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Monday, 23 December 2024

कम उम्र में सेक्स के लिए मैंने सारी हदे पार कर दी

 जवान उम्र में सेक्स के लिए मेने सारी हदे पार कर दी लेकिन अब विश्वास नहीं होता की में 5 साल पहले की एक बिगड़ैल और गैरजिम्मेदार, सामाजिक परंपराओं को तोड़ने वाली लड़की थी

उस दिन सुबह से ही मौसम खुशगवार था। अंशुल के घर में फूलों की महक थी, और हवा गुनगुना रही थी। अंशुल के मम्मी-पापा कल ही कानपुर से आ गए थे। अंशुल ने उन्हें सब कुछ बता दिया था। उन्हें खुशी थी कि बेटा पांच साल बाद ही सही, ठीक रास्ते पर आ गया था। वरना शादी के नाम से तो वह भड़क जाया करता था।


मम्मी-पापा के सामने शिखा को खड़ा कर अंशुल ने कहा,

"अब आप देख लीजिए। जैसा आप चाहते थे, वैसा ही मैंने किया। आप एक सुंदर, पढ़ी-लिखी और अच्छी बहू अपने बेटे के लिए चाहते थे। क्या शिखा से अच्छी और सुंदर बहू कोई हो सकती है?"


शिखा जैसे ही अंशुल की मम्मी के चरण छूने के लिए झुकी, उन्होंने उसे रोक लिया और गले से लगा लिया। शिखा पहली ही नजर में सबको पसंद आ गई थी।


अंशुल ने मम्मी-पापा को शिखा के अतीत के बारे में बताना जरूरी नहीं समझा। उसने बस इतना कहा कि शिखा एक रिश्तेदार के घर पली-बढ़ी है और अब दिल्ली में नौकरी कर रही है। मम्मी-पापा समझदार थे और शिखा की भावनाओं का सम्मान करते हुए कोई सवाल नहीं किया।


शिखा और अंशुल की शादी बेहद सादगी और परंपरागत तरीके से हुई। ज्यादा तामझाम और दिखावा अंशुल के परिवार को पसंद नहीं था। करीबी रिश्तेदारों और दोस्तों के बीच शादी संपन्न हुई।


शादी के बाद शिखा ने न सिर्फ अंशुल के घर को, बल्कि उसके व्यक्तित्व को भी संवार दिया। अंशुल की मम्मी ने उसे बेटी की तरह घर की जिम्मेदारियां सिखाईं। शिखा ने भी हर बात को खुलकर सीखा। नतीजा यह हुआ कि वह एक समझदार पत्नी, आदर्श बहू और सुलझी हुई गृहिणी बन गई।


अब शिखा को विश्वास नहीं हो रहा था कि कभी वह इतनी विद्रोही और गैरजिम्मेदार लड़की थी। वह अपने अतीत को याद कर सोचती कि बिना शादी के किसी पुरुष के साथ रहना और शादी कर एक परिवार का हिस्सा बनना कितना अलग है।


कॉलेज के दिनों की शिखा


शिखा पढ़ाई में होशियार थी लेकिन अपने विद्रोही स्वभाव के कारण कॉलेज में मशहूर थी। वह हर गतिविधि में भाग लेती, लेकिन उसकी चंचलता के कारण उसकी सच्चाई शायद ही किसी को समझ में आती।


कॉलेज में ही उसकी मुलाकात राघव से हुई, जो यूनियन का अध्यक्ष था। दोनों ने होस्टल छोड़ ममफोर्डगंज में एक कमरा लेकर साथ रहना शुरू कर दिया। यह पूरे शहर के लिए एक चौंकाने वाली बात थी।


परंतु राघव के साथ बिताए गए पांच सालों ने शिखा को जीवन का सबसे बड़ा सबक सिखाया। राघव ने उसे केवल अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल किया। जब उसका मन भर गया, तो उसने शिखा को छोड़ दिया।


अंशुल की मुलाकात शिखा से


शादी के कई साल बाद, मैट्रो में अंशुल और शिखा की मुलाकात हुई। एक-दूसरे को पहचानते ही उनके चेहरे पर हैरानी और खुशी के भाव आ गए।


बातों का सिलसिला शुरू हुआ। अंशुल ने बताया कि उसने शादी नहीं की क्योंकि वह अपने जीवन को स्थिर करने में व्यस्त था। शिखा ने धीरे-धीरे अपने अतीत की बातें साझा कीं और स्वीकार किया कि उसने अपने फैसलों से बहुत कुछ सीखा है।


नए रिश्ते की शुरुआत


अंशुल और शिखा ने एक-दूसरे के साथ समय बिताना शुरू किया। धीरे-धीरे दोनों के बीच का रिश्ता गहराता गया। शिखा ने अंशुल के साथ अपने जीवन की नई शुरुआत की।


कुछ महीनों बाद, शिखा और अंशुल की शादी हो गई। शिखा ने अंशुल के घर में न सिर्फ अपने लिए जगह बनाई, बल्कि मम्मी-पापा के दिल में भी खास जगह बना ली।


अब, शिखा एक खुशहाल जिंदगी जी रही थी। अंशुल अक्सर मजाक में कहता,

"तुमने मुझे तो पाया, लेकिन मम्मी-पापा को मुझसे छीन लिया!"


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Sunday, 15 December 2024

गरम मसाला सामग्री

 उत्पादों के जहर से बचना चाहते हैं तो घर में बने शुद्ध और ग्रेवी के स्वाद को सौ गुना बढ़ा दे 🌿


गरम मसाला सामग्री


धनिया साबुत 40 ग्राम (5 टेबल स्पून) 

जीरा 20 ग्राम (3 टेबल स्पून) 

काली मिर्च- 25 ग्राम (4 टेबल स्पून)

बड़ी इलायची- 10 ग्राम (2 टेबल स्पून)

शाही जीरा- 20 ग्राम (3 टेबल स्पून)

पियानो- 10 ग्राम या 8 से 10 टुकड़े (1 इंच)

पत्थर का फूल -5 ग्राम (1 टेबल स्पून) 

तेजपत्ते- 5 -6

जयफल- 10 ग्राम (2 टेबल स्पून)

जावित्री- 10 ग्राम (2 टेबल स्पून)

लौंग- 5 ग्राम (1 टेबल स्पून)

छोटी इलायची - 5 ग्राम (1 टेबल स्पून) 

पिपली - 4-5 स्टिक

चक्र फूल - 1 या 2


गरम मसाला बनाने की विधि


🌸एक नॉन स्टिक पैन या आटे में धनिया के बीज को मिलाकर मिश्रण पर ठंडा होने तक मिश्रण और किसी प्लेट में ठंडा होने के लिए रख दीजिये|


🌸अब वापस वही पॉट में जीरा, रॉयल जीरा, काली मिर्च, को अधकचरे प्रभाव पर प्रभाव भूने और ठंडा होने के लिए अन्य प्लेट में रख दें।


🌸अब बाकी बचे सभी पटाखों को फ़्राईट में फ़्राईट गरम कर के टुकड़ों में तोड़ दिया..और ठंडा होने के लिए रख देंगे 

🌸ध्यान रखें कि आटा जले नहीं, उन्हें टुकड़ों में मिला लें तो सभी को निकाल कर ठंडा करके पीसकर जार में डाल दें और मोटा (दरदरा) पीसकर तैयार कर लें |मसालों को एयरटाइट में निकाल लें।


आपका गरम मसाला पाउडर तैयार है। किसी भी सब्जी को पकाते समय आखिरी में गरम मसाला पकाते समय एक मिनट पका लें। स्वाद बढेगा 


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लेखक:सुनिल राठौड़ 

मुझे शतरंज खेलना बहुत पसंद है।"

 एक दिन, एक कंपनी में interview के दौरान, बॉस, जिसका नाम रोहित था, ने सामने बैठी महिला, पूजा से पूछा, "आप इस नौकरी के लिए कितनी तनख्वाह की उम्मीद करती हैं?"


पूजा ने बिना किसी झिझक के आत्मविश्वास से कहा, "कम से कम 90,000 रुपये।"

रोहित ने उसकी ओर देखा और आगे पूछा, "आपको किसी खेल में दिलचस्पी है?"

पूजा ने जवाब दिया, "जी, मुझे शतरंज खेलना बहुत पसंद है।"

रोहित ने मुस्कुराते हुए कहा, "शतरंज बहुत ही दिलचस्प खेल है। चलिए, इस बारे में बात करते हैं। आपको शतरंज का कौन सा मोहरा सबसे ज्यादा पसंद है? या आप किस मोहरे से सबसे अधिक प्रभावित होती है?"

पूजा ने मुस्कुराते हुए कहा, "वज़ीर।"

रोहित ने उत्सुकता से पूछा, "क्यों? जबकि मुझे लगता है कि घोड़े की चाल सबसे अनोखी होती है।"

पूजा ने गंभीरता से जवाब दिया, "वास्तव में घोड़े की चाल दिलचस्प होती है, लेकिन वज़ीर में वो सभी गुण होते हैं जो बाकी मोहरों में अलग-अलग रूप से पाए जाते हैं। वह कभी मोहरे की तरह एक कदम बढ़ाकर राजा को बचाता है, तो कभी तिरछा चलकर हैरान करता है, और कभी ढाल बनकर राजा की रक्षा करता है।"

रोहित ने उसकी समझ से प्रभावित होते हुए पूछा, "बहुत दिलचस्प! लेकिन राजा के बारे में आपकी क्या राय है?" पूजा 

पूजा ने तुरंत जवाब दिया, "सर, मैं राजा को शतरंज के खेल में सबसे कमजोर मानती हूँ। वह खुद को बचाने के लिए केवल एक ही कदम उठा सकता है, जबकि वज़ीर उसकी हर दिशा से रक्षा कर सकता है।"

रोहित पूजा के जवाब से प्रभावित हुआ और बोला, "बहुत शानदार! बेहतरीन जवाब। अब ये बताइए कि आप खुद को इनमें से किस मोहरे की तरह मानती हैं?"

पूजा ने बिना किसी देर के जवाब दिया, "राजा।"

रोहित थोड़ी हैरानी में पड़ गया और बोला, "लेकिन आपने तो राजा को कमजोर और सीमित बताया है, जो हमेशा वज़ीर की मदद का इंतजार करता है। फिर आप क्यों खुद को राजा मानती हैं?"

पूजा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "जी हाँ, मैं राजा हूँ और मेरा वज़ीर मेरा पति था। वह हमेशा मेरी रक्षा मुझसे बढ़कर प्यार करता था, हर मुश्किल में मेरा साथ देता था, लेकिन अब वह मुझे पूरी तरह से छोड़ चुका है।"


रोहित को यह सुनकर थोड़ा धक्का लगा, और उसने गंभीरता से पूछा, "तो आप यह नौकरी क्यों करना चाहती हैं?"

पूजा की आवाज भर्राई, उसकी आँखें नम हो गईं। उसने गहरी सांस लेते हुए कहा, "क्योंकि मेरा वज़ीर अब इस दुनिया में नहीं रहा। अब मुझे खुद वज़ीर बनकर अपने बच्चों और अपने जीवन की जिम्मेदारी उठानी है।"

यह सुनकर कमरे में एक गहरी खामोशी छा गई। रोहित ने तालियाँ बजाते हुए कहा, "बहुत बढ़िया, पूजा जी। आप एक सशक्त महिला हैं।"...

यह कहानी उन सभी बेटियों के लिए एक प्रेरणा है जो जिंदगी में किसी भी तरह की मुश्किलों का सामना कर सकती हैं। बेटियों को अच्छी शिक्षा और परवरिश देना बेहद जरूरी है, ताकि अगर कभी उन्हें कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़े, तो वे खुद वज़ीर बनकर अपने और अपने परिवार के लिए एक मजबूत ढाल बन सकें।

किसी विद्वान ने कहा है, "एक बेहतरीन पत्नी वह होती है जो अपने पति की मौजूदगी में एक आदर्श औरत हो, और पति की गैरमौजूदगी में वह मर्द की तरह परिवार का बोझ उठा सके।"

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, अगर आत्मविश्वास और समझदारी हो, तो कोई भी मुश्किल हालात को पार किया जा सकता है।

कहानी अच्छी लगी हो तो लाईक शेयर जरूर करें..

दहेज़ के पैसे जुटाना शुरू कर दो।"

 अपनी प्लेट में दो तरह की आइसक्रीम का मज़ा लेती सुनीता ने अपने देवर विनोद को कहा, "क्या देवर जी तीसरी बेटी होने पे कौन पार्टी देता है? अब तो दहेज़ के पैसे जुटाना शुरू कर दो।"


अपनी भाभी के प्लेट को देख हँसते हुए विनोद ने कहा, अरे भाभी ! "आप क्यूँ चिंता करती है घर में ख़ुशी आयी थी तो सबके साथ बाँट लिया और फिर बेटियां तो अपना भाग्य ले कर आती है।"


अपने देवर की बात सुन सुनीता मुस्कुरा के रह गई...जबकि असल में दिल खुशी से झूम रहा था देवर के घर तीसरी बेटी का जन्म जो हुआ था। खुद सुनीता के दो बेटे थे और इस बात का खूब घमंड रखती।


दो तीन दिन में सारे मेहमान चले गए। अब घर पे थे तो विनोद रूचि और तीनों बेटियां मानवी, अंकिता और तीसरी बेटी जिसका नाम सबने प्रीति रखा।


समय अपनी रफ़्तार से चल रहा था बच्चियों एक से बढ़ कर एक थी चाहे पढ़ाई हो या घर में माँ की मदद करना। घर की दीवारें बेटियों की बनायीं खूबसूरत पेंटिंग से सजती और अलमारियां उनके जीते मैडल और ट्रॉफी से, तीनों बेटियों की किलकारी और हँसी से विनोद और रूचि का घर गुलजार रहता।


सुनीता कोई मौका नहीं छोड़ती रूचि को एहसास दिलाने का की वो बेटियों की माँ है।


"देख रूचि चाहे जितने इनाम जीत ले ये लड़कियाँ पर दहेज़ तो फिर भी लगेगा जोड़ना शुरू किया की नहीं।"


रूचि अपनी जेठानी के बातों से जब घबरा जाती तब विनोद समझाता...।


"बेटियां अपना भाग्य ले कर आयी है रूचि, हमें तो बस उन्हें सही राह दिखानी है फिर देखना किसी बेटे वालों से कम सुख हमें नहीं देंगी हमारी ये तीनों बेटियां।"


"जब कोई पूछता क्या विनोद जी कब तक किराये के मकान में रहेंगे अपना घर नहीं बनवाना क्या....."?


"हॅंस कर विनोद कहता जब मेरी बच्चियाँ कुछ बन जायेंगी तो समझो मेरा मकान भी बन जायेगा फिलहाल तो मुझे मेरी बच्चियों का भविष्य बनाना है।"


समय अपनी गति से बढ़ता गया रूचि और विनोद की तपस्या रंग लाई.. मानवी की बैंक में नौकरी लग गई, अंकिता सीए कर जॉब में आ गई और प्रीति इंजीनियरिंग कर दिल्ली में जॉब करने लगी।


"बड़ी मम्मी, कल माँ पापा की एनिवर्सरी की एक छोटी सी पार्टी रखी है आप सब समय से आ जाना।" मानवी ने अपनी बड़ी मम्मी सुनीता को फ़ोन कर पार्टी का इनविटेशन दे दिया।


सारी तैयारियां तीनों बहनों ने बहुत मन से की थी शहर के सबसे अच्छे होटल में पार्टी हॉल बुक था। खाने की मेनू में सारी चीज़े चुन चुन कर तीनों ने रखा था और माँ पापा का गिफ्ट वो तो एक सरप्राइज था सबके लिये...."


पार्टी वाले दिन सुबह सुबह प्रीति भी दिल्ली से आ गई प्रीति के आते ही घर में एक रौनक सी आ गई।


"ये क्या माँ? बालों में कैसी सफेदी सी आ रही है ऐसे जाओगी क्या पार्टी में..।"


प्रीति ने कहा तो रूचि ने हँसते हुए कहा मुझे कौन देखने वाला वहाँ अब तो तुम बच्चों के दिन है। नहीं माँ, अभी चलो पार्लर और प्रीति अपनी माँ को ले पार्लर चली गई। हल्के मेकअप और सुन्दर सी साड़ी में अपनी माँ को सजा संवार दिया प्रीति ने। विनोद के लिये एक शानदार सूट तैयार था। सूट को देख आंखें झलक उठी विनोद की....। शाम होते है सब तैयार हो हॉल की ओर निकल पड़े।


मेहमानों से हॉल भर गया सबकी बधाइयाँ स्वीकार कर रूचि और विनोद ने एक दूसरे को माला पहनाया और केक काट एक दूसरे को खिलाया।


सब विनोद और रूचि के भाग्य को सराह रहे थे सुनीता भी आयी थी पार्टी में अपने पति और दोनों बेटों के साथ। पार्टी की भव्य तैयारी देख सुनीता जलन से भर उठी। आज अहसास हो रहा था की देवर की बेटियां हो कर भी जो सुख ये लड़कियाँ अपने माता पिता को दे रही थी वो उसके लाडलों ने ना कभी दी थी और ना ही कभी देते।


तभी प्रीति ने माइक ले अनाउंस किया.. "" नमस्कार सभी को आप सब हमारे बुलाने पे आये आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया। अब समय है मेरे पापा माँ के गिफ्ट का जो हम तीनों बहनो ने अपने माँ पापा को दिया है लेकिन इसके लिये बाहर लॉन में चले सब।


ये क्या है प्रीति? जब विनोद ने धीरे से प्रीति से पूछा तो हँसते हुए मानवी ने कहा आप बस चले पापा और खुद देख ले.. तीनों बहनें आँखों ही आँखों में इशारे कर हॅंस रही थी। सारे मेहमान कौतुहल से बाहर आये, लॉन में एक चमचमाती नई कार खड़ी थी सारे मेहमान तालियां बजाने लगे, वाह भाई वाह बेटियां हो तो ऐसी।


"पापा अब आपके स्कूटर का मज़ा तो ये नहीं दे सकती पर अब हम सब एक साथ स्कूटर पे बैठ भी तो नहीं सकते इसलिए आज से इसकी सवारी होगी।" सारे मेहमान अंकिता की बात सुन हॅंस पड़े।


रूचि और विनोद के आँखों में खुशी के आंसू थे और सिर गर्व से ऊंचा सब ने खूब बधाई दी और पार्टी का लुत्फ उठाया ।


सुनीता भी गई बधाई देने, 'बधाई हो देवर जी बेटियों ने नई गाड़ी दी और क्या चाहिए।"


"सच कहा भाभी और क्या चाहिए मुझे जब ऐसे बच्चे हो तो। मैंने कहा था ना बेटियां खुद अपना भाग्य बनाती है यहाँ तो इन तीनों ने मेरा भाग्य भी बदल दिया, देखिये तो कैसे मुझे स्कूटर से उठा कार में बिठा दिया।"


अपने देवर की बात सुन सुनीता ने अपने नालायक जवान बेटों को देखा जो आइसक्रीम के मज़े लेने में व्यस्त थे ... आज बेटों की माँ होने का दंभ टूट गया था सुनीता का।


* बेटियां किसी बेटे से कम नहीं होती बस थोड़ा प्यार ओर साथ हो तो बेटियां वो कर जाती है जो कई बेटे वालो के भाग्य में भी नहीं होता।

Friday, 13 December 2024

पैसे और गहने ले लिए ना?

