जिन लोगों ने मेरे साथ में धोखा किया।(मुझे दुख पहुंचाया)
उनकी लिस्ट विवरण के साथ इस इस प्रकार है।
1) उत्तम शामराव चौधरी।
2) रामेश्वर राठौड़ गब्बू।
3) देवराव चौहान,(मेरा साडू)
4) हीरालाल नंदू चौहान।
5) रामकिशन रसाल राठौड़।
6)मधुकर झाड़ू पान पाटील
7) संजय सुभाष चौधरी।
8) आसाराम मार्को जसोदी
9) शिवा मधुकर चौहान।
10) मांगीलाल तारापार्टी।
11) रविंद्र खेमसिंह राठौड़।
12)अमरसिंह ऊखा राठौड़
13) सुमन (Sis) अमरसिंह।
14) Polition Magilal Zamu
15)पूनम मोरसिंह राठौड़।
16) देवराव चौहान (साडू)
17) केशव हीरालाल चौहान।
18) विजय पाटिल सर, शिरपुर।
19)अर्जुन हरी चौहान एंड पिनेश हेमराज चौहान।
20) गुरुदयाल बाबू पवार,
21) जीवन लक्ष्मण चौहान।
22) संजय दोला राठौड़
23) भावा दौला राठोड
24) नंदू लक्ष्मण चौहान।
25) राजू झामु चौहान।
26)अमोल प्रह्लाद पाटिल।
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विवरण
1) उत्तम शामराव चौधरी।
मेरे बड़े भाई राजेश की शादी की तारीख निकल गई थी और शादी करने के लिए पैसा कम पड़ रहा था।उस समय उत्तम चौधरी ब्याज से पैसे बांटता था। मैंने उससे अपनी प्रॉब्लम बता कर ब्याज से पैसे लेने की बात कही तो उसने मुझे मना कर दिया।एक-दो दिन बाद उसके सूत्रों ने मुझे बताया कि वहां तेरे पास से
पानी के लिए कुआं खोदने कि,जमीन लेना चाहता है।मैंने तुरंत हां कर दिया। वैसे भी मुझे पैसों की आवश्यकता थी।क्योंकि शादी की तारीख नजदीक आ रही थी और मेरे पास पैसा नहीं था।
जब जमीन के सौदे के लिए बैठे।तो बैठक में तय हुआ कि ₹50000 में। सिर्फ एक आरा (1000 स्केयर फिट)कुआं खोदने के लिए ही जमीन देना है।जब मैं रजिस्ट्री की जानकारी लेने ब्रानपुर पहुंचा तो मुंशी ने मुझे कहा कि एक आरे की रजिस्ट्री नहीं होगी। कम-से-कम 10 आरे की रजिस्ट्री होगी।जब मैंने यह बात घर पर बताई तो घर वालों ने मुझे साफ मना कर दिया।
फिर दोबारा हमारे घर में बैठक हुई। इस बैठक में हीरालाल, नंदू चौहान, करतार राठौड़ थे।
तो वहां पर उत्तम चौधरी मेरे घर वालों को समझाने लगा कि मुझे 10आरे की आवश्यकता नहीं है। मात्र एक आरे की ही आवश्यकता है।और वैसे भी वहां 10
आरे लेकर मैं क्या करूंगा, मुझे वाहा खेती करने तो आना नहीं है। मुझे सिर्फ कुए के लिए जगह चाहिए।मेरे लिए एक आरा बहुत है। मेरे घर वालों के मना करने के बावजूद मैंने उसकी बात सुनी।और उसके कहने के मुताबिक मैंने उसको 10आरे की रजिस्ट्री कर दी ।रजिस्ट्री करने के कुछ ही दिनों बाद उसने दोस
