाम को क्या कर रहे हो? साथ में खाना खाते हैं।"

मैं थोड़ा हैरान था, फिर सोचा कि दोस्ती ही सही, और हामी भर दी। हम एक रेस्तरां में गए, और वहां 3000 रुपये का बिल आया। खाने के दौरान वह हंसते हुए बोली, "तुम्हारे जज़्बात तुम्हारी पैंट में दिखते हैं, सुनिल।" उसकी बातों से मैं असहज महसूस कर रहा था, लेकिन मैं चुप रहा। फिर उसने पूछा, "घर में कौन-कौन है?"

मैंने बताया कि मैं अकेला रहता हूँ। उसने तुरंत कहा, "चलो तुम्हारा घर देखते हैं।" मुझे कुछ अजीब लगा, पर मैंने हाँ कह दी। हम घर पहुँचे, और उसने दरवाजा बंद करते ही अपने कपड़े उतार दिए। वह सिर्फ ब्रा में मेरे सामने खड़ी थी। मैं पूरी तरह से स्तब्ध था।

"शर्मा क्यों रहे हो? तुमने मुझे जिम में देखा ही है न," उसने कहा। मैं बिना कुछ बोले अंदर चला गया और पानी का गिलास लेने लगा। जब मैं वापस आया, तो उसने मेरे पैंट पर हाथ रखते हुए कहा, "यहाँ मन को काबू में रखने की कोई जरूरत नहीं है। सिर्फ 5000 रुपये दो, और मैं तुम्हारे जज़्बातों को हल्का कर दूंगी।"

मैं पूरी तरह से असहज हो गया। मैंने उससे कहा, "आप जिम में काम करती हैं, फिर ये क्यों?"


हंसते हुए उसने कहा, "शरीर फिट हो तो सेक्स का मजा दोगुना हो जाता है। और मुरझाए हुए फलों को कौन खाना चाहेगा?"

उसकी बात सुनकर मैंने गंभीरता से कहा, "मुझे कोई सूखा या गीला आम नहीं चाहिए। आप जा सकती हैं।"

वह थोड़ा चिढ़ी, लेकिन चली गई। अगले दिन जब मैं जिम गया, तो उसने ऐसे व्यवहार किया जैसे कुछ हुआ ही नहीं। मैंने यह सब अपने दोस्त निखिल को बताया, तो उसने कहा, "भाई, मजा लेना चाहिए था! यहाँ फिटनेस ट्रेनर्स बस नाम के होते हैं। असली कमाई तो इस 'साइड बिजनेस' से होती है। जिम मालिक भी इसका हिस्सा लेते हैं।"


तब मुझे समझ में आया कि जिम का असली धंधा क्या था। यह सिर्फ एक्सरसाइज का अड्डा नहीं, बल्कि एक तरह से 'बाजार' था। लड़कियां ही नहीं, लड़के भी ऐसी 'सर्विस' देते हैं।


मैंने तब फैसला किया कि मुझे अपने शरीर को फिट रखना है, लेकिन इस गंदगी से दूर रहकर।


Monday, 16 September 2024

एक महिला के शरीर में सबसे ज्यादा संभोग

 एक महिला के शरीर में सबसे ज्यादा संभोग🤤🤤 की भूख रहती है शादी के सुरुवाती दिनों में जिस्मानी मुहब्बत का जुनून होता है 

लेकिन ये भूख और जुनून हमेशा ऐसे ही रहे ये मुमकिन नहीं है 

"शायद ये हर शादीशुदा महिला की कहानी हो, लेकिन मेरे लिए यह एक बेहद निजी अनुभव था। मेरी और आरव की शादी को दस साल हो चुके थे। शुरूआत में सब कुछ कितना खूबसूरत था—हम दोनों हर छोटी-छोटी बात पर एक-दूसरे से जुड़े रहते थे, प्यार में डूबे हुए। लेकिन धीरे-धीरे चीजें बदलने लगीं। मुझे महसूस होने लगा कि हमारी सेक्स लाइफ में वह उत्साह नहीं रहा जो पहले था। और ये सिर्फ शारीरिक दूरी की बात नहीं थी, हमारे बीच भावनात्मक रूप से भी एक खालीपन आ गया था।

पहले-पहले मुझे लगा कि शायद यह मेरी ही समस्या है। कहीं न कहीं, मैंने खुद में वह रुचि खो दी थी जो पहले हमारे रिश्ते का अहम हिस्सा थी। मैं इस बात को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश करती रही, लेकिन इससे सिर्फ और ज्यादा दूरी बढ़ती गई। आरव अब देर से घर आता, और हम दोनों के बीच बातचीत भी कम हो गई थी। मुझे डर लगने लगा कि क्या हम धीरे-धीरे एक-दूसरे से दूर हो रहे हैं?

फिर एक दिन, मैंने अपनी दोस्त मीरा से इस बारे में बात की। उसने मेरी आंखें खोल दीं। उसने कहा, 'रिश्तों में ऐसा होता है, लेकिन तुमने पहले ही महसूस कर लिया, ये बड़ी बात है। अब इसे सुधारने का समय है।'

मैंने मीरा की बातों पर गौर किया और सबसे पहले खुद से सवाल किया—क्या मैं केवल सेक्स में कमी महसूस कर रही हूं या फिर हमारी भावनात्मक जुड़ाव में भी? मुझे एहसास हुआ कि मैं सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि भावनात्मक नजदीकी भी मिस कर रही थी। मुझे यह भी समझ में आया कि अगर मैं कुछ नहीं करूंगी, तो शायद हम और दूर हो जाएंगे।

मैंने हिम्मत जुटाकर आरव से बात की। मैंने उसे साफ-साफ कहा, 'हमारे बीच जो पहले था, वो अब नहीं है, और मुझे ये दूरी महसूस हो रही है।' आरव ने मेरी बात सुनी और समझा कि वह भी इस दूरी को महसूस कर रहा था, लेकिन शायद वह इसे शब्दों में नहीं कह पा रहा था।

