भले ही पुरुष घर मे सामान बिखेर देता हो पर
घर सँवारने के लिये पसीना वो ही बहाता है।
अपना मोजा भी न ढूँढ पाने वाला पुरुष
अपने बच्चे के मनपसंद खिलौना सारे बाजार में से ढूँढ लाता है।।
घर के काम मे हाथ न बटा पाये चाहे
मगर घर की नींव वही रखता है।।।
जिस घर को औरत सजाती है उस घर में पाई-पाई लगा देता है...
थोड़ा उजट किस्म का हो सकता है पुरूष लेकिन औरत को सवाँर देता है पुरुष।।
सुबह का जब शाम को घर लौटता है पुरुष, अपने साथ कई दीये उज्वलित कर देता है।
ब्रिज सा विशाल पुरुष भीतर से शिशु होता है। प्यार, दुलार और मनुहार की अपेक्षा करता है स्त्री से, तो क्या बुरा करता है..!
लाख नारी शक्ति की बात करें हम । पर हम बखूबी ये जानते है कि औरत पुरुष का ही आधा हिस्सा है।
हमारी बहस इस सोच से भी खत्म हो सकती है कि अगर हम खुद को अलग-अलग स्थापित करते है तो बिखराव निश्चित है। शिव के अर्धनारी रूप को मन से स्वीकार करना होगा। और यही सत्य है...यही प्रकृति है।
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