10 आरे पर कब्जा कर लिया।और कहने लगा कि मैंने तुमसे 10 जमीन खरीदी है।देखो मेरे पास में रजिस्ट्री भी है।जब मैं बीच वाले व्यक्ति से कहने लगा कि देखो मेरे साथ में उत्तम काका धोखा कर रहा है तो उन्होंने मुझे कहा, तुम तुम्हारा देखो हमें कुछ नहीं पता। और कानूनी दायरे से मैं उसका कुछ भी नहीं कर सकता।इतना कुछ होने के बाद भी मैंने उनसे कहा कि काका जी जब भी आप यह जमीन बेचोगे, मुझे जरूर बताना।और फिर दोबारा उसने मेरे साथ में धोखा किया, मुझे बिना बताए जमीन बेच दी।मैं आज भी उस जमीन को देखता हूं तो मेरे साथ में किया गया धोखा मुझे याद आ जाता है।इसलिए मैं खेत में बहुत कम जाता हूं।
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2) रामेश्वर(गबु)राठौड़
शुरुआत गहरी दोस्ती से होती है। आलम ऐसा था कि दिन के 24 घंटे में से 15 घंटे साथ में बिताया करते थे।हर एक प्राइवेट से प्राइवेट बाद भी एक दूसरे को शेयर किया करते थे। हम एक दूसरे को जय-वीरू से भी बढ़कर समझते थे।एक दिन अचानक मेरे दिमाग में एक आइडिया आया।और मैंने गब्बू से कहा, क्यों ना हम अपनी दोस्ती को बिजनेस पार्टनर में बदल ले। जिससे हम पैसा भी कमाएंगे और खूब टाइम साथ में रहकर इंजॉय भी करेंगे।गब्बू ने मुझसे पूछा, वह कैसे और कौन सा बिजनेस करेंगे।मैंने उससे कहा देख गाने सुनने का हम दोनों को बहुत शौक है।तो अपन दोनों मिलकर।डीजे साउंड का काम चालू करते हैं।
और वैसे भी गब्बू मेरी कोई बात का मना नहीं करता था।उसने तुरंत हां कह दीया।मैंने उससे कहा, हम पार्टनरशिप में बिजनेस तो करेंगे लेकिन हमारी दोस्ती में कोई दरार नहीं पढ़नी चाहिए क्योंकि जब घर में सगे भाई कि नहीं बनती, तो हो सकता है। बिजनेस में अपनी भी कुछ अनबन हो जाए और इस खराब स्थिति का भी हमें सामना करना है।जिस दिन मुझे लगेगा।या फिर तुझे लगेगा कि हम दोनों के बीच में कुछ अच्छा नहीं चल रहा है उस परिस्थिति में मुझे बिंदास बता देना।मैं तुझसे बिना कोई सवाल जवाब किए पार्टनरशिप से बाहर निकल जाऊंगा।क्योंकि मेरी व्यक्तिगत सोच थी। मैं तो भविष्य में कोई भी बिजनेस या जॉब करके .अपना और अपने परिवार का पेट पाल लूंगा लेकिन मेरा दोस्त गब्बू कम पढ़ा लिखा है इसलिए मैं यहां बिजनेस उसको दे दूंगा।.मैंने पार्टनरशिप करने से पहले नेगेटिव पॉजिटिव दोनों प्वाइंट उसको समझा दिए थे।हम दोनों के बीच में फूट डालने वाले बहुत सारे आएंगे लेकिन हमें किसी की बात नहीं सुननी है।.....
