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Sunday, 25 August 2024

कोई भी महिला जो अकेली है और उसे रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच घर जाने के लिए वाहन नहीं मिल रहा है,

 #पुलिस_ने_एक_मुफ्त_यात्रा_योजना_शुरू_की_है, जहां कोई भी महिला जो अकेली है और उसे रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच घर जाने के लिए वाहन नहीं मिल रहा है, वह पुलिस हेल्पलाइन नंबर (1091 और 7837018555) पर संपर्क कर सकती है और वाहन का अनुरोध कर सकती है। वे 24x7 घंटे काम करेंगे. नियंत्रण कक्ष वाहन या निकटतम पीसीआर वाहन/एसएचओ वाहन उसे सुरक्षित रूप से उसके गंतव्य तक ले जाएगा। यह #नि:#शुल्क किया जाएगा। इस संदेश को अपने जानने वाले सभी लोगों तक फैलाएं। अपनी पत्नी, बेटियों, बहनों, माताओं, दोस्तों और उन सभी महिलाओं को नंबर भेजें जिन्हें आप जानते हैं.. उन्हें इसे सेव करने के लिए कहें.. सभी पुरुष कृपया उन सभी महिलाओं के साथ साझा करें जिन्हें आप जानते हैं…। आपातकालीन स्थिति में महिलाएं *खाली संदेश या मिस्ड कॉल* दे सकती हैं.. ताकि पुलिस आपकी लोकेशन ढूंढ सके और आपकी मदद कर सके 

#पूरे_भारत_में_लागू

Saturday, 24 August 2024

कहीं आप अपनी पत्नी के साथ गलत तो नहीं कर रहे?

 कहीं आप अपनी पत्नी के साथ गलत तो नहीं कर रहे?


 आज कुछ ऐसे पति भी हैं जो पढ़े-लिखे हैं और अपनी पत्नी की मानसिक अशांति या आंतरिक खुशी का कारण नहीं जानते या समझने की कोशिश भी नहीं करते।

 सच बताऊं तो कई पति ऐसे होते हैं जिन्हें अगर उनकी पत्नी यह कहे कि मैं तुम्हारे साथ मानसिक रूप से अच्छा नहीं हूं तो उन्हें आश्चर्य होता है, तब पति सोचते हैं और अपनी पत्नियों से कहते हैं कि मैं तुम्हारे भरण-पोषण की जिम्मेदारी ले रहा हूं तो तुम अच्छी क्यों नहीं हो? उन्हें इन बातों की परवाह ही नहीं है.

 लेकिन कोई भी लड़की अपने पति के घर सिर्फ भोजन और कपड़े के लिए नहीं आती है। एक लड़की अपने पिता के घर में भी बिना भोजन और आवश्यकता के नहीं रहती है, चाहे वह कहीं भी हो, अल्लाह उसकी जीविका प्रदान करता है क्या आपकी पत्नी कम से कम एक बार अच्छी है? वह वास्तव में आपसे क्या चाहता है? क्या वह आपसे खुश है?

 अगर आप अपनी पत्नी से दूरियां बनाते हैं तो आप खुद को ही नुकसान पहुंचाएंगे। आप अपनी पत्नी की मानसिक स्थिति को समझने की कोशिश करें। प्यार करते समय आप जिस तरह से एक लड़की की पसंद-नापसंद का पता लगाते हैं। अगर पत्नी को समय दिया होता तो इतने रिश्ते नहीं टूटते.


 दुनिया में ऐसी बहुत सी लड़कियाँ हैं जो अपने पति के प्रति वफादार होती हैं, अगर उनके पति बुरे हैं और समय नहीं देते हैं, तो वे कभी भी दूसरे लड़कों के साथ समय नहीं बिताएँगी...!! लेकिन पति इतने असफल होते हैं कि वो ये समझने की कोशिश भी नहीं करते कि ऐसा क्यों हो रहा है.


