सभी को प्रणाम।
सबसे पहले मैं आपको अपना परिचय देता हूँ।
मेरा पूरा नाम सुनील नारायण राठौड़ है।
मेरा जन्म 22 अप्रैल 1989 दिन बुधवार,समय 11.बजे बुरहानपुर जिले के बोदरली गांव में गरीब किसान के घर बंजारा परिवार में हुआ। मैंने हिंदी विषय में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। । हिंदी विषय से मैंने बी.एड भी किया है, कंप्यूटर में डीसीए 1 वर्ष का कोर्स किया है मैंने पीजीडीटीव्स्की भी किया है। उन्होंने पुणे में टैक्सटाइल डिजाइनिंग कोर्स किया। यह एक प्रोजेक्ट मिशन है। स्कूल के दौरान मैंने बस कंडक्टर का काम किया। और मेरी लाइफ की पहली कमाई से मैंने अपनी माँ के लिए एक साड़ी खरीदी। फिर मैंने कपड़े की दुकान में काम सेल्स का काम किया। बाबा रामदेव गारमेट बुरहानपुर), मैंने सन 2006: 2011 तक, 5 साल तक "मेट" के पद पर जॉब किया है। महिंद्रा एंड महिंद्रा (आरसी एंड एम) कंपनी ने भारतीय जीवन बीमा निगम एलआईसी में अभिकर्ता के तौर पर 2018 तक एंकरिंग कार्य किया। इसके अलावा डीजे ऑपरेटर, जेसीपीआई एजेंट, प्रॉपर्टी ब्रोकर, मैंने इंदौर के कॉल सेंटर में जॉब किया है। सन 2014 में मैंने अपना एक ढाबा भी खोला, लेकिन दो साल बाद उस ढाबे में चोरी हो जाने के कारण मुझे ढाबा बंद करना पड़ा। बैंक से लोन लेकर किराना व्यवसाई का काम आपके घर पर चालू हो गया है। 2019 में सरकारी स्कूल सीतापुर में अतिथि शिक्षक के तौर पर बच्चों को 1 साल मुफ्त में पढ़ाया जाता है। मैं एक नेक और ईमानदार व्यक्ति हूँ। 14 जुलाई 2016 को पूजा नाम की लड़की से शादी हुई। मेरा एक 2 साल का बेटा है। जिसका नाम पार्थ है।.... मैं उसके भविष्य को लेकर बहुत चिंतित हूं। मैं एक अच्छे व्यापार या एक अच्छे व्यवसाय की तलाश में हूँ। मैंने अपने जीवन में कई कहानियाँ देखी हैं और कई समाचार देखे हैं। । मैं अपने बारे में कम और दूसरों के बारे में ज्यादा सोचता हूं। मैं एक दयालु व्यक्ति हूँ इसलिए मैं अपने जीवन में सफल नहीं हो सका। मैं अपनी खुद की एक कंपनी खोलना चाहता हूं। मल्टी लेवल मार्केटिंग कंपनी जिसके लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं। मैं अपना पूरा खोलकर गरीब लोगों की मदद करना चाहता हूं। मेरे पास मल्टीपल लाभ मार्केटिंग के लिए बहुत सारी योजनाएं हैं। मेरे पास बहुत सारे विचार हैं। मुझे सत्य यात्रा और पीढ़ी की योजनाओं के बारे में थोड़ा ज्ञान है। लेकिन मैं एक कंपनी खोलने में असमर्थ हूं क्योंकि मेरे पास पर्याप्त पैसा नहीं है। इस समय, मुझे एक अच्छा व्यवसाय। की आवश्यकता है।और मैं उसकी तलाश में हूं।मैं अपने जीवन में बहुत बड़ा आदमी बनना चाहता हूं। मुझे एक अच्छे मंच की जरूरत है
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एक पंक्ति।
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मेरे जीवन की कहानी
बहुत शौक था मुझे सबको खुश रखने का ।
एक पंक्ति।
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मेरे जीवन की कहानी
बहुत शौक था मुझे सबको खुश रखने का ।
और शायद यही दरियादिली सोच मुझे एक दिन ले डूबेगी मुझे अपने आप पर विश्वास नहीं होता।