इसके बाद मैंने कुछ छोटे-छोटे कदम उठाने शुरू किए।

सबसे पहले, खुलकर बातचीत करने का फैसला किया। हम दोनों हर रात थोड़ा समय निकालकर सिर्फ एक-दूसरे से बात करते, बिना किसी काम या फोन की रुकावट के। इससे हमें फिर से कनेक्ट होने का मौका मिला।

फिर मैंने सोचा, क्यों न हम छोटी-छोटी चीजों में खुशियां ढूंढें? मैंने छोटी डेट्स प्लान करनी शुरू कीं—कभी घर पर ही कैंडल लाइट डिनर, कभी मूवी नाइट्स। इन छोटी-छोटी चीजों ने हमारे बीच की दूरियों को कम करना शुरू किया।

इसके साथ ही मैंने शारीरिक स्पर्श पर ध्यान दिया। अब बिना किसी खास मौके के भी मैं आरव को गले लगा लेती, उसका हाथ पकड़ती। ये छोटे-छोटे इशारे हमारे रिश्ते में फिर से गर्माहट लाने लगे।

और सबसे जरूरी, मैंने खुद पर ध्यान देना शुरू किया। मैंने योग और मेडिटेशन करना शुरू किया, खुद के लिए समय निकालना सीखा। जब मैंने खुद को खुश और आत्मविश्वासी महसूस किया, तो इसका असर हमारे रिश्ते पर भी पड़ा।

धीरे-धीरे सब कुछ बदलने लगा। आज, मैं और आरव फिर से एक-दूसरे के साथ वैसा ही महसूस करते हैं जैसा पहले करते थे। यह सब इसलिए संभव हुआ क्योंकि मैंने समय रहते अपने रिश्ते को बचाने के लिए कदम उठाए।

तो, मेरी इस कहानी का यही सबक है—रिश्ते में दूरियां आना स्वाभाविक है, लेकिन इसे समय पर सुलझाना और एक-दूसरे के साथ खुलकर बातचीत करना जरूरी है। प्यार को जिंदा रखने के लिए हमें खुद कोशिश करनी पड़ती है।"

बताते है प्रेम पूजा की तरह पवित्र भी हो सकता है।

 कुछ पुरुष भी प्रेम की भावना को बहुत गंभीरता से देखते है..

वो समाज के सामने नहीं आते पर समाज से लड़ने की ताकत दे देते है..

वो गले में मंगलसूत्र नहीं डालते पर जीवन को ऐसे सूत्र में बांध देते हैं कि जैसे मानो किसी स्त्री का नया जन्म हुआ हो ,वो झूठी कसमें नहीं खाते है 

वो हज़ार वादे नही करते है ,मग़र जीवन में इतना ख्याल रखते है जैसे कोई प्रभु की परछाई साथ है ,इस बदलती हुई दुनिया मे जो सच्चे प्रेम का महत्व समझाते है 


और बताते है प्रेम पूजा की तरह पवित्र भी हो सकता है। ❤️

तुम्हारी माँ

 सुबह के चार बजे थे,अचानक फ़ोन की घंटी ने मेरी नींद को तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी ,सुबह के चार बजे फ़ोन आना किसी अनहोनी घटना के होने की ओर इशारा होता है,पापा का फ़ोन इस टाइम मेरे हांथ एक दम से सुन हो गये थे |कई दिनों से माँ की तबियत ठीक नहीं चल रही थी,फ़ोन तो उठाओ मेरे पति राहुल ने कहा,हेलो पापा बेटा जितनी जल्दी हो सके आ जाओ,क्या हुआ पापा माँ ठीक तो है मैंने नम आँखों से कहा,आ जाओ पापा ने ये कहते हुए फ़ोन रख दिया था,में फूट-फूट कर रोने लगी,पागल मत बनो सम्भालो अपने आप को ,जल्दी करो घर चलना है ,राहुल ने मेरी और देखते हुए कहा|करीब 1 घंटे के सफ़र के बाद मैं घर पहुंची,माँ मैं आ गयी माँ ने मुश्किल से आंखे खोल के मेरी ओर देखा, बेटा तू ठीक तो है ये माँ ही पूछ सकती है ,खुद जिंदगी और मौत से जूझ रही है और अब भी अपनी औलाद की चिंता है,माँ मैं ठीक हूँ ,तुम परेशान मत हो जल्दी ठीक हो जाओ फिर बहार चलेंगे |बेटा मुझको पता है मेरे पास ज्यादा समय नहीं है ,ये बोलते हूँ माँ ने मेरे हांथ मे एक लेटर पकड़ा दिया,ये क्या है ?मैंने नम आंखों से कहा, बेटा ये मेरी अंतिम नसीहत है और जरुरी भी |अंतिम शब्द सुन कर मैं अपने आप पर से काबू खो चुकी थी ,माँ से लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगी |पापा ने मेरे कंधे पर हाथ रखा बेटा बस कर वो जा चुकी है,आज मेरी सहेली,मेरी शिक्षक,मेरी माँ मुझको छोड़ कर जा चुकी थी,ऐसा लगा मेरे शरीर का कुछ हिस्सा मुझसे अलग हो चूका था,अंतिम संस्कार के बाद मैंने माँ का लेटर खोला,लिखा था " मेरी प्यारी बेटी जब तुम ये लेटर पढ़ रही होंगी तब में शारीरिक रूप से तुमसे अलग हो चुकी होंगी, लेकिन मेरी सीख ,मेरे संस्कार हमेशा तुम्हे मेरे होने का आभास दिलाते रहेंगे मेरी तीन नसीहत है|"


१-माँ बाप के बाद मायका भैया और भाभी से होता है कभी लेने और देने के बीच प्यार को मत आने देना


२-तुम ऐसी बनना जैसे तुम अपनी बेटी को बनाना चाहती हो,क्योंकि तुम आने वाली माँ हो , मैं बीते हुए कल की बेटी


