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Saturday, 18 December 2021

दुख:द कहानी पति-पत्नी की.

की घटना 😌😔

#राधिका और नवीन को आज तलाक के कागज मिल गए थे। इसके साथ ही कोर्ट से बाहर निकला। पूर्वजों के साथ थे और उनके चेहरे पर विजय और सुकून के निशान साफ ​​झलक रहे थे। चार साल की लंबी लड़ाई के बाद आज फैसला हो गया था।
दस साल हो गए थे शादी को मगर साथ में छह साल ही रह पाए थे। 
चार साल तो तलाक की #कार्यवाही में लग गए।
राधिका के हाथ में दहेज के समान की लिस्ट थी जो अभी नवीन के घर से लेना था और नवीन के हाथ में गहनों की लिस्ट थी जो राधिका से लेने थे।

साथ ही कोर्ट का यह आदेश भी था कि नवीन दस लाख रुपए की राशि एकमुश्त राधिका को चुकाएगा।

राधाकृष्णा और नवीन एक ही क्षण में प्रसन्न नवीन के घर पहुंचे। #दहेज में दिए गए समान की निशानदेही राधािका को करना था।
इसलिए चार साल बाद #ससुराल जा रही थी। आखिरी बार बस उसके बाद कभी नहीं आना था उधर।

सभी रिश्तेदार अपने अपने घर जा चुके थे। बस तीन प्राणी बचे थे। नवीन, राधािका और राधािका की माता जी।

नवीन घर में अकेला ही रहता था। मां-बाप और भाई आज भी गांव में ही रहते हैं। 

राधिका और नवीन का इकलौता बेटा जो अभी सात साल का है, कोर्ट के फैसले के अनुसार बलिग होने तक वह राधिका के पास ही रहेगा। नये महीने में एक बार उससे मिल सकता है।
घर में माहौल करते ही पुरानी यादें ताज़ा हो गई। कितनी मेहनत से संतुष्ट थी ऐसी राधिका ने। एक एक चीज़ में उसकी जान बसी थी। सब कुछ उसकी आँखों के सामने बना हुआ था। एक ईंट से धीरे-धीरे घरों को पूरा होते देखा था उसने।
सपनों का घर वही था। कितनी #शिद्दत से नवीन ने उसके सपने को पूरा किया था।
नवीन मेहनतारा सा पक्षियों पर पसर गया। बोला "ले लो जो कुछ भी चाहिए मैं तुझे नहीं रोकूंगा"
राधािका ने अब गौरव से नवीन को देखा। चार साल में कितना बदल गया है। बालों में सफेदी गूंजने लगी है। शरीर पहले से आधा रह गया है। चार साल में चेहरे की रौनक गायब हो गई।

वह #स्टोर रूम की तरफ अधिकतर जहाँ उसके दहेज का अधिकतर समान पड़ा था। सामान पुराने फैशन का था इसलिए कबाड़ की तरह स्टोर रूम में डाल दिया गया था। मिला भी कितना थाहे द। प्रेम विवाह था प्रेम का। घर वाले तो मजबूरी में साथ हुए थे। 
प्रेम विवाह तभी हुआ था जब नजर लग गई किसी की। क्योंकि प्रेमी जोड़ी को हर कोई टूटता हुआ देखना चाहता है। 
बस एक बार पीकर बहक गया था नवीन। हाथ उठा बैठा था उसपर। बस वो गुस्से में मायके चली गई थी। 
फिर चला था तन्निशिक्षण का दौर । इधर नवीन के भाई भाभी और उधर राधािका की माँ। कोई बात नहीं, कोर्ट तक जा पहुंची और तलाक हो गया।

न राधाकि लोटी और न नवीन लाया गया। 

राधािका की माँ बोली "तेरा सामान कहाँ है? इधर तो नहीं दिखता। बेचा दिया होगा इस शराबी ने ?"

"चुप रहो #माँ" 
राधाकिशा को ना जाने क्यों नवीन को उसके मुँह पर शराबी कहना अच्छा नहीं लगा।

फिर स्टोर रूम में पड़े सामान को एक कर लिस्ट में मोड़ दिया गया। 
बाकी दुकानों से भी लिस्ट का सामान उठा लिया गया।
राधिका ने सिर्फ अपना सामान लिया, नवीन के समान को छुवा भी नहीं। फिर राधिका ने नवीन को गहनों से भरा बाग पकड़ा दिया। 
नवीन ने बैग वापस राधिका को दे दिया " रखलो, मुझे नहीं चाहिए काम आयेंगे तेरे मुसीबत में ।"

