Search This Blog

Wednesday, 19 April 2023

मेरे अजनबी हमसफ़र....जरूर से जरूर पढ़ना:-

मेरे अजनबी हमसफ़र....जरूर से जरूर पढ़ना:-
वो ट्रेन के रिजर्वेशन के डब्बे में बाथरूम के तरफ वाली सीट पर बैठी थी... उसके चेहरे से पता चल रहा था कि थोड़ी सी घबराहट है उसके दिल में कि कहीं टीटी ने आकर पकड़ लिया तो..कुछ देर तक तो पीछे पलट-पलट कर टीटी के आने का इंतज़ार करती रही। शायद सोच रही थी कि थोड़े बहुत पैसे देकर कुछ निपटारा कर लेगी। देखकर यही लग रहा था कि जनरल डब्बे में चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें आकर बैठ गयी, शायद ज्यादा लम्बा सफ़र भी नहीं करना होगा। सामान के नाम पर उसकी गोद में रखा एक छोटा सा बेग दिख रहा था। मैं बहुत देर तक कोशिश करता रहा पीछे से उसे देखने की कि शायद चेहरा सही से दिख पाए लेकिन हर बार असफल ही रहा...फिर थोड़ी देर बाद वो भी खिड़की पर हाथ टिकाकर सो गयी। और मैं भी वापस से अपनी किताब पढ़ने में लग गया...लगभग 1 घंटे के बाद टीटी आया और उसे हिलाकर उठाया।
“कहाँ जाना है बेटा” “अंकल दिल्ली तक जाना है”“टिकट है ?” “नहीं अंकल …. जनरल का है ….लेकिन वहां चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें बैठ गयी”“अच्छा 300 रुपये का पेनाल्टी बनेगा” “ओह …अंकल मेरे पास तो लेकिन 100 रुपये ही हैं”“ये तो गलत बात है बेटा …..पेनाल्टी तो भरनी पड़ेगी” “सॉरी अंकल …. मैं अलगे स्टेशन पर जनरल में चली जाउंगी …. मेरे पास सच में पैसे नहीं हैं …. कुछ परेशानी आ गयी, इसलिए जल्दबाजी में घर से निकल आई … और ज्यादा पैसे रखना भूल गयी….” बोलते बोलते वो लड़की रोने लगी टीटी उसे माफ़ किया और 100 रुपये में उसे दिल्ली तक उस डब्बे में बैठने की परमिशन देदी। टीटी के जाते ही उसने अपने आँसू पोंछे और इधर-उधर देखा कि कहीं कोई उसकी ओर देखकर हंस तो नहीं रहा था..थोड़ी देर बाद उसने किसी को फ़ोन लगाया और कहा कि उसके पास बिलकुल भी पैसे नहीं बचे हैं …दिल्ली स्टेशन पर कोई जुगाड़ कराके उसके लिए पैसे भिजा दे, वरना वो समय पर गाँव नहीं पहुँच पायेगी। मेरे मन में उथल-पुथल हो रही थी, न जाने क्यूँ उसकी मासूमियत देखकर उसकी तरफ खिंचाव सा महसूस कर रहा था, दिल कर रहा था कि उसे पैसे देदूं और कहूँ कि तुम परेशान मत हो … और रो मत …. लेकिन एक अजनबी के लिए इस तरह की बात सोचना थोडा अजीब था। उसकी शक्ल से लग रहा था कि उसने कुछ खाया पिया नहीं है शायद सुबह से … और अब तो उसके पास पैसे भी नहीं थे। बहुत देर तक उसे इस परेशानी में देखने के बाद मैं कुछ उपाय निकालने लगे जिससे मैं उसकी मदद कर सकूँ और फ़्लर्ट भी ना कहलाऊं। फिर मैं एक पेपर पर नोट लिखा,“बहुत देर से तुम्हें परेशान होते हुए देख रहा हूँ, जानता हूँ कि एक अजनबी हम उम्र लड़के का इस तरह तुम्हें नोट भेजना अजीब भी होगा और शायद तुम्हारी नज़र में गलत भी, लेकिन तुम्हे इस तरह परेशान देखकर मुझे बैचेनी हो रही हैइसलिए यह 500 रुपये दे रहा हूँ , तुम्हे कोई अहसान न लगे इसलिए मेरा एड्रेस भी लिख रहा हूँ …...जब तुम्हें सही लगे मेरे एड्रेस पर पैसे वापस भेज सकती हो …. वैसे मैं नहीं चाहूँगा कि तुम वापस करो ….. अजनबी हमसफ़र ” एक चाय वाले के हाथों उसे वो नोट देने को कहा, और चाय वाले को मना किया कि उसे ना बताये कि वो नोट मैंने उसे भेजा है। नोट मिलते ही उसने दो-तीन बार पीछे पलटकर देखा कि कोई उसकी तरह देखता हुआ नज़र आये तो उसे पता लग जायेगा कि किसने भेजा। लेकिन मैं तो नोट भेजने के बाद ही मुँह पर चादर डालकर लेट गया था...थोड़ी देर बाद चादर का कोना हटाकर देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कराहट महसूस की। लगा जैसे कई सालों से इस एक मुस्कराहट का इंतज़ार था। उसकी आखों की चमक ने मेरा दिल उसके हाथों में जाकर थमा दिया …. फिर चादर का कोनाहटा- हटा कर हर थोड़ी देर में उसे देखकर जैसे सांस ले रहा था मैं...पता ही नहीं चला कब आँख लग गयी। जब आँख खुली तो वो वहां नहीं थी … ट्रेन दिल्ली स्टेशन पर ही रुकी थी। और उस सीट पर एक छोटा सा नोट रखा था ….. मैं झटपट मेरी सीट से उतरकर उसे उठा लिया .. और उस पर लिखा था … Thank You मेरे अजनबी हमसफ़र …..आपका ये अहसान मैं ज़िन्दगी भर नहीं भूलूँगी …. मेरी माँ आज मुझे छोड़कर चली गयी हैं …. घर में मेरे अलावा और कोई नहीं है इसलिए आनन – फानन में घर जा रही हूँ। आज आपके इन पैसों से मैं अपनी माँ को शमशान जाने से पहले एक बार देख पाऊँगी …. उनकी बीमारी की वजह से उनकी मौत के बाद उन्हें ज्यादा देर घर में नहीं रखा जा सकता। आज से मैं आपकी कर्ज़दार हूँ ….जल्द ही आपके पैसे लौटा दूँगी। उस दिन से उसकी वो आँखें और वो मुस्कराहट जैसे मेरे जीने की वजह थे …. हर रोज़ पोस्टमैन से पूछता था शायद किसी दिन उसका कोई ख़त आ जाये …. आज 1 साल बाद एक ख़त मिला ….आपका क़र्ज़ अदा करना चाहती हूँ …. लेकिन ख़त के ज़रिये नहीं आपसे मिलकर … नीचे मिलने की जगह का पता लिखा था …. और आखिर में लिखा था ... तुम्हारी अजनबी हमसफ़र …