 रात के 12 बज रहे थे। अनुज का फोन आया। फोन पर एक धीमी आवाज में फुसफुसाहट हुई - "हेलो..."

नेहा ने भी धीमे स्वर में जवाब दिया, "हां बोलो..."


अनुज ने पूछा, "सब तैयारी हो गई? सुबह 4 बजे की बस है।"

नेहा ने कहा, "हां, मेरे कपड़े पैक हो गए हैं। बस पैसे और गहने लेना बाकी है।"


अनुज ने फिर कहा, "अपने सारे डॉक्यूमेंट भी ले लेना। नया घर बसाना है, शायद दोनों को काम करना पड़े।"

नेहा ने जवाब दिया, "ठीक है, सब कुछ लेकर तुम्हें कॉल करती हूं।"


इसके बाद नेहा ने माँ की अलमारी खोली। उसमें से गहनों का डिब्बा निकाला और अपने लिए बनवाया गया मंगलसूत्र बैग में रखा। झुमके पहन लिए, और चूड़ियों का डिब्बा बैग में डाल ही रही थी कि माँ की तस्वीर गिर पड़ी। तस्वीर को उठाते हुए उसे याद आया कि माँ ने कितनी मेहनत से ये सब जोड़ा था। माँ की बातें उसे अंदर तक कचोट गईं।


फिर उसने घर के पैसे निकाले। यह वही रकम थी जो पापा, अनिकेत की पढ़ाई के लिए लोन लेकर आए थे। नेहा ने इसे भी बैग में रख लिया। उसके दिल में उलझन थी, लेकिन वह खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी।


उसने अनिकेत के कमरे में झांका। अनिकेत पढ़ाई में डूबा हुआ था। माँ नींद की दवा लेकर सो रही थीं। पापा, हमेशा की तरह, वर्किंग टेबल पर बही खाता बना रहे थे। सब अपने काम में व्यस्त थे।


अपने कमरे में जाकर उसने अनुज को फोन लगाया। "सब कुछ तैयार है। घर में कोई जाग नहीं रहा।"

अनुज ने पूछा, "पैसे और गहने ले लिए ना?"

इस बार नेहा को अनुज का यह सवाल चुभा। उसने गुस्से में कहा, "हां ले लिए। लेकिन तुम बार-बार यही क्यों पूछ रहे हो?"


अनुज ने बहलाते हुए कहा, "अरे, नए घर के लिए पैसे तो चाहिए ही ना। मोबाइल भी लेना है। बस तुम फिक्र मत करो।"

नेहा ने एक पल के लिए सोचा और बोली, "सुनो, क्या तुममें इतनी हिम्मत नहीं है कि मेरे लिए कुछ कमा सको?"


अनुज बगलें झांकते हुए बोला, "अरे, ऐसी बात नहीं है। बस शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा।"

नेहा अब चुप हो गई। उसे अनुज की बातों में सच्चाई नहीं दिख रही थी।


थोड़ी देर की खामोशी के बाद उसने कहा, "सुनो, अभी के लिए ये भागने का प्लान कैंसल करते हैं। पहले तुम कुछ कमा कर दिखाओ। जब दो महीने का खर्च इकट्ठा कर सको, तब मुझे बुलाना। नहीं कर पाए, तो मुझे भूल जाना।"

अनुज कुछ बोलने ही वाला था कि नेहा ने फोन काट दिया।


नेहा ने पापा के कमरे का दरवाजा खटखटाया। पापा ने चौंककर पूछा, "क्या हुआ बेटा, अभी तक सोई नहीं?"

नेहा ने कहा, "पापा, मैं नौकरी करना चाहती हूं। जब तक अनिकेत की पढ़ाई पूरी नहीं हो जाती, मुझे घर का हाथ बंटाने दीजिए।"

पापा ने स्नेह से नेहा के सिर पर हाथ फेरा। उनकी आंखों में गर्व था।

नेहा मन ही मन सोच रही थी कि भगवान ने उसे सही वक्त पर संभाल लिया। "थैंक यू गॉड, आपने मुझे एक बड़ी गलती करने से बचा लिया।"

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लेखक: सुनिल राठौड़ 

Monday, 9 December 2024

जवानी में क्यों हर लड़की की चाहत होती है

 जवानी में क्यों हर लड़की की चाहत होती है, इसमें कोई भी शामिल नहीं है कि ये शारीरिक ज़रूरत के साथ मानसिक ज़रूरत भी है जिसे आप किसी से प्यार करते हैं। तो उसके साथ अपने प्यार को अनंत सीमा तक ले जाने की दवा है सेक्स 

एक साधारण सी लड़की, जिसे कॉलेज में देखकर अपने सपनों की दुनिया मिल गई। वह वक्त मेरी जिंदगी में बेहद प्रभावशाली लग रहा था। पढ़ाई, दोस्त, और सबसे साहसी राहुल। राहुल...वो नाम नहीं, मेरी दुनिया थी।


पहली बार उन्हें पायल में देखा तो लगा, जैसे किसी फिल्म का हीरो हो। दोस्त से भरा, मुस्कुराता हुआ चेहरा और हर किसी की मदद का हाथ बढ़ाने वाला। पता नहीं कब और कैसे, हमारी दोस्ती प्यार में बदल गई। राहुल के साथ हर पल एक जादू जैसा लगता था। वह मेरी हर छोटी-बड़ी बात कहता है, मेरे सपने को सुनता है, और उन्हें पूरा करने का वादा करता है।


कॉलेज की लाइब्रेरी में एक साथ पढ़ना, कैंटीन में चाय के कप शेयर करना, और क्लास के बाद चौदह बातें करना—हमारी जिंदगी बस दोस्ती खुशियों से भरी थी। राहुल ने माय से कहा, "सीमा, चांदनी शादी करके ही मेरा सपना पूरा होगा। हम साथ रहेंगे, हमेशा के लिए।" मैं भी उनकी हर बात पर विश्वास रखता था।


हमारा रिश्ता इतना गहरा हो गया कि हमने अपने प्यार को हर सरहद पार कर लिया। पहली बार जब राहुल ने मुझसे करीब आकर कहा, तो मुझे थोड़ा डर लगा, लेकिन उनके बयान ने मुझे हर डर से दूर कर दिया। मुझे लगता है, राहुल तो मेरा ही है, फिर यह डर कैसा? मैंने उसे अपना राजसी राजसी दिया, अपनी आत्मा, अपना शरीर, अपना विश्वास।


लेकिन हर बार जब मैं डरता हूं कि कहीं कुछ गलत न हो जाए, राहुल मुझे समझाता है। उन्होंने ही कहा था। मैं उसकी बात सहयोगी रही। ये छोटी-छोटी गोलियां मुझे असुरक्षा से बचाती रहीं, या शायद मैं यही बनी थी।


कॉलेज खत्म हो गया और मेरे दोस्तों को हमारे साथी की खबर मिल गई। मैंने सोचा था, जैसे फिल्मों में होता है, राहुल सब ठीक कर लेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मेरे परिवार ने उन्हें लॉरी से ज़मानत दे दी। दूसरी वह जाति का था, और मेरे साथियों के लिए यह संबंध नामुम्किन था।


मैंने बहुत लड़ाई की, रोई, गिड़गिड़ाई, लेकिन मेरे माता-पिता ने मेरी एक न सुनी। और आख़िरकार, मैंने हार मान ली। राहुल से दूर जाना मेरे लिए सबसे बड़ा दर्द था। मेरी शादी अजय से तय हो गई। अजय अच्छा इंसान था, लेकिन राहुल जैसा नहीं।


शादी के बाद मैंने खुद को नई जिंदगी में ढालने की कोशिश की। अजय मेरे साथ बहुत अच्छा व्यवहार करता था। वह मेरी हर ज़रूरत का असली मतलब है, लेकिन मेरे दिल में राहुल की यादें अब भी ताज़ा हैं। मैंने खुद से वादा किया कि मुझे इस अवसर का एक मौका मिला।


शादी के कुछ महीने बाद जब मैं इस बात से अनजान हो गया तो अजय ने डॉक्टर से मिलकर फैसला किया। मुझे चिंता हो गई थी, लेकिन उम्मीद थी कि सब ठीक हो जाएगा। डॉक्टर ने जब मेरी नैतिकता देखी, तो उनका चेहरा गंभीर हो गया।


उन्होंने कहा, "आपकी प्रजनन क्षमता खत्म हो गई है। बार-बार क्वांटम कॉन्ट्रासेप्टिव का इस्तेमाल आपकी सेहत पर भारी पड़ गया है।" मेरी दुनिया वहीं थी। मैंने अजय को सच बताया-राहुल के साथ मेरा रिश्ता, मेरी ग़लतियाँ।


अजय ने कुछ नहीं कहा, लेकिन उसके चेहरे की स्याही ब्यां कर रही थी। वह अवलोकन करता है, जैसे मैं कोई अजनबी हूं। उसने मुझे न अपनाता, न ही छोड़ा। हमारा रिश्ता अब सिर्फ एक समझौता बनकर रह गया है।


आज जब मैं अपने कमरे में बैठा था, तो सोच रहा था कि अगर मैंने उस समय राहुल के प्यार में अपने भविष्य के लिए इतनी बड़ी कीमत चुकाई, तो शायद आज मेरी जिंदगी अलग होगी।

राहुल का प्यार सच्चा था या नहीं, ये मुझे आज तक समझ नहीं आया। लेकिन मैंने जो सपना देखा था, वे राजनीतिक रह गए। मेरा आरज़ू अधूरा रह गया।

अगर आप मेरी कहानी पढ़ रहे हैं, तो एक गुज़ारिश है—प्यार की गहराई में जाने से पहले अपना भविष्य पहचानो और मत भूलिए। हमें कई सारी मशीनें मिलती हैं, लेकिन हर मौका एक नई ज़िम्मेदारी भी देता है।

Friday, 6 December 2024

विशेष निर्णय यह है कि विवाह पूर्व और संगीत कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है*

 *आज शहर के जैन समुदाय ने पिछले रविवार को एक अच्छा निर्णय लिया कि यदि किसी भी जैन समुदाय की शादी में 6 से अधिक व्यंजन हैं, तो उस शादी में दूल्हा और दुल्हन को केवल आशीर्वाद दिया जाना चाहिए, लेकिन खाया नहीं जाएगा, और फिर कल इसका पालन किया जाएगा। अग्रवाल समाज ने भी उक्त निर्णय को लागू करने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही शादी के कार्ड न छपवाकर केवल व्हाट्सएप और फोन के जरिए ही निमंत्रण दें*

 *विशेष निर्णय यह है कि विवाह पूर्व और संगीत कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है*

        *उपरोक्त दोनों समाज (जैन और अग्रवाल) आर्थिक रूप से मजबूत हैं लेकिन उन्होंने उपरोक्त निर्णय लिया, दोनों समाजों को बधाई*


       *कब बदलेंगे हम, शादी में गन्ने जितना खर्च करने लगे हैं हम, शादी की खुशियां मनाने के लिए कभी-कभी कर्ज भी लेते हैं, अब हमें जरूर बदलना होगा।*

*नोट:- अनुकरणीय एवं आदर्श निर्णय का हृदय से स्वागत है। और सभी जाति, धर्म और पंथ इस निर्णय का पालन करें*।


 *समाज को विवाह संस्कार को विवाह संस्कार में बदलना चाहिए।*


  *कुछ दिन पहले कोरोना वायरस के कारण सरकार ने शादियों और कार्यक्रमों में उपस्थिति सीमित कर दी थी, लेकिन लोग इसे भूल गए और लाखों रुपये खर्च करने लगे।*

  *हम अनावश्यक रूप से लाखों रुपये बर्बाद कर रहे हैं और कर्ज में डूब रहे हैं। हमें अब बदलना होगा। वरना वक्त तुम्हें माफ नहीं करेगा.*


 *1)कृषि आय दिन-ब-दिन घटती जा रही है।*

 *2)कृषि उपज की कोई कीमत नहीं होती।*

 *3) अब कोई सरकारी नौकरी नहीं।*

 *4)निजी रोजगार में कोई गारंटी नहीं है।*

 *5)लड़की की शादी में 100 रुपये का खर्च होता है, जबकि लड़के की शादी में भी 80 रुपये का खर्च होता है।*

 *6) कर्ज में जन्मा, कर्ज में ही बड़ा हुआ और कर्ज में ही मर गया, कुछ पीढ़ियाँ बीत गईं।

 *7) विवाह एक समारोह नहीं बल्कि एक 'संस्कार' है। 16 संस्कारों में से एक संस्कार समझना चाहिए।*

 *8)चाहे कितनी भी बड़ी शादी क्यों न हो, लोग उसे भूल जाते हैं। इतनी बड़ी शादी करने पर आज तक किसी को पुरस्कार नहीं मिला।*

 *9) हम खेत बेचकर गुंठा आ गए, जबकि व्यापारी एक दुकान से चार दुकानें चला रहा है। व्यापारी वर्ग का नाम लेने के बजाय उनके अर्थशास्त्र को समझना चाहिए।*

 *10)ईर्ष्या नहीं बल्कि स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए।*

 *11)भाईचारे में घातक प्रतिस्पर्धा की कोई आवश्यकता नहीं है। शादी के मौके पर ऐसा नहीं चाहिए.*

 *12) दूल्हा-दुल्हन को हमेशा उपयोगी पोशाक पहननी चाहिए।*

 *13) वर्मई को भी शोर नहीं करना चाहिए। हमारी एक बेटी भी है. बहू आपकी बेटी है जो कल आपका ख्याल रखेगी. यह भावना जड़ पकड़नी चाहिए।*

 *14) खाने-पीने का तरीका बंद करें और खर्च कम करें और वर-वधू की भविष्य की प्रगति में योगदान दें।*

 *15) ऐसे बर्तन/फर्नीचर नहीं चाहिए जो दुनिया में कभी काम न आएं।*

*16) हल्दी के कार्यक्रम में मेहंदी, वैदिक विधि, भीड़ से बचना चाहिए। स्वागत समारोह में सादगी लानी चाहिए।*

 *17) क्रिकेट 5-दिवसीय, वनडे से 20-20 हो गया। तो हम शादी को छोटा/प्रबंधनीय क्यों बनाते हैं?*

 *18) केवल कुछ लोग ही सभी मेहमानों के साथ आराम से बातचीत कर सकते हैं।*

 *19) शादी के कार्ड की कीमत पढ़ें और शादी का कार्ड व्हाट्सएप के माध्यम से भेजें और कार्ड भेजने के बाद संबंधित व्यक्ति को फोन करके जिद करने के लिए आमंत्रित करें, शादी से दो दिन पहले दोबारा याद दिलाने के लिए फोन करें।

 *20) किसी भी जाति और धर्म की अच्छी बातें स्वीकार करनी चाहिए।*


  *21)समाज को बेहतर बनाने के लिए सभी को एक कदम आगे बढ़ाना चाहिए।*

 *आइये सुधारों की शुरुआत स्वयं से करें! धीरे-धीरे पूरा समाज बदल जाएगा और एक दिन समाज 100% प्रगति करेगा!*

 *सिर्फ पढ़ो मत...!*

 *आप भी सोचिये...!*

 *(यह सन्देश समाज के प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचायें।)*

         *🙏🏻यह विनम्र निवेदन है।*

        *💯यह समय की मांग है।*

धन्यवाद

तुममें इतनी हिम्मत नहीं है कि मेरे लिए कुछ कमा सको?"

 रात के 12 बज रहे थे। आदित्य का फोन आया। फोन पर एक धीमी आवाज में फुसफुसाहट हुई - "हेलो..."

बिट्टू ने भी धीमे स्वर में जवाब दिया, "हां बोलो..."


आदित्य ने पूछा, "सब तैयारी हो गई? सुबह 4 बजे की बस है।"

बिट्टू ने कहा, "हां, मेरे कपड़े पैक हो गए हैं। बस पैसे और गहने लेना बाकी है।"


आदित्य ने फिर कहा, "अपने सारे डॉक्यूमेंट भी ले लेना। नया घर बसाना है, शायद दोनों को काम करना पड़े।"

बिट्टू ने जवाब दिया, "ठीक है, सबकुछ लेकर तुम्हें कॉल करती हूं।"


इसके बाद बिट्टू ने माँ की अलमारी खोली। उसमें से गहनों का डिब्बा निकाला और अपने लिए बनवाया गया मंगलसूत्र बैग में रखा। झुमके पहन लिए, और चूड़ियों का डिब्बा बैग में डाल ही रही थी कि माँ की तस्वीर गिर पड़ी। तस्वीर को उठाते हुए उसे याद आया कि माँ ने कितनी मेहनत से ये सब जोड़ा था। माँ की बातें उसे अंदर तक कचोट गईं।


फिर उसने घर के पैसे निकाले। यह वही रकम थी जो पापा अमन की पढ़ाई के लिए लोन लेकर आए थे। बिट्टू ने इसे भी बैग में रख लिया। उसके दिल में उलझन थी, लेकिन वह खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी।


उसने अमन के कमरे में झांका। अमन पढ़ाई में डूबा हुआ था। माँ नींद की दवा लेकर सो रही थीं। पापा, हमेशा की तरह, वर्किंग टेबल पर बही खाता बना रहे थे। सब अपने काम में व्यस्त थे।


अपने कमरे में जाकर उसने आदित्य को फोन लगाया। "सब कुछ तैयार है। घर में कोई जाग नहीं रहा।"

आदित्य ने पूछा, "पैसे और गहने ले लिए ना?"