सभी के सभी कैसे आसान हो सकते हैं। .हो सकता है कहीं पर मैं गलत हूँ। .लेकिन कहां पर गलत हूं। यह मेरी समझ में नहीं आ रहा है। किसी और की मदद करना, सभी का आधार सम्मान करना, बिना गलती की माफ़ी मांगना। बिना स्वार्थ के समाज सेवा करना। अगर यह गलत बात है तो फिर मैं गलत हूं"कभी-कभी हम गलत नहीं होते लेकिन हमारे पास वह समय और शब्द नहीं होते। जो हमें सही साबित कर सके। मैंने बचपन से लेकर जवानी तक संघर्ष किया है। मैं अपनी कहानी आपकी शब्दों में कहता हूँ। मैं अपने दुखों की सहानुभूति नहीं लेना चाहता। वन लाइनर स्क्रिप्ट में मैं आपको समझ नहीं सकता कि खुद की कहानी लिखूं भी मेरी आंखों में आंसू आ जाते हैं। मैं एक बहुत बुरे दौर से गुजर रहा हूँ। मेरी कहानी आपका मनोरंजन तो नहीं होगा लेकिन आंख में आंसू जरूर आएगा और एक बात हमेशा याद रहेगी।
सिर्फ एक वादा अपने आपसे जिंदगी भर निभाना। जहां पर आप गलत न हों वहां पर सिर मत बहाना। जो गलती मेरी है, उसे तुम मत करो।
मैं। मैं आपके लिए अपने स्कूल जीवन से लेकर विवाहित जीवन तक की कहानी लेकर आया हूँ।
हमारी अठतो के तार जनधन योजना की तरह होते हैं। मित्र पड़ोसी मित्र। आदि
मैं। मैं आपके लिए अपने स्कूल जीवन से लेकर विवाहित जीवन तक की कहानी लेकर आया हूँ।
हमारी अठतो के तार जनधन योजना की तरह होते हैं। मित्र पड़ोसी मित्र। आदि
मैं मंदिर कभी नहीं जाता। और
भगवान को कभी नहीं दुखता।
जरूरी नहीं कि कुछ गलत करने से ही दुख मिले।
यहां हद से ज्यादा अच्छे होने की भी कीमत चुकानी पड़ती है।
बेवजह इल्जाम लगता है मैंने सुना है। इल्जाम इतनी संगीन कि खुद को खत्म करने को जी चाहता है। लेकिन उससे मैं बेगुनाह साबित नहीं हो सकता, हो सकता है। फिर मेरे दिमाग में एक ही बात आती है। इंसान को खुद की नजरों में अच्छा होना चाहिए। दूसरों की नजरों में तो भगवान भी बुरा मानते हैं या फिर झूठे लोगों को भी झूठा मानते हैं। सच को सच करने के लिए खुद का मन भी सच्चा होना नहीं जाना चाहिए और कितने गलती मुझ पर लगे हैं जो मुझे ही पता नहीं। पर आरोप लगाने वालों में दूसरों से ज्यादा अपनों का हाथ है। यह कोई नई बात नहीं है।
दुख तो इस बात का है कि हमारी नियत साफ हो और लोग फिर भी हमें बेईमान समझे। किसी के दयालु इल्जाम ने मेरी जिंदगी नरक बना रखी है। मेरी कहानी कोई 3 घंटे की फिल्म नहीं है कि मैं उन्हें बेगुनाह साबित करके बता दूं। जिंदगी में इतने बेईमान लोग मिले कि ईमानदार लोगों से भी नफरत हो गई। खैर कोई बात नहीं अब जो होगा सो देखा जाएगा। ऊपरवाला परीक्षा कब तक होती है ?
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सत्र १
बेवजह इल्जाम लगता है मैंने सुना है। इल्जाम इतनी संगीन कि खुद को खत्म करने को जी चाहता है। लेकिन उससे मैं बेगुनाह साबित नहीं हो सकता, हो सकता है। फिर मेरे दिमाग में एक ही बात आती है। इंसान को खुद की नजरों में अच्छा होना चाहिए। दूसरों की नजरों में तो भगवान भी बुरा मानते हैं या फिर झूठे लोगों को भी झूठा मानते हैं। सच को सच करने के लिए खुद का मन भी सच्चा होना नहीं जाना चाहिए और कितने गलती मुझ पर लगे हैं जो मुझे ही पता नहीं। पर आरोप लगाने वालों में दूसरों से ज्यादा अपनों का हाथ है। यह कोई नई बात नहीं है।
दुख तो इस बात का है कि हमारी नियत साफ हो और लोग फिर भी हमें बेईमान समझे। किसी के दयालु इल्जाम ने मेरी जिंदगी नरक बना रखी है। मेरी कहानी कोई 3 घंटे की फिल्म नहीं है कि मैं उन्हें बेगुनाह साबित करके बता दूं। जिंदगी में इतने बेईमान लोग मिले कि ईमानदार लोगों से भी नफरत हो गई। खैर कोई बात नहीं अब जो होगा सो देखा जाएगा। ऊपरवाला परीक्षा कब तक होती है ?
