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Wednesday, 27 August 2025

इलाज के बहाने रिश्ता सम्भोग तक चला गया और जब पति को पता चला तो ......

 “इलाज के बहाने रिश्ता सम्भोग तक चला गया और जब पति को पता चला तो ........

रात गहरी थी और खामोशी इतनी कि सुई भी गिरती तो सुनाई देती। इसी खामोशी को चीरती हुई एक औरत क्लिनिक के दरवाज़े पर पहुँची। नाम था उसका संध्या। चेहरे पर थकान, आँखों में उम्मीद और दिल में एक अजीब-सी घबराहट। वह अपने दर्द का इलाज ढूंढने आई थी, लेकिन उसे पता नहीं था कि आज से उसकी ज़िन्दगी एक ऐसे रास्ते पर मुड़ने वाली है, जहाँ इलाज़ से ज़्यादा दिल के ज़ख्म खुलेंगे।


डॉक्टर अरविंद, शहर के जाने-माने चिकित्सक, अपनी गंभीरता और सादगी के लिए मशहूर थे। लेकिन जब उन्होंने पहली बार संध्या की आँखों में झाँका, तो जैसे कुछ अनकहा दिल में उतर गया। संध्या भी उस नज़र को भुला न सकी। हर मुलाक़ात, हर दवा के बहाने, उनके बीच अजीब-सा खिंचाव बढ़ता गया।


संध्या सोचा करती—

“क्या ये सिर्फ़ इलाज़ है? या इन नज़रों में छुपा कोई और राज़?”

धीरे-धीरे ये सवाल उसकी रातों की नींद चुरा लेता। वो डॉक्टर से मिलने के लिए नए-नए बहाने ढूँढने लगी। और डॉक्टर अरविंद भी, जो अब तक सिर्फ़ मरीजों के लिए जाने जाते थे, संध्या को देख कर अपने दिल की धड़कनें तेज़ पाते।


कुछ दिनों बाद, इलाज के बहाने उनकी मुलाक़ातें और निजी हो गईं। क्लिनिक की बंद दीवारों के भीतर, दोनों का रिश्ता उस हद तक पहुँच गया जिसे समाज “अवैध” कहता है। उनके बीच उठे तूफ़ान ने नैतिकता और वफ़ादारी की हर दीवार तोड़ दी।


लेकिन असली सस्पेंस अभी बाकी था।


एक शाम, जब क्लिनिक में सिर्फ़ वही दोनों मौजूद थे, अचानक दरवाज़े पर ज़ोरदार दस्तक हुई। डॉक्टर ने घबराकर दरवाज़ा खोला—बाहर खड़ा था संध्या का पति। उसके हाथ में संध्या की मेडिकल रिपोर्ट और चेहरे पर गुस्से से भरी हैरानी।


वो चिल्लाया—

“ये इलाज है या बेवफाई?”


कमरे में सन्नाटा छा गया। संध्या का चेहरा पीला पड़ गया, और डॉक्टर अरविंद के शब्द गले में अटक गए। सच सबके सामने आ चुका था। संध्या को उसी पल एहसास हुआ कि जिस मोहब्बत को उसने चाहा, वह दरअसल एक गहरी भूल थी। उसकी आँखों से आँसू गिर पड़े।


पति ने पीठ मोड़ी और बाहर निकल गया। डॉक्टर ने सिर झुका लिया। और संध्या... वह टूट चुकी थी।


🌸 अंतिम संदेश


“प्यार अगर भरोसे और मर्यादा की हदें तोड़ दे, तो वो कभी सुख नहीं देता—सिर्फ़ गहरा पछतावा छोड़ जाता है।”

ये रिश्ता अक्सर प्रेम का कम और सौदेबाज़ी का ज़्यादा बन जाता है...

 औरत अपना जिस्म लुटाकर मर्द को अपना बनाने की कोशिश करती है, और मर्द अपनी जेब खर्च करता है बस औरत का साथ पाने के लिए...


ये रिश्ता अक्सर प्रेम का कम और सौदेबाज़ी का ज़्यादा बन जाता है...


क्योंकि जहां औरत समझती है कि उसकी नज़दीकियाँ किसी को बाँध लेंगी,


वहीं मर्द ये सोचता है कि उसका खर्चा, उसकी कमाई,


उसकी काबिलियत किसी को रोक लेगी...


