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Sunday, 1 September 2024

पैसे की कोई कमी नहीं थी

 मनीष अपनी पत्नि सीमा से बहुत प्यार करता था। सीमा भी मनीष के बिना रह नहीं सकती थी। उसका हीरों का व्यापार था।


पैसे की कोई कमी नहीं थी। एक दिन मनीष अपने ऑफिस में बैठा काम कर रहा था। तभी उसे एक बड़ा ऑडर मिलता है।


मनीष अपने मैंनेजर से बात करता है।


मनीष: सुनों राकेश यह हमारा आज तक का सबसे बड़ा ऑडर है। मैं अभी बैंक जा रहा हूं इस ऑडर को पूरा करने के लिये मुझे बैंक से लोन लेना पड़ेगा। तुम स्टॉफ से कहो कि वे इसे पूरा करने के लिये तैयार रहें हो सकता है हमें दिन रात काम करना पड़े।


राकेश: जी सर आप चिन्ता न करें सब हो जायेगा।


मनीष सीधा बैंक पहुंच जाता है। बैंक मैंनेजर से अच्छी जान पहचान होने के कारण उसे आसानी से लोन मिल जाता है। बैंक मैंनेजर उससे कहता है कि वह कल सारे पेपर जमा करा दे इसी हफ्ते में लोन की रकम उसके एकाउंट में आ जायेगी।


शाम को मनीष खुशी खुशी घर आकर सीमा को यह खुशखबरी देता है। सीमा बहुत खुश होती है।


सीमा: यह ऑडर पूरा होने पर तुम मुझे बाहर घुमाने ले जाओगे।


मनीष: हां ठीक है इंड्यिा से बाहर चलेंगे लेकिन कुछ दिनों तक मुझे मेहनत करनी होगी हो सकता है मैं घर भी न आ सकूं। तुम चिन्ता मत करना।


सीमा: आप बेफिक्र होकर काम कीजिये मेरी चिन्ता बिल्कुल मत कीजिये।


दो दिन बाद मनीष को ऑडर मिल जाता है।


मनीष: राकेश मैं डायमंड लेने के लिये गुजरात जा रहा हूं। तीन चार दिन में आ जाउंगा। तुम एक काम करो स्टाफ से बात करके रखो और जरूरत पड़े तो ज्यादा स्टॉफ हायर करने का प्रोसेस शुरू कर दो। ये ऑडर हमें हर हाल में समय से डिलीवर करना है।


राकेश: सब हो जायेगा सर लेकिन डायमंड लेने आप खुद क्यों जा रहे हैं।


मनीष: नहीं मैं इतने सारे डायमंड के लिये किसी पर भरोसा नहीं कर सकता। मुझे खुद ही लाने होंगे। तुम यहां ध्यान रखना मैं परसों तक आ जाउंगा।


अगले दिन मनीष दिल्ली से फ्लाईट लेकर गुजरात पहुंच जाता है। वहां अपने पुराने होलसेलर से मिल कर डायमंड खरीद लेता है।


उसी दिन की फ्लाईट से वापास आ जाता है। रात को करीब ग्यारह बजे फ्लाईट लेंड होती है। मनीष ड्राईवर को फोन कर गाड़ी मंगवा लेता है।


गाड़ी में बैठ कर वह अपने घर की ओर चल देता है।


रास्ते में सुनसान सड़क पर ड्राईवर तेजी से गाड़ी दौड़ा रहा था।


मनीष: सुनो इतनी जल्दी क्या है घर ही तो जाना है जरा आराम से चलो।


ड्राईवर: जी साहब


लेकिन वह अपनी स्पीड कम नहीं करता। इसी बीच रास्ते में एक बूढ़ा आदमी सड़क पार करते दिखाई देता है। वह इतना धीरे चल रहा था कि गाड़ी के नीचे आ जाता ड्राईवर ने उसे देख कर गाड़ी की स्पीड कम कर दी लेकिन वह बीच सड़क पर आकर खड़ा हो गया। ड्राईवर को गाड़ी रोकनी पड़ी।


गाड़ी के रुकते ही चारों ओर से चार पांच नकाबपोश रिवाल्वर निकाल कर खड़े हो जाते हैं और सामने बूढ़े के भेष में एक और आदमी गन लिये खड़ा था।


तभी गोलियों की गड़गड़ाहट सन्नाटे को चीर देती है। मनीष का शरीर गोलियों से छलनी हो जाता है। सभी लोग मनीष का सारा सामान लेकर भागने लगते हैं। उनमें वह ड्राईवर भी था।


ड्राईवर: साहब आपको तो कोई नहीं जानता लेकिन मैं साहब को एयरर्पोट से लेकर आ रहा हूं। मैं पकड़ा जाउंगा।


राकेश: मैंने सारा प्लान बना लिया है। तुझे तेरा हिस्सा बाद में मिल जायेगा। फिलहाल तू ये एक लाख रुपये रख और यहां से दूर किसी अनजाने गॉव में चला जा जहां तुझे कोई पहचान न सके और अपना फोन तोड़ दे। मेरे इस नये नम्बर पर दो महीने बाद फोन करना और अखबार पढ़ते रहना। अपने परिवार से भी बात मत करना। सब सही रहा तो पूरी जिन्दगी काम नहीं करना पड़ेगा।


सीमा को जब यह पता लगा तो उसका बुरा हाल हो गया। घर में रिश्तेदारों का तांता लगा था। हर कोई हैरान था। पुलिस इंवेस्टिगेशन कर रही थी। लेकिन कुछ भी पता नहीं लगा।


रात के समय सब सो रहे थे तभी सीमा को अहसास हुआ जैसे कोई उसके बालों को सहला रहा है। सीमा की आंख खुली लेकिन वहां कोई नहीं था। तभी उसे खिड़की के बाहर एक परछाई सी दिखाई दी। वह उठ कर वहां गई तो देखा वह परछाईं छत की ओर जा रही है। सीमा बेहोश सी उस परछाई के पीछे चल दी। छत पर जाकर उसने देखा कोई नहीं था।