 इसलिए अपनी गलती के कारण किसी लड़की को दिन-ब-दिन मानसिक पीड़ा सहना अनुचित है। इसलिए अपनी पत्नी का अच्छे से ख्याल रखें। पति-पत्नी का रिश्ता ईश्वर द्वारा दिया गया एक आशीर्वाद है और यदि ईश्वर के किसी सेवक को ठेस पहुँचती है, तो ईश्वर ऐसा करेगा पीड़ित।

 अब समय है अपनी पत्नी से पूछने का और उसके अंदर के दर्द को बाहर लाने का।

बाप बेटी का प्रेम समुद्र से भी गहरा है

 जब तक बाप जिंदा रहता है, बेटी मायके में हक़ से आती है और घर में भी ज़िद कर लेती है और कोई कुछ कहे तो डट के बोल देती है कि मेरे बाप का घर है। पर जैसे ही बाप मरता है और बेटी आती है तो वो इतनी चीत्कार करके रोती है कि, सारे रिश्तेदार समझ जाते है कि बेटी आ गई है।*

*और वो बेटी उस दिन अपनी हिम्मत हार जाती है, क्योंकि उस दिन उसका बाप ही नहीं उसकी वो हिम्मत भी मर जाती हैं।*

*आपने भी महसूस किया होगा कि बाप की मौत के बाद बेटी कभी अपने भाई- भाभी के घर वो जिद नहीं करती जो अपने पापा के वक्त करती थी, जो मिला खा लिया, जो दिया पहन लिया क्योंकि जब तक उसका बाप था तब तक सब कुछ उसका था यह बात वो अच्छी तरह से जानती है।* 

आगे लिखने की हिम्मत नहीं है, बस इतना ही कहना चाहता हूं कि बाप के लिए बेटी उसकी जिंदगी होती है, पर वो कभी बोलता नहीं, और बेटी के लिए बाप दुनिया की सबसे बड़ी हिम्मत और घमंड होता है, पर बेटी भी यह बात कभी किसी को बोलती नहीं है। 

बाप बेटी का प्रेम समुद्र से भी गहरा है

Friday, 23 August 2024

क्योंकि मैं पुरुष हूँ

 मैं पुरुष हूँ।

मैं भी घुटता हूँ, पिसता हूँ, टूटता हूँ , बिखरता हूँ,

भीतर ही भीतर, रो नही पाता, कह नही पाता

पत्थर हो चुका, तरस जाता हूँ पिघलने को,

क्योंकि मैं पुरुष हूँ।

मैं भी सताया जाता हूँ, जला दिया जाता हूँ,

उस दहेज की आग में, जो कभी मांगा ही नही था।

स्वाह कर दिया जाता हैं मेरे उस मान-सम्मान का,

तिनका-तिनका कमाया था जिसे मैंने,

मगर आह नही भर सकता,

क्योकि मैं पुरुष हूँ।

मैं भी देता हूँ आहुति विवाह की अग्नि में अपने रिश्तों की,

हमेशा धकेल दिया जाता हूँ रिश्तों का वजन बांध कर,

जिम्मेदारियों के उस कुँए में जिसे भरा नही जा सकता मेरे अंत तक कभी।

कभी अपना दर्द बता नही सकता,

किसी भी तरह जता नही सकता,

बहुत मजबूत होने का ठप्पा लगाए जीता हूँ।

क्योंकि मैं पुरुष हूँ।

हाँ, मेरा भी होता है बलात्कार,

उठा दिए जाते है मुझ पर कई हाथ,

बिना वजह जाने, बिना बात की तह नापे,

लगा दिया जाता है सलाखों के पीछे कई धाराओं में,

क्योंकि मैं पुरुष हूँ।

सुना है, जब मन भरता है, तब आँखों से बहता है,

मर्द होकर रोता है, मर्द को दर्द कब होता है,

टूट जाता है तब मन से, आंखों का वो रिश्ता, 

तब हर कोई कहता है,

हर स्त्री स्वेत स्वर्ण नही होती,

न ही हर पुरुष स्याह कालिख,

मुझे सही गलत कहने वालों,

पहले मेरे हालात क्यों नही जांचते?

क्योंकि मैं पुरुष हूँ?