इस बार बिट्टू को आदित्य का यह सवाल चुभा। उसने गुस्से में कहा, "हां ले लिए। लेकिन तुम बार-बार यही क्यों पूछ रहे हो?"


आदित्य ने बहलाते हुए कहा, "अरे, नए घर के लिए पैसे तो चाहिए ही ना। मोबाइल भी लेना है। बस तुम फिक्र मत करो।"

बिट्टू ने एक पल के लिए सोचा और बोली, "सुनो, क्या तुममें इतनी हिम्मत नहीं है कि मेरे लिए कुछ कमा सको?"


आदित्य बगलें झांकते हुए बोला, "अरे, ऐसी बात नहीं है। बस शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा।"

बिट्टू अब चुप हो गई। उसे आदित्य की बातों में सच्चाई नहीं दिख रही थी।


थोड़ी देर की खामोशी के बाद उसने कहा, "सुनो, अभी के लिए ये भागने का प्लान कैंसल करते हैं। पहले तुम कुछ कमा कर दिखाओ। जब दो महीने का खर्च इकट्ठा कर सको, तब मुझे बुलाना। नहीं कर पाए, तो मुझे भूल जाना।"

आदित्य कुछ बोलने ही वाला था कि बिट्टू ने फोन काट दिया।


बिट्टू ने पापा के कमरे का दरवाजा खटखटाया। पापा ने चौंककर पूछा, "क्या हुआ बेटा, अभी तक सोई नहीं?"

बिट्टू ने कहा, "पापा, मैं नौकरी करना चाहती हूं। जब तक अमन की पढ़ाई पूरी नहीं हो जाती, मुझे घर का हाथ बंटाने दीजिए।"

पापा ने स्नेह से बिट्टू के सिर पर हाथ फेरा। उनकी आंखों में गर्व था।

बिट्टू मन ही मन सोच रही थी कि भगवान ने उसे सही वक्त पर संभाल लिया। "थैंक यू गॉड, आपने मुझे एक बड़ी गलती करने से बचा लिया।"

आपको यह कहानी कैसी लगी? अपने विचार हमें जरूर बताएं। 

Thursday, 5 December 2024

मेरी शादी को 20 साल से ज़्यादा हो गए हैं।

 पत्नियां संभोग सुख की चेष्टा रखती हैं लेकिन जल्दी संतुष्टि नहीं प्राप्त करती हैं 


मेरी शादी को 20 साल से ज़्यादा हो गए हैं।


जब मैंने अपनी पत्नी को पहली बार देखा तो उनके चेहरे के हाव भाव देखकर महसूस हुआ कि शायद वो मेरे लिए ठीक नहीं हैं। किन्तु घर मे सभी को पसंद थीं, बाकी सभी मानदंडों पर खरा उतर रहीं थीं और मेरे पास अपना कोई विकल्प नहीं था तो मैंने हाँ कह दी।

जिसका डर था वो ही हुआ हमारा स्वभाव एक दूसरे से काफी भिन्न है। इसलिए आजतक मतभेद भी बहुत चलते रहते हैं।

शादी के लगभग 2 वर्ष उपरांत हमारी साली जी हमारे ही गृह शहर में स्वयं की शादी के लिए अपने मामा जी के यहाँ रहने आईं।

हमारा मेलजोल बढ़ा। वो अपने स्त्री सुलभ तरीके से अंजाने में हमें आकर्षित करती थीं, किन्तु हमने सब समझते हुए भी नज़रअंदाज़ किया। हम शादीशुदा जो थे।

इधर कुछ महीनों के बाद पत्नी जी को आगे की पढ़ाई अथवा नौकरी के सिलसिले में हमारा गृह शहर छोड़ना पड़ा। खट-पट हमारी कभी बन्द हुई ही नहीं।

एक बार कुछ दिनों के लिए में बाहर गया था और वापस गृह शहर लौट कर कॉल किया तो हमारी साली जी ने फ़ोन उठाते ही हम पर " I LOVE YOU" दाग दिया।

साली जी का यही स्त्री सुलभ तरीका, जो कि शायद उनका स्वाभाव था, हम पर असर करना शुरू कर गया। आखिर कब तक बचते?


उनकी शादी के 15 वर्ष बीत गए और उस वाकये को भी लगभग 17 वर्ष हो गए। उनके अपने पति और श्वसुराल वालों के प्रति स्वभाव एवं समर्पण को और गहराई से समझने का मौका मिला।

चूँकि एक ही परिवार से सम्बद्ध हैं तो मुलाक़ात होती रहती है। भले ही हमारे बीच बात न होती हो, एक दूसरे के जीवन मे क्या चल रहा है उसकी खबर भी लगती रहती है।

इसलिए आज भी मुझे ये महसूस होता है कि शायद हम एक दूसरे के लिए ही बने थे। लेकिन नियति नहीं चाहती थी कि हम एक हों।

उनका तो पता नहीं हम आजतक उस टीस से बाहर नहीं निकल पाए। आज भी मन के किसी कोने में ये इच्छा दबी हुई है कि उनके साथ कुछ पल गहनता के साथ बिताने को मिलें।

शादी के कुछ सालों बाद ही रंभा और आशुतोष का वैवाहिक जीवन टूटने की कगार पर पहुंच गया.

 शादी के कुछ सालों बाद ही रंभा और आशुतोष का वैवाहिक जीवन टूटने की कगार पर पहुंच गया.


आज सलोनी विदा हो गई. एअरपोर्ट से लौट कर रंभा दी ड्राइंगरूम में ही सोफे पर निढाल सी लेट गईं. 1 महीने की गहमागहमी, भागमभाग के बाद आज घर बिलकुल सूनासूना सा लग रहा था. बेटी की विदाई से निकल रहे आंसुओं के सैलाब को रोकने में रंभा दी की बंद पलकें नाकाम थीं. मन था कि आंसुओं से भीग कर नर्म हुई उन यादों को कुरेदे जा रहा था, जिन्हें 25 साल पहले दफना कर रंभा दी ने अपने सुखद वर्तमान का महल खड़ा किया था.


मुंगेर के सब से प्रतिष्ठित, धनाढ्य मधुसूदन परिवार को भला कौन नहीं जानता था. घर के प्रमुख मधुसूदन शहर के ख्यातिप्राप्त वकील थे. वृद्धावस्था में भी उन के यहां मुवक्किलों का तांता लगा रहता था. वे अब तक खानदानी इज्जत को सहेजे हुए थे. लेकिन उन्हीं के इकलौते रंभा के पिता शंभुनाथ कुल की मर्यादा के साथसाथ धनदौलत को भी दारू में उड़ा रहे थे. उन्हें संभालने की तमाम कोशिशें नाकाम हो चुकी थीं. पिता ने किसी तरह वकालत की डिगरी भी दिलवा दी थी ताकि अपने साथ बैठा कर कुछ सिखा सकें. लेकिन दिनरात नशे में धुत्त लड़खड़ाती आवाज वाले वकील को कौन पूछता?


बहू भी समझदार नहीं थी. पति या बच्चों को संभालने के बजाय दिनरात अपने को कोसती, कलह करती. ऐसे वातावरण में बच्चों को क्या संस्कार मिलेंगे या उन का क्या भविष्य होगा, यह दादाजी समझ रहे थे. पोते की तो नहीं, क्योंकि वह लड़का था, दादाजी को चिंता अपनी रूपसी, चंचल पोती रंभा की थी. उसे वे गैरजिम्मेदार मातापिता के भरोसे नहीं छोड़ना चाहते थे. इसी कारण मैट्रिक की परीक्षा देते ही मात्र 18 साल की उम्र में रंभा की शादी करवा दी.


आशुतोषजी का पटना में फर्नीचर का एक बहुत बड़ा शोरूम था. अपने परिवार में वे अकेले लड़के थे. उन की दोनों बहनों की शादी हो चुकी थी. मां का देहांत जब ये सब छोटे ही थे तब ही हो गया था. बच्चों की परवरिश उन की बालविधवा चाची ने की थी.


शादी के बाद रंभा भी पटना आ गईं. रिजल्ट निकलने के बाद उन का आगे की पढ़ाई के लिए दाखिला पटना में ही हो गया. आशुतोषजी और रंभा में उम्र के साथसाथ स्वभाव में भी काफी अंतर था. जहां रंभा चंचल, बातूनी और मौजमस्ती करने वाली थीं, वहीं आशुतोषजी शांत और गंभीर स्वभाव के थे. वे पूरा दिन दुकान पर ही रहते. फिर भी रंभा दी को कोई शिकायत नहीं थी.


नया बड़ा शहर, कालेज का खुला माहौल, नईनई सहेलियां, नई उमंगें, नई तरंगें. रंभा दी आजाद पक्षी की तरह मौजमस्ती में डूबी रहतीं. कोई रोकनेटोकने वाला था नहीं. उन दिनों चाचीसास आई हुई थीं. फिर भी उन की उच्छृंखलता कायम थी. एक रात करीब 9 बजे रंभा फिल्म देख कर लौटीं. आशुतोषजी रात 11 बजे के बाद ही घर लौटते थे, लेकिन उस दिन समय पर रंभा दी के घर नहीं पहुंचने पर चाची ने घबरा कर उन्हें बुला लिया था. वे बाहर बरामदे में ही चाची के साथ बैठे मिले.


‘‘कहां से आ रही हो?’’ उन की आवाज में गुस्सा साफ झलक रहा था.


‘‘क्लास थोड़ी देर से खत्म हुई,’’ रंभा दी ने जवाब दिया.


‘‘मैं 5 बजे कालेज गया था. कालेज तो बंद था?’’


अपने एक झूठ को छिपाने के लिए रंभा दी ने दूसरी कहानी गढ़ी, ‘‘लौटते वक्त सीमा दीदी के यहां चली गई थी.’’ सीमा दी आशुतोषजी के दोस्त की पत्नी थीं जो रंभा दी के कालेज में ही पढ़ती थीं.


आशुतोषजी गुस्से से हाथ में पकड़ा हुआ गिलास रंभा की तरफ जोर से फेंक कर चिल्लाए, ‘‘कुछ तो शर्म करो… सीमा और अरुण अभीअभी यहां से गए हैं… घर में पूरा दिन चाची अकेली रहती हैं… कालेज जाने तक तो ठीक है… उस के बाद गुलछर्रे उड़ाती रहती हो. अपने घर के संस्कार दिखा रही हो?’’


आशुतोषजी आपे से बाहर हो गए थे. उन का गुस्सा वाजिब भी था. शादी को 1 साल हो गया था. उन्होंने रंभा दी को किसी बात के लिए कभी नहीं टोका. लेकिन आज मां तुल्य चाची के सामने उन्हें रंभा दी की आदतों के कारण शर्मिंदा होना पड़ा था.


रंभा दी का गुस्सा भी 7वें आसमान पर था. एक तो नादान उम्र उस पर दूसरे के सामने हुई बेइज्जती के कारण वे रात भर सुलगती रहीं.


सुबह बिना किसी को बताए मायके आ गईं. घर में किसी ने कुछ पूछा भी नहीं. देखने, समझने, समझाने वाले दादाजी तो पोती की विदाई के 6 महीने बाद ही दुनिया से विदा हो गए थे.


आशुतोषजी ने जरूर फोन कर के उन के पहुंचने का समाचार जान लिया. फिर कभी फोन नहीं किया. 3-4 दिनों के बाद रंभा दी ने मां से उस घटना का जिक्र किया. लेकिन मां उन्हें समझाने के बजाय और उकसाने लगीं, ‘‘क्या समझाते हैं… हाथ उठा दिया… केस ठोंक देंगे तब पता चलेगा.’’ शायद अपने दुखद दांपत्य के कारण बेटी के प्रति भी वे कू्रर हो गई थीं. उन की ममता जोड़ने के बजाय तोड़ने का काम कर रही थी. रंभा दी अपनी विगत जिंदगी की कहानी अकसर टुकड़ोंटुकड़ों में बताती रहतीं, ‘‘मुझे आज भी जब अपनी नादानियां याद आती हैं तो अपने से ज्यादा मां पर क्रोध आता है. मेरे 5 अनमोल साल मां के कारण मुझ से छिन गए. लेकिन शायद मेरा कुछ भला ही होना था…’’ और वे फिर यादों में खो जातीं…


इंटर की परीक्षा करीब थी. वे अपनी पढ़ाई का नुकसान नहीं चाहती थीं, इसलिए परीक्षा देने पटना में दूर के एक मामा के यहां गईं. वहां मामा के दानव जैसे 2 बेटे अपनी तीखी निगाहों से अकसर उन का पीछा करते रहते. उन की नजरें उन के शरीर का ऐसे मुआयना करतीं कि लगता वे वस्त्रविहीन हो गई हैं. एक रात अपनी कमर के पास किसी का स्पर्श पा कर वे घबरा कर बैठ गईं. एक छाया को उन्होंने दौड़ते हुए बाहर जाते देखा. उस दिन के बाद से वे दरवाजा बंद कर के सोतीं. किसी तरह परीक्षा दे कर वे वापस आ गईं.


मां की अव्यावहारिक सलाह पर एक बार फिर वे अपनी मौसी की लड़की के यहां दिल्ली गईं. उन्होंने सोचा था कि फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर के बुटीक वगैरह खोल लेंगी. लेकिन वहां जाने पर बहन को अपने 2 छोटेछोटे बच्चों के लिए मुफ्त की आया मिल गई. वे अकसर उन्हें रंभा दी के भरोसे छोड़ कर पार्टियों में व्यस्त रहतीं. बच्चों के साथ रंभा को अच्छा तो लगता था, लेकिन यहां आने का उन का एक मकसद था. एक दिन रंभा ने मौसी की लड़की के पति से पूछा, ‘‘सुशांतजी, थोड़ा कोर्स वगैरह का पता करवाइए, ऐसे कब तक बैठी रहूंगी.’’


बहन उस वक्त घर में नहीं थी. बहनोई मुसकराते हुए बोले, ‘‘अरे, आराम से रहिए न… यहां किसी चीज की कमी है क्या? किसी चीज की कमी हो तो हम से कहिएगा, हम पूरी कर देंगे.’’


उन की बातों के लिजलिजे एहसास से रंभा को घिन आने लगी कि उन के यहां पत्नी की बड़ी बहन को बहुत आदर की नजरों से देखते हैं… उन के लिए ऐसी सोच? फिर रंभा दी दृढ़ निश्चय कर के वापस मायके आ गईं.


मायके की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. पिताजी का लिवर खराब हो गया था. उन के इलाज के लिए भी पैसे नहीं थे. रंभा के बारे में सोचने की किसी को फुरसत नहीं थी. रंभा ने अपने सारे गहने बेच कर पैसे बैंक में जमा करवाए और फिर बी.ए. में दाखिला ले लिया. एम.ए. करने के बाद रंभा की उसी कालेज में नौकरी लग गई.


5 साल का समय बीत चुका था. पिताजी का देहांत हो गया था. भाई भी पिता के रास्ते चल रहा था. घर तक बिकने की नौबत आ गई थी. आमदनी का एक मात्र जरीया रंभा ही थीं. अब भाई की नजर रंभा की ससुराल की संपत्ति पर थी. वह रंभा पर दबाव डाल रहा था कि तलाक ले लो. अच्छीखासी रकम मिल जाएगी. लेकिन अब तक की जिंदगी से रंभा ने जान लिया था कि तलाक के बाद उसे पैसे भले ही मिल जाएं, लेकिन वह इज्जत, वह सम्मान, वह आधार नहीं मिल पाएगा जिस पर सिर टिका कर वे आगे की जिंदगी बिता सकें.


आशुतोषजी के बारे में भी पता चलता रहता. वे अपना सारा ध्यान अपने व्यवसाय को बढ़ाने में लगाए हुए थे. उन की जिंदगी में रंभा की जगह किसी ने नहीं भरी थी. भाई के तलाक के लिए बढ़ते दबाव से तंग आ कर एक दिन बहुत हिम्मत कर के रंभा ने उन्हें फोन मिलाया, ‘‘हैलो.’’


‘‘हैलो, कौन?’’


आशुतोषजी की आवाज सुन कर रंभा की सांसों की गति बढ़ गई. लेकिन आवाज गुम हो गई.


हैलो, हैलो…’’ उन्होंने फिर पूछा, ‘‘कौन? रंभा.’’


‘‘हां… कैसे हैं? उन की दबी सी आवाज निकली.’’


‘‘5 साल, 8 महीने, 25 दिन, 20 घंटों के बाद आज कैसे याद किया? उन की बातें रंभा के कानों में अमृत के समान घुलती जा रही थीं.’’


‘‘आप क्या चाहते हैं?’’ रंभा ने प्रश्न किया.


‘‘तुम क्या चाहती हो?’’ उन्होंने प्रतिप्रश्न किया.


‘‘मैं तलाक नहीं चाहती.’’


‘‘तो लौट आओ, मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’ और सचमुच दूसरे दिन बिना किसी को बताए जैसे रंभा अपने घर लौट गईं. फिर साहिल पैदा हुआ और फिर सलोनी.


रंभा दी मुंगेर के जिस कालेज में इकोनौमिक्स की विभागाध्यक्ष और सहप्राचार्या थीं, उसी कालेज में मैं हिंदी की प्राध्यापिका थी. उम्र और स्वभाव में अंतर के बावजूद हम दोनों की दोस्ती मशहूर थी.