वह लौटने लगी उसे लगा उसका बहम था।


तभी उसे किसी के रोने की आवज सुनाई दी। सीमा ने पलट कर देखा तो काले कपड़े पहने एक इंसान रो रहा है।


सीमा: कौन हो तुम यहां कैसे आये।


सीमा कुछ आगे बढ़ी तो उस इंसान का चेहरा दिखाई दिया। भयानक काली आंखें लाल सुर्ख एक दम काला पड़ा चेहरा। मुंह से खून निकल रहा था।


सीमा के पैर जम गये वह भागना चाह रही थी लेकिन भाग न सकी। चीखना चाह रही थी लेकिन उसके गले से आवाज नहीं निकली। वह आदमी रो रहा था। मैं मरना नहीं चाहता था। उसने कहा यह सुनकर सीमा का दिल धक से बैठ गया। यह तो मनीष की आवाज थी।


सीमा तेजी सी चीखी घर की सारी लाईटें जल गईं। सीमा वहीं बेहोश होकर गिर पड़ी घर में सारे रिश्तेदार सीमा को ढूंढ रहे थे। तभी किसी ने छत के गेट खुले देखे दो तीन लोग भाग कर छत पर आये और सीमा को उठा कर नीचे ले गये।


सीमा को पानी के छींटे मारे जिससे उसे होश आ गया। वह होश आने पर चीखने लगी।


सीमा: मनीष, मनीष जाने दो मुझे वो छत पर मुझे बुला रहे हैं।


सबने मिल कर सीमा को पकड़ा। लेकिन वह रुकने का नाम नहीं ले रही थी।


सीमा की मां ने उसे संभाला पानी पिलाया।


मां: बेटी क्या बात है तू छत पर क्यों गई थी?


सीमा: मां वो छत पर हैं। वो रो रहे हैं और कह रहे थे मैं मरना नहीं चाहता था।


मां: बेटी मनीष अब कहां से आयेंगे उनका तो अंतिम संस्कार भी हो गया। तुझे गहरा सदमा लगा है। तू सोने की कोशिश कर।


सीमा: नहीं मां वो यहीं हैं।


अगले दिन पुलिसवालों ने आकर बताया कि उनके ऑफिस का मैंनेजर राकेश और ड्राईवर लापता हैं इन्होंने ही शायद मिल कर यह काम किया है। राकेश को पता था कि मनीष डायमंड खरीदने गये हैं।


सीमा चुपचाप बैठी थी जैसे उसे इस सब से कोई मतलब नहीं था।


इंस्पेक्टर: मेडम आप इस बारे में कुछ जानती हैं।


सीमा: आप चिंता न करें मेरे पति उन्हें सबक सिखायेंगे।


मां: इंस्पेक्टर साहब इसे गहरा सदमा लगा है। आप बाद में पूछताछ कर लीजियेगा।


इधर राकेश सारे डायमंड लेकर एक अन्जान शहर में एक फ्लेट किराये पर लेकर रहने लगता है।


रात को वह अपने फ्लेट में सो रहा था। तभी उसे कुछ खटका सुनाई दिया उसने देखा तो बॉलकनी में एक परछाई है। वह देखने गया तो उसे वहां एक आदमी दिखाई दिया। वही काले कपड़े, बाल बिखरे हुए, आंखे लाल और मुंह से खून बह रहा था।


राकेश: कौन हो तुम?


मनीष: अपने मालिक को भूल गया तू।


राकेश: कौन मनीष। लेकिन वह तो मर गया।


मनीष : लेकिन मुझे मुक्ति नहीं मिली। तूने विश्वासघात किया तुझे सजा दिये बगैर मुझे मुक्ति कहां मिलेगी।


राकेश अंदर की तरफ भागता है। लेकिन जा नहीं पाता तभी कुछ लोग नीचे से देखते हैं एक आदमी बॉलकनी की रेलिंग पर खड़ा है वे चिल्लाते हैं लेकिन वह आदमी रेलिंग से कूद जाता है। बीसवीं मंजिल से सीधा सड़क पर आकर गिरता है।


तभी पुलिस बुलाई जाती है। पुलिस लाश को पोस्टमार्टम के लिये ले जाती है। बाद में यह खबर सीमा को मिलती है। कि राकेश ने आत्महत्या कर ली उसके फ्लेट से सारे डायमंड मिल जाते हैं।


पुलिस: मेडम आपके पति की कंपनी में काम करने वाले राकेश ने आत्महत्या कर ली। उसके घर से डायमंड भी मिल गये।


सीमा: उसे तो मरना ही था। अभी तो ड्राईवर की बारी है। उसे ढूंढ लो नहीं तो मनीष उसे मार देंगे। यह कहकर वह मुस्कुराने लगी।


उसकी मुस्कुराहट में मौत का पैगाम छिपा था।


कुछ दिन बाद मनीष का ड्राईवर रात को सो रहा था। तभी सपने में उसी भयानक रूप में उसे मनीष दिखता है।


मनीष: सपीड कम रखो इतनी भी क्या जल्दी है। मैंने तुझसे बोला था।


ड्राईवर उठ कर बैठ जाता है। वह अंधेरे में डर के बाहर आ जाता है। सड़क पर तभी सामने से एक कार तेजी से उसकी ओर आ रही होती है। ड्राईवर तेजी से सड़क पर भागने लगता है। लेकिन वह कार तेजी से उसे टक्कर मार देती है वह सड़क पर तड़पने लगता है। तभी उसे मनीष दिखाई देता है। उसी भेष में।


मनीष: मेरा क्या कसूर था?