३-एक औरत की पहचान उसके त्याग,ममता,और प्यार से ही होती है जो हमेशा बनाये रखना| अगले जन्म में मैं तुम्हारी बेटी बन के आना चाहती हूँ, तुममे आने वाली माँ देखना चाहती हूँ|


तुम्हारी माँ

Saturday, 14 September 2024

रिश्तों में अनमोल धागे होते हैं,

 पति मनोज रात को 9:00 बजे थके-मांदे ऑफिस से घर लौटा। जैसे ही दरवाज़ा पार किया, उसकी पत्नी, काव्या, ने बिना किसी कारण उस पर चिल्लाना शुरू कर दिया। यह रोज़ की बात हो गई थी। काव्या, मनोज से खुश नहीं थी। उसे मनोज का शांत स्वभाव और साधारण जीवनशैली अब अखरने लगी थी। मनोज ने कोई जवाब नहीं दिया, बस एक गहरी सांस ली और निवेदन किया, “काव्या, मुझे कुछ खाने को दे दो। मैं बहुत थका हुआ हूँ और भूख भी लगी है।”


काव्या ने आँखें तरेरते हुए जवाब दिया, “खाना खुद ही बना लो, मुझे सोना है। तुम्हारे लिए मेरे पास वक्त नहीं है।”


मनोज ने फिर भी शांति बनाए रखी। उसने कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप एक कोने में बैठ गया। काव्या ने रातभर मनोज पर चिल्लाना और उसे ताने देना जारी रखा। मनोज ने सारा बर्दाश्त कर लिया, लेकिन कोई शिकायत नहीं की।


सुबह हुई। मनोज ने फिर से विनम्रता से कहा, "काव्या, नाश्ता तो दे दो। आज दिनभर ऑफिस में काम का दबाव रहेगा।"


काव्या गुस्से में आगबबूला हो गई, “तुमसे तो मैं तंग आ चुकी हूँ। मर जाओ तुम! मेरा जीवन तुमने नरक बना रखा है। तुमसे बेहतर तो अकेली ही रह लूंगी।”


मनोज ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी आँखों में दुख साफ झलक रहा था, लेकिन उसने अपनी तकलीफ़ छुपाई और तैयार होकर ऑफिस चला गया। जब मनोज दरवाज़े से बाहर निकला, तो काव्या अपने गुस्से में इतनी डूबी थी कि उसे मनोज के चेहरे पर छाए दर्द का एहसास भी नहीं हुआ।


कुछ ही घंटों बाद, जब काव्या अपने बच्चों को स्कूल से लेकर घर लौटी, तो उसने देखा कि घर के बाहर बहुत भीड़ जमा है। घबराते हुए वह जल्दी से भीड़ को चीरकर अंदर गई। जैसे ही उसकी नज़र पड़ी, उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। सामने मनोज का शव पड़ा था। उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। लोगों के बीच से किसी ने कहा, "कार एक्सीडेंट में मनोज की मौत हो गई।"


काव्या के कानों में यह सुनते ही चीख निकल पड़ी। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगी, "मनोज, उठ जाओ! मैंने तुम्हारे लिए खाना बनाया है। मैं तुमसे फिर कभी नहीं लड़ूंगी। मैं कभी तुम पर गुस्सा नहीं करूंगी। बस, तुम एक बार उठ जाओ।" लेकिन मनोज अब उसे सुनने के लिए ज़िंदा नहीं था। उसकी चुप्पी अब हमेशा के लिए थी।


उस दिन काव्या ने जो कहा था, "मर जाओ," वो शब्द अब एक अभिशाप बनकर उसके दिल में गूंजने लगे। उसकी खुद की बद्दुआ ने मनोज की जान ले ली थी।


मनोज के जाने के बाद, काव्या की दुनिया जैसे उजड़ गई। रिश्ते, जो पहले उसे साधारण लगते थे, अब सब बदलने लगे। जो अपने कहलाते थे, वे अब उससे दूरी बनाने लगे। काव्या को समाज की तिरछी निगाहों का सामना करना पड़ा। ससुराल वालों ने थोड़े दिनों में उसे उसकी संपत्ति देकर घर से बाहर कर दिया। एक बार वह छत, जो कभी उसकी सुरक्षा का आश्रय था, अब उसकी पहुँच से बाहर हो गया।


अब काव्या के लिए जीवन एक सूनापन बन गया था। उसे अब समझ आया कि पति चाहे जैसा भी हो, वो औरत के जीवन का सबसे बड़ा सहारा होता है। मनोज के चले जाने के बाद, उसे अहसास हुआ कि उसका पति उसकी दुनिया की नींव था। अब वह हर दिन पछतावे में बिताती, सोचती कि काश, उसने मनोज के साथ थोड़ी इज्जत और प्यार से बर्ताव किया होता। शायद तब उसकी जिंदगी इतनी खाली और दुखभरी नहीं होती।


कहानी की सीख यही है कि रिश्तों में अनमोल धागे होते हैं, जो प्यार, सम्मान और समझदारी से बुने जाते हैं। गुस्से और नफरत में कहे गए शब्द कभी-कभी जीवनभर का दर्द छोड़ जाते हैं। हमें अपनों के साथ समय बिताते हुए उनके महत्व को समझना चाहिए, क्योंकि जब तक वे हमारे साथ होते हैं, हम उनकी अहमियत नहीं समझ पाते।

Friday, 13 September 2024

अनमोल धरोहर है बेटी

 ##एक इलाके में एक भले आदमी का देवाहसान 

हो गया लोग अर्थी ले जाने को तैयार हुये 

और जब उठाकर श्मशान ले जाने लगे तो...?