किसी को रोते देख कर हँसो मत कियु की ओ हर इंसान किस दुख में है...............

Wednesday, 23 March 2022

शिव महिमा का चमत्कार। हाँ 100% सच!

क्या शिवलिंग रेडिएटर हैं ?....

भारत का रेडियो एक्टिविटी मैप उठाएं, हैरान रह जाएंगे आप! भारत सरकार की परमाणु भट्टी के बिना सभी ज्योतिर्लिंग स्थलों में सर्वाधिक विकिरण पाया जाता है।

शिवलिंग और कुछ नहीं परमाणु भट्टे हैं, इसीलिए उन पर जल चढ़ाया जाता है, ताकि वे शांत रहें।

महादेव के सभी पसंदीदा भोजन जैसे बिल्वपत्र, अकामद, धतूरा, गुड़ आदि सभी परमाणु ऊर्जा सोखने वाले हैं।

क्योंकि शिवलिंग पर पानी भी रिएक्टिव होता है इसलिए ड्रेनेज ट्यूब क्रॉस नहीं होती।

भाभा अनुभट्टी की संरचना भी शिवलिंग की तरह है।

नदी के बहते जल के साथ ही शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल औषधि का रूप लेता है।

इसीलिए हमारे पूर्वज हमसे कहा करते थे कि महादेव शिवशंकर नाराज हो गए तो अनर्थ आ जाएगा।

देखें कि हमारी परंपराओं के पीछे विज्ञान कितना गहरा है।

जिस संस्कृति से हम पैदा हुए, वही सनातन है।

विज्ञान को परंपरा का आधार पहनाया गया है ताकि यह प्रवृत्ति बने और हम भारतीय हमेशा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें।

आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में केदारनाथ से रामेश्वरम तक एक ही सीधी रेखा में बने महत्वपूर्ण शिव मंदिर हैं। आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसी कौन सी विज्ञान और तकनीक थी जो हम आज तक समझ नहीं पाए? उत्तराखंड के केदारनाथ, तेलंगाना के कालेश्वरम, आंध्र प्रदेश के कालेश्वर, तमिलनाडु के एकम्बरेश्वर, चिदंबरम और अंत में रामेश्वरम मंदिर 79°E 41'54" रेखा की सीधी रेखा में बने हैं।

ये सभी मंदिर प्रकृति के 5 तत्वों में लैंगिक अभिव्यक्ति दिखाते हैं जिन्हें हम आम भाषा में पंचभूत कहते हैं। पंचभूत का अर्थ है पृथ्वी, जल, अग्नि, गैस और अवकाश। इन पांच सिद्धांतों के आधार पर इन पांच शिवलिंगों की स्थापना की गई है।

तिरुवनैकवाल मंदिर में पानी का प्रतिनिधित्व है,
आग का प्रतिनिधित्व तिरुवन्नामलाई में है,
काल्हस्ती में पवन दिखाई जाती है,
कांचीपुरम और अंत में पृथ्वी का प्रतिनिधित्व हुआ
चिदंबरम मंदिर में अवकाश या आकाश का प्रतिनिधित्व!

वास्तुकला-विज्ञान-वेदों का अद्भुत समागम दर्शाते हैं ये पांच मंदिर

भौगोलिक दृष्टि से भी खास हैं ये मंदिर इन पांच मंदिरों का निर्माण योग विज्ञान के अनुसार किया गया है और एक दूसरे के साथ एक विशेष भौगोलिक संरेखण में रखा गया है। इसके पीछे कोई विज्ञान होना चाहिए जो मानव शरीर को प्रभावित करे।

मंदिरों का निर्माण लगभग पांच हजार साल पहले हुआ था, जब उन स्थानों के अक्षांश को मापने के लिए उपग्रह तकनीक उपलब्ध नहीं थी। तो फिर पांच मंदिर इतने सटीक कैसे स्थापित हो गए? इसका जवाब भगवान ही जाने।

केदारनाथ और रामेश्वरम की दूरी 2383 किमी है। लेकिन ये सभी मंदिर लगभग एक समानान्तर रेखा में हैं। आखिरकार, यह आज भी एक रहस्य ही है, किस तकनीक से इन मंदिरों का निर्माण हजारों साल पहले समानांतर रेखाओं में किया गया था।

श्रीकालहस्ती मंदिर में छिपा दीपक बताता है कि यह हवा में एक तत्व है। तिरुवनिक्का मंदिर के अंदर पठार पर पानी के स्प्रिंग संकेत देते हैं कि वे पानी के अवयव हैं। अन्नामलाई पहाड़ी पर बड़े दीपक से पता चलता है कि यह एक अग्नि तत्व है। कांचीपुरम की रेती आत्म तत्व पृथ्वी तत्व और चिदंबरम की असहाय अवस्था भगवान की असहायता अर्थात आकाश तत्व की ओर संकेत करती है।

अब यह कोई आश्चर्य नहीं है कि दुनिया के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करने वाले पांच लिंगों को सदियों पहले एक ही पंक्ति में स्थापित किया गया था।

हमें अपने पूर्वजों के ज्ञान और बुद्धिमत्ता पर गर्व होना चाहिए कि उनके पास विज्ञान और तकनीक थी जिसे आधुनिक विज्ञान भी नहीं पहचान सका।

माना जाता है कि सिर्फ ये पांच मंदिर ही नहीं बल्कि इस लाइन में कई मंदिर होंगे जो केदारनाथ से रामेश्वरम तक सीधी लाइन में आते हैं। इस पंक्ति को 'शिवशक्ति अक्षरेखा' भी कहते हैं, शायद ये सभी मंदिर 81.3119° ई में आने वाली कैलास को देखते हुए बने हैं!?