हम दोनों के पास में पैसों की बहुत प्रॉब्लम थी। हम लोग रोज हनुमान मंदिर पर बैठ कर।विचार विमर्श किया करते थे।लगभग एक से डेढ़ साल तक हमसे पैसों का जुगाड़ नहीं लग पाया था।
फिर उसी दरमियान मुझे नरेंद्र पवार का कॉल आया और कहने लगा। क्या आप जॉब करने की इच्छुक हो वैसे भी हमारे पास डीजे साउंड खरीदने के लिए पैसे नहीं थे तो मैंने जॉब करना उचित समझा।और फिर मैं महिंद्रा एंड महिंद्रा कंपनी में एंकरिंग के जॉब के लिए चला गया।
उस के बाद गबु मुझसे फोन पर रोज बात किया करता था ।फोन पर भी हमारी बिजनेस की प्लानिंग चलती थी। मैंने उनसे कहा, मैं जॉब करके थोड़े बहुत पैसे इकट्ठा कर लेता हूं।और फिर मैं वापस आकर हम दोनों साथ में डीजे साउंड सिस्टम चालू करेंगे।जॉब पर लगे मुझे तीन से चार महीने ही हो रहे थे कि गब्बू मुझसे कहने लगा कि तू वापस आ जा हम दोनों यहीं पर कुछ जुगाड़ करते हैं। तेरे बिना यहां कुछ नहीं हो सकता।मैंने उससे कहा, मैंने कंपनी वालों के साथ में एग्रीमेंट किया है। कंपनी वाले मुझे आने नहीं देंगे यह जाब छोड़ कर।गब्बू ने मुझसे कहा, तू कुछ भी कर और वापस आजा।
गब्बू को मैंने एक आईडिया दिया फोन पर मैंने कहा।तू कल मेरे बॉस को फोन लगाकर बोल कि सुनील की दादी शांत हो गई है। उसको अर्जेंट घर पर भेज दो तो मुझे घर पर भेज सकते हैं।और जैसा मैंने कहा, गब्बू ने वैसा ही किया। हम लोग प्लान में कामयाब हो गए और मैं जॉब छोड़ कर।घर वापस आ गया।उस दोरान मैं एलआईसी एजेंट का भी काम करता था। अब 24500 के समथिंग मेरे पास पैसे थे और हमें डीजे सिस्टम खरीदने के लिए लगभग ₹100000 की जरूरत थी।फिर मैंने गब्बू के कहने पर एक व्यक्ति (ईश्वर राठोड सातपायरी)।से।60000 रुपए ₹5 परसेंट से लिए।उसने मेरे खाते में इस दिनांक ..............को पैसे डाले।और फिर हम लोग अरुण पवार सर को लेकर इंदौर गए।इतने पैसे में ही हमने डीजे का सामान खरीदा।अब हमारे पास में ना ही जंनलेटर था ना ही कोई दुकान थी और ना ही कोई गाडी थी।अरुण काका के रिफरेंस से हमें किराए का रूम मिल गया।अब हम लोग जनरेटर और गाड़ी किराए से लेकर डीजे साउंड का काम चालू कर दिया।
उस समय गांव में जनरेटर नहीं होने के कारण हमें डोईफोडीया से जनरेटर किराए से लाना पड़ता था।शादी के आर्डर के 1 दिन पहले।और जैसे ऑडर खत्म हुआ उसे वापस वही पहुंचाने जाना पड़ता था।कितनी कठिनाइयों से हम दोनों ने दिन निकाले और मेहनत करके धीरे-धीरे हमने अपना खुद का जनरेटर खरीद लिया।अब शादी ब्याह के ऑर्डर भी हमें अच्छे से मिलने लगे थे।धीरे धीरे डीजे का सामान भी बड़ा लिया ।डीजे साउंड का हिसाब किताब मेरे पास में ही था क्योंकि गबु को मुझ पर बहुत भरोसा था।उसके पास में जो भी पैसे आते वह मेरे पास में दे देता था।और कुछ ही दिनों बाद में हमने पुराना लैपटॉप भी खरीद लिया।उस समय डीजे ऑपरेटिंग सिस्टम पर मैं खुद ही बैठता था।हम दोनों का काम में बहुत मन लग गया था। हम लोग अच्छे से काम करने लग गए थे।मेरे पास में पैसे का लेनदेन होने के कारण में हर एक बारीक से बारीक चीज़ लिखकर रख लिया करता था।क्योंकि लेनदेन के हिसाब किताब में हमारा विवाद ना हो इसलिए मैं हर एक चीज को लिखकर रख लिया करता था।
और शायद यही बात गब्बू को पसंद नहीं थी। वैसे उसने मुझे कभी बताया नहीं कि तू बारीक बारीक चीज क्यों लिख लेता है.3 साल हमने डीजे बहुत अच्छे से चला आया।और 3 साल बाद धीरे-धीरे गब्बू की नाराजगी मुझसे बढ़ने लगी।मैंने बहुत बार उससे पूछने की कोशिश की, लेकिन उसने मुझे कभी कुछ बताया ही नहीं।उसने मुझसे बात करना भी कम कर दिया था।बिना बात किए भी हमने 1 साल साथ में काम किया।शायद उसकी इच्छा थी कि मुझे पार्टनरशिप से बाहर निकाले, लेकिन वह मुझे बोल नहीं पा रहा था।कभी-कभी तो मुझे बिना बताए ही आर्डर पर जाने लग गया।धीरे धीरे मुझे अपने आप में ही गिल्टी फील होने लगी।