लेकिन सच्चाई ये है —


ना जिस्म किसी को रोक सकता है,


और ना ही पैसा किसी को हमेशा के लिए बाँध सकता है!


रिश्ते सिर्फ तब टिकते हैं,


जब न ज़रूरत हो जिस्म की,


न गिनती हो पैसों की,


बल्कि हो सिर्फ एक सच्चा मन से मन का जुड़ाव।


वरना...


जिस्म बदलते देर नहीं लगती,


और जेब खाली होते ही साथ छूट जाता है...

Tuesday, 26 August 2025

यह चमत्कार से कम नहीं है..एक बार फिर साबित हुआ...डॉक्टर भगवान जी के ही स्वरूप होते है..

 यह चमत्कार से कम नहीं है..एक बार फिर साबित हुआ...डॉक्टर भगवान जी के ही स्वरूप होते है..❤️🙏


जन्माष्टमी का दिन... लखनऊ...गोमती नगर विपुल खंड...में 3 साल का मासूम कार्तिक खेलते-खेलते ऊपर से लगभग 20 फीट नीचे लोहे की ग्र‍िल पर ग‍िर गया।


नुकीली लोहे की ग्र‍िल उसके स‍िर के आरपार हो गयी...


वेल्‍डर आया.... ग्र‍िल को काटा गया...


 पर‍िजन मासूम को लेकर प्राइवेट अस्‍पताल गये। 15 लाख रुपए का बजट बता द‍िया गया। 


आधी रात न‍िराश पर‍िजन बच्चे को लेकर लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी पहुँचे...


नन्हे सिर को चीरती हुई लोहे की छड़ किसी निर्दयी तकदीर की तरह आर-पार हो चुकी थी।


 डॉक्टरों ने जब यह देखा, तो कुछ क्षण के लिए वहाँ भी सन्नाटा छा गया।


इसी खामोशी के बीच आगे बढ़ते हैं....


 डॉ.अंकुर बजाज..


सर्जन के हाथ में स्केलपल नहीं, बल्कि साहस का संकल्प था। और उसी साहस के सहारे वह ऑपरेशन थियेटर में प्रवेश करते हैं। बच्चे की जिंदगी उनके सामने है, जैसे कोई दीपक आंधी में कांप रहा है और उन्हें उसे बुझने से बचाना है।


लेक‍िन डॉक्‍टर अंकुर के ल‍िए यह आसान नहीं था। आसान भी कैसे होता। थोड़ी देर पहले ही तो वे अपनी माँ के साथ सबसे कठिन वक्त में थे। माँ को दिल का दौरा पड़ा था। कार्डियोलॉजी में इलाज चल रहा था। 3 स्टेंट पड़े और हालत नाजुक बनी थी। एक तरफ माँ की साँसें अटकी थीं तो दूसरी तरफ कार्तिक का जीवन लोहे की छड़ में उलझा था।


लेकिन डॉक्टर बजाज ने उसे चुना, ज‍िस पेशे को धरती का सबसे सुंदर माना जाता है। आधी रात ट्रामा सेंटर पहुँचे...छः घंटे से ज्‍यादा चली यह जटिल सर्जरी...जिसका हर पल जोखिम से भरा हुआ था...हर क्षण धैर्य की परीक्षा...


और आखिरकार वह लोहे की छड़ को बच्चे के शरीर से अलग कर दिया गया। 


डॉ. अंकुर बजाज और उनकी टीम ने यह साबित कर दिया कि डॉक्टर सिर्फ शरीर नहीं जोड़ते, वे टूटते हुए रिश्तों को, डगमगाते हुए भविष्य को, और डूबते हुए भरोसे को भी बचा लेते हैं। डॉक्‍टर डॉ. बीके ओझा, डॉ. अंकुर बजाज, डॉ. सौरभ रैना, डॉ. जेसन और डॉ. बसु के अलावा एनेस्थीसिया विभाग के डॉ. कुशवाहा, डॉ. मयंक सचान और डॉ. अनीता ने असभंव को संभव कर द‍िखाया, वह भी 25 हजार के खर्चे पर। 


आज जब हम डॉक्टरों को महज फीस और समय से जोड़कर देखते हैं, तब हमें याद रखना चाहिए कि कहीं कोई डॉक्टर ऐसे ही किसी अंधेरे में रोशनी की लौ बनकर खड़ा है।