इसका जवाब सिर्फ भगवान शिव ही जानते हैं

आश्चर्यजनक कथा 'महाकाल' उज्जैन में शेष ज्योतिर्लिंग के बीच संबंध (दूरी) देखें।

उज्जैन से सोमनाथ - 777 किमी

उज्जैन से ओंकारेश्वर - 111 किमी

उज्जैन से भीमाशंकर - 666 किमी

उज्जैन से काशी विश्वनाथ - 999 किमी

उज्जैन से मल्लिकार्जुन - 999 किमी

उज्जैन से केदारनाथ - 888 किमी

उज्जैन से त्र्यंबकेश्वर - 555 किमी

उज्जैन से बैजनाथ - 999 किमी

उज्जैन से रामेश्वरम - 1999 किमी

उज्जैन से घृष्णेश्वर - 555 किमी

हिंदू धर्म में कुछ भी बिना कारण के नहीं किया जाता है।

सनातन धर्म में हजारों वर्षों से माने जाने वाले उज्जैन को पृथ्वी का केंद्र माना जाता है। इसलिए उज्जैन में सूर्य और ज्योतिष की गणना के लिए लगभग 2050 वर्ष पूर्व मानव निर्मित उपकरण बनाए गए थे।

और जब एक अंग्रेज वैज्ञानिक ने 100 साल पहले पृथ्वी पर एक काल्पनिक रेखा (कर्क) बनाई तो उसका मध्य भाग उज्जैन गया। उज्जैन में आज भी वैज्ञानिक सूर्य और अंतरिक्ष की जानकारी लेने आते हैं।

Tuesday, 18 January 2022

पुरुष के दर्द से ओतप्रोत एक मार्मिक कृति ___________________________________


पुरुषों के दर्द से मुक्ति एक मार्मिक कृति…
पति पत्नी और भावी संतान।___________________________________
“ तू दद ​​नहीं माँगा”
साहब मैं स्थान नहीं आऊंगा,
अपने इस घर से कहीं नहीं जाऊँगा,
माना पत्नी से थोड़ा मन-मुटाव था,
सोच में अन्तर और विचार में खिंचाव था
हमने शादी से पहले सोच रखा था।
पत्नी को हर खुशी देने का वादा कर रखा था।
यकीन मानिए साहब, “दहेज नहीं माँगा”

मेरा मानना ​​है कि कानून आज पत्नी के पास है,
महिलाओं का समाज में हो रहा विकास है।
चाहती मेरी भी बस यही थी कि माँ-बाप का सम्मान हो,
उन्हें भी समझे माता पिता, ना कभी उनका अपमान हो।
पर अब क्या फायदा, जब टूट ही गया हर रिश्ते का धागा,
यकीन मानिए साहब, “ आप दद नहीं माँगा”

परिवार के साथ रहना इसे पसंद नहीं है,
यहाँ कोई रस नहीं, कोई आनन्द नहीं है,
मुझे ले चलो इस घर से दूर, किसी किराये के आशियाने में,
माँ बाप पर प्यार बरसाने में कुछ नहीं रखा,
हाँ छोड़ दो, छोड़ दो इस माँ बाप के प्यार को,
नहीं माने तो याद रखोगे मेरी मार को,

फिर शुरू हुआ विवाद माँ बाप से अलग होने का,
शायद समय आ गया था, चैन और सुख खोने का,
एक दिन साफ़ मैंने पत्नी को मना कर दिया,
न रहूँगा माँ-बाप के बिना ये उसके दिमाग में भर दिया।
बस मुझसे लड़कर मोहतरमा मायके जा पहुंची,

2 दिन बाद ही पत्नी के घर से मुझे सुराग मिला,
माँ बाप से अलग हो जा, नहीं पढ़ाओगे,
क्या होता है दहेज़ कानून इसका असर दिखाएंगे।
परिणाम जानते हुए भी हर खतरे को गले में टांगा,
यकीनन मानिये साहब, “ आप दज़ नहीं माँगा”

जो कहा था बीवी ने, आखिर वो कर दिखा,
फ़िर किसी और बात पर था, पर उसने दहेज का नाटक रचाया।
बस पुलिस थाने से एक दिन मुझे फ़ोन आया,
क्यों बे, पत्नी से दहेज़ मांगता है, ये कह के मुझे धमकाया।
माता पिता भाई बहिन जीजा सभी के रिपोर्ट में नाम थे,
घर में सब हैरान, सब परेशान थे,
अब अकेले बैठ कर सोचता हूँ, वो ज़िन्दगी में क्यों आई थी,

मैंने भी तो उसकी हर जिम्मेदारी निभाई थी।
आख़िरकार तमका मिला हमें दज़ लोभी होने का,
कोई फायदा न हुआ मीठे मीठे सपने संजोने का।
छुपाकर कहीं नहीं भागा,
लेकिन यकीनन साहब, “ आप दज़ नहीं माँगा
_________________________________________

अगर फितरत हमारी सहने की नहीं होती तो हिम्मत तुम्हारे कुछ कहने की नहीं होती..