शायद गब्बू मुझ से छुटकारा पाना चाहता है। मुझसे पार्टनरशिप से दूर होना चाहता है और मैं उसके पीछे पड़ा हूं।फिर एक दिन मैंने उससे कहा कि गब्बू अपना-अपना हिसाब किताब कर लेते हैं।लेकिन वहां कभी हिसाब किताब करने के लिए बैठता ही नहीं।फिर एक दिन मैंने उसको जबरदस्ती हिसाब करने के लिए बैठाया,जब हमने हिसाब किया तो मेरे पैसे डीजे सिस्टम के तरफ ₹25000 निकले।जो मैंने मेरे जेब से खर्च किए थे।गब्बू को मेरे हाथ का हिसाब पसंद नहीं आया तो उसने उसके भाई विजय राठौड़, उसके जीजा जी और दिनेश चौहान को बुला कर हिसाब करवाया।उनके द्वारा हिसाब करने पर गब्बू के तरफ मेरे ₹35000 कैश निकला।मैंने उनके द्वारा हिसाब किए हुए की कॉपी में सिग्नेचर ले ली और मेरे पास में कॉफी आज भी पड़ी है।और डीजे की पार्टनरशिप का पैसा तो हमने अभी जोड़ा ही नहीं है। जब मैं डीजे सिस्टम से बाहर निकला उस समय लगभग ढाई लाख रुपए की प्रॉपर्टी थी हमारे पास में।
जैसे 1लेपटॉप,2मिक्सर 2,मशीन
1जनरेटर,18 इंची दो स्पीकर,
15 इंची4स्पीकर,कॉर्डलेस माइक एवम अन्य ऐसीसरीज।जब मैं पार्टनरशिप से बाहर निकला तो गब्बू ने मुझे ₹1 भी नहीं दिया। ना ही उसने मेरे जेब से खर्चा हुआ पैसा दिया।ना ही सिस्टम में से कोई हिस्सा दिया.उसने मेरे बारे में कुछ भी नहीं सोचा और मुझे पार्टनरशिप से बाहर निकाल दिया।और मैं भी बिना किसी को कोई शिकायत किए।पार्टनरशिप से बाहर हो गया।
आज तक नहीं मैंने उससे कभी पैसे मांगे और ना ही उसने मुझे कभी पैसे देने की बात कही।
लेकिन मुझे एक बात का अफसोस हमेशा था, है,और रहेगा,।आखिर मेरी गलती क्या थी?
उसने आज तक मुझे नहीं बताया।शायद किसी और के बारे में अच्छे विचार रखना ही बेवकूफी होती है और वह बेवकूफी मैंने की है।
बातें तो हम एक दूसरे से आज भी करते हैं लेकिन मेरे नजर में वह दोस्ती वाली इज़्ज़त बिल्कुल भी नहीं रही।गब्बू मुझसे सिर्फ एक बार बोल देता कि हमारी एक दूसरे से नहीं बन रही। मैं खुशी-खुशी से डीजे सिस्टम से बाहर हो जाता। उससे ₹1 भी नहीं मांगता और मैं उससे कभी नाराज भी नहीं होता लेकिन उसने तो मुझे.जिस प्रकार चाय में से मक्खी निकालकर फेंकते हैं वैसा उसने सिस्टम से मुझे बाहर फेंक दिया।..भविष्य में किसी के साथ में पार्टनरशिप करने की बात तो दूर उसका ख्याल भी दिमाग में नहीं ला पाऊगा।
लिखने की इच्छा तो बहुत कुछ है लेकिन पढ़ने वाला बोर हो जाएगा शायद मेरी सच्ची कहानी से क्योंकि आजकल सच्ची कहानी किसी को पसंद नहीं आती
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3) हिरालाल नंदू चौहान
एक दिन अरुण पवार सर की दुकान पर हीरा व्यापारी और अरुण पवार एक दूसरे से बात कर रहे थे। उतने में ही हीरा को फोन आता है उसके साले का.और वहां हीरा व्यापारी से बोलने लगता है कि कोई लड़का शादी के लिए हो तो आपके तरफ देखना।और इतने में ही उनकी नजर मेरे पर पड़ती है। मैं अमोल पाटील की दुकान पर बैठा था। वह मुझे बुलाते है और पूछते हैं क्या तू शादी करेगा?जैसे ही मैंने हां कहा, वैसे उन्होंने व्हाट्सएप पर फोटो बुलाकर मुझे दिखा दिया।मुझे फोटो पसंद आ गया। तीन-चार दिन बाद मैं अपने दोस्त पवन चौधरी को लेकर नागपुर चला गया लड़की देखने!