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सत्र १
मैं छोटा था, स्कूल जाने के लिए रोता था। मेरी उम्र 4 साल थी और एडमिशन 6 साल में हुआ था।
जब दादाजी ने टीचर से कहा की हाईट कम और उम्र ज्यादा है। तब टी.वी. ने मान लिया।
मेरा जन्म 22 अप्रैल 1989 को हुआ था। सर ने 1987 कर दिया।
प्राइमरी स्कूल में अपने हाथ को अपने सर के ऊपर से कान तक पुराने पर एडमिशन हुआ था। तब मैक 4 साल का था
कहानी की शुरुआत मेरे बचपन से होती है जहाँ तक मुझे याद है।
स्कूल से आने के बाद। हम लोग कभी कभार ही पढ़ाई करते थे । कुछ बच्चे के खेल कूद में लग गए । हमारे गाँव का माहौल ही कुछ ऐसा था हमारे टाइम के खेल
,,,,,, गोटी, भोरा,
पतंग, थारे-पुलिस, कबड्डी, हाथी का सूंड, छुपा-छुपी, लड़ाई, दब
-दुबली, खो-खो दिलू। दोस्तों का टायर.कुरती.हुआ करते थे। लेकिन ये सब में मेरा गेम सबसे अलग था। कागज की एंडटी पर नोट का आकार जैसा काट के। उसके चेहरे पर मुस्कान थी। 2,5 10,के नोट के आकार की गालों निर्माता अपने पास थे। मेरे घर के सामने की धागे पर कागज की लकड़ी मिट्टी का। पुल बनाकर उस पर से खिलौने की.गाड़ी और थी.न कभी कभी छुप्पा-छापी या। वायरलिंग खेलने का शौक था।
हाफ पैंट शर्ट पहनना स्कूल जाने की शुरुआत की। हमारे समय में। स्कूल बैग बसता। ऐसा नहीं हुआ था। एक थैली में पट्टी और लेखन.लेकर स्कूल जाने लगे। कभी-कभी लेखन का कोई खास महत्व नहीं होता, बल्कि वह अपने घर पर रह जाता है। इसलिए स्कूल जाने के लिए पैसे की मांग नहीं करते। चार आने वाले नन्हें मिलने पर बड़े खुश होकर स्कूल जाने लगे। आकाश तीसरी तिमाही में जाने तक हमें पढ़ा नहीं था। फिर मैं पाँचवी कक्षा में गया। जतन में 77% प्रतिशत के साथ एक नंबर से पास हुआ। जिसके लिए मुझे हमारे गांव के डॉ सतीश भंगड़े साहब ने 15 अगस्त को ₹ 21 का पुरस्कार दिया। उस ₹ 21 को मैंने कई दिन तक खर्च किया। नहीं किया। किया।
,,,,,, अगला प्रवेश मेरा छठी कक्षा में था। और हमें छठी कक्षा में जाने के लिए बहुत डर लगता था। क्योंकि वहां पर अंग्रेजी अध्ययन पढा जाता था। इंग्लिश का पहला शब्द हमने एबीसीडी छठी कक्षा में पढ़ना शुरू किया। के लिए मेरे पास बुक नहीं थी। मेरे घर की आर्थिक स्थिति खराब थी।
मेरा बड़ा भाई कक्षा सातवीं में पढ़ा था जो कि मुझसे 4 साल बड़ा था। मैं छठी पुरानी किताब पढ़ता हूँ।
कभी-कभी हमारे और बड़े भाई में झगड़ा होने पर भाई मुझे बहुत मरता था और मेरी किताब भी छीन लेती थी। और दोपहर में खाना खाने की छुट्टी में स्कूल से घर जल्दी आ कर। मेरे लिए रखा हुआ खाना भी पूरा खा जाता था। फिर मैं भूखा ही स्कूल चला जाता था। जब शाम को मां-बाप खेत से काम करके वापस आते थे तो भाई की शिकायत करता था।
माँ-बाप के दत्तने पर भाई घर के ऊपर पत्थर फेंकता था।
टंटी को लात मारता है, दरवाजा तोड़ता केवल पत्थरों की पट्टियों या आत्महत्या करने की धमकी देता है। ऐसी हरकतें करता है इसलिए माँ-बाप उससे डर जाते थे और उसे कुछ नहीं होता था। कभी-कभी मुझे भूख लगने पर मैं खिचड़ी बनाता था तो भी मुझे खाने नहीं देता था। मुझे बहुत बुरा लगा था और खुशबूदार खिचड़ी को फेंक देता था। । मैं छोटा था और कमजोर था इसलिए उसका सामना नहीं कर सका। आज भी सारी बातें याद है। मेरी माँ-बाप ने मुझे कभी हाथ नहीं लगाया। मुझे बड़ा लाड प्यार से पाला है।इसलिए वह चुरा ले गयी थी। जितना मैं उससे डरता हूँ उतना मुझे पीटता, मेरे जमा किए हुए पैसे भी चुरा लेता था। मेरे द्वारा पीने जाने पर मुझे ही पीटता था कि माँ-बाप को मत देना। कि पैसे मैंने चुप कराया है तो तू नहीं और बहुत मारेंगे। मार खाने के डर से मैं भी डरा हुआ रहता हूँ।