 

एक आदमी आगे आया और अर्थी का एक पाव 

पकड़ लिया और बोला के मरने वाले ने मेरे 

15 लाख देने है, 


पहले मुझे पैसे दो फिर उसको जाने दूंगा। 

अब तमाम लोग खड़े तमाशा देख रहे है, 

बेटों ने कहा के मरने वाले ने हमें तो कोई ऐसी बात 

नही की के वह कर्जदार है, 

इसलिए हम नही दे सकतें मृतक के भाइयों ने 

कहा के जब बेटे जिम्मेदार नही 

तो हम क्यों दें। 


अब सारे खड़े है और उसने अर्थी पकड़ी हुई है, 

जब काफ़ी देर गुज़र गई तो बात घर की औरतों तक 

भी पहुंच गई। 

मरने वाले कि एकलौती बेटी ने जब बात सुनी तो 

फौरन अपना सारा ज़ेवर उतारा और अपनी सारी 

नक़द रकम जमा करके उस आदमी के लिए 

भिजवा दी और कहा के भगवान के लिए 

ये रकम और ज़ेवर बेच के उसकी रकम रखो 

और मेरे पिताजी की अंतिम यात्रा को ना रोको। 

मैं मरने से पहले सारा कर्ज़ अदा कर दूंगी। 

और बाकी रकम का जल्दी बंदोबस्त कर दूंगी। 


अब वह अर्थी पकड़ने वाला शख्स खड़ा हुआ 

और सारे लोगो से मुखातिब हो कर बोला: 

असल बात ये है मेने मरने वाले से 15 लाख लेना नही बल्के उसका देना है 

और उसके किसी वारिस को में जानता नही था 

तो मैने ये खेल किया। 

अब मुझे पता चल चुका है के उसकी 

वारिस एक बेटी है 

और उसका कोई बेटा या भाई नही है।


मानव समाज को सन्देश

बेटी बोझ नहीं बेटी दुनिया है

 की अनमोल धरोहर है बेटी

वंश की जड़ दो परिवारों का संगम है बेटी 


बेटी न होती तो यह दुनिया न होती

दुनिया की समस्त बेटियों को प्रणाम करती हूँ.

रिश्तों में धैर्य, समझदारी और एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना ही खुशहाल जीवन का असली राज़ है।

 जब मेरी शादी अमित से हुई, तो मैं बहुत उत्साहित थी। हम दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे और मैं यह सोचकर खुश थी कि मेरे ससुराल में भी मुझे वही प्यार और अपनापन मिलेगा। लेकिन शादी के बाद, कुछ चीजें मेरे लिए मुश्किल हो गईं। मेरी सास, सुशीला माँ, बहुत ही पुरानी सोच की थीं, जबकि मेरी परवरिश बड़े शहर में हुई थी और मेरी सोच थोड़ी आधुनिक थी।


शुरुआत में मैंने सोचा कि शायद समय के साथ सब ठीक हो जाएगा, लेकिन छोटी-छोटी बातों पर माँ के साथ मेरा मतभेद होना शुरू हो गया। चाहे वह किचन का काम हो, घर के फैसले हों या फिर घर की साफ-सफाई का तरीका, हमारे बीच हर बात पर बहस हो जाती। माँ को मेरे विचार बिल्कुल पसंद नहीं आते थे और मुझे लगता था कि वह मेरी बातों को समझना ही नहीं चाहतीं।


यह देखकर मुझे बहुत दुख होता था। अमित भी यह सब देख रहा था और मैं जानती थी कि वह भी परेशान था। मैं उसे अपनी तरफ खींचना नहीं चाहती थी, क्योंकि वह अपनी माँ का बहुत सम्मान करता था और यह सही भी था। लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इस परिस्थिति में क्या किया जाए।


अमित का समझदारी भरा कदम:


एक दिन अमित ने मुझसे बहुत ही प्यार से बात की। उसने मुझसे कहा, "नेहा, माँ की सोच उनके अनुभव और परवरिश से बनी है। उन्होंने अपना पूरा जीवन इन परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ जिया है, इसलिए यह हमारे लिए आसान नहीं होगा कि वह अचानक से बदल जाएं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि तुम गलत हो। बस हमें थोड़ा धैर्य रखना होगा और सही तरीके से माँ को समझाना होगा।"


अमित की यह बात मुझे अंदर तक छू गई। मुझे एहसास हुआ कि शायद मैं भी चीजों को बहुत जल्दबाजी में बदलने की कोशिश कर रही थी। अमित ने मुझसे वादा किया कि वह माँ से बात करेगा, लेकिन टकराव से नहीं, बल्कि उन्हें धीरे-धीरे मेरी बात समझाएगा।


इसके बाद, अमित ने सुशीला माँ के साथ ज्यादा समय बिताना शुरू किया। वह उनसे आराम से बात करता और उनके विचारों को सुनता। फिर धीरे-धीरे वह उन्हें यह समझाने लगा कि मेरा नजरिया सिर्फ इसलिए अलग नहीं है कि मैं नई पीढ़ी की हूँ, बल्कि यह घर के भले के लिए है। उसने माँ को यह महसूस कराया कि मेरे सुझावों से घर की दिनचर्या और बेहतर हो सकती है।


अमित ने दोनों के बीच सेतु का काम किया:


अमित कभी माँ की बुराई नहीं करता था और न ही मेरी शिकायत करता। उसने हम दोनों की भावनाओं का ध्यान रखा। वह हमेशा मुझे समझाता कि माँ के अनुभवों का भी सम्मान करना जरूरी है, और साथ ही, माँ को यह एहसास दिलाता कि मेरे विचार भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। उसने हम दोनों के बीच एक सेतु का काम किया।


अमित ने माँ से कहा, "माँ, नेहा का इरादा सिर्फ घर को बेहतर बनाना है। हम नए तरीके भी अपना सकते हैं, लेकिन आपको यह महसूस होना चाहिए कि आपकी परंपराएं और अनुभव भी हमारे लिए बहुत कीमती हैं।"


धीरे-धीरे, माँ ने भी मेरी बातों को समझना शुरू किया। अब वह मेरे सुझावों को ध्यान से सुनतीं और हम दोनों मिलकर फैसले लेने लगे। वहीं, मैंने भी माँ के पुराने तरीकों को स्वीकार करना शुरू किया और उनके अनुभव से सीखने की कोशिश की। अमित ने हमें यह सिखाया कि समझौता ही रिश्तों की कुंजी है।


