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Wednesday, 30 October 2024

जीवन में परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, अगर आत्मविश्वास और समझदारी हो, तो कोई भी मुश्किल हालात को पार किया जा सकता है।

 एक दिन, एक कंपनी में साक्षात्कार के दौरान, बॉस, जिसका नाम अनिल था, ने सामने बैठी महिला, सीमा से पूछा, "आप इस नौकरी के लिए कितनी तनख्वाह की उम्मीद करती हैं?"


सीमा ने बिना किसी झिझक के आत्मविश्वास से कहा, "कम से कम 90,000 रुपये।"


अनिल ने उसकी ओर देखा और आगे पूछा, "आपको किसी खेल में दिलचस्पी है?"


सीमा ने जवाब दिया, "जी, मुझे शतरंज खेलना पसंद है।"


अनिल ने मुस्कुराते हुए कहा, "शतरंज बहुत ही दिलचस्प खेल है। चलिए, इस बारे में बात करते हैं। आपको शतरंज का कौन सा मोहरा सबसे ज्यादा पसंद है? या आप किस मोहरे से सबसे अधिक प्रभावित हैं?"


सीमा ने मुस्कुराते हुए कहा, "वज़ीर।"


अनिल ने उत्सुकता से पूछा, "क्यों? जबकि मुझे लगता है कि घोड़े की चाल सबसे अनोखी होती है।"


सीमा ने गंभीरता से जवाब दिया, "वास्तव में घोड़े की चाल दिलचस्प होती है, लेकिन वज़ीर में वो सभी गुण होते हैं जो बाकी मोहरों में अलग-अलग रूप से पाए जाते हैं। वह कभी मोहरे की तरह एक कदम बढ़ाकर राजा को बचाता है, तो कभी तिरछा चलकर हैरान करता है, और कभी ढाल बनकर राजा की रक्षा करता है।"


अनिल ने उसकी समझ से प्रभावित होते हुए पूछा, "बहुत दिलचस्प! लेकिन राजा के बारे में आपकी क्या राय है?"


सीमा ने तुरंत जवाब दिया, "सर, मैं राजा को शतरंज के खेल में सबसे कमजोर मानती हूँ। वह खुद को बचाने के लिए केवल एक ही कदम उठा सकता है, जबकि वज़ीर उसकी हर दिशा से रक्षा कर सकता है।"


अनिल सीमा के जवाब से प्रभावित हुआ और बोला, "बहुत शानदार! बेहतरीन जवाब। अब ये बताइए कि आप खुद को इनमें से किस मोहरे की तरह मानती हैं?"


सीमा ने बिना किसी देर के जवाब दिया, "राजा।"


अनिल थोड़ी हैरानी में पड़ गया और बोला, "लेकिन आपने तो राजा को कमजोर और सीमित बताया है, जो हमेशा वज़ीर की मदद का इंतजार करता है। फिर आप क्यों खुद को राजा मानती हैं?"


सीमा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "जी हाँ, मैं राजा हूँ और मेरा वज़ीर मेरा पति था। वह हमेशा मेरी रक्षा मुझसे बढ़कर करता था, हर मुश्किल में मेरा साथ देता था, लेकिन अब वह इस दुनिया में नहीं है।"


अनिल को यह सुनकर थोड़ा धक्का लगा, और उसने गंभीरता से पूछा, "तो आप यह नौकरी क्यों करना चाहती हैं?"


सीमा की आवाज भर्राई, उसकी आँखें नम हो गईं। उसने गहरी सांस लेते हुए कहा, "क्योंकि मेरा वज़ीर अब इस दुनिया में नहीं रहा। अब मुझे खुद वज़ीर बनकर अपने बच्चों और अपने जीवन की जिम्मेदारी उठानी है।"


यह सुनकर कमरे में एक गहरी खामोशी छा गई। अनिल ने तालियाँ बजाते हुए कहा, "बहुत बढ़िया, सीमा। आप एक सशक्त महिला हैं।"


शिक्षा और सशक्तिकरण का महत्व:


यह कहानी उन सभी बेटियों के लिए एक प्रेरणा है जो जिंदगी में किसी भी तरह की मुश्किलों का सामना कर सकती हैं। बेटियों को अच्छी शिक्षा और परवरिश देना बेहद जरूरी है, ताकि अगर कभी उन्हें कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़े, तो वे खुद वज़ीर बनकर अपने और अपने परिवार के लिए एक मजबूत ढाल बन सकें।

किसी विद्वान ने कहा है, "एक बेहतरीन पत्नी वह होती है जो अपने पति की मौजूदगी में एक आदर्श औरत हो, और पति की गैरमौजूदगी में वह मर्द की तरह परिवार का बोझ उठा सके।"

यह कहानी अरविन्द वर्मा हमें सिखाती है कि जीवन में परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, अगर आत्मविश्वास और समझदारी हो, तो कोई भी मुश्किल हालात को पार किया जा सकता है।

Monday, 28 October 2024

रिश्ते में सिर्फ जिम्मेदारी निभाना ही नहीं, बल्कि एक-दूसरे की भावनाओं को समझना और उन्हें पूरा करना भी जरूरी होता है।

 जब एक औरत की शारीरिक जरूरत उसका पति पूरा नहीं कर पाता तो अक्सर औरत ऐसा ही करती है 

रीमा ने एक दिन अपने पति अशोक से सीधे शब्दों में सवाल किया, "क्या तुम्हें लगता है कि हमारी शादी में वो जुनून अब भी है?" अशोक कुछ देर चुप रहा, जैसे उसे समझ ही नहीं आया कि आखिर रीमा ऐसा सवाल क्यों पूछ रही है। उसने हल्की हंसी के साथ जवाब दिया, "हम तो एक खुशहाल दंपती हैं, ऐसा क्या कमी महसूस होती है तुम्हें?" लेकिन रीमा की आँखों में जो खलिश थी, वो शायद अशोक समझ नहीं पा रहा था।


💔 रीमा की उलझन: शादी के आठ साल बाद भी रीमा को अपने रिश्ते में वो अपनापन और उत्साह महसूस नहीं हो रहा था। अशोक एक अच्छा इंसान था, लेकिन उसने कभी रीमा की भावनाओं और उसकी गहरी इच्छाओं को समझने की कोशिश नहीं की थी। उसकी सारी प्राथमिकताएं काम और परिवार की जिम्मेदारियों में समाई हुई थीं। रीमा अक्सर महसूस करती कि उनका रिश्ता एक रूटीन बनकर रह गया है, जिसमें रोमांच और वो खास जुड़ाव कहीं खो गए हैं।


🌹 अपनी सहेली से सलाह: अपनी उलझन को दूर करने के लिए रीमा ने अपनी करीबी सहेली सोनल से बात की। सोनल ने उसे एक महत्वपूर्ण सलाह दी, "तुम्हें अशोक से इस बारे में खुलकर बात करनी चाहिए। बहुत बार मर्द अपनी पत्नी की ख्वाहिशों को तभी समझ पाते हैं जब वो सीधा बताती हैं।" सोनल ने रीमा को समझाया कि उसे अपनी भावनाएं स्पष्ट शब्दों में अशोक के सामने रखनी चाहिए।


🌌 अशोक के साथ संवाद: रीमा ने एक शांत शाम को अशोक के साथ बैठकर अपनी भावनाओं के बारे में बात की। उसने बताया कि वो सिर्फ एक जीवन साथी नहीं, बल्कि एक ऐसा साथी भी चाहती है जो उसकी भावनाओं, इच्छाओं और ख्वाहिशों को समझ सके। उसने अशोक से कहा कि उसे सिर्फ प्यार नहीं, बल्कि ऐसा जुड़ाव चाहिए जो उनकी शादीशुदा जिंदगी को और मजबूत बना सके।


💫 अशोक की जागरूकता: रीमा की बातों ने अशोक को सोचने पर मजबूर कर दिया। उसने महसूस किया कि उसने कभी अपने रिश्ते में उस गहराई को नहीं देखा, जिसकी रीमा को जरूरत थी। उसने अपने रिश्ते को एक नई ऊर्जा देने का वादा किया। उसने तय किया कि वो सिर्फ एक पति नहीं, बल्कि रीमा का ऐसा साथी बनेगा जो उसकी भावनाओं को भी समझे।


💖 नई शुरुआत: धीरे-धीरे अशोक और रीमा के बीच की दूरियां मिटने लगीं, और उनका रिश्ता पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो गया। अशोक ने महसूस किया कि रीमा की इच्छाओं को समझने और उसे संतुष्ट करने से उनकी शादी में वो पुरानी गर्मजोशी लौट आई है। अब रीमा भी पहले से ज्यादा खुश और संतुष्ट महसूस करने लगी थी।