कक्षा आठवीं की बोर्ड परीक्षा देने के लिए हमें हमारे गांव से 9 किलोमीटर दूर दरियापुर गांव में जाना पड़ता है।
एक साइकिल पर दो लोग जांच करने गए थे। गाँव में सिर्फ आठवीं तक के स्कूल थे। आठवीं कक्षा पास करके के नौवीं में प्रवेश के लिए मेरे पास पाँच सौ रुपये नहीं थे।
जैसे-तैसे एडमिशन किया गया। अब तो स्कूल जाने की परेशानी और बढ़ गई। अब हमारे सामने रोज की 5 रूपए की दरकार थी।
घर से जिस दिन पैसे मिलते हैं। उसी दिन स्कूल नहीं जाते थे, तो घर पर रह जाते थे। कभी-कभी तो हम पैदल 5 रुपये बचाने के लिए पैदल स्कूल से घर आते थे। 9वीं कक्षा पास कर के दसवीं में गए।
हमारी क्लास में लड़के-लड़कियां सहित 34 बच्चे थे।
,,,,,, अगला प्रवेश मेरा छठी कक्षा में था। और हमें छठी कक्षा में जाने के लिए बहुत डर लगता था। क्योंकि वहां पर अंग्रेजी अध्ययन पढा जाता था। इंग्लिश का पहला शब्द हमने एबीसीडी छठी कक्षा में पढ़ना शुरू किया। के लिए मेरे पास बुक नहीं थी। मेरे घर की आर्थिक स्थिति खराब थी।
मेरा बड़ा भाई कक्षा सातवीं में पढ़ा था जो कि मुझसे 4 साल बड़ा था। मैं छठी पुरानी किताब पढ़ता हूँ।
कभी-कभी हमारे और बड़े भाई में झगड़ा होने पर भाई मुझे बहुत मरता था और मेरी किताब भी छीन लेती थी। और दोपहर में खाना खाने की छुट्टी में स्कूल से घर जल्दी आ कर। मेरे लिए रखा हुआ खाना भी पूरा खा जाता था। फिर मैं भूखा ही स्कूल चला जाता था। जब शाम को मां-बाप खेत से काम करके वापस आते थे तो भाई की शिकायत करता था।
माँ-बाप के दत्तने पर भाई घर के ऊपर पत्थर फेंकता था।
टंटी को लात मारता है, दरवाजा तोड़ता केवल पत्थरों की पट्टियों या आत्महत्या करने की धमकी देता है। ऐसी हरकतें करता है इसलिए माँ-बाप उससे डर जाते थे और उसे कुछ नहीं होता था। कभी-कभी मुझे भूख लगने पर मैं खिचड़ी बनाता था तो भी मुझे खाने नहीं देता था। मुझे बहुत बुरा लगा था और खुशबूदार खिचड़ी को फेंक देता था। । मैं छोटा था और कमजोर था इसलिए उसका सामना नहीं कर सका। आज भी सारी बातें याद है। मेरी माँ-बाप ने मुझे कभी हाथ नहीं लगाया। मुझे बड़ा लाड प्यार से पाला है।इसलिए वह चुरा ले गयी थी। जितना मैं उससे डरता हूँ उतना मुझे पीटता, मेरे जमा किए हुए पैसे भी चुरा लेता था। मेरे द्वारा पीने जाने पर मुझे ही पीटता था कि माँ-बाप को मत देना। कि पैसे मैंने चुप कराया है तो तू नहीं और बहुत मारेंगे। मार खाने के डर से मैं भी डरा हुआ रहता हूँ।
कक्षा आठवीं की बोर्ड परीक्षा देने के लिए हमें हमारे गांव से 9 किलोमीटर दूर दरियापुर गांव में जाना पड़ता है।
एक साइकिल पर दो लोग जांच करने गए थे। गाँव में सिर्फ आठवीं तक के स्कूल थे। आठवीं कक्षा पास करके के नौवीं में प्रवेश के लिए मेरे पास पाँच सौ रुपये नहीं थे।
जैसे-तैसे एडमिशन किया गया। अब तो स्कूल जाने की परेशानी और बढ़ गई। अब हमारे सामने रोज की 5 रूपए की दरकार थी।
घर से जिस दिन पैसे मिलते हैं। उसी दिन स्कूल नहीं जाते थे, तो घर पर रह जाते थे। कभी-कभी तो हम पैदल 5 रुपये बचाने के लिए पैदल स्कूल से घर आते थे। 9वीं कक्षा पास कर के दसवीं में गए।
हमारी क्लास में लड़के-लड़कियां सहित 34 बच्चे थे।
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