मुझे लड़की पसंद आ गई और कुछ ही दिन बाद मैंने शादी कर ली।तीन चार महीने शादीशुदा जीवन मेरा बहुत अच्छा चला ।
और मैं हीरा व्यापारी की मन ही मन बहुत इज्जत करने लगा। क्योंकि जहां मेरा इतना बड़ा परिवार होने के बाद में किसी ने मेरी शादी के बारे में नहीं सोचा ओर मेरी कोई शादी की बात नहीं कर रहा था, वहां पर हीरा व्यापारी ने मेरी करवा कर मेरे नजरों में एक महान इंसान बन गए।
मैंने गांव में एक जमीन देख रखी थी और वहां मुझे बहुत पसंद थी मैं उस जमीन को खरीदना चाहता था लेकिन मेरे पास में पैसा नहीं था।फिर मैंने सोचा इस जमीन को कोई और ना खरीद ले इसलिए मैंने मेरे साले साहब (निवेश पवार) को वहां जमीन खरीदने कि सलाह दी। मेरे साले( नितेश पवार) ने मुझे कहा कि यहां जमीन खरीद तो लुगा मै
लेकिन तू किसी को बताना मत।खासकर के हीरालाल चोहान और देवराव चौहान(मेरा बड़ा साडू) को बिल्कुल भी नहीं पता चलना चाहिए।
उनको अगर पता चल गया तो देवराव चौहान मुझे जमीन खरीदने नहीं देगा।जैसा नितेश भाई ने मुझे कहा, मैंने ठीक वैसा ही किया और वहां जमीन मैंने मेरे साले को दिलवा दी।जब कुछ दिन बाद यह जमीन की बात मेरे साढू को पता चली तो उसने हीरा व्यापारी को मेरे बारे में बढ़ चल कर।उलटी सीधी बात करने लगा।मेरे साढू ने हीरा व्यापारी से कहा कि तूने सुनील की शादी करवाई और सुनील ने तेरे को जरा सी बात भी नहीं बताई।उसने नितेश को जमीन दिला दी और तेरे कानों कान को खबर नहीं चलने दी।यह सुनकर हीरालाल को लगा कि सही तो बात है। मैंने सुनील की शादी करवाई और सुनील ने मेरे को जमीन खरीदी की बात बताई भी नहीं।बस इतनी सी बात और उन दोनों ने मिलकर मेरा शादीशुदा जीवन पूरा बर्बाद कर दीया उन दोनों ने मिलकर मेरे ऊपर इतने गंदे गंदे इल्जाम लगाए की मैं आपको बता भी नहीं सकता। मेरा परिवार एक दूसरे से अलग हो गया।तब से लेकर आज तक हीरालाल और उसका परिवार मेरे परिवार को बर्बाद करने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ते हैं।मेरे ससुराल में जाकर मेरी इज्जत की धज्जियां उड़ाते हैं और बोलते हैं सुनील ने आपको जमीन दिलाकर फंसा दिया है जो जमीन आपने बोदरली में खरीदी है, उसे कोई आधे दाम में भी नहीं खरीदेगा। वहां जमीन मैंने मेरे साले साहब को ₹961000 में दिलाई थी 07/09/2017 को (रकबा 0.30 आरा) बार-बार मेरे साले साहब और ससुर को फोन लगाकर बोलते कि सुनील तुम्हारी जमीन में से पैसे खा गया ।और 3 साल बाद जब मैंने जमीन बेचने निकाली तो फिर मेरे साले साहब को फोन लगाकर हीरालाल का लडका केशव बोलने लगा कि जमीन के भाव बहुत ज्यादा है और जमीन कमी भाव में बेचना मत।