आज, माँ और मैं न सिर्फ सास-बहू हैं, बल्कि अच्छे दोस्त भी बन गए हैं। हम मिलकर किचन संभालते हैं, घर के फैसले साथ में लेते हैं और अब घर में पहले जैसी टकराव की स्थिति नहीं होती। यह सब सिर्फ इसलिए हो सका क्योंकि अमित ने अपनी सूझ-बूझ से हमें यह सिखाया कि रिश्तों में सम्मान और समझदारी सबसे जरूरी होती है।

अमित की समझदारी ने हमारे रिश्ते को नया मोड़ दिया। आज मैं अपनी सास के साथ हँसती-बोलती हूँ और यह सब अमित की वजह से मुमकिन हो पाया है।

रिश्तों में धैर्य, समझदारी और एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना ही खुशहाल जीवन का असली राज़ है।

Thursday, 12 September 2024

संस्कारवान पीढ़ी क्यों आवश्यक है

 #वर्तमान समाज में पैर पसारते कलयुग के अशुभ लक्षण*


1. कुटुम्ब कम हुआ 

2. सम्बंध कम हुए 

3. नींद कम हुई. 

4. बाल कम हुए 

5. प्रेम कम हुआ  

6. कपड़े कम हुए 

7. शिष्टाचार कम हुआ 

8. लाज-लज्जा कम हुई 

9. मर्यादा कम हुई 

10. बच्चे कम हुए  

11. घर में खाना कम हुआ 

12. पुस्तक वाचन कम हुआ 

13. भाई-भाई प्रेम कम हुआ 

15. चलना कम हुआ 

16. खानपान की शुद्धता कम हुई 

17. खुराक कम हुई 

18. घी-मक्खन कम हुआ 

19. तांबे - पीतल के बर्तन कम हुए 

20. सुख-चैन कम हुआ 

21. अतिथि कम हुए 

22. सत्य कम हुआ 

23. सभ्यता कम हुई 

24. मन-मिलाप कम हुआ 

25. समर्पण कम हुआ 

26. बड़ों का सम्मान कम हुआ। 

27 सहनशक्ति कम हुई । 

28 धैर्य कम हुआ 

29 श्रद्धा-विश्वास कम हुआ ।

30 मास्टर जी का सम्मान कम हुआ। 

31पूजा, वंदना कम हुआ । 

32 लोगो से मेल मिलाप कम हुआ। 

और भी बहुत कुछ कम हुआ जिससे जीवन सहज था, सरल था।


संतान को दोष न दें

बालक या बालिका को 'इंग्लिश मीडियम' में पढ़ाया...

'अंग्रेजी' बोलना सिखाया।

'बर्थ डे' और 'मैरिज एनिवर्सरी'

जैसे जीवन के 'शुभ प्रसंगों' को 'अंग्रेजी कल्चर' के अनुसार जीने को ही 'श्रेष्ठ' माना।

माता-पिता को 'मम्मी' और

'डैड' कहना सिखाया।


जब 'अंग्रेजी कल्चर' से परिपूर्ण बालक या बालिका बड़ा होकर, आपको 'समय' नहीं देता, आपकी 'भावनाओं' को नहीं समझता, आप को 'तुच्छ' मानकर 'जुबान लड़ाता' है और आप को बच्चों में कोई 'संस्कार' नजर नहीं आता है, 

तब घर के वातावरण को 'गमगीन किए बिना'... या...

'संतान को दोष दिए बिना'...कहीं 'एकान्त' में जाकर 'रो लें'...


क्योंकि...

पुत्र या पुत्री की पहली वर्षगांठ से ही,

'भारतीय संस्कारों' के बजाय,मंदिर जाने की जगह,

'केक' कैसे काटा जाता है सिखाने वाले आप ही हैं...

'हवन कुण्ड में आहुति' कैसे दी जाए... 

'मंत्र, आरती, हवन, पूजा-पाठ, आदर-सत्कार के संस्कार देने के बदले'...

केवल 'फर्राटेदार अंग्रेजी' बोलने को ही,

अपनी 'शान' समझने वाले भी शायद आप ही हैं...


बच्चा जब पहली बार घर से बाहर निकला तो उसे

'प्रणाम-आशीर्वाद' के बदले

'बाय-बाय' कहना सिखाने वाले आप...


परीक्षा देने जाते समय

'इष्टदेव/बड़ों के पैर छूने' के बदले

'Best of Luck'

कह कर परीक्षा भवन तक छोड़ने वाले आप...


बालक या बालिका के 'सफल' होने पर, घर में परिवार के साथ बैठ कर 'खुशियाँ' मनाने के बदले...

'होटल में पार्टी मनाने' की 'प्रथा' को बढ़ावा देने वाले आप...


बालक या बालिका के विवाह के पश्चात्...

'कुल देवता / देव दर्शन' 

को भेजने से पहले... 

'हनीमून' के लिए 'फाॅरेन/टूरिस्ट स्पॉट' भेजने की तैयारी करने वाले आप...


ऐसी ही ढेर सारी 'अंग्रेजी कल्चर्स' को हमने जाने-अनजाने 'स्वीकार' कर लिया है...


अब तो बड़े-बुजुर्गों और श्रेष्ठों के 'पैर छूने' में भी 'शर्म' आती है...


गलती किसकी..? 

मात्र आपकी '(माँ-बाप की)'...


अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय भाषा' है... 

कामकाज हेतु इसे 'सीखना'है,अच्छी बात है पर

इसकी 'संस्कृति' को,'जीवन में उतारने' की तो कोई बाध्यता नहीं थी? 


अपनी समृद्ध संस्कृति को त्यागकर नैतिक मूल्यों,मानवीय संवेदनाओं से रहित अन्य सभ्यताओं की जीवनशैली अपनाकर हमनें क्या पाया? अवैध संबंध? टूटते परिवार? व्यसनयुक्त तन? थकेहारे मन? छलभरे रिश्ते? अभद्र,अनुशासनहीन संतानें? असुरक्षित समाज? भयावह भविष्य?