ड्राईवर: मुझे माफ कर दो साहब पैसों के लालच में मैं अंधा हो गया।


मनीष मुस्कुरा रहा था। कुछ देर तड़प कर वह मर जाता है।


अगले दिन सीमा को ड्राईवर की खबर भी मिल जाती है।


उसी रात सीमा छत पर जाती है


सीमा: मनीष तुम कहां हो मुझे भी साथ ले चलो।

मनीष: नहीं सीमा तुम्हारे आगे पूरी जिन्दगी पड़ी है।

सीमा: मैं भी तुम्हारे पास आ रही हूं तुम्हारे बगैर सब बेकार है।

मनीष: सीमा ऐसा मत करो। बस एक अरमान रह गया तुम्हें घुमाने ले जाना था।

सीमा: चलो दोंनो साथ चलते हैं। यह कहकर वह छत से कूद जाती है।

जो बोओगे, वही काटोगे। जीवन में सच्चाई और ईमानदारी से जीना ही सबसे बड़ा धर्म है।

 एक गाँव में एक किसान रहता था, जिसका जीवन साधारण था, लेकिन उसकी ज़िन्दगी में एक उलझन भी थी। उसकी दो पत्नियाँ थीं, और दोनों से उसे एक-एक बेटा था। दोनों बेटों की शादी हो चुकी थी, और किसान को लगा कि अब उसकी ज़िन्दगी स्थिर और सुखी हो गई है। लेकिन समय ने उसे एक नई चुनौती दी, जब उसके छोटे बेटे की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी।


बड़े भाई ने अपने छोटे भाई का इलाज करवाने की पूरी कोशिश की। उसने गाँव के आस-पास के वैद्यों से परामर्श लिया, लेकिन छोटे भाई की तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ। धीरे-धीरे खर्च बढ़ता गया, और छोटे भाई की हालत और भी बिगड़ती चली गई। बड़े भाई के मन में चिंता ने धीरे-धीरे एक कड़वाहट का रूप ले लिया।


एक दिन, बड़े भाई ने अपनी पत्नी से सलाह-मशविरा किया। उसने कहा, "यदि छोटा भाई मर जाए, तो हमें उसके इलाज के लिए और पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा।" उसकी पत्नी, जो उसकी सोच में सहभागी हो गई थी, ने एक भयानक सुझाव दिया, "क्यों न किसी वैद्य से बात करके उसे जहर दे दिया जाए? किसी को शक भी नहीं होगा, और उसकी मौत को बीमारी के कारण माना जाएगा।"


बड़े भाई ने अपनी पत्नी की बात मान ली और एक वैद्य से संपर्क किया। उसने वैद्य से कहा, "जो भी तुम्हारी फीस होगी, मैं देने को तैयार हूं। बस मेरे छोटे भाई को ऐसा जहर दे दो, जिससे उसकी मृत्यु हो जाए।" लालच और निर्दयता से भरे वैद्य ने इस नृशंस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और छोटे भाई को जहर दे दिया। कुछ ही दिनों में छोटे भाई की मृत्यु हो गई।


बड़े भाई और उसकी पत्नी ने अंदर ही अंदर खुशी मनाई, यह सोचते हुए कि अब रास्ते का कांटा निकल गया है और सारी संपत्ति उनकी हो गई। छोटे भाई का अंतिम संस्कार कर दिया गया, और समय बीतता चला गया।


कुछ महीनों के बाद, किसान के बड़े बेटे की पत्नी ने एक बेटे को जन्म दिया। परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई, और उन्होंने बड़े लाड-प्यार से बच्चे की परवरिश की। समय के साथ वह लड़का जवान हो गया, और उसकी शादी भी धूमधाम से कर दी गई। लेकिन खुशी के ये दिन अधिक समय तक नहीं टिक सके।


शादी के कुछ समय बाद, बड़े बेटे की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी। उसके माता-पिता ने उसके इलाज के लिए हर संभव कोशिश की। कई वैद्यों से परामर्श लिया गया, और जो भी पैसा माँगा गया, वे देने को तैयार थे। अपने बेटे की जान बचाने के लिए उन्होंने अपनी आधी संपत्ति तक बेच दी, लेकिन उसका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता गया। अब वह मौत के दरवाजे पर खड़ा था, शरीर इतना कमजोर हो चुका था कि उसकी हालत देखकर दिल दहल उठता था।


एक दिन, वह लड़का अपने चारपाई पर लेटा हुआ था, और उसका पिता उसे दुख भरी नजरों से देख रहा था। लड़के ने अचानक अपने पिता से कहा, "भैया, अपना हिसाब पूरा हो गया है। अब बस कफन और लकड़ी का इंतजाम बाकी है, उसकी तैयारी कर लो।"


पिता ने सोचा कि उसका बेटा बिमारी के कारण बड़बड़ा रहा है और बोला, "बेटा, मैं तेरा बाप हूं, भाई नहीं।"


लड़के ने दुखी आवाज में कहा, "पिताजी, मैं आपका वही भाई हूं जिसे आपने जहर देकर मरवा दिया था। जिस संपत्ति के लिए आपने मुझे मारा, वही अब मेरे इलाज में आधी बिक चुकी है। हमारा हिसाब बराबर हो गया है।"


यह सुनकर पिता का दिल टूट गया। वह फूट-फूट कर रोने लगा और बोला, "मेरा तो कुल नाश हो गया। जो मैंने किया, वह सब मेरे सामने आ गया। पर तेरी पत्नी का क्या दोष है, जो उसे इस बेचारी को जिंदा जलाया जाएगा?" उस समय सतीप्रथा चल रही थी, जिसमें पति की मृत्यु के बाद पत्नी को पति की चिता के साथ जला दिया जाता था।


लड़के ने दुख भरी नजरों से अपने पिता को देखा और कहा, "पिताजी, वह वैद्य कहां है, जिसने मुझे जहर खिलाया था?"