#पंडिताइन

जब और समर्थन का सही मेल होता है, तो किसी भी इंसान को बेहतर बनने से कोई नहीं रोक सकता।

 कहानी एक छोटे से गाँव की है, जहाँ अर्जुन नाम का एक युवक अपने आलस और निकम्मेपन के लिए पूरे गाँव में बदनाम था। अर्जुन की पत्नी, संगीता, गाँव में अपनी मेहनत और बुद्धिमानी के लिए जानी जाती थी। वह हर दिन सूरज की पहली किरण के साथ उठती, खेतों में काम करती, और फिर घर लौटकर परिवार की देखभाल में जुट जाती। दूसरी ओर, अर्जुन दिनभर इधर-उधर घूमता, सोता या दोस्तों के साथ खेल-कूद में अपना समय बिताता।


गाँव के लोग अर्जुन को अक्सर चिढ़ाते और उसे "निकम्मा अर्जुन" कहकर बुलाते थे। संगीता को अपने पति से बहुत प्यार था, लेकिन कभी-कभी उसकी बेपरवाह आदतों पर उसे गुस्सा भी आता था। उसने सोचा कि शायद अर्जुन को सही दिशा में प्रेरित किया जाए, तो वह भी अपनी जिम्मेदारियों को समझने लगेगा।


एक दिन, संगीता ने अर्जुन से गंभीरता से बात करने का फैसला किया। उसने कहा, "अर्जुन, तुम्हारा इस तरह बेकार बैठे रहना न तो हमारे परिवार के लिए अच्छा है और न ही तुम्हारे लिए। क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हें कुछ करना चाहिए? तुम्हारी मेहनत से हमारी जिंदगी बेहतर हो सकती है।"


अर्जुन ने हँसते हुए कहा, "मेरे काम करने से क्या फायदा? तुम ही सब कुछ अच्छे से संभाल लेती हो। मुझे कुछ करने की क्या जरूरत है?"


संगीता ने गहरी सांस लेते हुए सोचा कि अगर अर्जुन को सही मौका और प्रेरणा मिले, तो शायद वह अपनी आदतें बदल सकता है। उसने एक योजना बनाई। अगले दिन, गाँव में एक बड़ा मेला लगना था। संगीता ने तय किया कि वह अर्जुन को उस मेले में ले जाएगी, ताकि वह गाँव के अन्य लोगों की मेहनत और सफलता को देख सके।


मेले में पहुँचते ही अर्जुन ने देखा कि गाँव के लोग अपनी मेहनत से कैसे तरक्की कर रहे हैं। किसी ने अपनी दुकान खोली थी, तो कोई खेती-बाड़ी में सफल हो रहा था। हर कोई अपने-अपने काम में लगा था और तरक्की कर रहा था। अर्जुन ने देखा कि उसके जैसे लोग, जो पहले कुछ नहीं करते थे, अब मेहनत करके अपनी जिंदगी को संवार रहे हैं।


मेले से वापस लौटते समय अर्जुन के मन में कुछ बदलने लगा। उसने देखा कि उसकी पत्नी संगीता कितनी मेहनत करती है और उसे इस बात का अहसास हुआ कि उसे भी कुछ करना चाहिए।


अगले दिन से अर्जुन ने छोटे-छोटे कामों में हाथ बंटाना शुरू किया। पहले तो संगीता को यह देखकर आश्चर्य हुआ, लेकिन धीरे-धीरे उसने देखा कि अर्जुन में एक नया जोश और लगन आ रहा है। उसने खुद से सब्जियाँ उगाने का फैसला किया और गाँव के बुजुर्गों से खेती के गुर सीखने लगा।


समय बीतता गया और अर्जुन अब गाँव के सबसे मेहनती किसानों में से एक बन गया। उसके खेतों में भरपूर फसल उगने लगी और संगीता को अपने पति पर गर्व महसूस होने लगा। गाँव के लोग, जो कभी अर्जुन को "निकम्मा" कहकर बुलाते थे, अब उसकी तारीफें करने लगे।


एक दिन, गाँव में एक समारोह का आयोजन हुआ, जिसमें अर्जुन को "सर्वश्रेष्ठ किसान" का पुरस्कार दिया गया। संगीता की आँखों में खुशी के आँसू थे। उसने अर्जुन से कहा, "देखो अर्जुन, तुम्हारी मेहनत ने तुम्हें इस मुकाम पर पहुँचाया है। यह सब तुम्हारे अंदर के बदलाव और दृढ़ संकल्प का नतीजा है।"


अर्जुन ने मुस्कुराते हुए कहा, "संगीता, यह सब तुम्हारी प्रेरणा और अटूट विश्वास का ही परिणाम है। तुमने मुझे सही रास्ता दिखाया और अब मैं समझ गया हूँ कि जीवन में मेहनत और जिम्मेदारी का कितना महत्व है।"