*एक बार विचार अवश्य कीजिएगा कि* 

*संस्कारवान पीढ़ी क्यों आवश्यक है 

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विज्ञान के अनुसार प्यार में पड़ने के पीछे कई वजह होती हैं। यह दिल से नहीं बल्कि दिमाग़ से जुड़ा हुआ होता है

 विज्ञान के अनुसार प्यार में पड़ने के पीछे कई वजह होती हैं। यह दिल से नहीं बल्कि दिमाग़ से जुड़ा हुआ होता है।

कहते हैं जब आपका दिल किसी के लिए धड़कने लगे तो इसका मतलब होता है कि आपको उस शख़्स से प्यार हो गया है। हालांकि किसी से प्यार होने के पीछे कई साइंटिफ़िक वजह होती हैं। ये एहसास हमारे दिल से नहीं आते हैं, जैसे कि बॉलीवुड गानों में बताया जाता है। यह सबकुछ हमारे दिमाग़ से जुड़ा होता है। हमारा शरीर उसी के अनुसार रिएक्ट करता है। विज्ञान के अनुसार किसी के प्यार में पड़ने के पीछे कई वजह होती हैं। जिसकी वजह से हमारे हार्मोन्स मज़बूत हो जाते हैं और किसी व्यक्ति के प्रति उसका झुकाव बढ़ जाता है। आइए जानते हैं इसके पीछे अन्य वजहों के बारे में...

नेचर ने यह सुनिश्चित करने के लिए ख़्याल रखा है कि हम अपने हार्मोनल रिस्पांस को इस तरह मैनेज करते हुए कहीं विलुप्त ना जाएं। यह हमें एक प्रजाति के रूप में जीवित रहने की अनुमति देता है। प्यार में पड़ने के तीन स्टेज होती हैं, जिसमें लस्ट, अट्रैक्शन, और अटैचमेंट शामिल है। सभी तीन स्टेज अलग-अलग हार्मोनल रिस्पांस से जुड़ी हुई हैं। आइए जानते हैं...आकर्षण होता है जिसे हम उस व्यक्ति की ओर महसूस करते हैं, जिससे हम आकर्षण पाते हैं। एस्ट्रोजेन और टेस्टोस्टेरोन इस भावना के लिए ज़िम्मेदार मुख्य हार्मोन हैं। norepinephrine - Norepinephrine, या PEA, प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एम्फैटेमिन है जो आनंद के अनुभव को बढ़ाता है और भूख को कम करता है। यह आमतौर से इस चरण में जारी किया जाता और आकर्षण चरण में जारी रहता है।यहीं से फ़न शुरू होता है, यह स्टेज फ़र्स्ट बायोलॉजिकल रिस्पांस के बाद शुरू होती है और यह कई हार्मोनल रिस्पांस को ट्रिगर करती है। इसी कड़ी में रिवॉर्ड सिस्टम होता है जो प्रेम अनिवार्य रूप से हमारे दिमाग़ की रिवॉर्ड सिस्टम में एक फ़ीडबैक लूप को ट्रिगर करता है, जिससे हम और अधिक चाहते हैं। यह इस स्टेज के दौरान ज़्यादातर किक करता है। वहीं एड्रेनालाईन जो पहली भीड़ से आती है। किसी व्यक्ति के साथ प्यार में पड़ना वास्तव में आपके शरीर में स्ट्रेस रिस्पांस का कारण होगा। ऐसे में हो सकता है कि एड्रेनालाईन में यह संभावना है कि आपने इन लक्षणों का अनुभव किया हो। रेसिंग हार्टबीट, मुंह का सूखना, पसीना आना, यह सभी रिएक्शन एंड्रानालाईन को ट्रिगर करता है। वहीं प्यार में होने के नाते हमारे शरीर को न्यूरोट्रांसमीटर डोपामाइन का उत्पादन करने के लिए प्रेरित करता है। इसे हैप्पी हार्मोन के रूप में भी जाना जाता है। दिल में खुशी की भावना के लिए डोपामाइन ज़िम्मेदार होता है। इससे एनर्जी, और फ़ोकस बढ़ता है और भूख कम लगती है।

अटैचमेंट में ऑक्सीटोसिन हार्मोन का उत्पादन होता है। ऑर्गेज्म के दौरान ऑक्सीटोसिन के स्तर में स्पाइक होता है, यह मनुष्यों के रूप में बंधन बनाता है। यह जन्म के तुरंत बाद मां और बच्चे के रिश्ते में भी महत्वपू्र्ण है। यह अनिवार्य रूप से स्तन को दूध छोड़ने के लिए संकेत देता है जब बच्चे को इसकी आवश्यकता होती है। इसके अलावा इसमें वासोप्रेसिन नामक हार्मोन का भी उत्पादन होता है जो ज़्यादातर एंटी मूत्रवर्धक के रूप में जाना जाता है। यह किडनी में काम करता है और प्यास को नियंत्रित करता है। यह हार्मोन सेक्स के तुरंत बाद रिलीज़ हो जाता है। यही नहीं ये सेक्स और पार्टनर पसंद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा यह हेल्दी होता है और लंबे वक़्त तक रिलेशनशिप को बनाए रखने का काम करता है।जब पार्टनर के साथ ब्रेकअप होता है तो इसके लक्षण दिखाई देते हैं। इसमें डोपामाइन हार्मोन दिमाग़ के अधिकांश रिवॉर्ड सिस्टम को नियंत्रित करता है, इसलिए यह स्वाभाविक है कि डोपामाइन रिलीज़ में एक दुर्घटना है जो ब्रेकअप के बाद हमें एहसास दिलाती है कि हमारा दिल टूट गया है। वहीं जब कॉकटेल ग़लत हो जाता है।असंतुलित हार्मोनल स्तर ईश्यू की एक सीरीज को जन्म दे सकता है। क्योंकि यह हमारे दिमाग़ के रिवॉर्ड सिस्टम में शामिल होता है।