Monday, 25 August 2025

मान लो, तुम्हें ज़िंदगी ने बहुत बड़ा आघात दिया।

 मान लो, तुम्हें ज़िंदगी ने बहुत बड़ा आघात दिया।

तुम टूटे, बिखरे… पर फिर सोचा अब तुम्हें संभलना ही होगा, अपने लिए... तभी तुम्हारी ज़िंदगी में कोई आया।

उसने तुम्हारे ज़ख्मों पर मरहम रखा,तुम्हारी आँखों के आँसू पोंछे और तुम्हें यक़ीन दिलाया कि तुम फिर से मुस्कुरा सकते हो। उस पल तुम्हे लगेगा यही तो है तुम्हारी सारी पीड़ा की दवा।


लेकिन वक़्त बदला। वही इंसान, जिसने तुम्हारे घाव भरे थे,उन्हीं घावों के पास एक और गहरा निशान देकर चला गया। तुम फिर टूटे… लेकिन हार नहीं मानी।


हाँ, तुम्हारे घाव वक़्त के साथ भर गए लेकिन उनके निशान आज भी तुम्हारे साथ हैं। उन्होंने तुम्हें सिखा दिया कि तुम्हें संभलना है, पर किसी और के सहारे पर नहीं। तुम्हें अपनी मज़बूती खुद बनानी है।


तुम चाँद मत बनो जो किसी और की रोशनी में चमकता है। तुम सूरज बनो जो खुद जलकर, अपनी रोशनी से

न सिर्फ़ अपनी दुनिया, बल्कि औरों की राह भी रौशन कर देता है।



Sunday, 24 August 2025

दो शब्द प्रेमियों के लिए ध्यान से पढ़ें

दो शब्द प्रेमियों के लिए ध्यान से पढ़ें :-

 प्रेम से ज्यादा उलझन भरा सफर कुछ भी नही होता। कई बार दोनों तरफ भरपुर प्रेम होता है। ना कोई समस्या होती है ना कोई रुकावट। फिर भी सबकुछ फ्रिज सा रहता है। जानते हो क्यों? क्योंकि प्रेम की कमान हमेशा स्त्री के हाथ मे होती है। पुरुष एक हद तक कोशिश करता है फिर छोड़ देता है। अगर कड़वा अनुभव मिल जाए तो वह अपने रास्ते ही बदल लेता है। शुरुवात मे स्त्री नखरे दिखाती है। झिड़कती है। पुरुष इसी को रिजेक्शन समझ लेता है। और डर जाता है। इस तरह की कण्डिशन मे सब कुछ स्त्री के हाथ मे होता है।। अगर वह समझदार है तो सब कुछ सम्भाल लेती है। पुरुष की अकड़ तो बच्चे की तरह है। हक से सम्भालो, डांट के सम्भालो, अगर शिकायत कर रहा है तो सॉर्री बोल के सम्भालो, दुनिया का कोई भी पुरुष अपनी पसंदीदा स्त्री को अगर उस पर भरोसा हो तो दूर नही धकेल सकता। प्रेम वहीं सफल हुए है जिन्हे स्त्री ने सम्भाला। क्योंकि एक बार स्त्री ने परखने के लिए या गुस्से मे उसे झिड़क दिया। पुरुष के सारे रास्ते बन्द है। अगर कोई सड़क छाप आशिक होगा, प्रेम के नाम पर जिसकी मंशा मात्र उस स्त्री का देह है तो वो दुबारा कोशिश करेगा। वरना एक इज्जतदार पुरुष ख्वाब मे भी कोशिश नही करेगा। क्योंकि अगली कोशिश मे मिलने वाले तिरस्कार को वो सम्भाल ही नही पायेगा इसलिए अगर स्त्री चाहे तो रिश्ता रहेगा। वरना नही रहेगा। जहाँ स्त्री ने साफ तौर पर परखने को ही प्रेम कह दिया। उसके बाद पुरुष के द्वारा कोशिश करना मूर्खता है। एक सत्य ये भी है कि स्त्री के दिल मे प्रेम देर से जागता है। और तब तक शायद पुरुष दूर जा चुका होता है। वह तत्काल नहीं होता। वो धीरे धीरे एक ऐसे चौराहे पर जाकर खड़ा हो जाता है जहां से एक रास्ता एहसास का, एक रास्ता संवेदना का, एक रास्ता उम्मीद का, और एक रास्ता प्रेम का, सब धीरे धीरे पुरुष के अंदर मरते हैं, पर सब आहिस्ता-आहिस्ता। दरअसल, जो मरना आहिस्ता-आहिस्ता होता है वह ही, एक न बदल सकने वाली अवस्था होती है जो खामोश, अकेलापन बढ़ते बढ़ते एक जिंदा लाश में बदल जाती है.... 