पिता ने उत्तर दिया, "तुम्हारी मृत्यु के तीन साल बाद वह मर गया था।"


लड़के ने कड़वाहट से हंसते हुए कहा, "वह दुष्ट वैद्य आज मेरी पत्नी के रूप में है। मेरे मरने पर उसे भी जिन्दा जलाया जाएगा।"


कहते हैं, परमेश्वर का न्याय अटल होता है। इस कहानी में उस न्याय की झलक मिलती है। जीवन में किए गए कर्मों का हिसाब-किताब कहीं न कहीं सामने आ ही जाता है।


कहानी के अंत में यही संदेश मिलता है कि जो बोओगे, वही काटोगे। जीवन में सच्चाई और ईमानदारी से जीना ही सबसे बड़ा धर्म है।

अंततः यही सच है कि:

"धर्मराज लेगा तिल-तिल का लेखा,

ऋण संबंध जुड़ा .

स्नेहा एक साधारण परिवार की लड़की थी

 स्नेहा एक साधारण परिवार की लड़की थी, लेकिन उसकी मेहनत और लगन ने उसे एक प्रतिष्ठित बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर पहुंचा दिया था। उसके पिता, एक शिक्षक, ने उसे और उसके भाई को अच्छे संस्कार और शिक्षा दी थी। जब उसकी शादी की बात अर्जुन के परिवार से तय हुई, तो घर में खुशी की लहर दौड़ गई। अर्जुन एक संपन्न परिवार से था, और उसके माता-पिता ने स्नेहा को इसलिए पसंद किया क्योंकि वह एक सरकारी नौकरी में कार्यरत थी। लेकिन स्नेहा का सांवला रंग उनके मन में एक छोटी सी खटास पैदा कर रहा था, जिसे उन्होंने छुपा कर रखा था।


💍 *सगाई का दिन* आ चुका था। स्नेहा ने सादगी से सजी अपनी पसंदीदा गुलाबी साड़ी पहनी थी। अंगूठी पहनाई जा चुकी थी, और लोग धीरे-धीरे खाने में व्यस्त हो गए थे। स्नेहा अपनी सहेली और होने वाली जेठानी सीमा के साथ एक कोने में बैठी थी। सभी बातें कर रहे थे, लेकिन स्नेहा को अंदर से एक अजीब सी बेचैनी हो रही थी।


🌸 तभी उसकी सासू माँ, सुनीता देवी, कमरे में आईं और स्नेहा के पास बैठकर बोलीं, "देखो स्नेहा, अब शादी में कुछ ही दिन बचे हैं। धूप में कम निकला करो, और रात को बेसन, दही, और हल्दी का लेप लगाया करो। इससे रंग थोड़ा साफ़ हो जाएगा।" स्नेहा ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिला दिया, लेकिन अंदर से वह आहत हो गई थी।


सीमा, जो हमेशा खुद को दूसरों से बेहतर साबित करने की कोशिश करती थी, हंसते हुए बोली, "हाँ, नींबू और टमाटर का रस लगाओ, रंग जरूर साफ़ हो जाएगा। वैसे देवर जी को गोरी-चिट्टी लड़कियाँ पसंद हैं, मेरी तरह!" वह खिलखिलाते हुए हंस पड़ी, और माहौल में थोड़ी हल्कापन आ गया। 😌


🕒 **दिन बीतते गए**, और शादी की तारीख नजदीक आती गई। स्नेहा पर ससुराल वालों का दबाव बढ़ता गया। जब भी अर्जुन का फोन आता, वह भी सांवलेपन को लेकर स्नेहा को छेड़ता था। कभी-कभी वह सीरियस हो कर कहता, "स्नेहा, मुझे तुम्हारे सांवलेपन से कोई शिकायत नहीं है, लेकिन मम्मी का अरमान है कि बहुएँ गोरी-चिट्टी हों। भाभी तो गोरी हैं, तुम थोड़ी सांवली हो, तो जो टिप्स दी जा रही हैं, उन्हें मान लो न। आखिर खूबसूरत तो तुम ही दिखोगी।"


स्नेहा ये सब सुनकर चुप रह जाती, लेकिन उसके भीतर एक तूफान उमड़ रहा था। उसे लगता कि वह अपने ही अस्तित्व से लड़ रही है। उसकी माँ भी उसे समझातीं, "बेटा, इतने बड़े घर में रिश्ता हो रहा है, ये तुम्हारी नौकरी की वजह से मुमकिन हुआ है। वे बड़े लोग हैं, उनकी सोसाइटी में उठना-बैठना है। तुम किस्मत वाली हो कि उन्होंने तुम्हें चुना है, अपने रंग-रूप के बावजूद।"


💭 **स्नेहा के मन में कई सवाल उठते**, लेकिन वह खुद को समझाने की कोशिश करती कि शायद वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा। लेकिन जैसे-जैसे शादी का दिन करीब आने लगा, ससुराल से मिलने वाली हिदायतें और भी ज्यादा कठोर होती गईं।


🎂 **शादी से एक सप्ताह पहले** अर्जुन का जन्मदिन था। अर्जुन ने अपने दोस्तों और परिवार के लिए एक पार्टी रखी थी और स्नेहा को भी बुलाया था। सुनीता देवी ने पहले ही फोन पर उसे साफ-साफ बता दिया था कि वह पार्लर से तैयार होकर आए। स्नेहा की माँ ने भी उसे भाई के साथ पार्लर भेज दिया।


जब स्नेहा पार्टी में पहुँची, तो उसे देखते ही सुनीता देवी का चेहरा कठोर हो गया। वह नाराज होकर बड़ी बहू सीमा को बुलाती हैं और कहती हैं, "इसे बाथरूम में ले जाकर अच्छे से तैयार कर दो, अपने मेकअप से।" लेकिन स्नेहा ने जाने से इंकार कर दिया। 🚫


🌩️ सुनीता देवी का गुस्सा चरम पर पहुँच गया और उन्होंने लगभग धक्का देते हुए स्नेहा से कहा, "न रंग है, न रूप, फिर तुम्हें घमंड किस बात का है? हमने अपने से छोटे घर से रिश्ता जोड़ कर गलती कर दी।" इतने में अर्जुन भी वहाँ आ गया और स्नेहा का हाथ पकड़कर उसे बाथरूम की ओर ले जाने लगा।