: सुनिल राठौड़ 

पत्नी के धोखे से पति की नई सुरवात

 मेरी पत्नी, राधिका, जो कभी हमेशा मेरे साथ बाहर घूमने और समय बिताने में दिलचस्पी रखती थी, अब घर पर अधिक से अधिक समय बिताने लगी। ज़्यादातर वक्त वह टीवी देखती रहती थी, और बाहरी दुनिया से कट गई थी।


एक वक्त ऐसा आया जब उसने एकदम से अपने हाव-भाव बदल लिए। वह अचानक से हफ्ते में 2-3 बार अपने सबसे अच्छे कपड़े पहन कर बाहर जाने लगी। शुरुआत में मुझे लगा कि यह अच्छी बात है। शायद राधिका अपनी पुरानी जिंदगी में लौट रही थी। मैं खुश था कि वह अब खुद का ख्याल रख रही थी और अपने जीवन का आनंद ले रही थी। आखिरकार, शादी के बाद और माँ बनने के बाद, हर महिला को अपनी स्वतंत्रता भी तो चाहिए।


लेकिन कुछ समय बाद, मेरे दोस्तों ने मुझे बताया कि उन्होंने राधिका को किसी दूसरे आदमी के साथ सुपरमार्केट और शहर के विभिन्न जगहों पर देखा है। वे हंसते हुए मुझे यह किस्सा सुना रहे थे, मानो यह एक मजाक हो, लेकिन मेरे दिल में एक अजीब सी बेचैनी हो गई। मुझे अब तक उस पर पूरा विश्वास था। वह मेरी बेटी की मां थी, मेरी जीवनसंगिनी। मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि वह मुझे धोखा दे सकती है।


एक दिन, मेरी बेटी ने मासूमियत में मुझसे कहा, "पापा, मम्मी रोज़ एक अंकल के साथ घूमने जाती हैं। वह बहुत अच्छे लगते हैं।" उसकी बात सुनकर मेरे दिल में संदेह और गहरा हो गया। अब मैं चीज़ों को नजरअंदाज नहीं कर सकता था।


कुछ दिन बाद, मैंने देखा कि राधिका ने अचानक अपना फोन मुझसे छुपाना शुरू कर दिया। पहले तो हम एक-दूसरे के फोन का इस्तेमाल कर लेते थे, लेकिन अब वह अपने फोन को कभी भी खुला नहीं छोड़ती थी। यहां तक कि उसने अपने लैपटॉप पर भी पासवर्ड डाल दिया था। मुझे समझ नहीं आया कि ऐसा क्यों हो रहा है, लेकिन मेरा संदेह बढ़ता जा रहा था।


मैं पेशे से आईटी में हूँ, इसलिए मुझे टेक्नोलॉजी की अच्छी समझ थी। मैंने एक दिन चुपचाप राधिका के लैपटॉप पर एक की-लॉगर (Key-logger) लगा दिया। अब मैं उसके सभी संदेश देख सकता था, जो वह किसी के साथ शेयर कर रही थी। मुझे आशंका थी, लेकिन उस दिन जब मैंने उसके और उस आदमी के बीच हुए मैसेज पढ़े, तो मेरी दुनिया ही हिल गई। उन मैसेजों में अश्लील बातें थीं, उनकी भावनाओं की परछाइयाँ थीं, और मेरे दिल पर एक गहरा घाव था।


मैंने तुरंत राधिका से कुछ नहीं कहा। मैंने सोचा, "उसे रंगे हाथों पकड़ूंगा।" कुछ दिनों तक मैं सामान्य तरीके से चलता रहा, लेकिन मन में एक भारी बोझ था।


एक दिन, मैंने ऑफिस का काम जल्दी निपटाया और अचानक घर वापस आ गया। दरवाजा अंदर से बंद था। मैंने बिना किसी आहट के रसोई की खिड़की से अंदर झांका। वहां, मैंने राधिका को उस आदमी के साथ नग्न अवस्था में देखा। मेरी आंखों के सामने सब कुछ धुंधला हो गया। मेरा दिल टूट चुका था। वह दृश्य मेरे मन में एक घाव की तरह अंकित हो गया।


उस दिन मैंने बिना कुछ कहे घर छोड़ दिया। मैं टूट चुका था, बिखर चुका था। अपने दर्द और अवसाद से निपटने के लिए मैंने शराब का सहारा लिया। मैं लगभग एक साल तक हर रात शराब पीता रहा। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने अपनी दुनिया खो दी थी, वह औरत जिससे मैं प्यार करता था, उसने मेरे विश्वास को तोड़ा था।


लेकिन एक दिन, मुझे अहसास हुआ कि यह सब करके मैं सिर्फ खुद को ही नुकसान पहुँचा रहा हूँ। राधिका अब मेरी जिंदगी का हिस्सा नहीं थी, और मुझे उसके धोखे से उबरना था। मैंने धीरे-धीरे अपने जीवन को दोबारा संवारने का फैसला किया। मैंने शराब छोड़ दी और खुद को बेहतर बनाने पर ध्यान देना शुरू किया।


और फिर, एक दिन, मेरी मुलाकात सीमा से हुई। वह अद्भुत थी—सहनशील, समझदार और प्यार से भरी हुई। पिछले दो सालों से वह मेरे जीवन की रोशनी है। उसकी वजह से मैंने अपने अंदर की कड़वाहट को खत्म करना सीखा।


आज, मैं सबसे खुश इंसान हूँ। राधिका के धोखे के बाद, मुझे विश्वास नहीं था कि मैं फिर से किसी से प्यार कर पाऊंगा, लेकिन सीमा ने मुझे न केवल प्यार करना सिखाया, बल्कि मुझमें खोया हुआ विश्वास भी लौटाया।


अब, आठ साल बाद, मैं राधिका के प्रति नफरत तो महसूस करता हूँ, लेकिन साथ ही उसका शुक्रगुजार भी हूँ। अगर उसने मुझे धोखा नहीं दिया होता, तो शायद मैं सीमा से कभी नहीं मिलता। यह जीवन का एक अजीब मोड़ है—कभी-कभी बुरे अनुभव आपको वहां ले जाते हैं जहां आप सच्ची खुशी और सुकून पा सकते हैं।

विनीत नाम था उसका.