Saturday, 18 December 2021

दुख:द कहानी पति-पत्नी की.

की घटना 😌😔

#राधिका और नवीन को आज तलाक के कागज मिल गए थे। इसके साथ ही कोर्ट से बाहर निकला। पूर्वजों के साथ थे और उनके चेहरे पर विजय और सुकून के निशान साफ ​​झलक रहे थे। चार साल की लंबी लड़ाई के बाद आज फैसला हो गया था।
दस साल हो गए थे शादी को मगर साथ में छह साल ही रह पाए थे। 
चार साल तो तलाक की #कार्यवाही में लग गए।
राधिका के हाथ में दहेज के समान की लिस्ट थी जो अभी नवीन के घर से लेना था और नवीन के हाथ में गहनों की लिस्ट थी जो राधिका से लेने थे।

साथ ही कोर्ट का यह आदेश भी था कि नवीन दस लाख रुपए की राशि एकमुश्त राधिका को चुकाएगा।

राधाकृष्णा और नवीन एक ही क्षण में प्रसन्न नवीन के घर पहुंचे। #दहेज में दिए गए समान की निशानदेही राधािका को करना था।
इसलिए चार साल बाद #ससुराल जा रही थी। आखिरी बार बस उसके बाद कभी नहीं आना था उधर।

सभी रिश्तेदार अपने अपने घर जा चुके थे। बस तीन प्राणी बचे थे। नवीन, राधािका और राधािका की माता जी।

नवीन घर में अकेला ही रहता था। मां-बाप और भाई आज भी गांव में ही रहते हैं। 

राधिका और नवीन का इकलौता बेटा जो अभी सात साल का है, कोर्ट के फैसले के अनुसार बलिग होने तक वह राधिका के पास ही रहेगा। नये महीने में एक बार उससे मिल सकता है।
घर में माहौल करते ही पुरानी यादें ताज़ा हो गई। कितनी मेहनत से संतुष्ट थी ऐसी राधिका ने। एक एक चीज़ में उसकी जान बसी थी। सब कुछ उसकी आँखों के सामने बना हुआ था। एक ईंट से धीरे-धीरे घरों को पूरा होते देखा था उसने।
सपनों का घर वही था। कितनी #शिद्दत से नवीन ने उसके सपने को पूरा किया था।
नवीन मेहनतारा सा पक्षियों पर पसर गया। बोला "ले लो जो कुछ भी चाहिए मैं तुझे नहीं रोकूंगा"
राधािका ने अब गौरव से नवीन को देखा। चार साल में कितना बदल गया है। बालों में सफेदी गूंजने लगी है। शरीर पहले से आधा रह गया है। चार साल में चेहरे की रौनक गायब हो गई।

वह #स्टोर रूम की तरफ अधिकतर जहाँ उसके दहेज का अधिकतर समान पड़ा था। सामान पुराने फैशन का था इसलिए कबाड़ की तरह स्टोर रूम में डाल दिया गया था। मिला भी कितना थाहे द। प्रेम विवाह था प्रेम का। घर वाले तो मजबूरी में साथ हुए थे। 
प्रेम विवाह तभी हुआ था जब नजर लग गई किसी की। क्योंकि प्रेमी जोड़ी को हर कोई टूटता हुआ देखना चाहता है। 
बस एक बार पीकर बहक गया था नवीन। हाथ उठा बैठा था उसपर। बस वो गुस्से में मायके चली गई थी। 
फिर चला था तन्निशिक्षण का दौर । इधर नवीन के भाई भाभी और उधर राधािका की माँ। कोई बात नहीं, कोर्ट तक जा पहुंची और तलाक हो गया।

न राधाकि लोटी और न नवीन लाया गया। 

राधािका की माँ बोली "तेरा सामान कहाँ है? इधर तो नहीं दिखता। बेचा दिया होगा इस शराबी ने ?"