स्नेहा ने अर्जुन का हाथ धीरे से छोड़ा और अपनी सास के सामने जाकर खड़ी हो गई। उसकी आँखों में दृढ़ता थी। उसने कहा, "हाँ, मैं साधारण घर से हूँ, और मेरा रंग सांवला है। मुझे घमंड नहीं, बल्कि गर्व है अपनी पहचान पर। मैंने अपनी मेहनत से ये मुकाम हासिल किया है। मेरे माता-पिता ने मुझे सिखाया है कि इंसान को उसके रंग-रूप से नहीं, उसके गुणों से पहचाना जाता है। और अर्जुन, तुम्हें कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए, क्योंकि तुमने बचपन से यही देखा है कि औरतें सजावटी सामान हैं। लेकिन मुझे अपनी पहचान पर गर्व है, और मैं खुद को बदलने वाली नहीं हूँ।" 🌟


**स्नेहा ने अपनी सगाई की अंगूठी उतारकर सुनीता देवी के हाथ में रख दी** और अपने भाई का हाथ पकड़कर हॉल से बाहर निकल गई। वह एक आज़ाद हवा के झोंके की तरह बाहर निकली, अपने आत्म-सम्मान और पहचान के साथ। 🌬️


**उसने यह निर्णय लिया** कि वह ऐसे रिश्ते में नहीं बंधेगी, जहाँ उसकी पहचान को उसके रंग से तौला जाए। स्नेहा जानती थी कि असली खूबसूरती आत्म-सम्मान, गरिमा, और अपने आप पर गर्व करने में है। वह गर्व से सिर उठाए चली गई, एक नई शुरुआत की ओर। ✨

एक अखबार वाला प्रात:काल लगभग 5 बजे जिस समय वह अख़बार देने आता था,

 एक अखबार वाला प्रात:काल लगभग 5 बजे जिस समय वह अख़बार देने आता था, उस समय मैं उसको अपने मकान की 'गैलरी' में टहलता हुआ मिल जाता था। अत: वह मेरे आवास के मुख्य द्वार के सामने चलती साइकिल से निकलते हुए मेरे आवास में अख़बार फेंकता और मुझको 'नमस्ते डॉक्टर साब' वाक्य से अभिवादन करता हुआ फर्राटे से आगे बढ़ जाता था। 

क्रमश: समय बीतने के साथ मेरे सोकर उठने का समय बदल कर प्रात: 7:00 बजे हो गया।

जब कई दिनों तक मैं उसको प्रात: नहीं दिखा तो एक रविवार को प्रात: लगभग 9:00 बजे वह मेरा कुशल-क्षेम लेने मेरे आवास पर आ गया। जब उसको ज्ञात हुआ कि घर में सब कुशल- मंगल है, मैं बस यूँ ही देर से उठने लगा था।

वह बड़े सविनय भाव से हाथ जोड़ कर बोला, 

"डॉक्टर साब! एक बात कहूँ?"

मैंने कहा... "बोलो"

वह बोला... "आप सुबह तड़के सोकर जगने की अपनी इतनी अच्छी आदत को क्यों बदल रहे हैं? आप के लिए ही मैं सुबह तड़के विधान सभा मार्ग से अख़बार उठा कर और फिर बहुत तेज़ी से साइकिल चला कर आप तक अपना पहला अख़बार देने आता हूँ...सोचता हूँ कि आप प्रतीक्षा कर रहे होंगे।"

मैने विस्मय से पूछा... "और आप! विधान सभा मार्ग से अखबार लेकर आते हैं?"

“हाँ! सबसे पहला वितरण वहीं से प्रारम्भ होता है," उसने उत्तर दिया।

“तो फिर तुम जगते कितने बजे हो?"

“ढाई बजे.... फिर साढ़े तीन तक वहाँ पहुँच जाता हूँ।"

“फिर?" मैंने पूछा।

“फिर लगभग सात बजे अख़बार बाँट कर घर वापस आकर सो जाता हूँ..... फिर दस बजे कार्यालय...... अब बच्चों को बड़ा करने के लिए ये सब तो करना ही होता है।”

मैं कुछ पलों तक उसकी ओर देखता रह गया और फिर बोला, “ठीक! तुम्हारे बहुमूल्य सुझाव को ध्यान में रखूँगा।"

घटना को लगभग पन्द्रह वर्ष बीत गये। एक दिन प्रात: नौ बजे के लगभग वह मेरे आवास पर आकर एक निमंत्रण-पत्र देते हुए बोला, “डॉक्टर साब! बिटिया का विवाह है..... आप को सपरिवार आना है।“

निमंत्रण-पत्र के आवरण में अभिलेखित सामग्री को मैंने सरसरी निगाह से जो पढ़ा तो संकेत मिला कि किसी डाक्टर लड़की का किसी डाक्टर लड़के से परिणय का निमंत्रण था। तो जाने कैसे मेरे मुँह से निकल गया, “तुम्हारी लड़की?"

उसने भी जाने मेरे इस प्रश्न का क्या अर्थ निकाल लिया कि विस्मय के साथ बोला, “कैसी बात कर रहे हैं, डॉक्टर साबजी! मेरी ही बेटी।"

मैं अपने को सम्भालते हुए और कुछ अपनी झेंप को मिटाते हुए बोला, “नहीं! मेरा तात्पर्य कि अपनी लड़की को तुम डाक्टर बना सके, इसी प्रसन्नता में वैसा कहा।“

“हाँ सरजी! लड़की ने मेकाहारा से एमबीबीएस किया है और उसका होने वाला पति भी वहीं से एमडी है ....... और सरजी! मेरा लड़का इंजीनियरिंग के अन्तिम वर्ष का छात्र है।”

मैं किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा सोच रहा था कि उससे अन्दर आकर बैठने को कहूँ कि न कहूँ कि वह स्वयम् बोला, “अच्छा सरजी! अब चलता हूँ..... अभी और कई कार्ड बाँटने हैं...... आप लोग आइयेगा अवश्य।"

मैंने भी फिर सोचा आज अचानक अन्दर बैठने को कहने का आग्रह मात्र एक छलावा ही होगा। अत: औपचारिक नमस्ते कहकर मैंने उसे विदाई दे दी।

उस घटना के दो वर्षों के बाद जब वह मेरे आवास पर आया तो ज्ञात हुआ कि उसका बेटा जर्मनी में कहीं कार्यरत था। उत्सुक्तावश मैंने उससे प्रश्न कर ही डाला कि आखिर उसने अपनी सीमित आय में रहकर अपने बच्चों को वैसी उच्च शिक्षा कैसे दे डाली?