सीख: रिश्ते में सिर्फ जिम्मेदारी निभाना ही नहीं, बल्कि एक-दूसरे की भावनाओं को समझना और उन्हें पूरा करना भी जरूरी होता है। सच्चा प्यार और संतोष तभी संभव है जब दोनों अपने दिल की बातें खुलकर साझा करें और अपने रिश्ते को संजीवनी देने की कोशिश करें।

Sunday, 20 October 2024

आपकी एक छोटी सी पहल समाज को एक कुरीति से बचाएगी…

 विवाह भोज या निकाह की पार्टी : विचार करना 

कल एक जैन परिवार की शादी में ,प्रीतिभोज में जाना हुआ , स्वागत गेट में गुलाब के फूल ,मैंगो शेक,ड्राइफूट के साथ स्वागत हुआ अंदर मैदान में अद्भुत नजारा था। आर्केस्ट्रा की स्वर लहरी चारो तरफ गुंजायमान थी ।

इवेंट मैनेजमेंट का फंडा चारो तरफ बिखरा हुआ दिख रहा है। दूल्हा और दुल्हन को गेट से ही मंच तक लेकर जाने की अदभुत तैय्यारी भी रथ व नाचने गाने वालो को पूरी टीम तैयार थी जो वर वधु को लेकर बीच मैदान में ले जाकर वरमाला करवाकर स्टेज में ले गया ।


हम सब तो थके मांदे भूख से व्याकुल लोग थे जो पहुंच गए स्टार्टर की ओर पर उसी बीच एक दूसरे और तेज हो हल्ला सुनाई देने लगी, मैं भी गुपचुप का दोना रख उस और हो लिया।


वहा तो अलग ही नजारा था। चक सफेद धोती कुर्ता और कंधे में क्रीम कलर का साफी डाले लगभग 65 साल का बुजुर्ग पर उनका आवाज युवाओं से भी तेज ,लड़की वाले व केट्ररर्स को चमका रहा था और बार बार कह रहा था हम सब खाना नही खायेगे,या तो आप ये मेनू की जो सूची लिखे बोर्ड है उसे फेके या फिर भोजन को फेके ? हम सब ये खाना नही खायेगे ।

हम शादी में आए है निकाह में नहीं।


मेरी भी नजर अचानक खाने के स्टाल पर पड़ी ,जहा लिखा था #वेज_बिरयानी_हरा_भरा_कबाब_वेज_कोरमा_कबाब_वेज_हांडी_बिरयानी,।


बुजुर्ग तमतमाया हुआ था, बात बात में कहता था बिरयानी व कबाब किसे कहते है, मुझे समझाओ फिर ही हम सब भोजन करेगे और अपने इस बहस में मुझे भी शामिल कर लिया की बताइए भाईजी क्या ऐसा लिखना उचित है।

मांस के उपयोग से बने भोजन को ही बिरयानी व कबाब कहते है ,क्या हमे इस जगह पर ऐसे हालात में भोजन करना चाहिए ।मेरे और अनायास दादा के प्रश्न पर मैं भी कुछ बोल नहीं पा रहा था।


एक तरफ केट्ररर्स की गलती ,समाज में चल रहे अंधाधुन पश्चात्य संस्कृति के ढल रहे लोग,और दूसरी ओर हाथ जोड़े अनुनय करते खड़े लड़की के परिवार वाले? और सबके बीच धर्म, संस्कृति व भोजन के तरीके पर अड़े दादाजी,जो अपनी जगह बिल्कुल सही थे अब उनके स्वर और तीखे हो गए कहने लगे बताओ मैं विवाह में आया हूं की निकाह में ?


बाते बढ़ते देख मैंने व वहाँ पर खड़े दो तीन मित्रो ने मिलकर केटरर्स को चिल्लाकर स्टाल से सारे स्टीगर निकाल फेके जिसमे बिरयानी व कबाब जैसे शब्द लिखे थे, तब दादाजी का गुस्सा शांत हुआ और फिर उन्होंने भोजन ग्रहण करने की हामी भरी वो भी बैठकर, ।