रंभा दी को पूरा कालेज हिटलर के नाम से जानता था. आभूषण और शृंगारविहीन कठोर चेहरा, भिंचे हुए होंठ, बड़ीबड़ी आंखों को ढकता बड़ा सा चश्मा. बेहद रोबीला व्यक्तित्व था. जैसा व्यक्तित्व था वैसी ही आवाज. बिना माइक के भी जब बोलतीं तो परिसर के दूसरे सिरे तक साफ सुनाई देता.


लेकिन रंभा दी की सारी कठोरता कक्षा में पढ़ाते वक्त बालसुलभ कोमलता में बदल जाती. अर्थशास्त्र जैसे जटिल विषय को भी वे अपने पढ़ाने की अद्भुत कला से सरल बना देतीं. कला संकाय की लड़कियों में शायद इसी कारण इकोनौमिक्स लेने की होड़ लगी रहती थी. हर साल इस विषय की टौपर हमारे कालेज की ही छात्रा होती थी.


मैं तब भी रंभा दी के विगत जीवन की तुलना वर्तमान से करती तो हैरान हो जाती कि कितना प्यार, तालमेल है उन के परिवार में. अगर रंभा दी किसी काम के लिए बस नजर उठा कर आशुतोषजी की तरफ देखतीं तो वे उन की बात समझ कर जब तक नजर घुमाते साहिल उसे करने को दौड़ता. तब तक तो सलोनी उस काम को कर चुकी होती.


दोनों बच्चे रूपरंग में मां पर गए थे. सलोनी थोड़ी सांवली थी, लेकिन तीखे नैननक्श और छरहरी काया के कारण बहुत आकर्षक लगती थी. वह एम.एससी. की परीक्षा दे चुकी थी. साहिल एम.बी.ए. कर के बैंगलुरु में एक अच्छी फर्म में मैनेजर के पद पर नियुक्त था. उस ने एक सिंधी लड़की को पसंद किया था. मातापिता की मंजूरी उसे मिल चुकी थी मगर वह सलोनी की शादी के बाद अपनी शादी करना चाहता था.


लेकिन सलोनी शादी के नाम से ही बिदक जाती थी. शायद अपनी मां के शुरुआती वैवाहिक जीवन के कारण उस का शादी से मन उचट गया था.


फिर एक दिन रंभा दी ने ही समझाया, ‘‘बेटी, शादी में कोई शर्त नहीं होती. शादी एक ऐसा पवित्र बंधन है जिस में तुम जितना बंधोगी उतना मुक्त होती जाओगी… जितना झुकोगी उतना ऊपर उठती जाओगी. शुरू में हम दोनों अपनेअपने अहं के कारण अड़े रहे तो खुशियां हम से दूर रहीं. फिर जहां एक झुका दूसरे ने उसे थाम के उठा लिया, सिरमाथे पर बैठा लिया. बस शादी की सफलता की यही कुंजी है. जहां अहं की दीवार गिरी, प्रेम का सोता फूट पड़ता है.’’


धीरेधीरे सलोनी आश्वस्त हुई और आज 7 फेरे लेने जा रही थी. सुबह से रंभा दी का 4-5 बार फोन आ चुका था, ‘‘सुभि, देख न सलोनी तो पार्लर जाने को बिलकुल तैयार नहीं है. अरे, शादी है कोई वादविवाद प्रतियोगिता नहीं कि सलवारकमीज पहनी और स्टेज पर चढ़ गई. तू ही जरा जल्दी आ कर उस का हलका मेकअप कर दे.’’


5 बज गए थे. साहिल गेट के पास खड़ा हो कर सजावट वाले को कुछ निर्देश दे रहा था. जब से शादी तय हुई थी वह एक जिम्मेदार व्यक्ति की तरह घरबाहर दोनों के सारे काम संभाल रहा था. मुझे देख कर वह हंसता हुआ बोला, ‘‘शुक्र है मौसी आप आ गईं. मां अंदर बेचैन हुए जा रही हैं.’’


मैं हंसते हुए घर में दाखिल हुई. पूरा घर मेहमानों से भरा था. किसी रस्म की तैयारी चल रही थी. मुझे देखते ही रंभा दी तुरंत मेरे पास आ गईं. मैं ठगी सी उन्हें निहार रही थी. पीली बंधेज की साड़ी, पूरे हाथों में लाल चूडि़यां, पैरों में आलता, कानों में झुमके, गले में लटकी चेन और मांग में सिंदूर. मैं तो उन्हें पहचान ही नहीं पाई.


‘‘रंभा दी, कहीं समधी तुम्हारे साथ ही फेरे लेने की जिद न कर बैठें,’’ मैं ने छेड़ा.


‘‘आशुतोषजी पीली धोती में मंडप में बैठे कुछ कर रहे थे. यह सुन कर ठठा कर हंस पड़े. फिर रंभा दी की तरफ प्यार से देखते हुए कहा, ‘‘आज कहीं, बेटी और बीवी दोनों को विदा न करना पड़ जाए.’’


रंभा दीदी शर्म से लाल हो गईं. मुझे खींचते हुए सलोनी के कमरे में ले गईं. शाम कोजब सलोनी सजधज कर तैयार हुई तो मांबाप, भाई सब उसे निहार कर निहाल हो गए. रंभा दी ने उसे सीने से लगा लिया. मैं ने सलोनी को चेताया, ‘‘खबरदार जो 1 भी आंसू टपकाया वरना मेरी सारी मेहनत बेकार हो जाएगी.’’


सलोनी धीमे से हंस दी. लेकिन आंखों ने मोती बिखेर ही दिए. रंभा दी ने हौले से उसे अपने आंचल में समेट लिया.


स्टेज पर पूरे परिवार का ग्रुप फोटो लिया जा रहा था. रंभा दी के परिवार की 4 मनकों की माला में आज दामाद के रूप में 1 और मनका जुड़ गया था.


उन लोगों को देख कर मुझे एक बार रंभा दी की कही बात याद आ गई. कालेज के सालाना जलसे में समाज में बढ़ रही तलाक की घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा था कि प्रेम का धागा मत तोड़ो, अगर टूटे तो फिर से जोड़ो

आज उन्हें और उन के परिवार को देख कर यह बात सिद्ध भी हो रही थी. रंभा दी के प्रेम का धागा एक बार टूटने के बावजूद फिर जुड़ा और इतनी दृढ़ता से जुड़ा कि गांठ की बात तो दूर उस की कोई निशानी भी शेष नहीं है. उन के सच्चे, निष्कपट प्यार की ऊष्मा में इतनी ऊर्जा थी जिस ने सभी गांठों को पिघला कर धागे को और चिकना और सुदृढ़ कर दिया.


Wednesday, 4 December 2024

शादी होती है तो संभोग होना लाज़मी है,

 शादी होती है तो संभोग होना लाज़मी है, एक लड़का शादी करता है तो उसके पीछे मुख्य कारण लड़की का शरीर है, लेकिन अगर गहराई से समझा जाए तो ऐसा नहीं है बात इससे कहीं ज्यादा बड़ी है 

मेरी शादी को छह साल हो गए थे। मेरे पति, राकेश, एक साधारण आदमी थे। बैंक में नौकरी करते थे और बस, उनकी दुनिया मेरे और हमारे छोटे से घर तक ही सीमित थी।, न कोई बड़े-बड़े सपने दिखाते थे। उनकी बातें, उनकी आदतें, सब मुझे साधारण लगती थीं। मैं अक्सर सोचती, "काश मेरी शादी किसी और से हुई होती, जो ज्यादा रोमांचक होता, मेरे लिए कुछ अलग करता।"


मेरे करीब तभी आते थे जब उन्हें शारीरिक संतुष्टि चाहिए होती थी और यही से मेरे मन में ये बात घर कर गई कि लडको को सिर्फ इस ही चीज से मतलब है 


मुझे कभी उनकी कद्र ही नहीं हुई। छोटी-छोटी बातों पर मैं उन्हें टोक देती। कभी कपड़े सही से नहीं पहने, कभी दाल में नमक ज्यादा डाल दिया, तो कभी बच्चों के होमवर्क में मदद करते-करते थक जाते। मुझे उनकी ये मुझे ये सब कभी अच्छी नहीं लगी।


मुझे इस बात से नफरत होती थी जब मैं बाहर माडर्न कपड़े पहन कर जाती और वो बोलते बाहर निकलने से पहले ध्यान दिया करो क्या पहनना है क्या नहीं

पर मैं बेपरवाह उनकी बात ध्यान नहीं देती थी


एक दिन राकेश जल्दी उठकर काम के लिए तैयार हो रहे थे। मैंने बिना देखे ही कहा, "ऑफिस के बाद सब्जी ले आना। हर बार भूल जाते हो।" उन्होंने सिर हिलाया और मुस्कुराते हुए बोले, "ठीक है।" वो दरवाजे से बाहर निकले और फिर... वो कभी वापस नहीं आए।


राकेश का ऑफिस जाते वक्त एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया। जब पुलिस की गाड़ी मेरे घर के बाहर रुकी और उन्होंने खबर दी, तो जैसे मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई।


चंद दिनों बाद मुझे पता चला कि राकेश ने हमारे नाम पर बीमा लिया था। एक करोड़ की रकम मेरे खाते में आ गई। रिश्तेदारों ने कहा, "बहुत अच्छा किया राकेश ने। देखो, तुम्हारे और बच्चों का भविष्य सुरक्षित कर दिया।" मैं बस चुपचाप सुनती रही।


वो एक करोड़ रुपये मेरे सामने थे, लेकिन मेरे पास राकेश नहीं था। मैंने सोचा, इस पैसे से मैं क्या खरीद सकती हूं? उनके चाय बनाने का तरीका? उनका बच्चों के साथ खेलना? वो हर शाम मुझे दफ्तर से फोन कर कहना, "कुछ चाहिए क्या?"


आज राकेश नहीं है, और मैं खुद माडर्न कपड़े नहीं पहनती क्यों की पहले मै बेपरवाह थी क्यों की लोग गंदी नजरों से नहीं देखते थे क्यों की राकेश साथ रहते थे 

आज ऐसा करने से पहले 100 बार सोचना पड़ता है


अब सब कुछ वही था, लेकिन उनके बिना सब अधूरा। जब मैं सुबह उठती, तो उनकी आदत थी चाय बनाकर मेरे पास लाने की। अब चाय का कप खाली था। जब मैं गुस्से में होती, तो वो मजाक करके मेरा मूड हल्का कर देते। अब वो खामोशी थी जो मेरे दिल को हर दिन तोड़ती थी।


मुझे याद आता है, कैसे वो हर महीने सैलरी मिलते ही मेरे लिए चुपचाप मेरी पसंद की साड़ी खरीद लाते थे। मैं शिकायत करती, "जरूरत नहीं थी, पैसे बचाया करो।" और वो कहते, "तुम्हारी मुस्कान के लिए इतना खर्च कर सकता हूं।"


अब मुझे एहसास हुआ कि वो छोटे-छोटे पल ही असली खुशियां थे। वो 'साधारण' पल ही मेरी जिंदगी का आधार थे। जिन बातों को मैं नज़रअंदाज़ करती थी, वो ही मेरे जीवन का हिस्सा थीं।


जीवन का सबक


अब जब मैं अकेली हूं, तो हर पल राकेश को महसूस करती हूं। हर चीज, हर कोना उनकी याद दिलाता है। जो बातें पहले मुझे शिकायतें लगती थीं, आज वही मेरी सबसे कीमती यादें हैं।


पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता है, लेकिन वो जो रिश्ता, जो प्यार, जो अपनापन राकेश ने मुझे दिया, उसे कोई नहीं खरीद सकता। अब मैं समझती हूं कि प्यार दिखावा नहीं, बल्कि छोटी-छोटी चीजों में छुपा होता है।


काश, मैंने उनकी कदर पहले की होती। काश, मैंने उनकी हर छोटी बात को समझा होता। पर अब सिर्फ यही सोचती हूं—उनकी कमी हर पल महसूस होती है।


आज मैं नई लड़कियों की पोस्ट और वीडियो देखती हूं उसपे वो पति की बुराई करती हैं, और ज्यादातर महिलाएं आज अपने पति से संतुष्ट नहीं है और रोज घर में किसी ना किसी बात को लेके क्लेश करती है 


बस एक बात बोलूंगी, एक बार आंख बंद कर के देखो और सोचो अगर तुम्हारा पति तुम्हारे साथ ना रहे तो तुम्हारी दुनिया कैसी रहेगी

Tuesday, 3 December 2024

दो शरीर संभोग करें तो "काम"

 दो शरीर संभोग करें तो "काम"

दो मन संभोग करें तो "प्रेम"


दो दिल संभोग करें तो "ध्यान"

दो आत्माएं संभोग करें तो "समाधि"


दो पति-पत्नी संभोग करें तो "कर्तव्य"

दो प्रेमी संभोग करें तो "सुकून"


दो अनजान संभोग करें तो "वासना"

दो पड़ौसी संभोग करें तो "मजबूरी

लेखक: सुनिल राठौड़ 

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आज दराज़ में मिले तेरे ख़त कई पुराने थे

यक़ीनन वो मेरे गुज़रे हुए खूबसूरत ज़माने थे


कुछ वादे टूटे- बिखरे और गुम हो गए

ये वो वादे थे जो हमें उम्र भर निभाने थे


वफ़ा की राह में बिछड़े थे हम क्यों ..कब ..कैसे 

ये वो मसले थे जो हमें मिल बैठ कर सुलझाने थे


अब तलक हमारी हर शेर ओ शायरी का मेयार हो तुम

तुम्हारी दास्तान से जो गुमशुदा हम वो बदनसीब अफसाने थे


हाय ! क्या दौर था मोहब्बत के हसीं आलम का

किस कदर हम तेरे इश्क़ में दीवाने थे...


तुम हज़ार मर्तबा भी रुठ जाते तो मना लेते तुम्हे

बस हमारे दरमियां रकीबो के फ़लसफ़े ना आने थे


अभी कल की ही तो बात थी होठों पर मुस्कुराहट थी

आज ये आलम है कि ग़मज़दा धड़कनों के तराने हैं!


युवाओं को मेरी सलाह...

 युवाओं को मेरी सलाह...

1. अपनी #यौन इच्छाओं पर नियंत्रण ही आपकी सफलता या असफलता का कारण होगा।


2. पोर्न और हस्तमैथुन सफलता का सबसे बड़ा हत्यारा है। यह आपके मस्तिष्क को अवरुद्ध और नष्ट कर देता है।


3. ऊँट की तरह शराब पीने से बचें। अपने होश खोने और मूर्ख बनने से बुरा कुछ नहीं है।


4. अपने मानक ऊँचे रखें और किसी चीज़ से सिर्फ़ इसलिए संतुष्ट न हों कि वह उपलब्ध है।


5. अगर आपको कोई आपसे ज़्यादा होशियार मिले, तो उसके साथ काम करें, प्रतिस्पर्धा न करें।


6. कोई भी आपकी समस्याओं को बचाने नहीं आ रहा है। आपके जीवन की 100% ज़िम्मेदारी आपकी है।


7. आपको ऐसे लोगों से सलाह नहीं लेनी चाहिए जो जीवन में उस मुकाम पर नहीं हैं जहाँ आप पहुँचना चाहते हैं।


8. पैसे कमाने के नए तरीके खोजें। पैसे कमाएँ और उन मज़ाक करने वालों को नज़रअंदाज़ करें जो आपका मज़ाक उड़ाते हैं।


9. आपको 100 सेल्फ़-हेल्प किताबों की ज़रूरत नहीं है, आपको बस कार्रवाई और आत्म-अनुशासन की ज़रूरत है। अनुशासित रहें!