इस तरह, अर्जुन ने निकम्मे पति से एक मेहनती किसान का सफर तय किया। अब वह गाँव के सबसे सम्मानित नागरिकों में से एक था, और संगीता के साथ मिलकर उन्होंने एक खुशहाल और समर्पित जीवन बिताया। गाँव में उनकी जोड़ी अब मिसाल बन चुकी थी, और लोग कहते थे, "अर्जुन और संगीता की तरह मेहनत और प्यार से हर चुनौती का सामना किया जा सकता है।"


उनकी यह कहानी गाँव के हर घर में प्रेरणा का स्रोत बन गई। अर्जुन और संगीता ने अपने जीवन से यह साबित कर दिया कि जब और समर्थन का सही मेल होता है, तो किसी भी इंसान को बेहतर बनने से कोई नहीं रोक सकता।

Thursday, 22 August 2024

Ladki को भरपूर सेक्स दो मोबाइल अनजाने में हमारे परिवार, संस्कार और संस्कृति को तोड़ने का काम कर रहा है


और उसकी सभी जरूरतें पूरी करूं तो जीवन अच्छे से कटेगा और मैं पूरी तरह से शादी करने के लिए तैयार था। मेरा खुद का व्यापार है, तो मुझे ऐसी लड़की चाहिए थी, जो स्मार्ट हो और व्यापार में मेरा काम संभाल सके, 10 लोगों के साथ उठना-बैठना जानती हो। कई लड़कियों को देखने के बाद अंजली से मेरी शादी हुई। अंजली दिखने में किसी परी से कम नहीं थी, सुंदरता के साथ दिमाग भी तेज था। 


शादी के पहले तीन महीनों में मैंने उसे खूब खुश रखा, हमारे बीच जिस्मानी संबंध बहुत अच्छे थे। मुझे लगता था कि मुझे ऐसी लड़की मिल गई है जो बिना बोले मेरी जरूरत समझती है। एक अच्छे शादीशुदा रिश्ते के लिए शारीरिक सुख का होना बहुत जरूरी है। लेकिन धीरे-धीरे सेक्स से भी मन हटने लगा और काम के दबाव की वजह से भी इसका मन नहीं करता था।


लेकिन असली दिक्कत अब शुरू हुई। अंजली की डिमांड थी कि हम अपने माता-पिता से अलग एक फ्लैट में रहें। मैंने पूछा, "क्यों, ऐसा क्या दिक्कत है?" उसने जवाब दिया, "मुझे प्राइवेसी चाहिए, जो मम्मी-पापा के रहते पॉसिबल नहीं है।" मैंने कहा, "अरे कैसी प्राइवेसी? अपना घर है, अपना कमरा है, जैसे मन करो वैसे रहो।" 


उसने कहा, "तुम्हें जितना आसान लगता है उतना नहीं है। तुम घर में क्या पहनते हो?" मैंने जवाब दिया, "निक्कर और बनियान।" वह बोली, "हां, तो मैं नहीं पहन सकती। अगर तुम हो तो पहन लूंगी, पर मम्मी-पापा के सामने नहीं। तुम्हें जैसे मन करता है तुम वैसे रहते हो, लेकिन मुझे दिन भर कुर्ती, लेगिंग, सलवार सूट ये सब पहनना होता है।"


मैंने पूछा, "तो क्या इसमें तुम कम्फर्टेबल नहीं हो?" उसने जवाब दिया, "हूं, लेकिन जितना शर्ट्स और टी-शर्ट में रहती हूं उतना नहीं हूं। जब मैं मायके जाती हूं तो पापा हो या मम्मी, आराम से निक्कर और टी-शर्ट पहनकर सोफे पर बैठ जाती हूं। लेकिन यहाँ मुझे मर्यादा में रहना पड़ता है, कहने को तो अपना घर है पर फिर भी ऐसा लगता है जैसे किसी पब्लिक प्लेस पर हूं।"


मुझे लगा, "यार, बात तो सही कह रही है ये।" मैंने इस बारे में अपने मां-पापा से बात की। पापा को कोई आपत्ति नहीं थी, पर मां राजी नहीं हुईं। उन्होंने कहा कि मेरा घर है, बहु को मेरे हिसाब से रहना होगा।