दादा जी की बाते वहा पर उपस्थित सभी लोगो को एक सीख दे गई की मांसाहारी भोजन के लिए ही कबाब व बिरयानी जैसे शब्द प्रयोग किया जाता है ।और खाना नही हमे भोजन करना चाहिए । केटरर्स जो भी लिखे उसे हमे भी एक बार मेन्यू तय करते समय अपनी समाज एवम संस्कृति के हिसाब से देख भी लेना चाहिए।ज़्यादातर लोग बिना जानकारी के ही कर लेते हैं हम सब यदि सोच समझकर इस दिशा में आगे बढ़ेंगे तो बदलाव लाया जा सकता है…

~~~

*बिरयानी का मतलब होता है सब्ज़ियों एंव मांस का मिश्रण 

*कवाब एक फ़ारसी शब्द है जिसका मतलब होता है पका हुआ मांस 

*कोरमा मतलब भुना हुआ मांस

अब आप खुद सोचें भारतीय व्यंजन के नाम के साथ इनको जोड़ना ठीक है…?जब नाम ये होगा तो हम किस मानसिकता का खाना खाते हैं…

विरोध करिये अभी तो हमारी पकड़ में है नहीं तो वास्तव में निकाह में ही जाओगे और मांसाहारी खाना खाओगे…नई पीढ़ी वेज भूल जाएगी और मांसाहारी बन जाएगी क्यूँकि हम यही तो दे रहे हैं…?

कैटर्स को रोकिये ये नाम देने के लिये…होटल व रेस्टोरेंट में विरोध प्रकट कीजिए…

आपकी एक छोटी सी पहल समाज को एक कुरीति से बचाएगी…

आप भी करिये, मैं भी करता हूँ।

साभार

Saturday, 19 October 2024

आज मुझे आप पर गर्व है

 मिडिल क्लास परिवार में पली बढ़ी खुशबू अपने जिंदगी में सबसे ज्यादा गुस्सा अपने पापा से थी। पापा के लिए उसके मन में नफरत के अलावा कुछ न था। 22 साल की हो चुकी खुशबू ने आज तक एक भी वेलेंटाइन दिन नहीं बनाया था। जबकि उसकी क्लास मेट्स हर साल अलग-अलग लड़को के साथ वेलेंटाइन दिन मनाती थी।

खैर, आज खुशबू आग्नेय से शादी के वक़्त सबसे ज्यादा खुश थी, कि आखिर इस बेहद सख्त, कड़क और अनुशाषित पापा से छुटकारा तो मिला। हमेशा "ये न करो" "वो न करो" "ऐसे कपड़े न पहनों", लेट नाईट पार्टियाँ नहीं, लड़कों से दोस्ती नहीं। आज तक एक स्मार्टफोन तक खरीद कर नहीं दिया ! सारे सपनों और अरमानों को अपने दिमाग की छोटी सोच के कारण कुचलकर रख दिया।


अब मैं आग्नेय के साथ सारी दबी इच्छाएँ पूरी करूँगी। आग्नेय और खुशबू पिछले तीन सालों से एक ही कॉलेज में साथ साथ पढ़ते थे और एक दूसरे को अच्छी तरह जानते थे एक दूसरे की पसंद नापसंद का अच्छे से ख्याल रखते थे। खुशबू ने बहुत डरते डरते पापा से आग्नेय के साथ शादी की इच्छा जताई थी।और पापा ने आग्नेय और उसके परिवार वालों से मिलकर शादी के लिए हामी भर दी।


खुशबू ने विदाई समय पहली बार पापा को उससे लिपटकर बच्चों की तरह फूट फूट कर रोते देखा पर खुशबू को पापा की भावना से कोई मतलब न था वह बस पत्थर की बुत बन खड़ी थी, जाते जाते उसके पापा ने उसे ढ़ेर सारे उपहार के साथ एक बंद लिफाफा भी खुशबू को दिया। ससुराल पहुँचते ही सबसे पहले खुशबू ने लिफाफा खोला। 


उस लिफाफे में पाप की चिट्ठी थी उसने पापा की चिट्ठी को पढ़ना शुरु किया "खुशबू बेटा मैं जानता हूँ कि पिछले दस सालों से मैं तुम्हारे साथ बैड डैड की तरह पेश आता रहा। मैं तुम्हारे सामने सख्त इसलिए बनता था क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि तुम्हारा भी हाल रागिनी जैसा हो।रागिनी मेरे साथ कॉलेज में पढ़ने वाली एक बहुत अच्छे घर की पढ़ने में तेज, शरीफ लड़की थी परंतु फैशन और नकली ग्लैमर के चक्कर में उसने अपनी ही ज़िंदगी बर्बाद कर ली थी।


उसने वो सब किया जिससे मैं तुम्हें हमेशा रोकता रहा। फैशनेबल कपड़े, लड़को से दोस्ती, लेट नाईट पार्टियाँ सब करती थी, सोचती थी कि चरित्र अच्छा है तो इन सब में कोई हर्ज नहीं होता है। फिर एक दिन उसके ड्रिंक्स में नशा डालकर उसके कुछ दोस्तों ने उसका नाजायज़ फायदा उठा लिया। इस घटना के बाद से वो अपना दिमागी संतुलन खो बैठी और समाज के तानों और लोगों से बचने के लिए उसके पापा ने उसकी माँ और छोटी बहन के साथ सल्फास खाकर सुसाइड कर लिया।


खुशबू बेटा, आज से तुम अब एक नही बल्कि दो परिवारों की इज़्ज़त हो और मैं तुमसे यही उम्मीद करूँगा कि आगे भी तुम ऐसा कोई काम नही करोगी जिससे दोनों परिवारों की इज़्ज़त पर कोई दाग लगे और हो सके तो अपने इस "बैड डैड" को माफ कर देना। 


चिट्ठी पढ़कर खुशबू फूट-फूट कर रोते हुए तुरंत फ़ोन लगाकर भर्राए आवाज़ में पापा से कहा मुझे माफ़ कर दीजिए पापा ! मैं आपके गुस्से के पीछे के प्यार को नही देख पाई ! आपके चिल्लाहट के पीछे की आपकी परवाह को नहीं देख पाई! आपकी झुंझलाहट के पीछे का समर्पण नही देख पाई ! अब तो मैं हर जन्म में आपकी ही बेटी बनना चाहूँगी पापा ।


वक़्त बीतता चला गया.. खुशबू को ससुराल आए लगभग एक साल होने को आया। मगर ऐसा कोई दिन ना था जिस दिन उसने अपने पापा को याद ना किया हो। आज उसके पापा का जन्मदिन था। सुबह मंदिर गई पूजा की पापा की खुशी और सलामती के लिए दुआएँ माँगी। फिर शाम में केक लाकर अपने ससुराल वालों के साथ उनका जन्मदिन मनाने का प्रोग्राम बनाया।


फिर केक काटने से पहले पापा को वीडियो कॉल लगाया उधर पापा मम्मी के साथ उदास बैठे थे। खुशबू उन्हें देखते ही चहक के बोली "हैप्पी बर्थडे टू यू माई स्वीट पापा ! पता है पापा यहाँ मैं आपकी डाँट, आपके गुस्से को हर दिन मिस करती हूँ। यहाँ सारे लोग मुझे बहुत प्यार करते हैं स्पेशली सासू माँ ! 


पता है पापा एक दिन घर में मुहल्ले की औरतों सासु माँ को जब ये बोल रहीँ थीं कि कितनी अच्छी बहु मिली है तुम्हे। कपड़ो, बोली और स्वभाव में शालीनता जरूर इसके मम्मी पापा से विरासत में मिले है। आज कल की लड़कियों में इतने संस्कार अब कहाँ मिलते हैं। आपके लिए ये शब्द सुनकर पापा मेरा सर फक्र से ऊँचा हो गया।


आज मुझे आप पर गर्व है पापा ! आप माँ को हमेशा बोलते थे कि सारी दुनिया को तो सुधार नही सकते बस अपना दामन बचा के रखना होगा। जानती हूँ पापा और महसूस भी किया है मैंने कि आजकल लड़कियों के लिए बॉयफ्रेंड बनाना, ड्रिंक्स करना, लिव इन रिलेशन रहना और ट्रांसपेरेंट ड्रेस पहनना फैशन सा है पर आपने एक सुरक्षा कवच बनकर मुझे इन बुराइयों से बचाये रखा।


आपको पता है पापा जब मैं यहाँ बी.एड. का एग्जाम पास कर टीचर बनूँगी ना, तो बच्चो को यही सिखाऊंगी कि "डैड के तेज गुस्से के पीछे का प्यार महसूस कर सको तो कर लो, ऐसा न हो कि बाद में सिर्फ पछताने के सिवा कुछ न रहे ! दूसरी तरफ पापा के होंठ काँप रहे थे। वो बोल रहे थे आँखों से लगातार आँसू लिए मुँह से अपनी खुशबू बेटी के लिए "खुश रहो भगवान करे तुम्हें मेरी उम्र और खुशियाँ लग जाए बेटा"

जरूरी नहीं कि आपके सामने खुश और सुखी नजर आने वाले सभी लोगों का जीवन परफेक्ट हो

 पत्नी और पति में झगड़ा हो गया। पति और बच्चे खाना खाकर सो गए तो पत्नी घर से बाहर निकाल गई, यह सोचकर कि अब वह अपने पति के साथ नहीं रह सकती। मोहल्ले की गलियों में इधर-उधर भटक रही थी कि तभी उसे एक घर से आवाज सुनाई दी, जहाँ एक स्त्री रोटी के लिए ईश्वर से अपने बच्चे के लिए प्रार्थनाएं कर रही थी।


वह थोड़ा और आगे बढ़ी तो एक और घर से आवाज आई, जहाँ एक स्त्री ईश्वर से अपने बेटे को हर परेशानी से बचाने की दुआ कर रही थी। एक और घर से आवाज आ रही थी जहाँ एक पति अपनी पत्नी से कह रहा था किa वह मकान मालिक से कुछ और दिन की मोहलत मांग लें और उससे हाथ जोड़कर अनुरोध करें कि रोज-रोज आकर उन्हें तंग न करें।