लेखक: सुनिल राठौड़ बुरहानपुर.

Saturday, 23 August 2025

जवान होती लड़की पर सभी की नजर होती है

 जवान होती लड़की पर सभी की नजर होती है


परिवार के जितने भी रिश्तेदार हैं वह शादी के लिए पापा से अक्सर बोलते थे , बिटिया बड़ी हो रही है आप शादी देखो ...कभी दादी बोलती थी बिटिया बड़ी हो रही है अब कहीं अच्छा लड़का देखना शुरू करो, पिताजी भी हां करके फिर ध्यान नहीं देते थे।


धीरे-धीरे इंटर पास हो गए ग्रेजुएशन शुरू हो गया और हम बाहर शहर में रहने लगे थे.


घर में रिश्तेदारों की वही बातचीत चलती रहती थी बिटिया बड़ी हो गई है क्यों नहीं देख रहे हो लड़का ,देखो लड़का ..


देखते देखते समय गुजर रहा हो ... मेरे पापा और मेरे भैया दोनों जैसे सुनते तो थे पर ध्यान न देते हो ...


अभी कहीं कोई लड़का देखा नहीं जा रहा था ...


धीरे-धीरे ग्रेजुएशन फाइनल ईयर आ गया और मैं 20 साल की हो चुकी थी ।।


आगे मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था ,लेकिन मैं अपना साल बेकार नहीं करना चाहती थी ,इसलिए मैंने अपना एडमिशन ऑप्टोमेट्री में ले लिया था, साथ में कंप्यूटर भी सीखने लगी थी मैं....


कुछ एक महीने बाद एक रोज मैं अपने पापा को किसी से लड़का पूछते हुए सुना कि मेरी बेटी के लिए कोई लड़का हो तो बताना...


तब मैं खुद अपने पापा से पूछा ,"अभी तक तो जाने कितने लड़के लोग आपको बता रहे थे तब तो आपने एक बार भी नहीं देखा ,पता नहीं कहां-कहां के लड़के बताए गए , कौन-कौन सी नौकरी करते हुए लड़के बताएं, कितने ऐसे लड़के बताए गए जो बहुत मजबूत परिवार से थे , आपने उन्हें तो किसी को नहीं देखा, अब उनकी सब की शादियां हो गई और अब आप खुद लड़के पूछ रहे हो समझ में नहीं आया"।


तब उस वक्त मेरे पापा ने जो जवाब दिया वह मैं आप सबके बीच रखूंगी उसे वक्त मेरे पापा ने मुझसे कहा कि तब तुम इंटर कर रही थी, तुम मजबूत नहीं थी , इंटर करने के बाद शायद तुम अपने जीवन में मुश्किल भरे दिन आने के बाद वह फैसला नहीं ले पाती जो तुम्हें आर्थिक तौर पर मजबूत करते हैं तुम्हे मुश्किल वक्त में दूसरो के सहारे ही रहना पड़ता, ग्रेजुएशन में भी मैंने तुम्हें मजबूती देने के लिए रोक रखा था कि मेरी बेटी का ग्रेजुएट हो जाएगा उसके बाद ही मैं लड़का देखूंगा और अब तुम ऑप्टोमेट्री कर रही हो अब मुझे पता है कि अगर मेरी बेटी को जीवन में कभी भी आर्थिक तौर पर मजबूत होना होगा तो मेरी बेटी स्वेच्छा से खड़ी हो जाएगी, मेरी बेटी रिश्ते में बंधेगी जरूर पर रिश्ते की घुटन बर्दाश्त करने के लिए नहीं रिश्ते को प्रेम से सिंचित करने के लिए... या कभी जीवन में ऐसा कोई पल आ गया जिस पल मेरी बच्ची अकेली पड़ गई तो वह अपने जीवन को स्वाभिमान से जी सकेंगी...


भले मां-बाप अपनी बेटी को देने वाले रूपों में लाख डेढ़ लाख कम दे..पर अपनी बेटी को ऐसा हुनर जरूर सिखा दे ऐसी काबिलियत जरूर भर दे कि वह जीवन के मुश्किल हालातो में अपने परिवार और अपने बच्चो को सिर्फ रोटियां बनाकर खिलाने की ही नही बल्कि आर्थिक मजबूती भी देने में पीछे ना हटे..


