Search This Blog

Tuesday, 6 May 2025

निःस्वार्थ प्रेम का अर्थ वह होता है,

 यदि निस्वार्थ भाव से इंसान की आंखों में स्नेह, होठों पर मुस्कान, हृदय में सरलता और करुण नहीं है, तो सब कुछ है व्यर्थ

✍🏻

निःस्वार्थ प्रेम का अर्थ वह होता है, जिसमें स्वार्थ न हो । प्रेम देने का नाम है, लेने का नहीं। जब प्रेम के बदले कोई अपेक्षा की जाती है, तब वह प्रेम निः स्वार्थ प्रेम नहीं रह जाता है। एक माँ अपने बुरे से बुरे पुत्र को भी निःस्वार्थ प्रेम के वशीभूत होकर गले से लगा लेती है, जबकि दूसरे रिश्तों में उस व्यक्ति विशेष के लिए हमें अच्छा होना पड़ता है, तभी प्रेम मिल पाता है, लेकिन माता-पिता द्वारा अपने बच्चे को किए गए प्रेम को निस्वार्थ कह सकते हैं। बच्चा बड़ा होकर अपने मां-बाप के प्रेम का कर्ज किस तरह उतारेगा, इसकी परवाह मां बाप कभी नहीं करते हैं और अपने बच्चे की परवरिश में पूरी जिंदगी लगा देते हैं। निस्वार्थ प्रेम का इससे सच्चा उदाहरण और क्या हो सकता है ।

आज के परिवर्तनशील माहौल में अधिकांश लोग स्वार्थी हो गए हैं क्योंकि हर चीज किसी न किसी स्वार्थ के धागे में बंधी हुई है। फिर भी सच्चा प्रेम और दिल से किया गया प्रेम हमेशा निस्वार्थ होता है, लेकिन क्या सच्चे प्रेम को नापने का कोई पैमाना है ? इसलिए इस तरह के प्रेम में समय के साथ बदलाव भी होता है और धोखे भी होते हैं। हम एक-दूसरे को चाहे कितने भी भारी भारी प्यार भरे शब्दों से सजावट कर के सुविचार भेज दें, यदि निस्वार्थ भाव से हमारी आंखों में स्नेह, होठों पर मुस्कान, ह्रदय में सरलता और करुणा नहीं है, तो सब कुछ व्यर्थ है ।

लेखक: सुनिल राठौड़ 


No comments:

 हो सकता है मैं कभी प्रेम ना जता पाऊं तुमसे.. लेकिन कभी पीली साड़ी में तुम्हे देखकर थम जाए मेरी नज़र... तो समझ जाना तुम... जब तुम रसोई में अके...