थोड़ा और आगे बढ़ी तो एक बुज़ुर्ग दादी अपने पोते से कह रही थी, "बेटा, कितने दिन हो गए तुम मेरे लिए दवाई नहीं लाए।" पोता रोटी खाते हुए कह रहा था, "दादी माँ, अब मेडिकल वाला भी दवा नहीं देता और मेरे पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि मैं आपके लिए दवाई ले आऊं।"


थोड़ा और आगे बढ़ी तो एक घर से स्त्री की आवाज आ रही थी जो अपने भूखे बच्चों को यह कह रही थी कि आज तुम्हारे बाबा तुम्हें खाने के लिए कुछ ना कुछ जरूर लाएंगे, तब तक तुम सो जाओ। जब तुम्हारे बाबा आएंगे तो मैं तुम्हें जगा दूंगी। वह औरत कुछ देर वहीं खड़ी रही और सोचते हुए अपने घर की ओर वापस लौट गई कि जो लोग हमारे सामने खुश और सुखी दिखाई देते हैं, उनके पास भी कोई ना कोई कहानी होती है।


फिर भी, यह सब अपने दुख और दर्द को छुपाकर जीते हैं। वह औरत अपने घर वापस लौट आई और ईश्वर का धन्यवाद करने लगी कि उसके पास अपना मकान, संतान, और एक अच्छा पति है। हाँ, कभी-कभी पति से नोक-झोंक हो जाती है, लेकिन फिर भी वह उसका बहुत ख्याल रखता है। वह औरत सोच रही थी कि उसकी जिंदगी में कितने दुख हैं, मगर जब उसने लोगों की बातें सुनीं तो उसे यह एहसास हुआ कि लोगों के दुख तो उससे भी ज्यादा हैं।


सीख :---


जरूरी नहीं कि आपके सामने खुश और सुखी नजर आने वाले सभी लोगों का जीवन परफेक्ट हो। उनके जीवन में भी कोई न कोई परेशानी या तकलीफ होती है, लेकिन सभी अपनी परेशानी और तकलीफ को छुपाकर मुस्कुराते हैं। दूसरों की हंसी के पीछे भी दुख और मातम के आंसू छिपे होते हैं। कठिनाइयों और परीक्षणों के बावजूद जीना जीवन की वास्तविकता है, यही सच्ची जिंदगी है

Wednesday, 16 October 2024

पुरुष के लिए स्त्री पहेली रही है

 ✍️✍️पुरुष के लिए स्त्री पहेली रही है। स्त्री के लिए पुरुष पहेली है। स्त्री सोच ही नहीं पाती कि तुम किसलिए चांद पर जा रहे हो? घर काफी नहीं? वही तो यशोधरा ने बुद्ध से पूछा, जब वे लौटकर आए, कि जो तुमने वहां पाया वह यहां नहीं मिल सकता था? ऐसा जंगल भागने की क्या पड़ी थी? यह घर क्या बुरा था? अगर शांत ही होना था तो जितनी सुविधा यहां थी, इतनी वहां जंगल में तो नहीं थी। तुमने कहा होता, हम तुम्हें बाधा न देते। हम तुम्हें एकांत में छोड़ देते। हम सारी सुविधा कर देते कि तुम्हें जरा भी बाधा न पड़े। लेकिन बुद्ध को अगर यशोधरा ऐसा इंतजाम कर देती कि जरा भी बाधा न पड़े--यशोधरा अपनी छाया भी न डालती बुद्ध पर--तो भी बुद्ध बंधे-बंधे अनुभव करते। क्योंकि वे अनजाने तार यशोधरा के चारों तरफ फैलते जाते, और भी ज्यादा फैल जाते। वह छाया की तरह चारों तरफ अपना जाल बुन देती। घबड़ाकर भाग गए।

जो भी कभी भागा है जंगल की तरफ, प्रेम से घबड़ाकर भागा है। और क्या घबड़ाहट है? कहीं प्रेम बांध न ले। कहीं प्रेम आसक्ति न बन जाए। कहीं प्रेम राग न हो जाए। स्त्रियों को जंगल की तरफ भागते नहीं देखा गया। क्योंकि स्त्री को समझ में ही नहीं आता, भागना कहां है? डूबना है। डूबना यहीं हो सकता है। और स्त्री ने बहुत चिंता नहीं की परमात्मा की जो आकाश में है, उसने तो उसी परमात्मा की चिंता की जो निकट और पास है।


स्त्री को रस नहीं मालूम होता कि चीन में क्या हो रहा है? उसका रस होता है, पड़ोसी के घर में क्या हो रहा है? पास। तुम्हें कई दफा लगता भी है--पति को--कि ये भी क्या फिजूल की बातों में पड़ी है कि पड़ोसी की पत्नी किसी के साथ चली गयी, कि पड़ोसी के घर बच्चा पैदा हुआ, कि पड़ोसी नयी कार खरीद लाया--ये भी क्या फिजूल की बातें हैं? वियतनाम है, इजराइल है, बड़े सवाल दुनिया के सामने हैं। तू नासमझ! पड़ोसी के घर बच्चा हुआ, यह भी कोई बात है? लाखों लोग मर रहे हैं युद्ध में। इस एक बच्चे के होने से क्या होता है?

स्त्री को समझ में नहीं आता कि पड़ोसी के घर बच्चा पैदा होता है, इतनी बड़ी घटना घटती है--एक नया जीवन अवतीर्ण हुआ; कि पड़ोसी की पत्नी किसी के साथ चली गयी--एक नए प्रेम का आविर्भाव हुआ; तुम्हें इसका कुछ रस ही नहीं है! इजराइल से लेना-देना क्या है? इजराइल से फासला इतना है कि स्त्री के मन पर उसका कोई अंकुरण नहीं होता, कोई छाप नहीं पड़ती। दूरी इतनी है।


स्त्री परमात्मा जो बहुत दूर है आकाश में उसमें उत्सुक नहीं है। परमात्मा जो बहुत पास है, बेटे में है, पति में है, परिवार में है, पड़ोसी में है, उसमें उसका रस है। क्योंकि दूर जाने में उसकी आकांक्षा नहीं है। यहीं डूब जाना है।

Tuesday, 15 October 2024

जब एक पुरुष और एक महिला एक साथ सेक्स करते हैं, तो उन्हें मिलने वाले आनंद को तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है

 जब एक पुरुष और एक महिला एक साथ सेक्स करते हैं, तो उन्हें मिलने वाले आनंद को तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है


एक है लिंग का आकार, लिंग की लंबाई, योनि की गहराई


दो, घुलने-मिलने या सेक्स करने की इच्छा


कुछ पुरुषों/महिलाओं में कामेच्छा अधिक विकसित होगी। कुछ लोगों में मध्यम कामेच्छा विकसित होती है। फिर भी अन्य लोगों में वासना बहुत कम विकसित होती है


तीसरा, संभोग की अवधि से तात्पर्य है कि यौन सुख कितने समय तक बना रहता है और अनुभव किया जाता है


मार्शल आर्ट और मुक्केबाजी जैसे खेलों में, सही ऊंचाई और वजन वाले लोगों को प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति है क्योंकि जब किसी का वजन अधिक होता है, तो मुकाबला बराबरी का नहीं होता है और वह जल्दी ही हार जाता है।


इसी तरह, प्यार की लड़ाई जिसमें अत्यधिक वासना की एक महिला एक मध्यम इच्छा वाले पुरुष से मिलती है, जल्द ही हार जाती है।


महिलाएं स्वाभाविक रूप से वासना में अधिक मजबूत होती हैं। कोई भी पुरुष किसी महिला से लड़कर उसकी भरपाई कर सकता है


इसलिए विवाह में दो दिमागों का एक साथ जुड़ना ही पर्याप्त नहीं है, शरीर और उनके घटक भागों के आकार में सामंजस्य होना बहुत महत्वपूर्ण है।


इसलिए ऋषि कोकोका ने पुरुषों को उनके लिंग की लंबाई के आधार पर खरगोश, बैल और घोड़े में विभाजित किया। उनके शरीर का आकार और गुण अलग-अलग होते हैं


खरगोश के लिए छोटा लिंग, बैल के लिए लंबा लिंग और घोड़े के लिए बहुत लंबा लिंग आदर्श होता है


इसी प्रकार, मादा जननांग के आकार के आधार पर, उन्होंने उन्हें हिरण (छोटी गहराई), घोड़ा (मध्यम गहराई) और हाथी (अधिक गहराई) में विभाजित किया।


जब किसी पुरुष और महिला के अंग एक ही आकार के होते हैं तो उन्हें बहुत आनंद मिलता है


जब एक-दूसरे के आकार के अंग आपस में जुड़ते हैं तो महिला को पूरा पुरुष अंग नहीं मिल पाता और इसलिए उसे पूरा आनंद नहीं मिल पाता


दूसरा प्रकार


एक पुरुष और एक महिला में एक ही समय में यौन इच्छा नहीं होती है और जब होती भी है, तो वासना की मात्रा अलग-अलग होती है


कोई भी पुरुष या महिला यह जानती है कि जब कोई पुरुष या महिला बहुत अधिक इच्छा लेकर उसके पास आती है, तो यह परेशानी का सबब बन जाता है और परिवार में समस्याएं पैदा करता है।