10. नशीली दवाओं से बचें। खरपतवार से बचें।


11. YouTube पर कौशल सीखें, नेटफ्लिक्स पर घटिया सामग्री देखने में अपना समय बर्बाद न करें।


12. कोई भी आपकी परवाह नहीं करता। इसलिए शर्मीलेपन को छोड़ें, बाहर जाएँ और अपने लिए अवसर बनाएँ।


13. आराम सबसे बुरी लत है और अवसाद का सस्ता टिकट है।


14. अपने परिवार को प्राथमिकता दें। भले ही वे बदबूदार हों, भले ही वे मूर्ख हों, उनका बचाव करें। उनकी नग्नता को छिपाएँ।


15. नए अवसर खोजें और अपने से आगे के लोगों से सीखें।


16. किसी पर भरोसा न करें। किसी एक पर भी नहीं, चाहे आपको कितना भी प्रलोभन क्यों न दिया जाए। खुद पर विश्वास रखें।


17. चमत्कार होने का इंतज़ार न करें। हाँ, आप हमेशा अकेले नहीं कर सकते, लेकिन लोगों की राय न सुनें।


18. कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प आपको कुछ भी हासिल करा सकता है। खुद को विनम्र बनाना ही आपको ऊँचा उठाता है।


19. खुद को खोजने का इंतज़ार करना बंद करें। इसके बजाय खुद को बनाएँ।


 20. दुनिया आपके लिए धीमी नहीं होगी।


21. कोई भी आपका कुछ भी कर्जदार नहीं है।


22. जीवन एक एकल खिलाड़ी का खेल है। आप अकेले पैदा हुए हैं। आप अकेले मरने वाले हैं। आपकी सभी व्याख्याएँ अकेले हैं। आप तीन पीढ़ियों में चले गए हैं और किसी को परवाह नहीं है। आपके आने से पहले, किसी को परवाह नहीं थी। यह सब एकल खिलाड़ी है।


23. आपका जीवन पथ इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि आप हर समय ज़रूरतमंद, उदास और कमज़ोर महसूस करते हैं। और केवल एक ही रास्ता है, जो बाहर निकलने का फैसला करना है। आपके अलावा कोई भी खुद को और अपने प्रियजनों को नहीं बचा सकता।


24. हर किसी का दिल आपके जैसा नहीं होता। हर कोई आपके साथ उतना ईमानदार नहीं होता जितना आप उनके साथ हैं। आप ऐसे लोगों से मिलेंगे जो आपको अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करेंगे और फिर अपने जीवन का वह हिस्सा बीत जाने और संतुष्ट होने के बाद आपको त्याग देंगे। जागते रहें।


 25. 25 वर्ष की आयु तक, आपको इतना समझदार हो जाना चाहिए कि:

→दूसरों की सफलता का जश्न मनाएँ

→ईर्ष्या और जलन से बचें

→खुले दिमाग रखें

→अनुमान लगाने से बचें

→इरादे से काम करें

→कृतज्ञता का अभ्यास करें

→ईमानदारी से बोलें

→रोज़ाना व्यायाम करें

→गपशप से बचें

→स्वच्छ भोजन करें

→माफ़ करें

→सुनें

→सीखें

→प्यार करें

👉कुछ सीखने को मिला हो तो लाइक/Like जरुर करें

और दूसरो को भी बताना चाहते हैं तो #शेयर भी कर सकते हैं

         धन्यवाद❤💐 खुश रहो, मस्त रहो,स्वस्थ रहो 

20 तक की गिनती सुनाएगा, वही राजकुमारी का पति बनेगा

 एक राजा की बेटी की शादी होनी थी। बेटी की यह शर्त थी कि जो भी 20 तक की गिनती सुनाएगा, वही राजकुमारी का पति बनेगा। गिनती ऐसी होनी चाहिए जिसमें सारा संसार समा जाए। जो यह गिनती नहीं सुना सकेगा, उसे 20 कोड़े खाने पड़ेंगे। यह शर्त केवल राजाओं के लिए ही थी।


अब एक तरफ राजकुमारी का वरण और दूसरी तरफ कोड़े! एक-एक करके राजा-महाराजा आए। राजा ने दावत का आयोजन भी किया। मिठाई और विभिन्न पकवान तैयार किए गए। पहले सभी दावत का आनंद लेते हैं, फिर सभा में राजकुमारी का स्वयंवर शुरू होता है।


एक से बढ़कर एक राजा-महाराजा आते हैं। सभी गिनती सुनाते हैं, जो उन्होंने पढ़ी हुई थी, लेकिन कोई भी ऐसी गिनती नहीं सुना पाया जिससे राजकुमारी संतुष्ट हो सके।


अब जो भी आता, कोड़े खाकर चला जाता। कुछ राजा तो आगे ही नहीं आए। उनका कहना था कि गिनती तो गिनती होती है, राजकुमारी पागल हो गई है। यह केवल हम सबको पिटवा कर मज़े लूट रही है।


यह सब नज़ारा देखकर एक हलवाई हंसने लगा। वह कहता है, "डूब मरो राजाओं, आप सबको 20 तक की गिनती नहीं आती!"


यह सुनकर सभी राजा उसे दंड देने के लिए कहने लगे। राजा ने उससे पूछा, "क्या तुम गिनती जानते हो? यदि जानते हो तो सुनाओ।"


हलवाई कहता है, "हे राजन, यदि मैंने गिनती सुनाई तो क्या राजकुमारी मुझसे शादी करेगी? क्योंकि मैं आपके बराबर नहीं हूँ, और यह स्वयंवर भी केवल राजाओं के लिए है। तो गिनती सुनाने से मुझे क्या फायदा?"


पास खड़ी राजकुमारी बोलती है, "ठीक है, यदि तुम गिनती सुना सको तो मैं तुमसे शादी करूँगी। और यदि नहीं सुना सके तो तुम्हें मृत्युदंड दिया जाएगा।"


सब देख रहे थे कि आज तो हलवाई की मौत तय है। हलवाई को गिनती बोलने के लिए कहा गया।


राजा की आज्ञा लेकर हलवाई ने गिनती शुरू की:


"एक भगवान,  

दो पक्ष,  

तीन लोक,  

चार युग,  

पांच पांडव,  

छह शास्त्र,  

सात वार,  

आठ खंड,  

नौ ग्रह,  

दस दिशा,  

ग्यारह रुद्र,  

बारह महीने,  

तेरह रत्न,  

चौदह विद्या,  

पन्द्रह तिथि,  

सोलह श्राद्ध,  

सत्रह वनस्पति,  

अठारह पुराण,  

उन्नीसवीं तुम और  

बीसवां मैं…"

सब लोग हक्के-बक्के रह गए। राजकुमारी हलवाई से शादी कर लेती है! इस गिनती में संसार की सारी वस्तुएं मौजूद हैं। यहाँ शिक्षा से बड़ा तजुर्बा है। 🙏🏻🙏🏻

Monday, 2 December 2024

आशुतोष की शुरुआती शिक्षा गाडरवारा के ही विद्यालय में हुई थी

 मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर ज़िला के गाडरवारा में जन्मे दिग्गज अभिनेता आशुतोष राणा का पूरा नाम आशुतोष रामनारायण नीखरा है। आशुतोष के माता पिता प्यार से उन्हें राणा कह के बुलाते थे। आशुतोष की शुरुआती शिक्षा गाडरवारा के ही विद्यालय में हुई थी। बाद में उन्होंने डॉ॰ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर, मध्यप्रदेश से स्नातक किया। 


आशुतोष की पढ़ाई सेे जुड़ीएक बहुत रोचक घटना है जिस का वर्णन उन्होंने स्वयं कई बार किया है। आशुतोष ने बताया कि उनके पिताजी ने अच्छी शिक्षा के लिए आशुतोष और उनके भाई का प्रवेश गाडरवारा से जबलपुर के क्राइस्ट चर्च स्कूल में करवा दिया जहाँ आशुतोष के ऊपर अंग्रेजी शिक्षा का प्रभाव इतना अधिक पड़ा कि एक दिन जब उनके माता-पिता उनसे मिलने उनके स्कूल पहुंचे तो आशुतोष ने उनको प्रभावित करने के लिये उनके पैर छूने की बजाय गुड ईवनिंग कह कर उनका अभिवादन किया और जिस माँ से वो हर समय लिपटे रहते थे उनके पास भी नहीं गये और माँ कि निश्चल हंसी से उन्हें लगा कि सबलोग उनके इस आत्मविश्वास से बहुत प्रभावित हो गये हैं लेकिन हुआ बिल्कुल उल्टा थोड़ी ही देर बाद उनके पिता ने कहा कि अपना सामान पैक करो तुम लोगों को गाडरवारा वापस चलना है आगे की पढ़ाई अब वहीं होगी। 


बड़े अचरज के साथ जब उन्होंने इसका कारण पूछा तो उनके पिता ने उत्तर दिया कि "राणाजी मैं तुम्हें मात्र अच्छा विद्यार्थी नहीं एक अच्छा व्यक्ति बनाना चाहता हूँ। तुम लोगों को यहाँ नया सीखने भेजा था पुराना भूलने नहीं। कोई नया यदि पुराने को भुला दे तो उस नए की शुभता संदेह के दायरे में आ जाती है, हमारे घर में हर छोटा अपने से बड़े परिजन, परिचित,अपरिचित जो भी उसके सम्पर्क में आता है उसके चरण स्पर्श कर अपना सम्मान निवेदित करता है लेकिन देखा कि इस नए वातावरण ने मात्र सात दिनों में ही मेरे बच्चों को परिचित छोड़ो अपने माता पिता से ही चरण स्पर्श की जगह गुड ईवनिंग कहना सिखा दिया। मैं नहीं कहता की इस अभिवादन में सम्मान नहीं है, किंतु चरण स्पर्श करने में सम्मान होता है यह मैं विश्वास से कह सकता हूँ। विद्या व्यक्ति को संवेदनशील बनाने के लिए होती है संवेदनहीन बनाने के लिए नहीं होती। मैंने देखा तुम अपनी माँ से लिपटना चाहते थे लेकिन तुम दूर ही खड़े रहे, विद्या दूर खड़े व्यक्ति के पास जाने की समझ देती है ना कि अपने से जुड़े हुए से दूर करने का काम करती है।"


उन्होंने कहा "आज मुझे विद्यालय और स्कूल का अंतर समझ आया, व्यक्ति को जो शिक्षा दे वह विद्यालय जो उसे सिर्फ साक्षर बनाए वह स्कूल, मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चे सिर्फ साक्षर हो के डिग्रियोंं के बोझ से दब जाएँ मैं अपने बच्चों को शिक्षित कर दर्द को समझने उसके बोझ को हल्का करने की महारत देना चाहता हूँ। मैंने तुम्हें अंग्रेज़ी भाषा सीखने के लिए भेजा था आत्मीय भाव भूलने के लिए नहीं। संवेदनहीन साक्षर होने से कहीं अच्छा संवेदनशील निरक्षर होना है। इसलिए बिस्तर बाँधो और घर चलो

आशुतोष और उनके भाई तुरंत अपने माता पिता के चरणों में गिर गए उनके पिता ने उन्हें उठा कर गले से लगा लिया और कहा कि किसी और के जैसे नहीं स्वयं के जैसे बनो। पिता की ये बातें आशुतोष ने उनके आशीर्वाद की तरह गाँठ बाँधकर रख ली और उन बातों को यादकर वो आज भी आत्मविश्वास से भर जाते हैं।


#AshutoshRana #actor #actorlife #bollywoodyaatra 

हर चीज़ सही मात्रा में खाइये,

 खुद को बढ़ती उम्र के साथ स्वीकारना एक तनावमुक्त जीवन देता है।

हर उम्र एक अलग तरह की खूबसूरती लेकर आती है उसका आनंद लीजिये

बाल रंगने हैं तो रंगिये, 

वज़न कम रखना है तो रखिये, 

मनचाहे कपड़े पहनने हैं तो पहनिए,

बच्चों की तरह खिलखिलाइये, 

अच्छा सोचिये, 

अच्छा माहौल रखिये, 

शीशे में दिखते हुए अपने अस्तित्व को स्वीकारिये। 


कोई भी क्रीम आपको गोरा नही बनाती, 

कोई शैम्पू बाल झड़ने नही रोकता,

कोई तेल बाल नही उगाता, 

कोई साबुन आपको बच्चों जैसी स्किन नही देता। 

चाहे वो PNG हो या पतंजलि.....सब सामान बेचने के लिए झूठ बोलते हैं। 


ये सब कुदरती होता है। 

उम्र बढ़ने पर त्वचा से लेकर बॉलों तक मे बदलाव आता है। 

पुरानी मशीन को Maintain करके बढ़िया चला तो सकते हैं, पर उसे नई नही कर सकते।


ना किसी टूथपेस्ट में नमक होता है ना किसी मे नीम। 

किसी क्रीम में केसर नही होती, क्योंकि 2 ग्राम केसर भी 500 रुपए से कम की नही होती ! 


कोई बात नही अगर आपकी नाक मोटी है तो,

कोई बात नही आपकी आंखें छोटी हैं तो,

कोई बात नही अगर आप गोरे नही हैं 

या आपके होंठों की shape perfect नही हैं, 


फिर भी हम सुंदर हैं, 

अपनी सुंदरता को पहचानिए।


दूसरों से कमेंट या वाह वाही लूटने के लिए सुंदर दिखने से ज्यादा ज़रूरी है, अपनी सुंदरता को महसूस करना।


हर बच्चा सुंदर इसलिये दिखता है कि वो छल कपट से परे मासूम होता है और बडे होने पर जब हम छल व कपट से जीवन जीने लगते हैं तो वो मासूमियत खो देते हैं 

और उस सुंदरता को पैसे खर्च करके खरीदने का प्रयास करते हैं।


मन की खूबसूरती पर ध्यान दो।


पेट निकल गया तो कोई बात नही उसके लिए शर्माना ज़रूरी नही।

आपका शरीर आपकी उम्र के साथ बदलता है तो वज़न भी उसी हिसाब से घटता बढ़ता है उसे समझिये।


सारा इंटरनेट और सोशल मीडिया तरह तरह के उपदेशों से भरा रहता है,

यह खाओ, वो मत खाओ 

ठंडा खाओ, गर्म पीओ, 

कपाल भाती करो,  

सवेरे नीम्बू पीओ,

रात को दूध पीओ

ज़ोर से सांस लो,लंबी सांस लो 

दाहिने से सोइये ,

बाहिने से उठिए,

हरी सब्जी खाओ, 

दाल में प्रोटीन है,

दाल से क्रिएटिनिन बढ़ जायेगा।


अगर पूरे एक दिन सारे उपदेशों को पढ़ने लगें तो पता चलेगा 

ये ज़िन्दगी बेकार है ना कुछ खाने को बचेगा ना कुछ जीने को !!

आप डिप्रेस्ड हो जायेंगे।


ये सारा ऑर्गेनिक, एलोवेरा, करेला, मेथी, पतंजलि में फंसकर दिमाग का दही हो जाता है। 

स्वस्थ होना तो दूर स्ट्रेस हो जाता है।


अरे! अपन मरने के लिये जन्म लेते हैं,

कभी ना कभी तो मरना है अभी तक बाज़ार में अमृत बिकना शुरू नही हुआ।


हर चीज़ सही मात्रा में खाइये, 

हर वो चीज़ थोड़ी थोड़ी जो आपको अच्छी लगती है। 


भोजन का संबंध मन से होता है

और मन अच्छे भोजन से ही खुश रहता है..

मन को मारकर खुश नही रहा जा सकता।

थोड़ा बहुत शारीरिक कार्य करते रहिए,

टहलने जाइये, 

लाइट कसरत करिये,

व्यस्त रहिये,  

खुश रहिये,

Tuesday, 26 November 2024

EVM मशीन के बारे में:

 ईवीएम मशीन के बारे में:

वर्तमान देश में ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) को लेकर तरह-तरह के विवाद और भ्रम की स्थिति है। मैं, जो 12 से 15 बार चुनाव (त्रिकोणीय चुनाव, लोकसभा.विधानसभा etc) पार्टी अभिकर्ता के रूप में कार्य कर चुकी है, आपके साथ ईवीएम प्रक्रिया का पूरा विवरण साझा कर रही हूं ताकि आप समझ सकें कि किस प्रकार की हेराफेरी संभव नहीं है.

ईवीएम का कार्य एवं सुरक्षा प्रक्रिया:

1. मोक पोल:

मतदान प्रारंभ होने से पहले, सभी राजनीतिक विचारधारा के आचार्यों की उपस्थिति में मॉक पोल किया जाता है।

50 वोट यह जांच करता है कि हर वोट सही उम्मीदवार को मिल रहा है।

सही तरीके से आने वाली मशीन का डेटा डिलीट कर दिया जाता है और मशीन को सील कर दिया जाता है।

2. मतदान प्रक्रिया:

सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक मतदान होता है।

इस दौरान सभी सैक्स पार्टी निर्माताओं की उपस्थिति हुई।


जोनल अधिकारी एवं अन्य अधिकारी नियमित रूप से निरीक्षण करते हैं।

3. मतदान के बाद:

मतदान समाप्त होने पर मशीन में दर्ज वोट और रजिस्टर के आंकड़ों का मिलान किया जाता है।

मशीन को बैटरी फैक्ट्री, सील करके सुरक्षित तहसील या स्टोर रूम में भेज दिया जाता है।

4. भाषाई प्रक्रिया:

गिनती के दिन सभी पार्टी कंपनियों के सामने मशीन की सील हटा दी जाती है।


बैटरी स्थापित कुंजीपटल और नतीजे जारी किए जाते हैं।


ईवीएम में हेराफेरी क्यों असंभावित है?


1. इंटरनेट इंटरनेट नहीं:


मशीन इंटरनेट से जुड़ा नहीं है, इसलिए यह असंभव है।

2. मछुआरों का कोई रास्ता नहीं:


बैटरी निकालने और सीलिंग की प्रक्रिया के कारण बालों का झड़ना संभव नहीं है।

3. वीवीपैट:


सुप्रीम कोर्ट के निर्देश 2015 में ईवीएम में वीवीपैट जोड़ा गया, जिससे मतदाता को यह सुनिश्चित हो गया कि उसका वोट सही जगह पर है।

ईवीएम का खुलासा:


भारतीय ईवीएम हिंदुस्तान लिवर लिमिटेड (एचएलएल) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीएचईएल) द्वारा बनाई गई हैं।


14 अन्य देशों में भी शामिल है।


सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में स्पष्ट कर दिया था कि ईवीएम विश्वसनीय हैं और इनमें हेराफेरी की संभावना नहीं है।



बैलेट पेपर बनाम ईवीएम:


बैलट पेपर में गड़बड़ी के कई उदाहरण हैं, जैसे बैलट बॉक्स को बदल देना।


ईवीएम का उपयोग मजबूती, मजबूती और सुरक्षित प्रक्रिया सुनिश्चित करता है।


निष्कर्ष:


ईवीएम में हेराफेरी असंभावित है। इसे लेकर वह जो फैलाया जा रहा है, वह केवल राजनीतिक षडयंत्र है। हमें विज्ञान के युग में छोड़कर तकनीक का उ

पयोग करना चाहिए, न कि पुराने और महंगे बैलट पेपर पर लौटना चाहिए।


🙏🏻धन्यवाद!


Tuesday, 19 November 2024

लाचार माता के शब्द है

 इससे अच्छी पोस्ट मैंने अपनी ज़िंदगी में आज तक नही पढ़ी, आप भी जरूर पढियेगा, 😭

"बेटा! थोड़ा खाना खाकर जा ..!! दो दिन से तुने कुछ खाया नहीं है।" लाचार माता के शब्द है अपने बेटे को समझाने के लिये।

"देख मम्मी! मैंने मेरी बारहवीं बोर्ड की परीक्षा के बाद वेकेशन में सेकेंड हैंड बाइक मांगी थी, और पापा ने प्रोमिस किया था। आज मेरे आखरी पेपर के बाद दीदी को कह देना कि जैसे ही मैं परीक्षा खंड से बाहर आऊंगा तब पैसा लेकर बाहर खडी रहे। मेरे दोस्त की पुरानी बाइक आज ही मुझे लेनी है। और हाँ, यदि दीदी वहाँ पैसे लेकर नहीं आयी तो मैं घर वापस नहीं आऊंगा।"

एक गरीब घर में बेटे मोहन की जिद्द और माता की लाचारी आमने सामने टकरा रही थी।

"बेटा! तेरे पापा तुझे बाइक लेकर देने ही वाले थे, लेकिन पिछले महीने हुए एक्सिडेंट ..


