कुछ लड़किया ऐसी होती हैं, जिन्हे शारीरिक सुख ना मिले तो वो पागल होने लगती है, मैं भी उन्ही में से एक थी
ऐसा नहीं है की कैरेक्टर खराब बल्कि ये पर्सन टू पर्सन डिपेंड करता है
मेरी शादी 24 साल की उम्र में हुई, और संयोगवश मेरी करीबी दोस्त, जो मेरे साथ कॉलेज में पढ़ी थी, उसकी भी उसी समय शादी हुई। हमारी ज़िंदगी के इस नए अध्याय की शुरुआत साथ हुई, लेकिन हमारे स्वभाव में काफी अंतर था। मेरी दोस्त शर्मीली और शांत स्वभाव की थी, जबकि मैं नटखट और चुलबुली थी। दोनों की शादी अच्छे परिवारों में हुई, लेकिन मेरे पति न केवल बेहद हैंडसम थे, बल्कि दिलदार भी थे। हमारी शादी की शुरुआत कुछ समय तक बहुत अच्छी रही। हम दोनों खुश थे, लेकिन जैसे-जैसे जिम्मेदारियाँ बढ़ने लगीं, घर के काम भी बढ़ते गए। इससे थकान हो जाती थी, और हम दोनों ही मानसिक रूप से परेशान होने लगे थे।
धीरे-धीरे एक साल बीत गया, लेकिन हमारे बीच प्राइवेसी जैसी कोई चीज़ नहीं रह गई थी। घर में हर कोई रहता था, और हम अपने लिए वक्त नहीं निकाल पाते थे। मैं इस स्थिति से काफी निराश थी और मैंने अपने पति से अलग रहने का सुझाव दिया ताकि हमें एक-दूसरे के साथ वक्त बिताने का मौका मिले। लेकिन मेरे पति इसके खिलाफ थे। उन्होंने कहा कि यह संभव नहीं है, लेकिन मैं अपनी बात पर अड़ी रही। इसका नतीजा यह हुआ कि घर में छोटी-मोटी बहसें होने लगीं। मेरी सासू मां को भी मेरे तरीके पसंद नहीं आते थे, और अंततः हम दोनों के बीच झगड़े होने लगे।
कुछ समय बाद, मेरे पति ने दिल्ली से बेंगलुरु ट्रांसफर ले लिया। यह दिन मेरे लिए किसी आजादी से कम नहीं था। अब हमारे पास प्राइवेसी थी और हम अपने हिसाब से ज़िंदगी जी सकते थे। शुरुआती महीनों में पति का मूड थोड़ा खराब रहता था, लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया। एक दिन मेरा पीरियड मिस हो गया, और जब जांच कराई तो पता चला कि मैं गर्भवती थी। यह अनप्लान था, और मैं इस बात से घबरा गई। मैंने अपनी सहेली को फोन किया, जो खुश हो गई और बताया कि वह भी एक महीने से गर्भवती है।
मेरी सहेली ने मुझे सलाह दी कि मैं ससुराल या मायके जाकर आराम करूं, लेकिन मैंने यह सोचकर मना कर दिया कि सब मैनेज हो जाएगा। मेरी सास को यह बात बताई तो वे बहुत खुश हुईं, लेकिन जब मैंने उन्हें आने से मना किया, तो उनका मन शायद दुखी हो गया। समय बीतता गया, और मैं गर्भावस्था में परेशानियों का सामना करती रही। जब भी अपनी दोस्त से बात करती, वह बताती कि उसके परिवार वाले उसका कितना ख्याल रख रहे हैं। यह सुनकर मुझे ईर्ष्या होने लगी, और मैंने उससे बात करना भी कम कर दिया।
जब मेरा डिलीवरी का समय नजदीक आया, तो मेरी सास आईं लेकिन दो दिन बाद वापस चली गईं। शायद उन्हें पिछली बार मना करने की बात बुरी लगी थी। इसके बाद मैं अपने बच्चे के साथ अकेली थी और सब कुछ अकेले संभाल रही थी। मेरी सहेली बताती कि कैसे उसका परिवार उसका और बच्चे का ध्यान रखता है। उसे देखकर मुझे अहसास हुआ कि परिवार के साथ होना कितना जरूरी है, लेकिन मेरा अहंकार मुझे वापस जाने नहीं दे रहा था।
फिर एक दिन मेरे ससुर का फोन आया। उन्होंने वीडियो कॉल पर अपने पोते को देखने की इच्छा जताई। उन्हें देखकर मेरी आँखों में आंसू आ गए, और मेरे पति भी भावुक हो गए। अगली सुबह पति ने कहा कि हमें कुछ दिनों के लिए ससुराल जाना चाहिए। मैंने बिना कुछ कहे जल्दी से तैयारी की, और हम फ्लाइट से ससुराल पहुंचे। जब हम घर पहुंचे, तो सभी लोग खुशी से झूम उठे। मेरे ससुर, जो ठीक से चल भी नहीं पाते थे, अपने पोते को देखकर दौड़ते हुए आए और उसे गोद में उठा लिया। यह देखकर मुझे बहुत भावुकता हुई।
तीन दिन बीते और सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। मैंने सोचा कि अब वापस जाना होगा, लेकिन जब मैंने अपने पति से पूछा, तो उन्होंने कहा, "अब हमें यहां से जाने की जरूरत नहीं है। तुमने जो गलती की है, उसे सुधारने का वक्त आ गया है। मैं अपने मां-बाप को उनके पोते से दूर नहीं रखना चाहता।" मेरे पति की इस बात ने मुझे एहसास दिलाया कि परिवार के साथ रहना कितना महत्वपूर्ण है। यही तो मैं चाहती थी, लेकिन पहले अपने अहंकार के कारण समझ नहीं पाई थी।
आजकल कई लड़कियां चाहती हैं कि वे शादी के बाद अकेले रहें, जहां सिर्फ वे और उनके पति हों। लेकिन मेरा अनुभव कहता है कि ऐसा करना एक बड़ी भूल हो सकती है। परिवार के साथ रहने में कुछ मर्यादाओं का पालन करना पड़ता है, लेकिन उनके साथ रहने के फायदे कहीं ज्यादा होते हैं। परिवार का साथ, उनके प्यार और सहयोग से मिलने वाली खुशी किसी भी आजादी से बढ़कर होती है।
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