इस प्रकार जो पुरुष/महिला अत्यधिक कामुक होते हैं वे निराश हो जाते हैं और या तो कई तरीकों से अपनी खुशी को संतुष्ट करने के लिए अन्य तरीकों की तलाश करते हैं या हमेशा क्रोध, लड़ाई-झगड़ों में रुचि रखते हैं।


वासना की गति के आधार पर धीमी गति और मध्यम गति को तीन श्रेणियों में बांटा गया है, इसमें समान स्तर के लोगों को शामिल होने पर बहुत आनंद मिलता है।


तीसरा प्रकार

नर/मादा मिश्रण का समय. यह संभोग का समय ही है जो सबसे अधिक आनंद देता है, लेकिन संभोग का समय हमेशा पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान नहीं होता है


कुछ लोगों के लिए, महिला को छूने के कुछ ही सेकंड के भीतर जीवन का पानी बह जाएगा


यदि उनकी पत्नी हाथी जैसी स्त्री हो तो वह स्त्री वासना के कारण बहुत कष्ट सहती है


क्योंकि हाथी जैसी मादा कामा तिरूपति सामान्यतः संतुष्ट नहीं होती


वह एक ऐसी लड़की है जो बहुत लंबे समय तक बाहर घूमना चाहती है


यहां तक ​​कि उसके लिए प्लेजर स्पॉट टच भी लंबे समय तक किया जाना जरूरी है

कुछ पुरुषों के लिए, आनंद का पानी संभोग से पहले निकलता है, और कुछ के लिए, जीवन का पानी संभोग के दौरान निकलता है


वे किसी भी स्त्री को संतुष्ट नहीं कर पाते हैं और ऐसे पुरुषों को यौन सुख नहीं मिल पाता है


स्खलन का समय स्खलन का समय कई कारकों से निर्धारित होता है जैसे मूड, शारीरिक समस्याएं, संभोग के साथ नया अनुभव आदि।


वहीं चीज ये लडकिया आज 19 20 साल में कम करती है

 प्रैक्टिस करते हुए मुझे 11 साल हो गए हैं लेकिन जो बात मैं आप लोगो के सामने रखने जा रही हूं मुझे पूरा भरोसा है की बहुत लोगो को ये बात रास नहीं आएगी 

उसके लिए मैं पहले से क्षमा मांगती हूं 


संभोग मनुष्य के जीवन के लिए बहुत ज्यादा जरूरी चीज है स्त्री हो या पुरुष प्रकृति ने हम इस ढंग से बनाया है की महिला का सुडोल शरीर पुरुष को आकर्षित करता है और पुरुष का गठीला शरीर महिला को 

और यही अकरशन दोनो के प्रेम में बंधे रखता है जितना अच्छा संभोग होता हैं उतनी ही अच्छी एक युगल की जिंदगी चलती है 

लेकिन आज के परिवेश में लोगो का घर इसी संभोग की वजह से टूट रहा है, 

आज मेरे पास प्रतिदिन 5 6 महिला आती हैं जिनका उसके पति के साथ संभोग करने का मन नहीं करता 

पति के साथ रहना है उसके पैसे खर्च कराने है लेकिन जब बात संभोग की आती है तो मन नहीं करता उनके साथ कुछ भी करने का 

इसके पीछे जब मैने शोध किया और अपने सीनियर डॉक्टर से बात की तो एक बात सामने निकला के आई की आज कल वेब सीरीज में खुले आम ऐसे सीन दिखाए जाते हैं यूट्यूब पर भी ऐसी सामग्री उपलब्ध है जो आजकल लोगो को संभोग करने के लिए प्रेरित करती है 

नतीजन 19 20 साल की लड़की और लड़के आपस में संभोग करते हैं आसानी से होटल मिल जाते हैं फोन है इंटरनेट है 

और यही सिलसिला एक लड़की या लड़के कई लोगो के साथ करते हैं 

जब हम किसी के साथ संभोग करते हैं तो शारीरिक मिलन के साथ इमोशनल मिलन भी होता है और ये दोनो को एक दूसरे के प्रति वफादार बनाती है ऊपर से कुछ सामाजिक बंधन 


लेकिन जब यही 19 20 साल की लड़की किसी के साथ संबंध स्थापित करती है तो वह अपनी इस क्षमता का धीरे धीरे दोहन करती है 


जैसे शादी के तुरंत बाद खूब एक दूसरे से आलिंगन करने का मन होता है लेकिन समय के साथ साथ ये चीज कम हो जाती है 


वहीं चीज ये लडकिया आज 19 20 साल में कम करती है 


जब 25 से 30 की उम्र में शादी होती है लेकिन पति के साथ संबंध बनाने में उन्हें फील नही आता 

क्योंकि जो काम शादी के बाद सिर्फ पति के साथ करना था मॉर्डन बनने के चक्कर में उन्होंने कई लोगो के साथ कर लिया 

जिसकी वजह से घर में कलह होते हैं और पति पत्नी का प्रेम धीरे धीरे खत्म हो जाता है और सिर्फ एक सामजिक दबवा में रह कर दोनो जिमीदारिया निभाते हैं 


अब लोग बोलने की सिर्फ लड़की को दोष क्यों देना 

क्योंकि मैं एक महिला हूं और मेरे पास ज्यादातर लड़कियां आती है 

और इसका विज्ञानिक कारण भी है प्रकृति ने हमे ऐसा बनाया है की हम किसी एक पार्टनर के साथ वफादार रहे हैं जो आजकल के लड़कियों में बिलकुल नहीं है 

टाइम पास और चंद पैसे के चक्कर में पूरी जिंदगी बरबाद करना सही नहीं है 

हमारे पूर्वज ने हजारों साल पहले ये बात कही थी की स्त्री के एक पुरुष के साथ ही भोग करना चहिए उस

 बात को अमेरिकी कॉलेज मान रहे हैं 


तो आज कल की लड़कियों से मैं ये बोलूंगी की जिंदगी तुम्हारी है किसी एक पार्टनर के साथ रहो 

अन्यथा पूरी जिंदगी इसका भोग तुम्हे ही भुगतना पड़ेगा

Saturday, 12 October 2024

संभोग से होने वाली कसरत एक औरत के शरीर को पूर्ण करती हैं सही उम्र में यदि संभोग ना हो तो एक औरत का शरीर उभर नहीं पता

 संभोग से होने वाली कसरत एक औरत के शरीर को पूर्ण करती हैं सही उम्र में यदि संभोग ना हो तो एक औरत का शरीर उभर नहीं पता

क्यों की रति क्रिया के समय जब एक महिला संतुष्टि की प्राप्ति करती है तब उसके शरीर में कुछ ऐसे हार्मोन बनते हैं जो मासिक धर्म की समस्या चेहरे को चमक

उदर समस्या का भी भी समाधान करते हैंकॉलेज की पढ़ाई खत्म होते ही मेरी उम्र 23 साल की थी, और पापा और चाचा मेरे लिए रिश्ता देखने लगे थे। कई लड़के घर देखने आते थे, लेकिन किसी को सही नहीं समझा जाता था। कारण यह था कि सबको सरकारी नौकरी चाहिए थी। मेरी मां इस चिंता में टोटके करती रहती थीं ताकि मेरी शादी जल्दी हो जाए। एक दिन मैंने मां से कहा, "मां, इन टोटकों से क्या होगा? जहाँ शादी होनी होगी, वहाँ हो जाएगी।"

मां ने डांटते हुए कहा, "तुम चुप रहो, शादी और ब्याह दोनों अपने समय पर हों तो ही अच्छा होता है।" उनकी बात सुनकर मैं चुपचाप हट गई। मुझे लगता था कि मेरी राय का कोई महत्व नहीं था। 

करीब छह महीने बाद, एक रिश्ता आया। वह लड़का सरकारी नौकरी में था और उसकी उम्र 37 साल थी, मुझसे 14 साल बड़ा। पापा और चाचा ने सरकारी नौकरी देखकर तुरंत हां कर दी, और मां ने भी सहमति दे दी। मुझसे यह तक नहीं पूछा गया कि मुझे लड़का पसंद है या नहीं। 

फिर, लड़के के घरवाले हमारे घर आए और उन्होंने मुझे देखा। उन्होंने मुझे पसंद कर लिया। जब मैंने उस लड़के को देखा, तो वह उम्र में मुझसे काफी बड़ा लगा, लेकिन मैं यह सवाल करने की हिम्मत नहीं कर पाई कि इतना उम्र का अंतर क्यों है। जब हमें कमरे में अकेला छोड़ा गया, तो मेरे मन में हिम्मत ही नहीं हुई कि कुछ पूछ सकूं।

शाम को जब सब चले गए, तो मैंने बहुत धीमी आवाज़ में अपनी मां से कहा, "मां, वो मुझसे काफी बड़े हैं।" मां ने डांटते हुए कहा, "इतना अंतर चलता है।" उनकी बात मानकर मैंने यह रिश्ता स्वीकार कर लिया। पापा और मां की मर्जी को मैंने अपना आशीर्वाद मान लिया और हमारी शादी हो गई।

शादी की पहली रात हमारे बीच कुछ भी नहीं हुआ। मैंने सोचा कि शायद वह तनाव में हैं। धीरे-धीरे दो हफ्ते बीत गए, और मैंने उनसे पूछा, "क्या मैं आपको पसंद नहीं हूं? आप मेरे करीब क्यों नहीं आना चाहते?" उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर कहा, "ऐसी बात नहीं है।" फिर एक दिन मैंने खुद ही उनके करीब जाने की कोशिश की और जो एक पत्नी का हक होता है, उसे पाने की कोशिश की।