अब मैं इस दुविधा में था कि मां मेरी अपनी हैं जिन्होंने मुझे जन्म दिया है, पत्नी वो है जिसके साथ आगे की पूरी जिंदगी कटनी है। शादी को 8 महीने ही हुए हैं और पत्नी चाहती है कि मैं अलग रहूं, छोटे कपड़े पहनूं, मां चाहती हैं कि पत्नी उनके हिसाब से रहे। इस कारण दोनों में काफी अनबन होती है, जिसका खामियाजा मुझे भुगतना पड़ता है।


इसी दौरान मेरी नजर एक दिन अंजली के फोन पर गई और इंस्टाग्राम खुला हुआ था, जिसमें एक कपल जो IIT से पढ़ा-लिखा था, रील बना कर बता रहा था कि क्यों लोगों को अपने मां-बाप से अलग रहना चाहिए। एक बार स्क्रॉल किया तो नई रील आई, जिसमें बताया जा रहा था कि कैसे सास-ससुर के रहने से लड़कियों की आजादी छिन जाती है। तीसरी बार किया तो एक रील आई जिसमें बताया जा रहा था कि कैसे मां-बाप से अलग रहने पर आपस में प्यार बढ़ता है।


मैं तुरंत समस्या समझ गया कि वास्तव में दिक्कत प्राइवेसी या प्यार का नहीं है, दिक्कत है आजकल के क्रिएटर्स जो कुछ भी मन में आए वो बना देते हैं। मैंने सोचा, भले ही बना रहे हैं, पर बात तो सही कह रहे हैं। फिर मैंने अलग-अलग सोर्स से यह जानने की कोशिश की कि मां-बाप क्या चाहते हैं। जवाब मिला कि मां-बाप अपने बुढ़ापे में बस हमारा साथ चाहते हैं।


मैं स्तब्ध था और सोचा, किसी भी कीमत पर मां-बाप को छोड़ना सही नहीं है। बल्कि सही लड़की से शादी करना ज्यादा जरूरी है। और लड़की हो या लड़का, बच्चे या मां-बाप, उन्हें इन बेफिजूल के रील वाले कल्चर से अलग रखना चाहिए।


उस दिन के बाद से मैंने अपनी पत्नी को साथ में ऑफिस लाना शुरू किया। जब भी वह रील देखती, मैं उसे कोई काम दे देता, जिससे वह फोन नीचे रख देती। ऑफिस में बड़े डॉक्टर आते, उन्होंने भी रील से होने वाले नुकसान को बताया। धीरे-धीरे अंजली ने रील देखना बंद कर दिया और अलग घर में रहने या प्राइवेसी की समस्या भी खत्म हो गई। 


आज भी कभी-कभी उसे छेड़ने के लिए बोल देता हूं कि "अलग घर ले लेते हैं, तुम्हें छोटे कपड़े पहनने में दिक्कत होगी," तो वह मुझे आंखें दिखाने लगती है। दोस्तों, यह समस्या सभी के घर में है। एक बार जरूर देखिए कि यह मोबाइल अनजाने में हमारे परिवार, संस्कार और संस्कृति को तोड़ने का काम कर रहा है।

पार्वती ने न सिर्फ अपने परिवार का सम्मान बचाया, बल्कि समाज को भी यह सिखाया

 गाँव के किनारे बसा था एक छोटा सा परिवार, जिसमें रहती थी पार्वती। पार्वती का जीवन बेहद सरल था, उसका पति रमेश एक मजदूर था और दोनों अपनी छोटी-सी झोपड़ी में सुख-दुख साझा करते थे। गरीबी ने उनके जीवन को कठिन बना दिया था, लेकिन पार्वती की हिम्मत कभी नहीं टूटी। वह हर दिन चूल्हे पर लकड़ी जलाकर खाना बनाती थी, और लकड़ियाँ जुटाने के लिए अक्सर जंगल का रुख करती थी।


पार्वती ने एक दिन सोचा कि बरसात के मौसम में लकड़ी इकट्ठा करना कठिन हो जाएगा, इसलिए उसने जंगल से थोड़ी ज्यादा लकड़ी इकट्ठा करने का मन बनाया। वह अपनी कुल्हाड़ी उठाकर जंगल चली गई। वहाँ पहुँचकर उसने एक हरे पेड़ की मजबूत डाल पर नज़र डाली और उसे काटने लगी। पेड़ की डाल आधी कट चुकी थी, तभी अचानक वहाँ वन अधिकारी, सुरेश, आ पहुँचा। सुरेश का काम था जंगल की सुरक्षा करना, लेकिन उसकी नीयत कुछ और ही थी।