“सर जी! इसकी बड़ी लम्बी कथा है फिर भी कुछ आप को बताये देता हूँ। अख़बार, नौकरी के अतिरिक्त भी मैं ख़ाली समय में कुछ न कुछ कमा लेता था। साथ ही अपने दैनिक व्यय पर इतना कड़ा अंकुश कि भोजन में सब्जी के नाम पर रात में बाज़ार में बची खुची कद्दू, लौकी, बैंगन जैसी मौसमी सस्ती-मद्दी सब्जी को ही खरीद कर घर पर लाकर बनायी जाती थी।

एक दिन मेरा लड़का परोसी गयी थाली की सामग्री देखकर रोने लगा और अपनी माँ से बोला, 'ये क्या रोज़ बस वही कद्दू, बैंगन, लौकी, तरोई जैसी नीरस सब्ज़ी... रूख़ा-सूख़ा ख़ाना...... ऊब गया हूँ इसे खाते-खाते। अपने मित्रों के घर जाता हूँ तो वहाँ मटर-पनीर, कोफ़्ते, दम आलू आदि....। और यहाँ कि बस क्या कहूँ!!'"

मैं सब सुन रहा था तो रहा न गया और मैं बड़े उदास मन से उसके पास जाकर बड़े प्यार से उसकी ओर देखा और फिर बोला, "पहले आँसू पोंछ फिर मैं आगे कुछ कहूँ।"

मेरे ऐसा कहने पर उसने अपने आँसू स्वयम् पोछ लिये। फिर मैं बोला, "बेटा! सिर्फ़ अपनी थाली देख। दूसरे की देखेगा तो तेरी अपनी थाली भी चली जायेगी...... और सिर्फ़ अपनी ही थाली देखेगा तो क्या पता कि तेरी थाली किस स्तर तक अच्छी होती चली जाये। इस रूख़ी-सूख़ी थाली में मैं तेरा भविष्य देख रहा हूँ। इसका अनादर मत कर। इसमें जो कुछ भी परोसा गया है उसे मुस्करा कर खा ले ....।"

उसने फिर मुस्कराते हुए मेरी ओर देखा और जो कुछ भी परोसा गया था खा लिया। उसके बाद से मेरे किसी बच्चे ने मुझसे किसी भी प्रकार की कोई भी माँग नहीं रक्खी। डॉक्टर साब! आज का दिन बच्चों के उसी त्याग का परिणाम है।

उसकी बातों को मैं तन्मयता के साथ चुपचाप सुनता रहा।

आज जब मैं यह संस्मरण लिख रहा हूँ तो यह भी सोच रहा हूँ कि आज के बच्चों की कैसी विकृत मानसिकता है कि वे अपने अभिभावकों की हैसियत पर दृष्टि डाले बिना उन पर ऊटपटाँग माँगों का दबाव डालते रहते हैं...!!

सुधा की नई-नई शादी हुई थी

 सुधा की नई-नई शादी हुई थी और वह एक महीने बाद अपने मायके लौटी।** 🏠💔 **अपनी माँ के सामने बैठकर सुधा आंसू बहाते हुए बोली, "माँ, तुमने मुझे किस घर में भेज दिया। वहाँ मेरी कोई इज्जत ही नहीं है। सारा दिन नौकरानी की तरह रसोई में खड़ी रहती हूँ। किसी को भी मुझ पर दया नहीं आती। कभी सास-ससुर की रोटियाँ पकाओ, कभी छोटे देवरों की, फिर ननद के कॉलेज से लौटने पर उसके लिए रोटियाँ बनाओ।"😢🍲


"और माँ, आए दिन सासू माँ के रिश्तेदार आते रहते हैं। उनके लिए मुझे ही चाय-नाश्ता और खाना तैयार करना होता है। रोज गंदे कपड़ों के ढेर इकट्ठे हो जाते हैं। आराम ही नहीं मिलता, जिंदगी नर्क सी बन गई है। और तो और, नारायण बिस्तर पर बैठे-बैठे ही सब कुछ चाहते हैं।** 😓👗 **जानते हो, बीते दिन मुझे अपने पति पर तब गुस्सा आया जब उन्होंने महीने की पूरी तनख्वाह सासू माँ के हाथ में रख दी और मुझसे कहा कि मुझे जो कुछ भी चाहिए, उसे एक पर्ची पर लिखकर देना। वह शाम को ड्यूटी से लौटते वक्त ले आएंगे।" 😔💸


सुधा की बातों को ध्यान से सुनने के बाद उसकी माँ ने थोड़ा सोचकर कहा, "तो तुम क्या चाहती हो बेटा? क्या तुम उनके साथ नहीं रहना चाहती? बस तुम और तुम्हारे पति अलग रहना चाहते हो? अगर ऐसा है, तो मैं तुम्हें दो रास्ते बताती हूँ। 🛤️ **एक तो तुम वही रहो और उन सबकी सेवा करो क्योंकि वह परिवार भी अब तुम्हारा ही है। और दूसरा, तुम अपने पति को किसी किराए के मकान में ले जाओ। वहाँ तुम्हें किसी का खाना पकाना नहीं पड़ेगा, किसी के कपड़े धोने नहीं पड़ेंगे और तुम्हारे पति की पूरी तनख्वाह भी तुम्हें ही मिलेगी।"** 🏠🔑


