"तुमने हमेशा कहा कि मैं तुम्हारी बात नहीं समझता…
पर क्या तुमने कभी ये सोचा,
कि समझने के लिए भी तो कुछ कहा जाना चाहिए ?
तुम चुप रही, और मैं हर चुप्पी को तोड़ने की कोशिश करता रहा।
तुमने अपनी थकावट का हवाला दिया,
और मैंने अपनी बेचैनी को तकिए में छुपा लिया।
तुमने कहा, ‘मुझे स्पेस चाहिए।’
और मैंने अपनी पूरी दुनिया ही तुम्हारे लिए खाली कर दी…
पर जब तुम गई,
तो वो दरवाज़ा भी बंद कर गई
जिस पर मैंने उम्मीद टाँग रखी थी।
अब अगर कभी लौटने का मन हो भी,
तो दस्तक मत देना —
क्योंकि मैं अब आवाज़ नहीं पहचानता…"
:सुनिल राठौड़ बुरहानपुर
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