गहनों की कीमत 15 लाख से कम नहीं थी। 
"क्यूँ, कोर्ट में तो तुम्हारे वकील कितनी दफा गहने-गहने चिल्ला रहा था" 
"कोर्ट की बात कोर्ट में खत्म हो गई, राधाकि। तो मुझे भी दुनिया का सबसे बुरा जानवर और शराबी साबित कर दिया गया है।"
सुन राधािका की माँ ने नाक भोंसों दिया।

"नहीं चाहिए। 
वो दस #लाख भी नही चाहिए"

 "क्यूँ?" नवीन चट्टानों से खड़ा किया गया।

"बस यूँ ही" राधिका ने मुँह फेर लिया।

"इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे कटोगी? ले जाओ,,, काम आएँगे।"

इतना कह कर नवीन ने भी मुंह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया। शायद आँखों में कुछ उतरना होगा जिसे छिपाना भी जरूरी था।

राधािका की माता जी गाड़ी वाले को फोन करने में व्यस्त थी।

राधिका को मौका मिल गया। वो नवीन के पीछे उस कमरे में चली गई।

वो रो रहा था। अजीब सा मुँह बना कर। जैसे भीतर के सैलाब को दबा दबा की जद्दोजहद कर रहा हो। राधिका ने उसे कभी रोते हुए नहीं देखा था। आज पहली बार देखा ना जाने क्यों दिल को कुछ सुकून सा मिला।

मगर ज्यादा भावुक नहीं हुई।

सादे अंदाज में बोली "इतनी फिक्र थी तो तलाक क्यों दिया?"

"मैंने नहीं तलाक लिया" 

"दस्तखत तो तून भी किया"

"माफ़ी नहीं चाह सकते थे?"

"मौका कब दिया तुम्हारे घर वालों ने। जब भी फोन किया काट दिया।"

"घर भी आ सकते थे"?

"हिम्मत नहीं थी?"

राधाका की माँ आ गई। वो उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गया। "अब क्यों मुँह लग रही है इसके? अब तो रिश्ता भी खत्म हो गया"

मां-बेटी बाहर बरामदे में आटे पर सूखी गाड़ी का इंतजार करने लगी। 
राधािका के भीतर भी कुछ टूट रहा था। दिल बैठा जा रहा था। वो सुन्न सीटेक्स जा रही थी। जिस प्रथा पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी। कैसे कैसे बचत कर के उसने और नवीन ने वो सोफा खरीदा था। पूरे शहर में घूमी तब यह पसन्द आया था।"
 
फिर वह तुलसी के केड़े वाले पौधे पर नजर आईं। कितनी शिद्दत से देखभाल की जाती थी। वह तुलसी के साथ भी घर छोड़ गया।

घबराहट और ख़ुशी तो वह फिर से उठ कर भीतर चली गई। माँ ने पीछे से पुकारा मगर उसने अनसुना कर दिया। नवीन बेड पर उलटे मुंह पड़ा था। एक बार तो उसे दया आई उस पर। मगर वह जाना था कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भावुक नहीं होना है। 

उसने सरसरी नजर से कमरे को देखा। पूरा कमरा अस्त व्यस्त हो गया है। कहीं कांही तो मकड़ी के जाले झूल रहे हैं।

उसे स्पाइडर के जाल से कितनी नफरत थी?

फिर उसकी नज़र चारों ओर और लगी उन फोटो पर जिनमे वो नवीन से माथे पर मुस्करा रही थी।
कितने अच्छे दिन थे वो।

माँ बहुत में फिर आ गई। हाथ पकड़ कर फिर उसे बाहर ले गया।

बाहर गाड़ी आ गई थी। सामान गाड़ी में डाला जा रहा था। राधािका सुन सी बैठी थी। नवीन कार की आवाज सुनी गई। 
अचानक नवीन कान पकड़ कर घुटनों के बल बैठ गया।
बोला--"मत जाओ,,, #माफ कर दो"
शायद यही वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए चार साल से तड़प रही थी। सब्र के सारे बांध एक साथ टूट गए। राधािका ने कोर्ट के फैसले का कागज निकाला और रिकार्ड किया। 
और माँ कुछ कहती है उससे पहले ही नवीन से। साथ में बुरी तरह रोते जा रहे थे।
दूर खो राधाका की माँ समझ गयी कि 
कोर्ट का आदेश दिलों के सामने #कागज से ज्यादा कुछ नहीं।
काश उन्हें पहले मिलने दिया होता?

                  अगर माफ़ी इंसान से ही #रिश्ते मौत से बच जाए, तो माफ़ी मांगनी चाहिए।😷

 हो सकता है मैं कभी प्रेम ना जता पाऊं तुमसे.. लेकिन कभी पीली साड़ी में तुम्हे देखकर थम जाए मेरी नज़र... तो समझ जाना तुम... जब तुम रसोई में अके...