मम्मी कुछ बोले उसके पहले मोहन बोला "मैं कुछ नहीं जानता .. मुझे तो बाइक चाहिये ही चाहिये ..!!"


ऐसा बोलकर मोहन अपनी मम्मी को गरीबी एवं लाचारी की मझधार में छोड़ कर घर से बाहर निकल गया।


12वीं बोर्ड की परीक्षा के बाद भागवत 'सर' एक अनोखी परीक्षा का आयोजन करते थे।

हालांकि भागवत सर का विषय गणित था, किन्तु विद्यार्थियों को जीवन का भी गणित भी समझाते थे और उनके सभी विद्यार्थी विविधता से भरे ये परीक्षा अवश्य देने जाते थे। 


इस साल परीक्षा का विषय था *मेरी पारिवारिक भूमिका*


मोहन परीक्षा खंड में आकर बैठ गया।

उसने मन में गांठ बांध ली थी कि यदि मुझे बाइक लेकर नहीं देंगे तो मैं घर नहीं जाऊंगा।


भागवत सर के क्लास में सभी को पेपर वितरित हो गया। पेपर में 10 प्रश्न थे। उत्तर देने के लिये एक घंटे का समय दिया गया था।


मोहन ने पहला प्रश्न पढा और जवाब लिखने की शुरुआत की।


*प्रश्न नंबर १ :- आपके घर में आपके पिताजी, माताजी, बहन, भाई और आप कितने घंटे काम करते हो? सविस्तर बताइये?*


मोहन ने जल्द से जवाब लिखना शुरू कर दिया।


जवाबः

पापा सुबह छह बजे टिफिन के साथ अपनी ओटोरिक्शा लेकर निकल जाते हैं। और रात को नौ बजे वापस आते हैं। कभी कभार वर्दी में जाना पड़ता है। ऐसे में लगभग पंद्रह घंटे।


मम्मी सुबह चार बजे उठकर पापा का टिफिन तैयार कर, बाद में घर का सारा काम करती हैं। दोपहर को सिलाई का काम करती है। और सभी लोगों के सो 

जाने के बाद वह सोती हैं। लगभग रोज के सोलह घंटे।


दीदी सुबह कालेज जाती हैं, शाम को 4 से 8 पार्ट टाइम जोब करती हैं। और रात्रि को मम्मी को काम में मदद करती हैं। लगभग बारह से तेरह घंटे।


मैं, सुबह छह बजे उठता हूँ, और दोपहर स्कूल से आकर खाना खाकर सो जाता हूँ। शाम को अपने दोस्तों के साथ टहलता हूँ। रात्रि को ग्यारह बजे तक पढता हूँ। लगभग दस घंटे।


(इससे मोहन को मन ही मन लगा, कि उनका कामकाज में औसत सबसे कम है।)


पहले सवाल के जवाब के बाद मोहन ने दूसरा प्रश्न पढा ..


*प्रश्न नंबर २ :- आपके घर की मासिक कुल आमदनी कितनी है?*


जवाबः

पापा की आमदनी लगभग दस हजार हैं। मम्मी एवं दीदी मिलकर पांंच हजार

जोडते हैं। कुल आमदनी पंद्रह हजार।


*प्रश्न नंबर ३ :- मोबाइल रिचार्ज प्लान, आपकी मनपसंद टीवी पर आ रही तीन सीरियल के नाम, शहर के एक सिनेमा होल का पता और अभी वहां चल रही मूवी का नाम बताइये?*


सभी प्रश्नों के जवाब आसान होने से फटाफट दो मिनट में लिख दिये ..


*प्रश्न नंबर ४ :- एक किलो आलू और भिन्डी के अभी हाल की कीमत क्या है? एक किलो गेहूं, चावल और तेल की कीमत बताइये? और जहाँ पर घर का गेहूं पिसाने जाते हो उस आटा चक्की का पता दीजिये।*


मोहनभाई को इस सवाल का जवाब नहीं आया। उसे समझ में आया कि हमारी दैनिक आवश्यक जरुरतों की चीजों के बारे में तो उसे लेशमात्र भी ज्ञान नहीं है। मम्मी जब भी कोई काम बताती थी तो मना कर देता था। आज उसे ज्ञान हुआ कि अनावश्यक चीजें मोबाइल रिचार्ज, मुवी का ज्ञान इतना उपयोगी नहीं है। अपने घर के काम की

जवाबदेही लेने से या तो हाथ बटोर कर साथ देने से हम कतराते रहे हैं।


*प्रश्न नंबर ५ :- आप अपने घर में भोजन को लेकर कभी तकरार या गुस्सा करते हो?*


जवाबः हां, मुझे आलू के सिवा कोई भी सब्जी पसंद नहीं है। यदि मम्मी और कोई सब्जी बनायें तो, मेरे घर में झगड़ा होता है। कभी मैं बगैर खाना खायें उठ खडा हो जाता हूँ। 

(इतना लिखते ही मोहन को याद आया कि आलू की सब्जी से मम्मी को गैस की तकलीफ होती हैं। पेट में दर्द होता है, अपनी सब्जी में एक बडी चम्मच वो अजवाइन डालकर खाती हैं। एक दिन मैंने गलती से मम्मी की सब्जी खा ली, और फिर मैंने थूक दिया था। और फिर पूछा कि मम्मी तुम ऐसा क्यों खाती हो? तब दीदी ने बताया था कि हमारे घर की स्थिति ऐसी अच्छी नहीं है कि हम दो सब्जी बनाकर खायें। तुम्हारी जिद के कारण मम्मी बेचारी क्या करें?)

मोहन ने अपनी यादों से बाहर आकर

अगले प्रश्न को पढा


*प्रश्न नंबर ६ :- आपने अपने घर में की हुई आखरी जिद के बारे में लिखिये ..*


मोहन ने जवाब लिखना शुरू किया। मेरी बोर्ड की परीक्षा पूर्ण होने के बाद दूसरे ही दिन बाइक के लिये जिद्द की थी। पापा ने कोई जवाब नहीं दिया था, मम्मी ने समझाया कि घर में पैसे नहीं है। लेकिन मैं नहीं माना! मैंने दो दिन से घर में खाना खाना भी छोड़ दिया है। जबतक बाइक नहीं लेकर दोगे मैं खाना नहीं खाऊंगा। और आज तो मैं वापस घर नहीं जाऊंगा कहके निकला

हूँ।

अपनी जिद का प्रामाणिकता से मोहन ने जवाब लिखा।


*प्रश्न नंबर ७ :- आपको अपने घर से मिल रही पोकेट मनी का आप क्या करते हो? आपके भाई-बहन कैसे खर्च करते हैं?*


जवाब: हर महीने पापा मुझे सौ रुपये देते हैं। उसमें से मैं, मनपसंद पर्फ्यूम, गोगल्स लेता हूं, या अपने दोस्तों की छोटीमोटी पार्टियों में खर्च करता हूँ।


मेरी दीदी को भी पापा सौ रुपये देते हैं। वो खुद कमाती हैं और पगार के पैसे से मम्मी को आर्थिक मदद करती हैं। हां, उसको दिये गये पोकेटमनी को वो गल्ले में डालकर बचत करती हैं। उसे कोई मौजशौख नहीं है, क्योंकि वो कंजूस भी हैं।


*प्रश्न नंबर ८ :- आप अपनी खुद की पारिवारिक भूमिका को समझते हो?*

 

प्रश्न अटपटा और जटिल होने के बाद भी मोहन ने जवाब लिखा।

परिवार के साथ जुड़े रहना, एकदूसरे के प्रति समझदारी से व्यवहार करना एवं मददरूप होना चाहिये और ऐसे अपनी जवाबदेही निभानी चाहिये। 

 

यह लिखते लिखते ही अंतरात्मासे आवाज आयी कि अरे मोहन! तुम खुद अपनी पारिवारिक भूमिका को योग्य रूप से निभा रहे हो? और अंतरात्मा से जवाब आया कि ना बिल्कुल नहीं ..!!


*प्रश्न नंबर ९ :- आपके परिणाम से आपके माता-पिता खुश हैं? क्या वह अच्छे परिणाम के लिये आपसे जिद करते हैं? आपको डांटते रहते हैं?*


(इस प्रश्न का जवाब लिखने से पहले हुए मोहन की आंखें भर आयी। अब वह परिवार के प्रति अपनी भूमिका बराबर समझ चुका था।)

लिखने की शुरुआत की ..


वैसे तो मैं कभी भी मेरे माता-पिता को आजतक संतोषजनक परिणाम नहीं दे पाया हूँ। लेकिन इसके लिये उन्होंने कभी भी जिद नहीं की है। मैंने बहुत बार अच्छे रिजल्ट के प्रोमिस तोडे हैं।

 फिर भी हल्की सी डांट के बाद वही प्रेम और वात्सल्य बना रहता था।


*प्रश्न नंबर १० :- पारिवारिक जीवन में असरकारक भूमिका निभाने के लिये इस वेकेशन में आप कैसे परिवार को मददरूप होंगें?*


जवाब में मोहन की कलम चले इससे पहले उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, और जवाब लिखने से पहले ही कलम रुक गई .. बेंच के निचे मुंह रखकर रोने लगा। फिर से कलम उठायी तब भी वो कुछ भी न लिख पाया। अनुत्तर दसवां प्रश्न छोड़कर पेपर सबमिट कर दिया।


स्कूल के दरवाजे पर दीदी को देखकर उसकी ओर दौड़ पडा।


"भैया! ये ले आठ हजार रुपये, मम्मी ने कहा है कि बाइक लेकर ही घर आना।"

दीदी ने मोहन के सामने पैसे धर दिये।


"कहाँ से लायी ये पैसे?" मोहन ने पूछा।


दीदी ने बताया

"मैंने मेरी ओफिस से एक महीने की सेलेरी एडवांस मांग ली। मम्मी भी जहां काम करती हैं वहीं से उधार ले लिया, और मेरी पोकेटमनी की बचत से निकाल लिये। ऐसा करके तुम्हारी बाइक के पैसे की व्यवस्था हो गई हैं।


मोहन की दृष्टि पैसे पर स्थिर हो गई।


दीदी फिर बोली " भाई, तुम मम्मी को बोलकर निकले थे कि पैसे नहीं दोगी तो, मैं घर पर नहीं आऊंगा! अब तुम्हें समझना चाहिये कि तुम्हारी भी घर के प्रति जिम्मेदारी है। मुझे भी बहुत से शौक हैं, लेकिन अपने शौक से अपने परिवार को मैं सबसे ज्यादा महत्व देती हूं। तुम हमारे परिवार के सबसे लाडले हो, पापा को पैर की तकलीफ हैं फिर भी तेरी बाइक के लिये पैसे कमाने और तुम्हें दिये प्रोमिस को पूरा करने अपने फ्रेक्चर वाले पैर होने के बावजूद काम किये जा रहे हैं। तेरी बाइक के लिये। यदि तुम समझ सको तो अच्छा है, कल रात को अपने प्रोमिस को पूरा नहीं कर सकने के कारण बहुत दुःखी थे। और इसके पीछे उनकी मजबूरी है।

बाकी तुमने तो अनेकों बार अपने प्रोमिस तोडे ही है न?  

मेरे हाथ में पैसे थमाकर दीदी घर की ओर चल निकली।


उसी समय उनका दोस्त वहां अपनी बाइक लेकर आ गया, अच्छे से चमका कर ले आया था।

"ले .. मोहन आज से ये बाइक तुम्हारी, सब बारह हजार में मांग रहे हैं, मगर ये तुम्हारे लिये आठ हजार ।"


मोहन बाइक की ओर टगर टगर देख रहा था। और थोड़ी देर के बाद बोला

"दोस्त तुम अपनी बाइक उस बारह हजार वाले को ही दे देना! मेरे पास पैसे की व्यवस्था नहीं हो पायी हैं और होने की हाल संभावना भी नहीं है।"


और वो सीधा भागवत सर की केबिन में जा पहूंचा।


"अरे मोहन! कैसा लिखा है पेपर में?

भागवत सर ने मोहन की ओर देख कर पूछा।


"सर ..!!, यह कोई पेपर नहीं था, ये तो मेरे जीवन के लिये दिशानिर्देश था। मैंने एक प्रश्न का जवाब छोड़ दिया है। किन्तु ये जवाब लिखकर नहीं अपने जीवन की जवाबदेही निभाकर दूंगा और भागवत सर को चरणस्पर्श कर अपने घर की ओर निकल पडा।


घर पहुंचते ही, मम्मी पापा दीदी सब उसकी राह देखकर खडे थे।

"बेटा! बाइक कहाँ हैं?" मम्मी ने पूछा। मोहन ने दीदी के हाथों में पैसे थमा दिये और कहा कि सोरी! मुझे बाइक नहीं चाहिये। और पापा मुझे ओटो की चाभी दो, आज से मैं पूरे वेकेशन तक ओटो चलाऊंगा और आप थोड़े दिन आराम करेंगे, और मम्मी आज मैं मेरी पहली कमाई शुरू होगी। इसलिये तुम अपनी पसंद की मैथी की भाजी और बैगन ले आना, रात को हम सब साथ मिलकर के खाना खायेंगे।

 

मोहन के स्वभाव में आये परिवर्तन को देखकर मम्मी ने उसको गले लगा लिया और कहा कि "बेटा! सुबह जो कहकर तुम गये थे वो बात मैंने तुम्हारे पापा को बतायी थी, और इसलिये वो दुःखी हो गये, काम छोड़ कर वापस घर आ गये। भले ही मुझे पेट में दर्द होता हो लेकिन आज तो मैं तेरी पसंद की ही सब्जी बनाऊंगी।" मोहन ने कहा 

"नहीं मम्मी! अब मै समझ गया हूँ कि मेरे घरपरिवार में मेरी भूमिका क्या है? मैं रात को बैंगन मैथी की सब्जी ही खाऊंगा, परीक्षा में मैंने आखरी जवाब नहीं लिखा हैं, वह प्रेक्टिकल करके ही दिखाना है। और हाँ मम्मी हम गेहूं को पिसाने कहां जाते हैं, उस आटा चक्की का नाम और पता भी मुझे दे दो"और उसी समय भागवत सर ने घर में प्रवेश किया। और बोले "वाह! मोहन जो जवाब तुमनें लिखकर नहीं दिये वे प्रेक्टिकल जीवन जीकर कर दोगे 


"सर! आप और यहाँ?" मोहन भागवत सर को देख कर आश्चर्य चकित हो गया।


"मुझे मिलकर तुम चले गये, उसके बाद मैंने तुम्हारा पेपर पढा इसलिये तुम्हारे घर की ओर निकल पडा। मैं बहुत देर से तुम्हारे अंदर आये परिवर्तन को सुन रहा था। मेरी अनोखी परीक्षा सफल रही 

और इस परीक्षा में तुमने पहला नंबर पाया है।" 

ऐसा बोलकर भागवत सर ने मोहन के सर पर हाथ रखा

मोहन ने तुरंत ही भागवत सर के पैर छुएँ और ऑटो रिक्शा चलाने के लिये निकल पडा....

       मेरा सभी सम्माननीय अभिभावकों से आग्रह है कि आप इस पोस्ट को आप भी जरूर पढ़िए गा और अपने बच्चों को भी पढ़ने का अवसर दें इससे अच्छी पोस्ट मैंने अपनी जिंदगी में आज तक नहीं पड़ी प्रैक्टिकल जीवन में तो मैंने अनुभव किया है अरविन्द वर्मा जी लेकिन सभी लोगों को किस प्रकार से अनुभव कराया जाए इसके लिए मेरा आपसे आग्रह है कि आप स्वयं और अपने बच्चों को इस पोस्ट को जरूर करने का अवसर प्रदान करें l

Monday, 18 November 2024

रचनाकार की कृति ।शब्द *रचे* जाते हैं,


शब्द *रचे* जाते हैं,

 शब्द *गढ़े* जाते हैं,

  शब्द *मढ़े* जाते हैं,

   शब्द *लिखे* जाते हैं,

    शब्द *पढ़े* जाते हैं,

     शब्द *बोले* जाते हैं,

      शब्द *तौले* जाते हैं,

       शब्द *टटोले* जाते हैं,

        शब्द *खंगाले* जाते हैं,

               ... इस प्रकार

शब्द *बनते* हैं,

 शब्द *संवरते* हैं,

  शब्द *सुधरते* हैं,

   शब्द *निखरते* हैं,

    शब्द *हंसाते* हैं,

     शब्द *मनाते* हैं,

      शब्द *रूलाते* हैं,

       शब्द *मुस्कुराते* हैं,

        शब्द *खिलखिलाते* हैं,

         शब्द *गुदगुदाते* हैं, 

          शब्द *मुखर* हो जाते हैं

           शब्द *प्रखर* हो जाते हैं

            शब्द *मधुर* हो जाते हैं

               ... इतना होने के बाद भी

शब्द *चुभते* हैं,

 शब्द *बिकते* हैं,

  शब्द *रूठते* हैं,

   शब्द *घाव देते* हैं,

    शब्द *ताव देते* हैं,

     शब्द *लड़ते* हैं,

      शब्द *झगड़ते* हैं,

       शब्द *बिगड़ते* हैं,

        शब्द *बिखरते* हैं

         शब्द *सिहरते* हैं

               ... परन्तु

शब्द कभी *मरते नहीं*

 शब्द कभी *थकते नहीं*

  शब्द कभी *रुकते नही

Tuesday, 12 November 2024

जिस्म से जिस्म की गर्माहट का तो पता नहीं..

 तेरे छूने मात्र से मैं महक उठती हूं...

 बाहों में लेने से तेरी मैं बहक उठती हूं...

 जिस्म से जिस्म की गर्माहट का तो पता नहीं...

 मगर तेरे आलिंगन से ही मैं लहक उठती हूं...

 अधरो का कंपन फिर रुकता नहीं...

 और फिर मैं धीरे-धीरे खुद को तुझे सौंपने लगती हूं...

 क्या होगा अंजाम ये ख्याल भी मुझे फिर सताता नहीं...