उस वक्त तो मेरी समझ में ये बात बिलकुल भी नही आई थी पर अब जरूर आ चुकी है, और ये बात तो मैं भी कहूंगी, कि बेटियो की महंगी शादी भले ही ना करो पर उनके उनके बुरे वक्त के लिए काबिलियत जरूर देना..


कभी उनकी पढ़ाई उनकी ससुराल वालो के भरोसे मत छोड़ना, खुद पढ़ाना , और फिर ही शादी करना..


नौकरी करना जरूरी नहीं.. पर इतना काबिल कर देना कि उन्हेंबुरे वक्त में हुनर का उपयोग करने के लिए उन्हें किसी के आगे हाथ ना फैलाना पड़े,


बहुत सी बेटियां आज भी ना चाहते हुए अपने भविष्य को लेकर बुराई भरे ससुराल से इसीलिए निकल नही पाती कि वो आगे क्या करेगी..


या पति के ना होने पर लाचार या मजबूर हो जाती है बेटियां और उसे अपने बच्चो के अच्छी शिक्षा दिलाना मुश्किल हो जाता है...


बेटियो को विवाह के लिए नही बल्कि बेटियो को मजबूत बनाने के लिए उचित शिक्षा और हुनर जरूर सीखना।।

हनीमून की रात जैसे ही पतिदेव के साथ समागम होने का मूड बना वैसे ही मेरी बुआ सास दरवाजे पर आके जोर से बुलाती है

हनीमून की रात जैसे ही पतिदेव के साथ समागम होने का मूड बना वैसे ही मेरी बुआ सास दरवाजे पर आके जोर से बुलाती है


बेटा बाहर आओ,


जल्दी से मैंने कपड़े पहने और मन में सोचने लगी क्या तरीका है ये

बार आते ही उन्होंने ने बोला आज तुम्हारी सुहागरात है, सब अच्छे से करने की जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है, बबुआ अभी नादान है


मैं शरमाते हुए मन में सोची 4 महीने फोन पर बात करने पर ही समझ आगया था की आप के बबुआ कितने नादान है


मैने बोला ठीक है बुआ जी, और बुआ जी बोलती है

बस जल्दी से इगो पोता या पोती का मुंह दिखा दो

अब नेक काम में दूरी बर्दाश्त नहीं होती है


खैर मैं अपने कमरे में आई और पतिदेव के साथ शरारत भरी बातें हुई और फिर वही हुआ जो होना होता है


लेकिन अब कुछ दिन घर में मेहमान आने वाले थे, लोग बारी बारी आते और सभी औरतें एक ही आशीर्वाद देती


जल्दी से एक बच्चा देदो पहले तो मैं शर्मा जाती लेकिन धीरे धीरे सुन सुन के मुझे भी अब चिढ़ होने लगी थी।


क्यों की जो आता बस यही बोलता, मन तो करता बोल दो की अभी तो नई शादी हुई है बोले होते इतनी जल्दी है तो साथ में पहले बच्चा कर लेती फिर शादी कर के उसे ले आती


पर नई होने की वजह से कुछ बोलना मेरे संस्कार के खिलाफ था


दिन रात ये बात सुन के मैने पतिदेव से बोला की अब हमे डॉक्टर से मिल के बच्चे के बारे में सोचना चाहैए शादी को 6 महीने हो गए हैं


उन्होंने बोला पागल हो क्या शादी में खुद इतना खर्चा हुआ है कैसे सभी कुछ मैनेज होगा बच्चे की जिम्मेदारी एक बड़ी जिम्मदारी है, कोई जो बोल रहा है बोलने दो, एक कान से सुनो दूसरे से निकाल दो


मुझे गुस्सा लग गईं मैंने बोला आप खुद तो दिनभर घर से बाहर रहते हैं सुनना तो मुझे पड़ता है

घर के लोग तो बोलते हैं

साल में एक बार फोन करने वाले भी हेलो बोलने के बाद सीधा पूछते हैं


बहु को कुछ है ?अब कैसे सबको जवाब दूं


और ऐसे ही पहली बार हमारी लड़ाई हुई


फिर एक दिन मेरी सास मुझे समझाने लगी की बेटा जल्दी बच्चा पैदा करो, यदि कोई दिक्कत है तो खुल के बोलो डॉक्टर से बात करते हैं