**"लेकिन याद रखना बेटा, जब तुम्हारा खुद का बेटा होगा और वह बड़ा हो जाएगा, उसकी भी शादी होगी और जब तुम्हारी बहू आएगी, तब तुम यही चाहोगी कि तुम्हारा बेटा और बहू तुम्हारे साथ ही रहें और तुम अपने नाती-पोतों के साथ खेलो। जब तुम्हें प्यास लगेगी तो तुम्हारा नाती दौड़कर तुम्हारे लिए पानी का गिलास लाएगा। कोई तुम्हारे लिए ऐनक ढूंढकर लाएगा और कहेगा, 'दादी जी, खाना बन चुका है, चलो खाना खाएं।'"** 👵👶💖


**माँ ने आगे बोलना जारी रखा, "जिन कामों को तुम दुख समझ रही हो, दरअसल वही जीवन के महत्वपूर्ण क्षण हैं। एक सफल गृहणी हर कार्य को सरल बनाकर जल्दी ही निपटा देती है, उसका रोना नहीं रोती।** 🌸 **जो लोग दुनिया में सफल हुए हैं, वे अपनी जिम्मेदारियों से भागते नहीं, बल्कि उन्हें बखूबी निभाते हैं।** 💪 **और बेटा, यह जो तुम जिन्दगी की परेशानियाँ समझ रही हो ना, वह तुम्हारी सासू माँ तुम्हें एक जिम्मेदार बनाने के लिए सिखा रही हैं। वह आने वाले समय की परेशानियों से निपटने के लिए तुम्हें तैयार कर रही हैं। वर्षों से हर सास अपनी बहू को जिम्मेदार बनाने के लिए ऐसा करती आई है। कल तुम भी अपनी बहू को जिम्मेदार बनाने के लिए उसे मजबूत बनाओगी।"** 🌻


**"बेटा, घर के बुजुर्ग कब तक रहेंगे और कब नहीं, कोई नहीं जानता। वे अपनी आने वाली पीढ़ियों को मजबूत और रिश्ते निभाते हुए देखना चाहते हैं। कल तुम भी अपने बच्चों से यही आशाएँ रखोगी।"** 🌳👪


**सुधा की आँखों में आंसू थे। सुधा ने उसी वक्त अपना बैग उठाया और बोली, "बस माँ, मैं समझ गई आपकी बात। आपकी बातों में अनमोल सीख है। मैं अभी अपने ससुराल वापस जा रही हूँ। शाम होने वाली है और सासू माँ के पैरों में दर्द रहता है, मुझे उनकी घुटनों की मालिश करनी है।"** 👜😊 **यह कहते हुए सुधा मुस्कुराती हुई ससुराल की ओर चल दी, जबकि उसकी माँ अपनी बेटी की समझदारी पर मुस्कुरा रही थी!** 🌷✨


**आशा करती हूँ कि यह छोटी सी कहानी आपको पसंद आई होगी। अगर कहानी अच्छी लगी हो तो एक लाइक कर देना और फॉलो करना मत भूलना!** ❤️👍

आरव एक लेखक था

 यह कहानी है आरव और काव्या की, जिनकी मुलाकात एक किताबों की दुकान में हुई थी और जिनका प्यार साहित्य के प्रति उनकी गहरी रुचि से बंधा हुआ था। 📚


आरव एक लेखक था, जिसने कई उपन्यास लिखे थे, लेकिन उसकी किताबें अभी तक ज्यादा प्रसिद्ध नहीं हो पाई थीं। ✍️ वह अक्सर शहर की एक छोटी सी किताबों की दुकान में जाया करता था, जहाँ वह नई-नई किताबें खोजता और अपने लिखने के लिए प्रेरणा पाता। काव्या एक साहित्य प्रेमी थी, जो एक लाइब्रेरी में काम करती थी और खाली समय में किताबें पढ़ने का शौक रखती थी। 📖


एक दिन, आरव अपनी पसंदीदा किताबों की दुकान में नई किताबों की खोज में था। तभी उसकी नजर एक लड़की पर पड़ी, जो बड़े ध्यान से एक किताब पढ़ रही थी। वह लड़की काव्या थी। 😊 आरव ने देखा कि वह उसकी लिखी हुई किताब को पढ़ रही थी। यह देखकर उसे बहुत खुशी हुई। उसने हिम्मत जुटाई और काव्या के पास जाकर बोला, "क्या आप इस किताब को पढ़ने का आनंद ले रही हैं?"


काव्या ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हाँ, यह बहुत ही दिलचस्प है। इस लेखक का लेखन बहुत अच्छा है।" 😊 आरव ने अपनी मुस्कान छिपाते हुए कहा, "धन्यवाद, मैं वही लेखक हूँ।" यह सुनकर काव्या हैरान रह गई और उसने आरव से उसकी किताबों और लेखन के बारे में बातें करनी शुरू कीं। 📚


इस पहली मुलाकात के बाद, आरव और काव्या के बीच एक गहरी दोस्ती हो गई। वे अक्सर एक-दूसरे से मिलते, किताबों और लेखन पर चर्चा करते और एक-दूसरे के विचारों को साझा करते। काव्या ने आरव को अपने लेखन को और भी निखारने के लिए प्रेरित किया और उसकी कहानियों को और भी बेहतर बनाने में मदद की। 🌟


समय के साथ, आरव और काव्या के बीच की दोस्ती प्यार में बदल गई। ❤️ एक दिन, आरव ने काव्या को शहर के एक पुराने पुस्तकालय में बुलाया, जो दोनों का पसंदीदा स्थान था। वहां, उसने एक खास तैयारी की थी। उसने एक छोटी सी नोटबुक तैयार की थी, जिसमें उसने अपनी और काव्या की कहानी को लिखा था। 📓