 उस वक्त तेरे सिवा मुझे कुछ और भाता नहीं....

 प्रेम में मिलन बड़ा ही सुखद होता है....

 शब्दों में बयां ना हो पाए जो, ये वैसा होता है...

 ना समझ पाएगा कोई इस एहसास को...

 प्रेम से ऊपर भी क्या कुछ और होता है....

 ✍️

सेक्स ही तो करना है बाबू चाहे अभी करें या बाद में करें, शादी तुम्हारे साथ करनी है

 सेक्स ही तो करना है बाबू चाहे अभी करें या बाद में करें, शादी तुम्हारे साथ करनी है तो मेरा मन करेगा तो तुम्हारे साथ ही शेयर करूंगा ना कि किसी और के साथ शेयर करूंगा, 

और इस तरह मुकुल और अदिति की पहली संभोग वाली रात हुई 

लेकिन उससे पहले ये दोनों मिले कैसे थे इसे देखत हैं 


अदिति कॉलेज के प्रथम वर्ष में थी एक मिडिल क्लास लड़की, घर परिवार की इज्जत करने वाली, पैसे ज्यादा नहीं थे तो अदिति के पास पढ़ाई कर के अच्छी नौकरी करने के अलावा कोई और options नहीं था पर


कॉलेज प्रतिदिन अदिति आती थी, और उसी कॉलेज के आप पास अपने काम से मुकुल भी रहता था, मुकुल की नज़रे जब अदिति पर पड़ी तो वो उसे निहारता रह गया 


काफी कोशिश के बाद भी मुकुल की बात ना हो सकी 

फिर मुकुल ने नेहा से दोस्ती की जो की अदिति की दोस्त थी 

और नेहा के जरिए अदिति से दोस्ती की 

मुकुल ने बताया कि उसके पापा बड़े व्यापारी हैं और वो व्यापार के काम से ही रोज कॉलेज के पास आता है 

और उसकी नज़रे अदिति पर पड़ी, 


मुकुल वास्तव में हैंडसम था, पैसा वाला था और व्यवहार तो ऐसा जिसे देखते हो कोई भी कायल हो जाए 


मुकुल हर संभव प्रयास करता की वो अदिति का दिल जीत सके और अदिति का पूरा अटेंशन प्राप्त करे 


अदिति की हर छोटी बड़ी जरूरतों का ध्यान रखता था, कुछ भी काम हो तुरंत हो जाता था 

धीरे धीरे अदिति का भी मन बदला और वो मुकुल को पसंद करने लगी, उसे ये एहसास हो गया था कि मुकुल के रहते अब उसे कभी किसी और की जरूरत नहीं पड़ेगी 


धीरे धीरे दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई, दोनो जवान थे और जवानी के समय अपने अरमानों को दबाना हर किसी के बस की बात नहीं होती 


मुकुल ने अदिति को बोला क्या वो शादी करेगी, अदिति चाहती थी कि शादी हो पर हां नहीं बोल पा रही थी 


क्यों कि उसे पता था वो एक मिडिल क्लास लड़की है, और मुकुल एक रहीस उसकी फैमली कभी ऐसी ग्रैंड शादी नहीं कर पाएंगे 


उसने दबे मन से बोला 

देखो मुकुल मै तुमसे प्यार करती हूं लेकिन कभी शादी नहीं होगी हमारी क्यों मेरे पापा इतना खर्च नहीं कर पाएंगे 


मुकुल ने हंसते हुए बोला अरे मैं कौनसा दहेज मांग रहा हूं। मैं तो बस तुमको चाहता हूं 


अदिति ने बोला दहेज तो हम वैसे भी नहीं दे पाएंगे एक साधारण शादी कर लें वहीं बहुत हैं हमारे लिए लेकिन तुम्हारे परिवार को ग्रैंड और महंगी शादी चाहिए 


मुकुल ने बोला हां चाहिए तो 

एक काम करो मेरे पास 1 करोड़ की सेविंग्स है 50 लाख तुम रखो और शादी के लिए घर पे बात करो 

ये बात सिर्फ मेरे और तुम्हारे परिवार के बीच होगी 


अदिति ने सोचा आज के समय में कौन इतना सोचता है किसी लड़की केलिए 


और उसने अगले दिन मुकुल की बात मान ली 


अब दोनो अपने जिंदगी में खुश थे, मुकुल ख्याल रखता 


और दोनो एक दिन होटल में मिलने का प्लान किए मुकुल ने बोला कि मुझे तुम्हारे साथ sex करना है 


अदिति ने मन किया कि शादी के बाद, मुकुल बोला शादी तो होनी ही है बाबू और तुमसे होनी है इसमें पहले बाद में क्या अब तुम्हे देख के मुझे फीलिंग्स आती है तो तुमसे ना बोलूं तो किससे बोलूं, 

अदिति मानती है और मुकुल के साथ सहवास करती है 


और धीरे धीरे ये हर महीने और हर हफ्ते होता है 


मुकुल ने मजाक मजाक में अदिति के साथ वीडियो बनाई अदिति जानती थी कि ये मजे के लिए कर रहा है और वीडियो फोटो क्लिक करने में उसका साथ देती 

लेकिन बोलती इसे डिलीट करना मुकुल बोला ठीक है 


इसके बाद दोनो बाहर खाने जाते हैं और फिर अपने अपने घर चले जाते हैं


1 हफ्ते बाद मुकुल फिर प्लान करता है मिलने का अदिति खुश होती है और तुरंत तैयार होती है 

अच्छे होटल में दोनों मिलते हैं 


लेकिन इस बार खाली मुकुल नहीं होता है उसके साथ उसके 5 दोस्त और होते हैं 

जो अदिति के साथ सहवास करना चाहते हैं 


मुकुल उसे बोलता है कि यदि उसने उसके दोस्तों। को खुश नहीं किया तो जो सारी फोटो वीडियो है उसे इंटरनेट पे वायरल कर देगा 


अदिति के पास कोई उपाय नहीं था, उसने ऐसा किया, वो किसी कीमत पर नहीं चाहती थी कि उसकी ये बात उसके घर में किसी को पता चले 


वो पुलिस में कंप्लेन नहीं कर सकती थी क्यों की उसे पता था पुलिस छान बीन करेगी और नाम आयेगा 


धीरे धीरे मुकुल के दोस्त और मुकुल अदिति के शरीर का फायदा उठाते 


और कभी कभी किसी और अमीर इंसान से पैसे लेके अदिति को भेजते 


और मजबूरन एक पढ़ने वाली लड़की की जिंदगी तबाह हो जाती जब वो अपना मानसिक संतुलन खो बैठती तो उसके घर वाले उसका इलाज कराते और 5 साल के लंबे थेरेपी के बाद अदिति थोड़ा सही होती 

लेकिन आज भी उसके मां बाप इस बात से अंजान है कि उसके बेटी के साथ क्या हुआ 


अब आप को बता दें ये अदिति कोई काल्पनिक लड़की नहीं बल्कि मेरे द्वारा इलाज की गई एक पेशेंट की कहानी है 

और ये एक सच्ची घटना है 


लड़कियों और लड़कों के साथ होने वाले इस कृत्य को ग्रुपिंग कहा जाता है जहां पहले एक लड़का लड़की को फंसता है फिर बाकी लड़के और पैसे के दम पे दूसरे लोग भी उसका शोषण करते हैं 


ग्रुपिंग की शिकार ज्यातातर कॉलेज में जाने वाली लड़किया होती है और ज्यादातर शादीशुदा पुरुष होते हैं 


और ज्यादातर ये लड़किया होती है जो मिडिल क्लास की हैं क्यों की उन्हें पता होता है ये तबका सिर्फ अपनी इज्जत बचाना चाहता है 

और ना इनके पास इतना पैसा है कि वो कोर्ट कचहरी कर सके 

इस मैसेज को ज्यादा से ज्यादा बहन बेटियों तक शेयर कीजिए 

यदि आप को भी कोई लड़का मिलता है तो उससे दोस्ती कीजिए लेकिन अपनी लिमिट समझिए, यदि दोस्ती प्यार में बदल रही तो इस चीज को अपने माता पिता के साथ अहरे कीजिए

Sunday, 10 November 2024

गांठ बांध लीजिए...

 गांठ बांध लीजिए...*🪢 कन्याओं का विवाह 21 से 25 वे वर्ष तक, और लड़कों का विवाह 25 से 29वें वर्ष की आयु तक हर स्थिति में हो जाना चाहिए !*

*🪢 फ्लैट न लेकर जमीन खरीदो, और उस पर अपना घर बनाओ! वरना आपकी संतानों का भविष्य पिंजरे के पंछी की तरह हो जाएगा*

*🪢 गांव से नाता जोड़ कर रखें ! और गांव की पैतृक सम्पत्ति, और वहां के लोगों से नाता, जोड़कर रखें !*

*🪢 अपनी संतानों को अपने धर्म की शिक्षा अवश्य दें, और उनके मानसिक व शारीरिक विकास पर अवश्य ध्यान दें !*

*🪢 किसी भी और आतंकवादी प्रवृत्ति के व्यक्ति से सामान लेने-देने, व्यवहार करने से यथासंभव बचें !*

*🪢 घर में बागवानी करने की आदत डालें,(और यदि पर्याप्त जगह है,तो देशी गाय पालें।* 

*🔖 होली, दीपावली,विजयादशमी, नवरात्रि, मकर संक्रांति, जन्माष्टमी, राम नवमी, आदि जितने भी त्यौहार आयें, उन्हें आफिस/कार्य से छुट्टी लेकर सपरिवार मनाये।* 

*🪢 !(हो सके तो पैदल, व परिवार के साथ )*

🪢 *प्रात: काल 5-5:30 बजे उठ जाएं, और रात्रि को 10 बजे तक सोने का नियम बनाएं ! सोने से पहले आधा गिलास पानी अवश्य पिये (हार्ट अटैक की संभावना घटती है)*

*🪢 यदि आपकी कोई एक संतान पढ़ाई में असक्षम है, तो उसको कोई भी हुनर (Skill) वाला ज्ञान जरूर दें !*

*🪢 आपकी प्रत्येक संतान को कम से कम तीन फोन नंबर स्मरण होने चाहिए, और आपको भी!*

*🪢 जब भी परिवार व समाज के किसी कार्यक्रम में जाएं, तो अपनी संतानों को भी ले जाएं ! इससे उनका मानसिक विकास सशक्त होगा !*

*🪢 परिवार के साथ मिल बैठकर भोजन करने का प्रयास करें, और भोजन करते समय मोबाइल फोन और टीवी बंद कर लें !*

*🪢 अपनी संतानों को बालीवुड की कचरा फिल्मों से बचाएं, और प्रेरणादायक फिल्में दिखाएं !*

*🪢 जंक फूड और फास्ट फूड से बचें !*

*🪢 सांयकाल के समय कम से कम 10 मिनट भक्ति संगीत सुने, बजाएं !*

*🪢 दिखावे के चक्कर में पड़कर, व्यर्थ का खर्चा न करें !*

*🪢 दो किलोमीटर तक जाना हो, तो पैदल जाएं, या साईकिल का प्रयोग करें !*

*🪢 अपनी संतानों के मन में किसी भी प्रकार के नशे (गुटखा, तंबाखू, बीड़ी, सिगरेट, दारू...) के विरुद्ध चेतना उत्पन्न करें,तथा उसे विकसित करें !*

*🪢 सदैव सात्विक भोजन ग्रहण करें, अपने भोजन का ईश्वर को भोग लगा कर प्रसाद ग्रहण करें ! !*

*🪢 अपने आंगन में तुलसी का पौधा अवश्य लगायें, व नित्य प्रति दिन पूजा, दीपदान अवश्य करें !*

*🪢 अपने घर पर एक हथियार अवश्य रखें, ओर उसे चलाने का निरन्तर हवा में अकेले प्रयास करते रहें, ताकि विपत्ति के समय प्रयोग कर सकें ! जैसे-लाठी,हॉकी,गुप्ती, तलवार,भाला,त्रिशूल व बंदूक/पिस्तौल लाइसेंस के साथ !*

*🪢 घर में पुत्र का जन्म हो या कन्या का, खुशी बराबरी से मनाएँ ! दोनों जरूरी है ! अगर बेटियाँ नहीं होगी तो परिवार व समाज को आगे बढाने वाली बहुएँ कहाँ से आएगी और बेटे नहीं होंगे तो परिवार समाज व देश की रक्षा कौन करेगा !*

Saturday, 9 November 2024

पति नहीं चाहिए, दोस्त चाहिए

 पति नहीं चाहिए, दोस्त चाहिए


सुबह जब अलसाई आँखों से उठूँ तो उसके डर से नहीं, बल्कि खुद के लिए उठना चाहती हूँ। कभी-कभी कहना चाहूँ कि, "यार, आज तुम चाय बना दो।" एक ऐसा दोस्त चाहिए, जिससे बेझिझक अपनी बात कह सकूँ।


मुझे वो नहीं चाहिए जो हर बात में मुझसे कहे, "ये मत पहनो, वहाँ मत जाओ, इस से मत मिलो।" बल्कि मुझे चाहिए एक दोस्त, जो कहे, "तुम जैसे हो वैसे ही रहो।"


मुझे वो नहीं चाहिए जो खिड़की से झांकता रहे कि मैं किससे बात कर रही हूँ, और शक की कहानियाँ बुन ले। कोई ऐसा चाहिए जो मुझे समझे और कहे, "यार, तुम्हारी सोशल नेचर अच्छी है।" जो मुझसे कहे, "तुम कितनी जल्दी लोगों से घुल-मिल जाती हो, काश मैं भी कर पाता।"

पति नहीं चाहिए, जो मेरे छोटे-छोटे सपनों पर नाराज़ हो। मुझे ऐसा दोस्त चाहिए, जो कहे, "सपने देखो, और उन्हें पूरा करो।" जो कहे, "कभी अपने दोस्तों के साथ पहाड़ों पर घूम आओ, या बारिश में चाय का मज़ा लो।"

मुझे चाहिए वो, जिससे मैं कह सकूँ, "आज मेरी तारीफ करो।" जो मेरे नखरे उठाए और मुझे स्पेशल फील कराए।

मुझे वो नहीं चाहिए जो हर बात पर टोक दे, बल्कि मुझे वो चाहिए जो बारिश में मेरा हाथ पकड़ कर कहे, "आओ खिड़की खोलते हैं और बारिश में भीगते हैं।"

Sunday, 3 November 2024

KBC जहां रुकना संतोष है

 जहां रुकना संतोष है


केबीसी

हाल ही के एक एपिसोड में, नीरज सक्सेना ने "फास्टेस्ट फिंगर" राउंड में सबसे तेजी से जवाब देकर हॉट सीट पर जगह बनाई।


वह बड़े ही शांत भाव से बैठे, बिना चिल्लाए, नाचे, रोए, हाथ उठाए, या अमिताभ को गले लगाए। नीरज एक वैज्ञानिक, पीएच.डी. और कोलकाता की एक विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। उनका स्वभाव सहज और सादा है। उन्होंने खुद को भाग्यशाली माना कि उन्हें डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के साथ काम करने का अवसर मिला, और बताया कि पहले वह केवल अपने बारे में सोचते थे, लेकिन कलाम साहब के प्रभाव से उन्होंने दूसरों और देश के बारे में भी सोचना शुरू कर दिया।


नीरज ने खेलना शुरू किया। उन्होंने एक बार ऑडियंस पोल लाइफलाइन का इस्तेमाल किया, लेकिन चूंकि उनके पास "डबल डिप" लाइफलाइन भी थी, तो उसे भी बाद में इस्तेमाल करने का अवसर मिला। उन्होंने सभी सवालों के जवाब सहजता से दिए, और उनकी बुद्धिमत्ता प्रभावित करने वाली थी। उन्होंने ₹3,20,000 और उसके बराबर बोनस राशि जीत ली, और फिर ब्रेक हुआ।


ब्रेक के बाद, अमिताभ ने घोषणा की, "चलिए, डॉ. साहब, आगे बढ़ते हैं। यहाँ ग्यारहवां सवाल आता है..." तभी, नीरज बोले, "सर, मैं गेम छोड़ना चाहता हूँ।"


अमिताभ को आश्चर्य हुआ। कोई इतना अच्छा खेल रहा है, तीन लाइफलाइन बची हैं, और एक करोड़ (₹1,00,00,000) जीतने का अच्छा मौका है, फिर भी वह छोड़ रहे हैं? उन्होंने पूछा, "ऐसा पहले कभी नहीं हुआ..."


नीरज ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया, "अन्य खिलाड़ी इंतजार कर रहे हैं, और वे मुझसे छोटे हैं। उन्हें भी मौका मिलना चाहिए। मैंने पहले ही बहुत पैसे जीत लिए हैं। मुझे लगता है 'जो मेरे पास है, वही काफी है।' मुझे और की इच्छा नहीं है।"


अमिताभ स्तब्ध रह गए और थोड़ी देर के लिए सन्नाटा छा गया। फिर, सभी खड़े हो गए और उन्हें लंबे समय तक तालियों से सम्मानित किया।


अमिताभ ने कहा, "आज हमने बहुत कुछ सीखा है। ऐसा व्यक्ति दुर्लभ है।"


सच कहूं तो यह पहली बार है जब मैंने किसी को अपने सामने इतनी बड़ी संभावना के बावजूद दूसरों को मौका देने और अपने पास जो है उसे पर्याप्त मानने वाला देखा। मैंने मन ही मन उन्हें सलाम किया।


आजकल लोग केवल पैसे के पीछे दौड़ रहे हैं। चाहे जितना भी कमा लें, संतोष नहीं होता, और लालच खत्म नहीं होता। इस दौड़ में वे परिवार, नींद, खुशी, प्रेम, और दोस्ती खो रहे हैं।


ऐसे समय में, डॉ. नीरज सक्सेना जैसे लोग एक अनुस्मारक बनकर आते हैं। आज के समय में संतुष्ट और निःस्वार्थ लोग मिलना मुश्किल है।


उनके खेल छोड़ने के बाद, एक लड़की ने हॉट सीट पर जगह बनाई और अपनी कहानी सुनाई: "मेरे पिता ने हमें, मेरी मां समेत, केवल इसलिए घर से बाहर निकाल दिया क्योंकि हम तीन बेटियां हैं। अब हम एक अनाथालय में रहते हैं..."