हमारी कोशिश के दौरान अचानक उनके साथ कुछ ऐसा हुआ कि वह शर्मिंदा होकर कमरे से बाहर चले गए। मैंने उन्हें पूरा समय दिया और एक हफ्ते बाद उनसे पूछा कि क्या उन्होंने डॉक्टर से सलाह ली है। उन्होंने बताया कि पिछले दो साल से इलाज चल रहा है, लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा। मेरा दिल बैठ गया।

एक स्त्री के लिए शारीरिक सुख एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, और जब वह सुख न मिले तो न केवल स्त्री का मन असंतुष्ट रहता है, बल्कि वह मां भी नहीं बन सकती। धीरे-धीरे हमारे बीच की दूरी बढ़ने लगी। जब मैं डॉक्टर के पास गई, तो उन्होंने बताया कि मेरे पति की नसें उनकी उम्र की वजह से कमजोर हो गई हैं और काम के प्रेशर की वजह से उनकी काम इच्छा खत्म हो चुकी है। इस उम्र में ऐसी समस्याएं जल्दी ठीक भी नहीं होतीं।

मेरी उम्र 24 साल थी, जहाँ मेरा शरीर शारीरिक सुख की मांग कर रहा था। दूसरी तरफ, मेरे 38 साल के पति थे, जिनकी काम इच्छा खत्म हो चुकी थी। यह मेरे लिए जीते जी मरने जैसा था। मेरे पति मुझे शारीरिक सुख नहीं दे सकते थे, लेकिन वह अच्छे इंसान हैं, और मैं उनसे प्रेम करती हूं, वह भी मुझसे। लेकिन सरकारी नौकरी की चाहत ने मेरी जिंदगी को बर्बाद कर दिया।

अब मुझे लगता है कि अगर मैंने अपने हमउम्र लड़के से शादी की होती, भले ही वह कम पैसे कमाता, लेकिन वह मुझे खुश रखता। आज मेरे पास सभी सुख-सुविधाएं हैं, लेकिन इन सबके बावजूद मेरी जिंदगी में एक बड़ी कमी है। अब ये सुविधाएं भी फीकी लगने लगी हैं।

मैं हर लड़की के माता-पिता से कहना चाहूंगी कि सरकारी नौकरी की तलाश में अपनी बेटी की जिंदगी से खिलवाड़ मत करें। जीवन में खुश रहने के लिए सिर्फ पैसे ही सबकुछ नहीं होते। एक समय था जब 50 साल के आदमी में भी 25 साल के लड़के जैसी ताकत होती थी, लेकिन आज लोग 30 की उम्र में ही बूढ़े हो रहे हैं। 

जीवन एक बार मिलता है, इसे अच्छे से जिएं। सही समय पर, सही उम्र के लड़के के साथ शादी करें।

Wednesday, 9 October 2024

इसलिए प्रेम में सेक्स गलत नहीं है अगर इसका दुरुपयोग ना किया गया हो।

 प्यार में सेक्स करना जरूरी है??? ये एक ऐसा विषय है, जिस पर सभी लोगों की अलग अलग राय है। कुछ लोग सही मानते हैं तो कुछ लोग गलत।


आज इस विषय पर बात करूंगा, मगर उससे पहले सेक्स के अलग अलग भाव पर बात करूंगा।

सेक्स, हवस और वासना तीनों एक जैसे होने के बावजूद भी तीनों एक दूसरे से अलग हैं।

__वासना और हवस:- ये सेक्स का वो मानसिक विकृति है जो ना तो नर-नारी, पशु-पक्षी, छोटे-बड़े आदि में भेद नहीं करता। जब ये विकृति मन में सवार होती है तो वासना से ग्रसित इंसान किसी के साथ कुकृत्य कर देता है।

सामने वाले के इच्छा के विरूद्ध उसके साथ जोड़ जबरदस्ती कर सामने वाले का शारीरिक और मानसिक रूप से क्षति पहुंचाता है।

सीधे शब्दों में कहूं तो जिसके अंदर हवस और वासना पाई जाती है, वो जानवर होते हैं और उन्हें प्रेम से कोई लेना देना नहीं होता है।


वहीं सेक्स कि बात करूं तो ये दो लोगों की रजामंदी से किया जाने वाला वो सुख है, जिसे न पाने वाला अतृप्त रहता है। ये वो चीज है जिसके बिना संसार का कल्पना करना ही बेकार है।


अब सवाल है कि प्रेम में सेक्स जायज है या नहीं?

अगर प्रेम हवस और वासना का केंद्र बिंदु है तो वो प्रेम ही नहीं है, क्योंकि सामने वाला इंसान प्रेम नहीं बल्कि अपनी इच्छाएं पूरी करना चाहता है और जैसे उसकी इच्छाएं पूर्ण हुई वो आपका अहित कर सकता है। लड़के लड़कियों का सेक्स वीडियो वायरल होना इसमें से ही एक है।


जहां तक सेक्स कि बात करूं तो प्रेम में सेक्स उतना ही आवश्यक है, जितना आपके नंगे शरीर पर एक कपड़े का होना।

वो कपड़ा आपके शरीर को परिपूर्णता देता है। 

प्यार के शुरुआत का पहला बिंदु आकर्षण होता है, जो इंसान की व्यक्त्तिव, उसके अच्छे आचरण आदी से शुरू होती है और जैसे जैसे समय बीतता जाता है प्यार की गहराई उतनी ही बढ़ती जाती है। साइंस कहता है कि जब तक हम फिजिकली रिलेशन में नहीं रहते तब तक हम अपने प्रेमी या प्रेमिका के प्रति लापरवाह होते हैं, क्योंकि हम सिर्फ उससे मेंटली रूप से जुड़े होते हैं... मगर हम जैसे फिजिकली रूप से जुड़ते हैं हम अपने प्रेमी/प्रेमिका की छोटी छोटी चीजों के बारे में सोचने लग जाते हैं। उसके प्रति वफादारी की प्रतिशत बढ़ जाती है।

सेक्स में प्यार की भागीदारी हो या नहीं हो, मगर प्यार की मजबूती में सेक्स अहम भूमिका निभाता है।

जिस तरह से एंगेजमेंट कि अंगूठी सीधा दिल तक टच करती है, सेक्स भी उसी प्रकार प्यार के भावनाओं को टच करता है।


धार्मिक दृष्टि से देखें तो बिना काम के प्रेम का कोई महत्व ही नहीं है। अगर बिना काम के प्रेम होता तो कामदेव नहीं होते।

देवताओं में कामदेव का अपना अलग महत्व है और बिना कामदेव के प्रेम को अनुभव कर पाना नामुमकिन है।

प्रेम और काम का सामंजस्य और महत्ता खजुराहो की मंदिर बतलाती है, इसलिए प्रेम में सेक्स गलत नहीं है अगर इसका दुरुपयोग ना किया गया हो।🙋‍♂

Monday, 7 October 2024

कुछ लड़किया ऐसी होती हैं, जिन्हे शारीरिक सुख ना मिले तो वो पागल होने लगती है, मैं भी उन्ही में से एक थी

 कुछ लड़किया ऐसी होती हैं, जिन्हे शारीरिक सुख ना मिले तो वो पागल होने लगती है, मैं भी उन्ही में से एक थी

ऐसा नहीं है की कैरेक्टर खराब बल्कि ये पर्सन टू पर्सन डिपेंड करता है

मेरी शादी 24 साल की उम्र में हुई, और संयोगवश मेरी करीबी दोस्त, जो मेरे साथ कॉलेज में पढ़ी थी, उसकी भी उसी समय शादी हुई। हमारी ज़िंदगी के इस नए अध्याय की शुरुआत साथ हुई, लेकिन हमारे स्वभाव में काफी अंतर था। मेरी दोस्त शर्मीली और शांत स्वभाव की थी, जबकि मैं नटखट और चुलबुली थी। दोनों की शादी अच्छे परिवारों में हुई, लेकिन मेरे पति न केवल बेहद हैंडसम थे, बल्कि दिलदार भी थे। हमारी शादी की शुरुआत कुछ समय तक बहुत अच्छी रही। हम दोनों खुश थे, लेकिन जैसे-जैसे जिम्मेदारियाँ बढ़ने लगीं, घर के काम भी बढ़ते गए। इससे थकान हो जाती थी, और हम दोनों ही मानसिक रूप से परेशान होने लगे थे। 


धीरे-धीरे एक साल बीत गया, लेकिन हमारे बीच प्राइवेसी जैसी कोई चीज़ नहीं रह गई थी। घर में हर कोई रहता था, और हम अपने लिए वक्त नहीं निकाल पाते थे। मैं इस स्थिति से काफी निराश थी और मैंने अपने पति से अलग रहने का सुझाव दिया ताकि हमें एक-दूसरे के साथ वक्त बिताने का मौका मिले। लेकिन मेरे पति इसके खिलाफ थे। उन्होंने कहा कि यह संभव नहीं है, लेकिन मैं अपनी बात पर अड़ी रही। इसका नतीजा यह हुआ कि घर में छोटी-मोटी बहसें होने लगीं। मेरी सासू मां को भी मेरे तरीके पसंद नहीं आते थे, और अंततः हम दोनों के बीच झगड़े होने लगे। 