सुरेश ने पार्वती को डांटते हुए कहा, "तुम्हें पता है कि हरा पेड़ काटना अपराध है? मैं तुम्हारे खिलाफ शिकायत दर्ज करूँगा, और तुम्हें सजा होगी।"


पार्वती ने विनम्रता से जवाब दिया, "साहब, गुस्सा मत होइए। यह डाल अब तक आधी कट चुकी है और बस गिरने ही वाली है। आप मुझे नीचे उतरने दीजिए, फिर जो करना है कर लीजिए।"


सुरेश ने उसकी बात मान ली और डाल को खींचकर गिरा दिया। पार्वती नीचे उतर आई और फिर बोली, "साहब, पहली बार है, गलती माफ कर दीजिए। मैं पेड़ नहीं काट रही थी, बस डाल ही तो काटी है।"


सुरेश की नजरें पार्वती के गठीले और मेहनती बदन पर टिक गईं। उसकी नीयत अब साफ दिखाई देने लगी। उसने पार्वती से कहा, "अगर तुम थोड़ी देर मेरे साथ बिताओ और मुझे खुश कर दो, तो मैं कोई शिकायत नहीं दर्ज करूँगा। तुम जितनी लकड़ी चाहो काट सकती हो, मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा।"


पार्वती ने तुरंत अपनी सख्त और ईमानदार नजरों से सुरेश की ओर देखा। "साहब, आप मुझे गलत समझ रहे हैं। मैं ऐसी औरत नहीं हूँ। मेरे पास दो बच्चे हैं, और मैं अपने पति को धोखा नहीं दे सकती।"


सुरेश ने हंसते हुए कहा, "आजकल बहुत सी औरतें अपने घर से बाहर ही आनंद लेती हैं। मैं तुम्हें कुछ पैसे भी दूँगा, इससे तुम्हारी गरीबी दूर हो जाएगी।"


पार्वती ने उसकी बात का तीखा जवाब दिया, "साहब, हम गरीब हैं, लेकिन हमारी इज्जत सबसे बड़ी दौलत है। हम लालच में नहीं पड़ते। जो लोग लालची होते हैं, वे ही ऐसे काम करते हैं, चाहे वे गरीब हों या अमीर। मेरे पास जो है, वही मेरे लिए काफी है।"


सुरेश की नीयत अब साफ थी। उसने धमकाते हुए कहा, "इसका मतलब तुम मेरी बात नहीं मानोगी? अब मुझे कुछ करना ही होगा।"


पार्वती ने साहस के साथ जवाब दिया, "आप मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। जब मेरे हाथ इतनी भारी लकड़ियाँ काट सकते हैं और सर पर उठा सकते हैं, तो मैं अपनी सुरक्षा भी कर सकती हूँ। और रही बात कार्यवाही की, तो याद रखिए कि आप खुद इसमें शामिल हैं। मैं डाल काटी हूँ, लेकिन उसे गिराने वाले आप हैं।"


सुरेश पार्वती की दृढ़ता और आत्मसम्मान के आगे हार गया। उसने पार्वती को छोड़ दिया और वहाँ से चला गया, लेकिन पार्वती का आत्मविश्वास और उसकी सच्चाई का प्रकाश जंगल में छा गया। इस घटना ने साबित कर दिया कि सच्चाई और आत्मसम्मान से बढ़कर कुछ नहीं होता। पार्वती ने न सिर्फ अपने परिवार का सम्मान बचाया, बल्कि समाज को भी यह सिखाया कि कोई भी महिला अपनी इज्जत और गरिमा की रक्षा करने में सक्षम होती है, चाहे उसकी स्थिति कैसी भी हो।


पार्वती का यह साहसिक कदम उसके गाँव में एक मिसाल बन गया, और उसकी कहानी दूर-दूर तक लोगों के दिलों में गूंजने लगी।

 हो सकता है मैं कभी प्रेम ना जता पाऊं तुमसे.. लेकिन कभी पीली साड़ी में तुम्हे देखकर थम जाए मेरी नज़र... तो समझ जाना तुम... जब तुम रसोई में अके...