मैने भी बोल दिया मैं तो चाहती हूं पर आप के बबुआ नही चाहते हैं


अब घर में बवाल मच गया, लेकिन किसी तरह मेरे समझदार ससुर जी ने समझाया और बात को खत्म किया


2 3 दिन तो किसी ने कुछ नही बोला लेकिन एक दिन शाम को फिर यही बात उठने लगी


और मेरे पति ने बोला की अभी मेरी कमाई इतनी नही है की एक बच्चे की जिम्मेदारी ले सकूं


मां ने तुरंत बोला क्या बच्चा के पीछे करोड़ों खर्च होंगे

जब पैदा होगा तो अपने भाग्य से लेके आएगा

तुम्हारे पापा की छोटी सी नौकरी में मैने 3 बच्चे पाले हैं


मेरे पतिदेव के पास कोई जवाब नही था तभी मेरे ससुर जी बीच में आते हैं


और बोलते हैं


मेरी कमाई कम थी लेकिन हमारा खर्चा भी कम था, इस लिए बच्चे पल गए


पहले हमारी जरूरत सीमित थी, रोटी कपड़ा और मकान ये सबसे ज्यादा जरूरी था इसके अलावा अन्य किसी चीज की जरूरत नहीं थी


लेकिन आज रोटी कपड़ा मकान और इंटरनेट जिंदा रहने के लिए जरूरी है, पहले एक फोन से पूरा घर काम होता था लेकिन आज जितने सदस्य उतना फोन है और उतना रिचार्ज है


हमारे समय में स्कूल में 2 बच्चे पढ़ने पर एक को फुल फीस थी एक ही हाफ

और तीन पढ़ने पर 2 को फुल और की पूरी तरह माफ


स्कूल का काम सिर्फ पढ़ना था ड्रेस किताब कॉपी ये सब हम कहीं से भी ले सकते थे, लेकिन आज सब कुछ 4 गुने दाम पर लेना होता है उसी स्कूल से


खाने में हमारे लिए डाल चावल सलाद रोटी पर्याप्त थी, और स्कूल में रोटी सब्जी पराठा अचार यही ले जाते थे

लेकिन अब कंपटीशन में बच्चो को कॉन्टिनेटियल खाना देना पड़ता है


पहले साल में 1 2 बार बाहर खाते थे और आज हफ्ते में 2 बार बाहर खाया जाता है


पीने का पानी शुद्ध कुवे से मिलता था लेकिन आज पानी भी खरीद के पीना पड़ता है,


बुखार हो या सर्दी जुखाम, तेल मालिश करते ही बच्चे ठीक हो जाते थे

लेकिन आज छींक आने पर भी डॉक्टर स्पेशल केस में बच्चो को डाल देते हैं और हजारों का बिल बनाते हैं


एक ऑटो रिजर्व कर के पूरा शहर घूम लेते थे, आज घर के एक एक सदस्य को मोटरसाइकिल चाहिए साइकिल से कोई चलना नही चाहता


देखो शांति समय समय की बात है, बबुआ अभी बच्चा नही चाहता क्यों की उसे आज की सच्चाई पता है

की महंगाई ज्यादा नही हुई है बल्कि हमारे खर्च ज्यादा हो गए हैं


इस लिए उसे समय दो थोड़ा सेविंग करने की


और बबुआ तुम, इस बात का ध्यान रखो कि बाप बनने से पहले अच्छा पैसा कमाओ एक बच्चा पैदा करो लेकिन परवरिश अच्छी करो उसकी

और सबसे जरूरी समय रहते बच्चा पैदा करो नही तो पता चला तुम्हारे रिटारमेंट की उम्र हो रही है, और तुम्हारा बच्चा दसवीं को परीक्षा दे रहा है


उस दिन में बाद से घर में दुबारा बच्चे को लेके चर्चा नही हुई

और पतिदेव भी समझ गए

और 2 साल बाद हमे एक बेटी हुई, है जिसको परवरशिष हम सब मिलकर करते हैं


घर के बड़े बुजुर्ग यदि समझदार हो तो घर हमेशा सही दिशा में चलता है और खुशहाली बरकरार होती है 

 हो सकता है मैं कभी प्रेम ना जता पाऊं तुमसे.. लेकिन कभी पीली साड़ी में तुम्हे देखकर थम जाए मेरी नज़र... तो समझ जाना तुम... जब तुम रसोई में अके...