कुछ समय बाद, मेरे पति ने दिल्ली से बेंगलुरु ट्रांसफर ले लिया। यह दिन मेरे लिए किसी आजादी से कम नहीं था। अब हमारे पास प्राइवेसी थी और हम अपने हिसाब से ज़िंदगी जी सकते थे। शुरुआती महीनों में पति का मूड थोड़ा खराब रहता था, लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया। एक दिन मेरा पीरियड मिस हो गया, और जब जांच कराई तो पता चला कि मैं गर्भवती थी। यह अनप्लान था, और मैं इस बात से घबरा गई। मैंने अपनी सहेली को फोन किया, जो खुश हो गई और बताया कि वह भी एक महीने से गर्भवती है।


मेरी सहेली ने मुझे सलाह दी कि मैं ससुराल या मायके जाकर आराम करूं, लेकिन मैंने यह सोचकर मना कर दिया कि सब मैनेज हो जाएगा। मेरी सास को यह बात बताई तो वे बहुत खुश हुईं, लेकिन जब मैंने उन्हें आने से मना किया, तो उनका मन शायद दुखी हो गया। समय बीतता गया, और मैं गर्भावस्था में परेशानियों का सामना करती रही। जब भी अपनी दोस्त से बात करती, वह बताती कि उसके परिवार वाले उसका कितना ख्याल रख रहे हैं। यह सुनकर मुझे ईर्ष्या होने लगी, और मैंने उससे बात करना भी कम कर दिया।


जब मेरा डिलीवरी का समय नजदीक आया, तो मेरी सास आईं लेकिन दो दिन बाद वापस चली गईं। शायद उन्हें पिछली बार मना करने की बात बुरी लगी थी। इसके बाद मैं अपने बच्चे के साथ अकेली थी और सब कुछ अकेले संभाल रही थी। मेरी सहेली बताती कि कैसे उसका परिवार उसका और बच्चे का ध्यान रखता है। उसे देखकर मुझे अहसास हुआ कि परिवार के साथ होना कितना जरूरी है, लेकिन मेरा अहंकार मुझे वापस जाने नहीं दे रहा था।


फिर एक दिन मेरे ससुर का फोन आया। उन्होंने वीडियो कॉल पर अपने पोते को देखने की इच्छा जताई। उन्हें देखकर मेरी आँखों में आंसू आ गए, और मेरे पति भी भावुक हो गए। अगली सुबह पति ने कहा कि हमें कुछ दिनों के लिए ससुराल जाना चाहिए। मैंने बिना कुछ कहे जल्दी से तैयारी की, और हम फ्लाइट से ससुराल पहुंचे। जब हम घर पहुंचे, तो सभी लोग खुशी से झूम उठे। मेरे ससुर, जो ठीक से चल भी नहीं पाते थे, अपने पोते को देखकर दौड़ते हुए आए और उसे गोद में उठा लिया। यह देखकर मुझे बहुत भावुकता हुई।


तीन दिन बीते और सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। मैंने सोचा कि अब वापस जाना होगा, लेकिन जब मैंने अपने पति से पूछा, तो उन्होंने कहा, "अब हमें यहां से जाने की जरूरत नहीं है। तुमने जो गलती की है, उसे सुधारने का वक्त आ गया है। मैं अपने मां-बाप को उनके पोते से दूर नहीं रखना चाहता।" मेरे पति की इस बात ने मुझे एहसास दिलाया कि परिवार के साथ रहना कितना महत्वपूर्ण है। यही तो मैं चाहती थी, लेकिन पहले अपने अहंकार के कारण समझ नहीं पाई थी। 


आजकल कई लड़कियां चाहती हैं कि वे शादी के बाद अकेले रहें, जहां सिर्फ वे और उनके पति हों। लेकिन मेरा अनुभव कहता है कि ऐसा करना एक बड़ी भूल हो सकती है। परिवार के साथ रहने में कुछ मर्यादाओं का पालन करना पड़ता है, लेकिन उनके साथ रहने के फायदे कहीं ज्यादा होते हैं। परिवार का साथ, उनके प्यार और सहयोग से मिलने वाली खुशी किसी भी आजादी से बढ़कर होती है।

Thursday, 3 October 2024

बादाम छीलते हुए दो बादाम चुपके से अपने मुँह में डाल चुकी थी।

 सुनीता बादाम छीलते हुए दो बादाम चुपके से अपने मुँह में डाल चुकी थी। जब वह विजय के लिए दूध के साथ बादाम लेकर गई, तो उसकी सासू माँ का गुस्सा फूट पड़ा। सासू माँ ने झट से गिना कि पूरे बादाम नहीं थे, और नाराज़ होते हुए बोलीं, "मैंने पूरे बादाम भिगोए थे, फिर विजय को कम क्यों दे रही हो?" सुनीता की घबराहट उसकी आवाज़ में साफ झलक रही थी। उसने कांपते हुए कहा, "सासू माँ, छीलते वक्त दो बादाम नीचे गिर गए थे, अब कैसे देती उन्हें?"


सासू माँ की निगाहें जैसे सुनीता को दोषी करार दे रही थीं। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, "तुम्हारे मायके से बादाम की बोरी तो आती नहीं, जो यूँ ही गिराती रहोगी।" सुनीता अंदर ही अंदर झूठ छुपाते हुए रसोई में बर्तन रखने चली गई। उसकी आंखों में मायके की यादें ताजा हो गईं, जहां कभी ऐसा भेदभाव नहीं था। उसकी सासू माँ के घर में, ताकत और पोषण की चीजें केवल पुरुषों के लिए मानी जाती थीं। सासू माँ का मानना था कि पुरुष ही मेहनत करते हैं, क्योंकि उन्हें बाहर काम करना पड़ता है, जबकि औरतों के काम को मेहनत के रूप में नहीं देखा जाता था।


सुनीता अकेली महिला थी, जिसे घर में 'औरत' का दर्जा मिला था। वह सोचने लगी कि अगर विजय उसका साथ न देते, तो उसकी स्थिति और कठिन हो जाती। दिनभर घर के काम में कब समय गुजर जाता, उसे पता भी नहीं चलता।

रात को खाना बनाकर और बर्तन धोने के बाद, जब सुनीता कमरे में आई, तो विजय उसका इंतजार कर रहे थे। जैसे ही वह अंदर आई, विजय ने उसे प्यार से गले लगाया और मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हारे लिए कुछ लाया हूँ।" उन्होंने बादाम का एक पैकेट सुनीता के हाथ में थमाते हुए कहा, "तुम्हें भीगे बादाम बहुत पसंद हैं, तो अलग से भिगो कर खा लिया करो।"

विजय की यह छोटी सी, लेकिन प्यारी बात ने सुनीता का दिल छू लिया। उसके अंदर का सारा तनाव जैसे बह गया हो। यह छोटे-छोटे प्यार भरे पल सुनीता के दिल को एक सुकून और आत्मीयता से भर देते थे, जैसे भीगे बादाम उसकी आत्मा को भी ताजगी और प्यार से भिगो रहे हों।

Tuesday, 1 October 2024

क्योंकि आज सही वक्त पर सही जवाब दे दिया गया था।

 " बहु डिलीवरी के लिए अपनी बहन को बुला लो। मेघा तो नहीं आ पाएगी। और मुझसे अकेले होगा नहीं। आखिर मेघा

भी ससुराल वाली है। उसके ससुराल वाले भेजे तो भेजे, नहीं तो नहीं भेजें" शोभा जी अपनी बहू नमिता से बोली। " पर मम्मी जी अगले महीने तो उसकी परीक्षा है। वो परीक्षा की तैयारी करेगी या मेरी सेवा करेगी"

नमिता ने कहा। " अब बहू तू खुद देख ले। मुझसे तो होगा नहीं। या फिर तु अपने मायके चली जा" " मम्मी जी मायके में कौन करेगा? मेरी मम्मी होती तो फिर इतनी परेशानी ही क्यों होती?" नमिता ने धीरे से कहा। 

" तो फिर अपनी बहन को ही बुला ले। उसे कौन सा पढ़ लिखकर बैरिस्टर बनना है। आकर कुछ दिनों के लिए संभाल जाएगी" "मम्मी जी इन्होंने कहा भी तो था कि कामवाली रख लेंगे" नमिता ने कहा। "ना बाबा ना, मैं अपने घर को कामवाली के भरोसे नहीं छोड़ सकती। और फिर उसकी निगरानी कौन करेगा। तू तो बस तेरी बहन को बुला ले" " मम्मी अगले महीने से तो तनु की परीक्षा है। वो भला यहां कैसे आएगी। और फिर उसे तैयारी भी तो करनी है" अचानक समीर ने कमरे में आते हुए कहा।

" अरे तो अपनी बहन को संभालते हुए पढ़ भी लेगी। कौन सा इतना काम करना है उसे। भला काम ही क्या है हमारे घर में" " अपना घर तो अपना घर ही होता है मम्मी। इंसान अपने घर में आराम से और बेफिक्री से पढ़ सकता है, वो किसी और के घर पर नहीं हो पाता। नहीं नहीं तनु की पढ़ाई का नुकसान होगा। मैं एक काम करता हूं। मैं मेघा दीदी के ससुराल बात कर लेता हूं। मुझे यकीन है कि उनके सास ससुर उन्हें जरूर भेज देंगे"

" रहने दे। उसके सास ससुर तो भेजने को तैयार है। पर मेघा पंद्रह दिन के लिए हिल स्टेशन पर घूमने जा रही है, इसलिए नहीं आ पाएगी" अचानक शोभा जी ने कहा तो कमरे में खामोशी सी छा गई। दोनों को इतना चुप देखकर शोभा जी ने फिर कहा,