मैंने सोचा, अगर नीरज ने छोड़ने का फैसला न किया होता, तो, यह अंतिम दिन होने के कारण, किसी और को मौका नहीं मिलता। उनके इस त्याग के कारण इस गरीब लड़की को कुछ पैसे कमाने का अवसर मिल गया।


आजकल लोग अपनी संपत्ति में से एक पाई भी छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। इसके लिए हम झगड़े और यहां तक कि हत्याएं होते हुए देखते हैं। स्वार्थ आम हो गया है। लेकिन यह उदाहरण एक अपवाद है।


ईश्वर ऐसे लोगों में बसते हैं जो दूसरों और देश के बारे में सोचते हैं। मैं इस महान व्यक्ति को जीवन भर नहीं भूलूंगा। मुझे खुशी है कि मुझे आज एक अद्वितीय व्यक्ति के बारे में लिखने का मौका मिला।


जब आपकी ज़रूरतें पूरी हो जाएं, तो रुक जाना चाहिए और दूसरों को मौका देना चाहिए। स्वार्थ को छोड़ दें, और सभी खुश रहेंगे। यह सबक मैंने सीखा। मैंने हमेशा ऐसे लोगों की प्रशंसा की है और मानता हूँ कि उनके बारे में ईमानदारी से लिखना समाज के उत्थान के लिए आवश्यक है। 🌹🌹

पिता के बाद पति ही होते हैं जो पत्नियों के लिए हमेशा अमीर होते है ❤️

 एक विवाहित स्त्री जो आपको आकर्षक और सुंदर लगती हैं 😊


याद रखिए कि उसकी सुंदरता भले ही जन्मजात हो लेकिन उस सौंदर्य को बरकरार रखने में एक पुरूष का प्रेम और समर्पण होता है...


 पुरूष जो खुद भूल जाते है कई बार शेव करवाना हेयर कट...


याद रखते हैं त्यौहारों पर स्त्री के लिए की उसे कुछ चाहिए तो नहीं नई साड़ी, चूड़ियां, श्रृंगार...


 वो एडजस्ट कर लेते हैं अपने लिए पर सदैव ये चाहते हैं कि उनकी पत्नी जब घर परिवार के साथ खड़ी हो तो लोगों को उनकी किस्मत पर रश्क हो...


 गौर से देखिएगा कभी उन स्त्रियों का चेहरा जिनके विवाह सफल नहीं हुए या पति जल्दी चले गए ..


आपको एहमियत समझ में आ जाएगी एक स्त्री के जीवन में पुरूष के क्या मायने हैं 😊


शारीरिक रूप से स्त्री एक नहीं हजारों पुरुषों की प्रेमिका हो सकती हैं लेकिन..


 उसे सर का ताज गृह लक्ष्मी अपना मान ये हर कोई नहीं बना सकता है उसे मानसिक रूप से हर पुरूष नही संभाल सकता है...


 भले वो परिवार की धुरी है पर उसे भी एक समतल स्थान चाहिए स्वछंद होकर घूमने के लिए 😊


याद रखिए जब आप कहते है कि एक विवाहिता की उम्र देख कर नहीं लगता कि वो शादीशुदा है या बच्चों की मां है तो उसमें सबसे बड़ा योगदान उस पुरूष का होता है जो किसी की घर की राजकुमारी को अपने घर की रानी बनाकर रखता है...


 पिता के बाद पति ही होते हैं जो पत्नियों के लिए हमेशा अमीर होते है ❤️ 🧿🧿🧿

Wednesday, 30 October 2024

जीवन में परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, अगर आत्मविश्वास और समझदारी हो, तो कोई भी मुश्किल हालात को पार किया जा सकता है।

 एक दिन, एक कंपनी में साक्षात्कार के दौरान, बॉस, जिसका नाम अनिल था, ने सामने बैठी महिला, सीमा से पूछा, "आप इस नौकरी के लिए कितनी तनख्वाह की उम्मीद करती हैं?"


सीमा ने बिना किसी झिझक के आत्मविश्वास से कहा, "कम से कम 90,000 रुपये।"


अनिल ने उसकी ओर देखा और आगे पूछा, "आपको किसी खेल में दिलचस्पी है?"


सीमा ने जवाब दिया, "जी, मुझे शतरंज खेलना पसंद है।"


अनिल ने मुस्कुराते हुए कहा, "शतरंज बहुत ही दिलचस्प खेल है। चलिए, इस बारे में बात करते हैं। आपको शतरंज का कौन सा मोहरा सबसे ज्यादा पसंद है? या आप किस मोहरे से सबसे अधिक प्रभावित हैं?"


सीमा ने मुस्कुराते हुए कहा, "वज़ीर।"


अनिल ने उत्सुकता से पूछा, "क्यों? जबकि मुझे लगता है कि घोड़े की चाल सबसे अनोखी होती है।"


सीमा ने गंभीरता से जवाब दिया, "वास्तव में घोड़े की चाल दिलचस्प होती है, लेकिन वज़ीर में वो सभी गुण होते हैं जो बाकी मोहरों में अलग-अलग रूप से पाए जाते हैं। वह कभी मोहरे की तरह एक कदम बढ़ाकर राजा को बचाता है, तो कभी तिरछा चलकर हैरान करता है, और कभी ढाल बनकर राजा की रक्षा करता है।"


अनिल ने उसकी समझ से प्रभावित होते हुए पूछा, "बहुत दिलचस्प! लेकिन राजा के बारे में आपकी क्या राय है?"


सीमा ने तुरंत जवाब दिया, "सर, मैं राजा को शतरंज के खेल में सबसे कमजोर मानती हूँ। वह खुद को बचाने के लिए केवल एक ही कदम उठा सकता है, जबकि वज़ीर उसकी हर दिशा से रक्षा कर सकता है।"


अनिल सीमा के जवाब से प्रभावित हुआ और बोला, "बहुत शानदार! बेहतरीन जवाब। अब ये बताइए कि आप खुद को इनमें से किस मोहरे की तरह मानती हैं?"


सीमा ने बिना किसी देर के जवाब दिया, "राजा।"


अनिल थोड़ी हैरानी में पड़ गया और बोला, "लेकिन आपने तो राजा को कमजोर और सीमित बताया है, जो हमेशा वज़ीर की मदद का इंतजार करता है। फिर आप क्यों खुद को राजा मानती हैं?"


सीमा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "जी हाँ, मैं राजा हूँ और मेरा वज़ीर मेरा पति था। वह हमेशा मेरी रक्षा मुझसे बढ़कर करता था, हर मुश्किल में मेरा साथ देता था, लेकिन अब वह इस दुनिया में नहीं है।"


अनिल को यह सुनकर थोड़ा धक्का लगा, और उसने गंभीरता से पूछा, "तो आप यह नौकरी क्यों करना चाहती हैं?"


सीमा की आवाज भर्राई, उसकी आँखें नम हो गईं। उसने गहरी सांस लेते हुए कहा, "क्योंकि मेरा वज़ीर अब इस दुनिया में नहीं रहा। अब मुझे खुद वज़ीर बनकर अपने बच्चों और अपने जीवन की जिम्मेदारी उठानी है।"


यह सुनकर कमरे में एक गहरी खामोशी छा गई। अनिल ने तालियाँ बजाते हुए कहा, "बहुत बढ़िया, सीमा। आप एक सशक्त महिला हैं।"


शिक्षा और सशक्तिकरण का महत्व:


यह कहानी उन सभी बेटियों के लिए एक प्रेरणा है जो जिंदगी में किसी भी तरह की मुश्किलों का सामना कर सकती हैं। बेटियों को अच्छी शिक्षा और परवरिश देना बेहद जरूरी है, ताकि अगर कभी उन्हें कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़े, तो वे खुद वज़ीर बनकर अपने और अपने परिवार के लिए एक मजबूत ढाल बन सकें।

किसी विद्वान ने कहा है, "एक बेहतरीन पत्नी वह होती है जो अपने पति की मौजूदगी में एक आदर्श औरत हो, और पति की गैरमौजूदगी में वह मर्द की तरह परिवार का बोझ उठा सके।"

यह कहानी अरविन्द वर्मा हमें सिखाती है कि जीवन में परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, अगर आत्मविश्वास और समझदारी हो, तो कोई भी मुश्किल हालात को पार किया जा सकता है।

Monday, 28 October 2024

रिश्ते में सिर्फ जिम्मेदारी निभाना ही नहीं, बल्कि एक-दूसरे की भावनाओं को समझना और उन्हें पूरा करना भी जरूरी होता है।

 जब एक औरत की शारीरिक जरूरत उसका पति पूरा नहीं कर पाता तो अक्सर औरत ऐसा ही करती है 

रीमा ने एक दिन अपने पति अशोक से सीधे शब्दों में सवाल किया, "क्या तुम्हें लगता है कि हमारी शादी में वो जुनून अब भी है?" अशोक कुछ देर चुप रहा, जैसे उसे समझ ही नहीं आया कि आखिर रीमा ऐसा सवाल क्यों पूछ रही है। उसने हल्की हंसी के साथ जवाब दिया, "हम तो एक खुशहाल दंपती हैं, ऐसा क्या कमी महसूस होती है तुम्हें?" लेकिन रीमा की आँखों में जो खलिश थी, वो शायद अशोक समझ नहीं पा रहा था।


💔 रीमा की उलझन: शादी के आठ साल बाद भी रीमा को अपने रिश्ते में वो अपनापन और उत्साह महसूस नहीं हो रहा था। अशोक एक अच्छा इंसान था, लेकिन उसने कभी रीमा की भावनाओं और उसकी गहरी इच्छाओं को समझने की कोशिश नहीं की थी। उसकी सारी प्राथमिकताएं काम और परिवार की जिम्मेदारियों में समाई हुई थीं। रीमा अक्सर महसूस करती कि उनका रिश्ता एक रूटीन बनकर रह गया है, जिसमें रोमांच और वो खास जुड़ाव कहीं खो गए हैं।


🌹 अपनी सहेली से सलाह: अपनी उलझन को दूर करने के लिए रीमा ने अपनी करीबी सहेली सोनल से बात की। सोनल ने उसे एक महत्वपूर्ण सलाह दी, "तुम्हें अशोक से इस बारे में खुलकर बात करनी चाहिए। बहुत बार मर्द अपनी पत्नी की ख्वाहिशों को तभी समझ पाते हैं जब वो सीधा बताती हैं।" सोनल ने रीमा को समझाया कि उसे अपनी भावनाएं स्पष्ट शब्दों में अशोक के सामने रखनी चाहिए।


🌌 अशोक के साथ संवाद: रीमा ने एक शांत शाम को अशोक के साथ बैठकर अपनी भावनाओं के बारे में बात की। उसने बताया कि वो सिर्फ एक जीवन साथी नहीं, बल्कि एक ऐसा साथी भी चाहती है जो उसकी भावनाओं, इच्छाओं और ख्वाहिशों को समझ सके। उसने अशोक से कहा कि उसे सिर्फ प्यार नहीं, बल्कि ऐसा जुड़ाव चाहिए जो उनकी शादीशुदा जिंदगी को और मजबूत बना सके।


💫 अशोक की जागरूकता: रीमा की बातों ने अशोक को सोचने पर मजबूर कर दिया। उसने महसूस किया कि उसने कभी अपने रिश्ते में उस गहराई को नहीं देखा, जिसकी रीमा को जरूरत थी। उसने अपने रिश्ते को एक नई ऊर्जा देने का वादा किया। उसने तय किया कि वो सिर्फ एक पति नहीं, बल्कि रीमा का ऐसा साथी बनेगा जो उसकी भावनाओं को भी समझे।


💖 नई शुरुआत: धीरे-धीरे अशोक और रीमा के बीच की दूरियां मिटने लगीं, और उनका रिश्ता पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो गया। अशोक ने महसूस किया कि रीमा की इच्छाओं को समझने और उसे संतुष्ट करने से उनकी शादी में वो पुरानी गर्मजोशी लौट आई है। अब रीमा भी पहले से ज्यादा खुश और संतुष्ट महसूस करने लगी थी।


सीख: रिश्ते में सिर्फ जिम्मेदारी निभाना ही नहीं, बल्कि एक-दूसरे की भावनाओं को समझना और उन्हें पूरा करना भी जरूरी होता है। सच्चा प्यार और संतोष तभी संभव है जब दोनों अपने दिल की बातें खुलकर साझा करें और अपने रिश्ते को संजीवनी देने की कोशिश करें।

Sunday, 20 October 2024

आपकी एक छोटी सी पहल समाज को एक कुरीति से बचाएगी…

 विवाह भोज या निकाह की पार्टी : विचार करना 

कल एक जैन परिवार की शादी में ,प्रीतिभोज में जाना हुआ , स्वागत गेट में गुलाब के फूल ,मैंगो शेक,ड्राइफूट के साथ स्वागत हुआ अंदर मैदान में अद्भुत नजारा था। आर्केस्ट्रा की स्वर लहरी चारो तरफ गुंजायमान थी ।

इवेंट मैनेजमेंट का फंडा चारो तरफ बिखरा हुआ दिख रहा है। दूल्हा और दुल्हन को गेट से ही मंच तक लेकर जाने की अदभुत तैय्यारी भी रथ व नाचने गाने वालो को पूरी टीम तैयार थी जो वर वधु को लेकर बीच मैदान में ले जाकर वरमाला करवाकर स्टेज में ले गया ।


हम सब तो थके मांदे भूख से व्याकुल लोग थे जो पहुंच गए स्टार्टर की ओर पर उसी बीच एक दूसरे और तेज हो हल्ला सुनाई देने लगी, मैं भी गुपचुप का दोना रख उस और हो लिया।


वहा तो अलग ही नजारा था। चक सफेद धोती कुर्ता और कंधे में क्रीम कलर का साफी डाले लगभग 65 साल का बुजुर्ग पर उनका आवाज युवाओं से भी तेज ,लड़की वाले व केट्ररर्स को चमका रहा था और बार बार कह रहा था हम सब खाना नही खायेगे,या तो आप ये मेनू की जो सूची लिखे बोर्ड है उसे फेके या फिर भोजन को फेके ? हम सब ये खाना नही खायेगे ।

हम शादी में आए है निकाह में नहीं।


मेरी भी नजर अचानक खाने के स्टाल पर पड़ी ,जहा लिखा था #वेज_बिरयानी_हरा_भरा_कबाब_वेज_कोरमा_कबाब_वेज_हांडी_बिरयानी,।


बुजुर्ग तमतमाया हुआ था, बात बात में कहता था बिरयानी व कबाब किसे कहते है, मुझे समझाओ फिर ही हम सब भोजन करेगे और अपने इस बहस में मुझे भी शामिल कर लिया की बताइए भाईजी क्या ऐसा लिखना उचित है।

मांस के उपयोग से बने भोजन को ही बिरयानी व कबाब कहते है ,क्या हमे इस जगह पर ऐसे हालात में भोजन करना चाहिए ।मेरे और अनायास दादा के प्रश्न पर मैं भी कुछ बोल नहीं पा रहा था।


एक तरफ केट्ररर्स की गलती ,समाज में चल रहे अंधाधुन पश्चात्य संस्कृति के ढल रहे लोग,और दूसरी ओर हाथ जोड़े अनुनय करते खड़े लड़की के परिवार वाले? और सबके बीच धर्म, संस्कृति व भोजन के तरीके पर अड़े दादाजी,जो अपनी जगह बिल्कुल सही थे अब उनके स्वर और तीखे हो गए कहने लगे बताओ मैं विवाह में आया हूं की निकाह में ?


बाते बढ़ते देख मैंने व वहाँ पर खड़े दो तीन मित्रो ने मिलकर केटरर्स को चिल्लाकर स्टाल से सारे स्टीगर निकाल फेके जिसमे बिरयानी व कबाब जैसे शब्द लिखे थे, तब दादाजी का गुस्सा शांत हुआ और फिर उन्होंने भोजन ग्रहण करने की हामी भरी वो भी बैठकर, ।


दादा जी की बाते वहा पर उपस्थित सभी लोगो को एक सीख दे गई की मांसाहारी भोजन के लिए ही कबाब व बिरयानी जैसे शब्द प्रयोग किया जाता है ।और खाना नही हमे भोजन करना चाहिए । केटरर्स जो भी लिखे उसे हमे भी एक बार मेन्यू तय करते समय अपनी समाज एवम संस्कृति के हिसाब से देख भी लेना चाहिए।ज़्यादातर लोग बिना जानकारी के ही कर लेते हैं हम सब यदि सोच समझकर इस दिशा में आगे बढ़ेंगे तो बदलाव लाया जा सकता है…

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*बिरयानी का मतलब होता है सब्ज़ियों एंव मांस का मिश्रण 

*कवाब एक फ़ारसी शब्द है जिसका मतलब होता है पका हुआ मांस 

*कोरमा मतलब भुना हुआ मांस

अब आप खुद सोचें भारतीय व्यंजन के नाम के साथ इनको जोड़ना ठीक है…?जब नाम ये होगा तो हम किस मानसिकता का खाना खाते हैं…

विरोध करिये अभी तो हमारी पकड़ में है नहीं तो वास्तव में निकाह में ही जाओगे और मांसाहारी खाना खाओगे…नई पीढ़ी वेज भूल जाएगी और मांसाहारी बन जाएगी क्यूँकि हम यही तो दे रहे हैं…?

कैटर्स को रोकिये ये नाम देने के लिये…होटल व रेस्टोरेंट में विरोध प्रकट कीजिए…

आपकी एक छोटी सी पहल समाज को एक कुरीति से बचाएगी…

आप भी करिये, मैं भी करता हूँ।

साभार

 हो सकता है मैं कभी प्रेम ना जता पाऊं तुमसे.. लेकिन कभी पीली साड़ी में तुम्हे देखकर थम जाए मेरी नज़र... तो समझ जाना तुम... जब तुम रसोई में अके...