"चुप रहो #माँ" 
राधाकिशा को ना जाने क्यों नवीन को उसके मुँह पर शराबी कहना अच्छा नहीं लगा।

फिर स्टोर रूम में पड़े सामान को एक कर लिस्ट में मोड़ दिया गया। 
बाकी दुकानों से भी लिस्ट का सामान उठा लिया गया।
राधिका ने सिर्फ अपना सामान लिया, नवीन के समान को छुवा भी नहीं। फिर राधिका ने नवीन को गहनों से भरा बाग पकड़ा दिया। 
नवीन ने बैग वापस राधिका को दे दिया " रखलो, मुझे नहीं चाहिए काम आयेंगे तेरे मुसीबत में ।"

गहनों की कीमत 15 लाख से कम नहीं थी। 
"क्यूँ, कोर्ट में तो तुम्हारे वकील कितनी दफा गहने-गहने चिल्ला रहा था" 
"कोर्ट की बात कोर्ट में खत्म हो गई, राधाकि। तो मुझे भी दुनिया का सबसे बुरा जानवर और शराबी साबित कर दिया गया है।"
सुन राधािका की माँ ने नाक भोंसों दिया।

"नहीं चाहिए। 
वो दस #लाख भी नही चाहिए"

 "क्यूँ?" नवीन चट्टानों से खड़ा किया गया।

"बस यूँ ही" राधिका ने मुँह फेर लिया।

"इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे कटोगी? ले जाओ,,, काम आएँगे।"

इतना कह कर नवीन ने भी मुंह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया। शायद आँखों में कुछ उतरना होगा जिसे छिपाना भी जरूरी था।

राधािका की माता जी गाड़ी वाले को फोन करने में व्यस्त थी।

राधिका को मौका मिल गया। वो नवीन के पीछे उस कमरे में चली गई।

वो रो रहा था। अजीब सा मुँह बना कर। जैसे भीतर के सैलाब को दबा दबा की जद्दोजहद कर रहा हो। राधिका ने उसे कभी रोते हुए नहीं देखा था। आज पहली बार देखा ना जाने क्यों दिल को कुछ सुकून सा मिला।

मगर ज्यादा भावुक नहीं हुई।

सादे अंदाज में बोली "इतनी फिक्र थी तो तलाक क्यों दिया?"

"मैंने नहीं तलाक लिया" 

"दस्तखत तो तून भी किया"

"माफ़ी नहीं चाह सकते थे?"

"मौका कब दिया तुम्हारे घर वालों ने। जब भी फोन किया काट दिया।"

"घर भी आ सकते थे"?

"हिम्मत नहीं थी?"

राधाका की माँ आ गई। वो उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गया। "अब क्यों मुँह लग रही है इसके? अब तो रिश्ता भी खत्म हो गया"

मां-बेटी बाहर बरामदे में आटे पर सूखी गाड़ी का इंतजार करने लगी। 
राधािका के भीतर भी कुछ टूट रहा था। दिल बैठा जा रहा था। वो सुन्न सीटेक्स जा रही थी। जिस प्रथा पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी। कैसे कैसे बचत कर के उसने और नवीन ने वो सोफा खरीदा था। पूरे शहर में घूमी तब यह पसन्द आया था।"
 
फिर वह तुलसी के केड़े वाले पौधे पर नजर आईं। कितनी शिद्दत से देखभाल की जाती थी। वह तुलसी के साथ भी घर छोड़ गया।

घबराहट और ख़ुशी तो वह फिर से उठ कर भीतर चली गई। माँ ने पीछे से पुकारा मगर उसने अनसुना कर दिया। नवीन बेड पर उलटे मुंह पड़ा था। एक बार तो उसे दया आई उस पर। मगर वह जाना था कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भावुक नहीं होना है। 

उसने सरसरी नजर से कमरे को देखा। पूरा कमरा अस्त व्यस्त हो गया है। कहीं कांही तो मकड़ी के जाले झूल रहे हैं।

उसे स्पाइडर के जाल से कितनी नफरत थी?