" अरे इसमें इतनी हैरानी की क्या बात है। बड़ी मुश्किल से उसके घूमने का प्रोग्राम बना है इसलिए मैंने ही उसे आने से मना कर दिया" " पर जीजा जी ने तो पहले कहा था कि वो मेघा दीदी को नमिता की डिलीवरी के समय यहां पर भेज देंगे। फिर अचानक कैसे प्रोग्राम बना दिया"

" तेरे जीजा जी नहीं जा रहे हैं। वो तो अपनी ननद और जेठानी के परिवार के साथ जा रही है"

" पर, ऐसे कैसे?" समीर ने धीरे से कहा। " ऐसे कैसे से क्या मतलब है? मेघा के भरोसे तो डिलीवरी नहीं हो रही है ना। बड़ी मुश्किल से उसका घूमने का प्रोग्राम बना है। मैं उसे मना नहीं करूंगी। कुछ दिनों की तो बात है। बुला लो तनु को। बाद में तो मेघा आ ही जाएगी" समीर ने नमिता की तरफ देखा तो नमिता ने भी फिर तनु को बुलाने के लिए कहा, " आप तनु को ही बुला लीजिए। आखिर पंद्रह बीस दिन बाद तो मेघा दीदी आ ही जाएगी" नमिता ने उसके बाद तनु को फोन कर दिया और उसे अपने पास बुला लिया। तनु भी खुशी खुशी नमिता के पास आ गई। आखिर नमिता को पूरा टाइम चल रहा था। डिलीवरी कभी भी हो सकती थी। तनु के आने के दो दिन बाद ही नमिता ने एक बेटे को जन्म दिया।

अस्पताल में तो समीर और शोभा जी ने जैसे तैसे संभाला। लेकिन जैसे ही नमिता को घर पर लेकर आए, उसके बाद सारी जिम्मेदारी शोभा जी ने तनु पर डाल दी। घर के काम तो फिर भी ठीक थे लेकिन नवजात बच्चे और नमिता को कैसे संभाले। शोभा जी तो रात को अपने कमरे में जाकर सो जाती और तनु को नमिता की जिम्मेदारी दे देती। तनु को भी कोई चीज समझ में नहीं आती। आखिर एक कॉलेज में पढ़ने वाली लड़की कितना क्या ध्यान रख लेती। जैसे नमिता कहती वैसे वो कर देती थी। समीर ने दो दिन तक ये सब देखा। उसके बाद उसने एक काम वाली रख ही ली। कामवाली नमिता और उसके बच्चे का काम कर जाती। उनकी मालिश करना,नहलाना, उनके कपड़े धोना सारा काम कामवाली करके जाती। इस पर भी शोभा जी को समस्या थी।

" क्या जरूरत थी तुझे कामवाली रखने की‌। अगर मेघा आती तब तो कामवाली नहीं रखता। अपनी साली के लिए तो कामवाली रख ली" " मम्मी मेघा दीदी के दो बच्चे हो चुके हैं। उन्हें अच्छे से पता है कि इस समय एक औरत को क्या जरूरत होती है। और बच्चे कैसे संभाले जाते हैं‌। तनु से आप क्या उम्मीद करते हो। आपने तो सारा काम तनु पर डाल दिया। तो फिर मैं क्या करता" लेकिन शोभा जी को तो जैसे चैन ही नहीं था। वो तो तनु के पीछे हाथ धोकर पड़ चुकी थी। घर के सारे काम करने के बाद जब तनु पढ़ने बैठती तो उसे कोई ना कोई काम बता ही देती। ये सब नमिता को भी समझ में आ रहा था। पर वो अभी कुछ नहीं कर सकती थी।

तनु के हर काम से उन्हें समस्या थी। " अरे पता नहीं अपनी मम्मी के जाने के बाद घर कैसे संभालती होगी। इसे तो कुछ भी नहीं आता है। ना ही ढ़ंग का 

खाना बनाना आता है, और ना ही घर के काम" कई बार तो ये सब वो तनु के मुंह पर बोल चुकी थी। पर तनु चुप ही रहती। आखिर दीदी का ससुराल था। ज्यादा कुछ कह भी नहीं सकते थे। जैसे तैसे कर बीस दिन निकले। मेघा अपने मायके आ गई। समीर ने तनु को घर छोड़कर आने के लिए कहा तो शोभा जी ने कहा," अरे दो दिन बाद तो नहावन है ही। तब इसके पापा आएंगे ही अपने नाती और बेटी के कपड़े लेकर। उस समय इसे लेते जाएंगे। क्यों बेवजह जाने का खर्चा कर रहा है"

" हां भाई, तनु दो दिन बाद चली जाएगी। वैसे मैं भी बहुत थकी हुई हूं। पहाड़ों की चढ़ाई चढ़कर हाथ पैर ही दुख रहे हैं। अभी तनु संभाल तो रही है। एक-दो दिन मुझे भी आराम मिल जाएगा। फिर तो भाभी की सेवा में ही लगना है" मेघा ने कहा। " ठीक है मम्मी, पर तनु के लिए कुछ ढंग का गिफ्ट ले आना। आखिर यहां से खाली हाथ थोड़ी ना जाएगी। या फिर बाजार जाकर उसे आप खुद ही दिलवा कर ले आओ। वो अपनी पसंद का ही कुछ ले आएगी" समीर ने कहा। " अरे उसे क्या देना है? पांच सौ रूपए दे देना और विदा कर देना" शोभा जी ने कहा। " मम्मी कैसी बातें कर रही हो? आखिर तनु नमिता की छोटी बहन है। ऊपर से उसने इतने दिन से काफी हद तक काम संभाल लिया। आखिर वो भी नेग की हकदार है" " देख समीर, अपने यहां तो रिवाज नहीं है बहू के मायके वालों को नेग देने का। तेरी इतनी ही इच्छा है तो ज्यादा से ज्यादा एक सूट और ₹500 दे देना। इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं देने दूंगी" शोभा जी तुनकते हुए बोली। " और जरा अपने ससुर जी को समझा देना कि नेग में क्या-क्या लगेगा। नहावन के दिन वो सारा सामान लेकर के आए। और कह देना कि मेरी और मेघा की साड़ी थोड़ी ढंग की लेकर आए। मैं हल्की-फुल्की साड़ी नहीं पहनूंगी और ना हीं मेरी बेटी पहनेगी"

खैर, नहावन का दिन भी आ गया। नमिता के पापा जब आए तो अपने साथ नाती और अपनी बेटी के साथ साथ घर के 

सभी सदस्यों के लिए कपड़े और शगुन के लिफाफे लेकर आए थे।

जब नमिता के पापा जाने लगे तो तनु भी उनके साथ रवाना होने लगी। उसी समय शोभा जी ने एक सूट और ₹500 का 

लिफाफा उसे पकड़ाते हुए कहा, 

" ये हमारी तरफ से तुम्हारा नेग। आखिर तुमने इतने दिन अपनी बहन की सेवा जो की है। उसका तो ये प्रतिफल बनता ही है"

लेकिन तभी समीर वहां आ गया और उसने एक और लिफाफा तनु के हाथ में पकड़ा दिया। और कहा," ये मेरे और नमिता की तरफ से तुम्हारे लिए। तुम्हें जो खरीदना है, अपनी पसंद का खरीद लेना" ये देखकर शोभा जी गुस्सा हो गई। लेकिन उस समय उन्होंने कुछ नहीं कहा। तनु अपने पापा के साथ रवाना हो गई। उनके जाते ही शोभा जी ने कहा, " समीर यह क्या हरकत है? जब मैंने तनु को विदाई दे दी थी तो तुझे अलग लिफाफा देने की क्या जरूरत थी" " मम्मी इसमें गलत क्या है? आखिर वो भी तो नेग की हकदार है। अपनी पढ़ाई लिखाई छोड़कर वो यहां अपनी बहन की सेवा करने आ गई, वही बड़ी बात है। उसके बदले अगर हमने खुश होकर उसे थोड़ा बहुत दे दिया तो क्या हर्ज है" " पर हमारे यहां बहू की बहन को नेग देने का रिवाज नहीं है। ये क्या उल्टी गंगा बहा रहा है" अब की बार मेघा ने कहा। " क्यों दीदी? जब जरूरत थी तब बहू की छोटी बहन को बुला लो। और नेग देने के नाम पर रिवाज नहीं है। भला ये क्या बात हुई। नेग का असल हालदार तो वही होना चाहिए जो असल में काम कर रहा है। सिर्फ रिश्ते नाते से नेग के हकदार नहीं बन जाते। उसके मायके वालों से तो नेग लेने के लिए आप लोग तैयार हो गए। लेकिन जब काम की बात थी तो पीछे हट गए। मम्मी दीदी की डिलीवरी के समय तो आपने भाग भाग कर काम किया था। फिर बहू के डिलीवरी के समय क्या हो गया। बुरा मत मानना मम्मी। लेकिन अभी जो व्यवहार आप बहू के साथ करोगी, वही उसे जिंदगी भर याद रहने वाला है। क्योंकि अपने डिलीवरी के समय को कोई औरत नहीं भूलती"समीर ने कहा तो शोभा जी आगे कुछ कह नहीं पाई। आखिर बोल भी क्या सकती थी। समीर गलत तो नहीं कह रहा था। इसलिए अपने आप ही सब चुप हो गए, क्योंकि आज सही वक्त पर सही जवाब दे दिया गया था।

 हो सकता है मैं कभी प्रेम ना जता पाऊं तुमसे.. लेकिन कभी पीली साड़ी में तुम्हे देखकर थम जाए मेरी नज़र... तो समझ जाना तुम... जब तुम रसोई में अके...