 "विनीत नाम था उसका...।" मेरे ऑफिस में वह एक थर्ड ग्रेड कर्मचारी था। मेरा हाल ही में यहाँ अफसर के पद पर तबादला हुआ था, और मैंने चार दिन पहले ही जॉइनिंग की थी। विनीत बेहद मेहनती और समझदार था। वो मुझे "दीदी" ही कहता था, लेकिन एक दिन मेरे जूनियर, सुशांत, ने उसे डांटते हुए कहा, "वो मैडम हैं, उन्हें दीदी नहीं, सपना मैडम कहा करो!" तब से वह मुझे मैडम बुलाने लगा, लेकिन न जाने क्यों, मुझे उसका "दीदी" कहना ज्यादा अच्छा लगता था।


आज वह बेहद खुश था, तो मैंने पूछ लिया, "विनीत, आज बहुत खुश दिख रहे हो, क्या बात है?"

विनीत हंसते हुए बोला, "मैम, कल राखी है ना, इसलिए घर जा रहा हूँ।"

मैंने कहा, "अच्छा, तुम्हारी बहनें हैं?"

उसने ज़ोर से हंसते हुए कहा, "हां, मैम, पांच बहनें हैं। तीन बड़ी शादीशुदा हैं, और दो छोटी।"

मैंने मुस्कुराते हुए पूछा, "तोहफे ले लिए उनके लिए?"

वह बोला, "आज खरीदूंगा, मैम। ज्यादा महंगे तो नहीं ले सकता, पर जो भी हो, अपनी मेहनत से खरीदूंगा।" कहकर वह जल्दी-जल्दी अपने काम में लग गया।


उसकी मुस्कान और प्यार देखकर मेरे दिल में एक अलग सी भावना उमड़ आई। सच कहूं, तो आज पहली बार मुझे अपने भाई की बहुत याद आई। मैं अपने मम्मी-पापा की इकलौती बेटी हूँ और हर राखी पर यही खालीपन महसूस करती थी। अचानक मेरे मन में एक विचार आया। मैंने विनीत की फाइल उठाई और उसके घर का पता नोट किया, फिर तुरंत ऑफिस से निकलकर शॉपिंग करने चली गई। मेरे दिल में एक नई उमंग थी।


शॉपिंग करके जब घर पहुँची, तो मम्मी ने हैरानी से पूछा, "अरे सपना, आज ये सब क्या खरीद लाई?"

मैंने मुस्कुराते हुए कहा, "राखी की तैयारी कर रही हूँ, मम्मी!"

मम्मी हैरानी से मेरी ओर देखती रह गईं, क्योंकि जो बेटी हर राखी पर उदास रहती थी, वह आज इतनी उत्साहित कैसे हो गई! फिर मैंने मम्मी को अपनी योजना बताई और पापा से भी इसे लेकर बात की। दोनों ने मेरे इस निर्णय को सराहा।


अगले दिन, राखी की सुबह, मैं बहुत जल्दी उठकर तैयार हो गई। मेरे साथ मम्मी-पापा भी तैयार हो गए और हम तीनों विनीत के घर की ओर निकल पड़े। जैसे ही हम उसके घर पहुंचे, तो दरवाजा आधा खुला हुआ था। अंदर से हंसी-मजाक की आवाजें आ रही थीं। बहनों के बीच बहस चल रही थी कि पहले कौन राखी बाँधेगा। माहौल बेहद खुशनुमा और प्यार भरा था।


विनीत ने जैसे ही मुझे दरवाजे पर देखा, वह चौंक गया। "अरे मैम, आप यहाँ कैसे?"

मैंने मुस्कुराते हुए अपनी राखी निकाली और बोली, "अगर आप सबको मंजूर हो, तो मैं आज पहले राखी बांधना चाहती हूँ। क्या तुम मेरे भाई बनोगे, विनीत?"

मेरी आँखों में आँसू आ गए, और विनीत भावुक हो गया। उसने धीरे से कहा, "मैम, मैं आपको क्या दे सकता हूँ?"

वह धीरे से अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। मैंने उसके कलाई पर राखी बांधी और फिर उसके लिए लाए गए उपहारों में से एक घड़ी निकालकर उसे पहनाई। मैंने उससे कहा, "ये घड़ी महज़ तोहफा नहीं है, ये विश्वास और प्रेम का प्रतीक है, जो मुझे तुममें महसूस हुआ। अब से तुम मुझे 'मैम' नहीं, दीदी ही बुलाना, जैसे पहली बार कहा था।"


विनीत की आँखों में कृतज्ञता और सम्मान था। उसकी बहनों ने भी मुझे बड़े प्यार से राखी बाँधने के लिए धन्यवाद दिया।

विनीत के लिए यह पल भी अविस्मरणीय था, और मेरे लिए भी। मैंने उसके घर में जो अपनापन महसूस किया, वह किसी बड़े गिफ्ट से बढ़कर था।


यह कहानी हमें सिखाती है कि हम अपने सहकर्मियों को केवल उनके पद से नहीं, बल्कि उनके दिल से भी जानें। किसी का छोटा या बड़ा होना उसकी काबिलियत या सम्मान को कम नहीं करता। मानवता और भाईचारे की भावना ही असली रिश्तों की नींव होती है।


आप सभी से निवेदन है कि आप भी अपने सहकर्मियों को सम्मान दें और उनके साथ भाईचारे का रिश्ता बनाए रखें।

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 हो सकता है मैं कभी प्रेम ना जता पाऊं तुमसे.. लेकिन कभी पीली साड़ी में तुम्हे देखकर थम जाए मेरी नज़र... तो समझ जाना तुम... जब तुम रसोई में अके...