फिर उसकी नज़र चारों ओर और लगी उन फोटो पर जिनमे वो नवीन से माथे पर मुस्करा रही थी।
कितने अच्छे दिन थे वो।

माँ बहुत में फिर आ गई। हाथ पकड़ कर फिर उसे बाहर ले गया।

बाहर गाड़ी आ गई थी। सामान गाड़ी में डाला जा रहा था। राधािका सुन सी बैठी थी। नवीन कार की आवाज सुनी गई। 
अचानक नवीन कान पकड़ कर घुटनों के बल बैठ गया।
बोला--"मत जाओ,,, #माफ कर दो"
शायद यही वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए चार साल से तड़प रही थी। सब्र के सारे बांध एक साथ टूट गए। राधािका ने कोर्ट के फैसले का कागज निकाला और रिकार्ड किया। 
और माँ कुछ कहती है उससे पहले ही नवीन से। साथ में बुरी तरह रोते जा रहे थे।
दूर खो राधाका की माँ समझ गयी कि 
कोर्ट का आदेश दिलों के सामने #कागज से ज्यादा कुछ नहीं।
काश उन्हें पहले मिलने दिया होता?

                  अगर माफ़ी इंसान से ही #रिश्ते मौत से बच जाए, तो माफ़ी मांगनी चाहिए।😷

Tuesday, 23 November 2021

मुझे भी दर्द होता है

मैं " पुरुष " हूँ...
(सुनिल राठोड)

मैं भी घुटता हूँ , पिसता हूँ
टूटता हूँ , बिखरता हूँ
चिल्लाता हूं।सहता हू
भीतर ही भीतर
रो नही पाता
कह नही पाता
पत्थर हो चुका
तरस जाता हूँ पिघलने को
क्योंकि मैं पुरुष हूँ..
.
मैं भी सताया जाता हूँ
तड़पाया जाता हूं।
जला दिया जाता हूँ
उस दहेज की आग में
जो कभी मांगा ही नही था
स्वाह कर दिया जाता हैं
मेरे उस मान-सम्मान का
तिनका - तिनका
कमाया था जिसे मैंने
मगर आह नही भर सकता 
क्योकि मैं पुरुष हूँ..
.
मैं भी देता हूँ आहुति
विवाह की अग्नि में
अपने रिश्तों की
हमेशा धकेल दिया जाता हूं
रिश्तों का वजन बांध कर
जिम्मेदारियों के उस कुँए में
जिसे भरा नही जा सकता
मेरे अंत तक कभी
कभी अपना दर्द बता नही सकता
किसी भी तरह जता नही सकता
बहुत मजबूत होने का
ठप्पा लगाए जीता हूँ
क्योंकि मैं पुरुष हूँ..
.
हॉ.. मेरा भी होता है बलात्कार
उठा दिए जाते है
मुझ पर कई हाथ
बिना वजह जाने
बिना बात की तह नापे
लगा दिया जाता है
सलाखों के पीछे 
कई धाराओं में
क्योंकि मैं पुरुष हूँ..
.
सुना है जब मन भरता है
तब आंखों से बहता है
मर्द होकर रोता है
मर्द को दर्द कब होता है
टूट जाता है तब मन से
आंखों का वो रिश्ता
तब हर कोई कहता है..

तो सुनो ...
सही गलत को
हर स्त्री स्वेत स्वर्ण नही होती
न ही हर पुरुष स्याह कालिख
मुझे सही गलत कहने वाले 
पहले मेरी हालात नही जांचते ...

क्योंकि...

मैं "पुरुष" हूँ..?

Thursday, 11 March 2021

गोर बंजारार कविता

 बंजारा एक महान समाज छ,,,

 तम समाजेर गौरव छो,,,,

गोर बंजारा भारतेर अभिमान छ,,,,

गोर बंजारार तांडो सबेती महान छ,,,

भारतेर सारी राज्यम गोर बंजारा छ,,

संत सेवा भायार भक्त सारी जगेम छ,,

गौर समाजेर धर्म गुरु रामराव बापू छ,,

अखिल भारतीय चैतन्य साधक परिवारेर हम गौर छा,,

गोर बंजारा भारतेर अभिमान छ,,,2, 

देश विदेशेम संत सेवा भायार नाम छ,, 

सेवाभाया सबेती महान छ,,,,2


बंजारा फाउंडेशने सारू, एक कविता लिखो छू, 

गोर बंजारान तमार कामें पर अभिमान छ,,,

      

जय सेवालाल 

                         लेखक

                     सुनील राठौड़

 हो सकता है मैं कभी प्रेम ना जता पाऊं तुमसे.. लेकिन कभी पीली साड़ी में तुम्हे देखकर थम जाए मेरी नज़र... तो समझ जाना तुम... जब तुम रसोई में अके...