आरव ने काव्या को वह नोटबुक दी और कहा, "काव्या, यह हमारी कहानी है। मैं चाहता हूँ कि हम इस कहानी को मिलकर लिखें। क्या तुम मेरी जिंदगी का हिस्सा बनोगी?" 😊 काव्या ने वह नोटबुक पढ़ी और उसकी आँखों में खुशी के आँसू आ गए। उसने कहा, "हाँ, आरव, मैं तुम्हारे साथ अपनी कहानी को पूरा करना चाहती हूँ।" 😢❤️


दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया और उसी पुस्तकालय में अपने प्यार का इकरार किया। 🤗 इसके बाद, उन्होंने अपने परिवारों को अपने रिश्ते के बारे में बताया और कुछ महीनों बाद उनकी शादी हुई। 💍


आरव और काव्या ने मिलकर अपनी जिंदगी को एक खूबसूरत किताब की तरह जिया। 📖 उन्होंने मिलकर नई-नई कहानियाँ लिखीं और अपने प्यार को हमेशा जीवंत रखा। 🌹 उनकी कहानी यह सिखाती है कि जब दो लोग एक-दूसरे के सपनों और भावनाओं को समझते हैं और उन्हें पूरा करने का प्रयास करते हैं, तो उनकी जिंदगी एक खूबसूरत कहानी बन जाती है। ✨ आरव और काव्या का प्यार और साझेदारी इस बात का प्रतीक है कि सच्चा प्यार न केवल एक-दूसरे को समझने में होता है, बल्कि एक-दूसरे के सपनों को पूरा करने में भी होता है। 💖

अकेलेपन

 राहुल** ने जैसे ही ऑफिस जाते वक्त **कैलेंडर** पर नजर डाली, आज की तारीख देखकर उसका मन टूट गया। आज **9 जनवरी** थी और उसकी दुनिया में **अकेलेपन** की पहली बरसी थी। **शिवानी**, उसकी पत्नी, को गुज़रे पूरा एक साल हो गया था। कानून और समाज की नज़र में वे आज भी शादी के बंधन में बंधे थे, पर यह बंधन बस नाम का ही रह गया था। शिवानी को गए लंबा अरसा हो चुका था, और राहुल इस रिश्ते को खत्म करने की कोशिश में कभी आगे नहीं बढ़ पाया। 🥀


शिवानी के जाने का दर्द आज फिर ताज़ा हो उठा। राहुल ने अपने **लैपटॉप बैग** और **मोबाइल** को मेज पर रखा और नौकरानी शांति को एक कप **कॉफी** बनाने की हिदायत देकर **अलमारी** की ओर बढ़ गया। उसने उस नीले कवर वाले **लिफाफे** को निकाला, जिस पर आज भी शिवानी की लिखावट में '**राहुल**' लिखा हुआ था।


लिफाफे में **शिवानी का एक खत** था। उसने लिखा था, **"राहुल, मैं अपने जज्बातों को इस खत में उकेर कर जा रही हूं। जब यह चिट्ठी तुम्हें मिलेगी, मैं इस दुनियावी आडंबरों से बहुत दूर जा चुकी हूंगी। कल रात मुझे फिर वही सपना आया, तुम मुझे एक पार्टी में ले गए थे। सब हंसते और बात करते थे, फिर अचानक उनके चेहरे पर भयानक हंसी आ गई। तुम्हारा चेहरा भी डरावना हो गया।"**


राहुल को याद आया कि वह कितना **गुस्सैल** हो गया था। वह शिवानी पर अपना गुस्सा उतारता रहता था, जबकि शुरू में ऐसा नहीं था। उनका **वैवाहिक जीवन** खुशहाल था, पर धीरे-धीरे काम के बोझ ने राहुल को इतना परेशान कर दिया कि वह शिवानी पर अपनी सारी फ्रस्ट्रेशन निकालने लगा था। 😔


राहुल ने खत का बचा हिस्सा पढ़ना शुरू किया। शिवानी ने लिखा था, **"तुम्हारे गुस्से के बावजूद मैं तुम्हें प्यार करती रही, पर तुमने मुझे कभी प्यार नहीं दिया। तुम मेरे मोटापे का मज़ाक उड़ाते थे, जबकि मेरे हाइपोथायराइडिज्म के कारण मेरा वजन बढ़ गया था। मैंने तुम्हारी हर खुशी के लिए सब कुछ किया, पर तुम्हारी नज़रों में मैं हमेशा बुरी ही रही।"**


राहुल के दिल में कांटे चुभने लगे, लेकिन वह उस पीड़ा को भोगना चाहता था। उसने खत का अगला हिस्सा पढ़ना शुरू किया। शिवानी ने लिखा था, **"मैं अब इस रुग्ण मानसिक अवस्था का हिस्सा नहीं बन सकती। मुझे अपने वजूद को फिर से पाना है।"**


राहुल ने उस खत को बहुत देर तक थामे रखा। पिछले एक साल ने उसे बहुत कुछ सिखाया। उसे एहसास हुआ कि **पत्नी** केवल शोपीस नहीं होती, वह जीवन का अभिन्न अंग होती है। इस एक साल में उसने कई बार सोचा कि वह शिवानी को **फोन** करेगा और अपनी ज्यादतियों के लिए **माफी** मांगेगा। 📜💔


आज वह उसे बताना चाहता है कि उसे अपनी सभी **गलतियों** का एहसास है और उसे शिवानी की मुस्कान से प्यार है। वह जैसी भी है, उसकी अपनी है। अब वह और **इंतजार** नहीं कर सकता, उसे शिवानी को बताना है कि वह उससे बहुत **प्यार** करता है और उसकी हर कमी के बावजूद उसे अपनाना चाहता है। ❤️🌹

 हो सकता है मैं कभी प्रेम ना जता पाऊं तुमसे.. लेकिन कभी पीली साड़ी में तुम्हे देखकर थम जाए मेरी नज़र... तो समझ जाना तुम... जब तुम रसोई में अके...