जबकि मैं मेरे साले साहब को 3 साल में डबल रकम दिला रहा था। लेकिन हीरा और उसका परिवार नहीं चाहता था कि मेरे कारण मेरे साले को कोई फायदा पहुचे।बार बार फोन लगाकर या उसके घर जाकर बोलते कि सुनील से पैसे का व्यवहार करना मत वहां बहुत बुरा लड़का है और कैरक्टरलेस भी है।मेरे साढू ने और हीरालाल ने मेरा जीना हराम कर रखा है।बहुत सारी ऐसी बातें हैं जो मैं आपको पब्लिकली नहीं बता सकता। उन्होंने मुझे कितना दुख दिया है
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5) रामकिशन रसाल राठोड & मधुकर झाड़ू
बात ऐसी है कि,हमको तो अपनो ने लूटा गैरों में कहां दम था। यह बिल्कुल मेरे ऊपर ही सूट करता है। मैंने बोदरली में एक स्कीम लॉन्च की थी।और वह स्कीम में गांव के लगभग सभी जाति धर्म के लोगों को लिया गया था।मेरा स्कीम लॉन्च करने का उद्देश्य था कि ,इस स्कीम से कमाए हुए पैसे में हम गांव में एक भव्य मंदिर निर्माण करेंगे और जो पैसा बचेगा, वह आपस में बांट लेंगे।4 महीने का प्लान था। 4 महीने में हमने पैसे भी कमाए और मंदिर भी बनाया, (बाबा रामदेव परिसर. में शिव जी का मंदिर )लेकिन हम लोग जो पैसा कमा रहे थे वह रामकिशन रसाल और मधुकर झाड़ू इन दोनों की आंख में हम लोग खटक रहे थे। इन लोगों ने हमारे खिलाफ पूरे गांव वालों को भड़काना चालू कर दिया। लेकिन फिर भी गांव वाले हमारे साथ में थे।फिर उन्होंने हमारे खिलाफ में पुलिस कंप्लेंट कर दी। मीडिया वालों को बुलाया पत्रकारों को बुलाया।मीडिया वालों ने हमारे खिलाफ खबरें छापनी शुरू कर दी।मीडिया वालों के साथ मिलकर हमारे खिलाफ में केस फाइल कर दीया। लोगों को पता चला जैसी हमारे ऊपर केस फाइल हुआ। हमारे मार्केट के पैसे भी डूबने लगे और हमारे पास जितना पैसा कमाया था, वह भी पूरा बर्बाद हो गया और और हमारे घर से पैसे खर्च हुए हमारे ऊपर कलंक भी लगा और हमारी पूरी जिंदगी बर्बाद हो गई। इन दो लोगों के कारण इनको दो लोगों को जिंदगी भर में कभी नहीं भूल पाऊंगा ना कभी माफ करूंगा।
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6 ) संजय सुभाष चौधरी।
संजय चौधरी एलआईसी एजेंट है।वैसे तो मेरा इस इंसान से कोई लेना देना नहीं है। ना हमारी हाय हेलो है ना राम राम श्याम श्याम है।मेरे घर की आर्थिक परिस्थिति बहुत खराब होने के कारण मैं पढ़ाई नहीं कर पा रहा था और मेरे पास में पैसे नहीं थे इसलिए।सन 2009 में मैं भी एलआईसी एजेंट बन गया।जैसे ही मैं एलआईसी एजेंट बना संजय चौधरी ने मुझे अपना दुश्मन समझ लिया।बिना कोई कारण के मेरी बुराई मेरे कस्टमर के सामने करने लगा। कुछ मेरे करीबियों ने मुझे बता भी दिया कि संजय चौधरी तेरी बहुत ज्यादा बुराई करता है और गाली-गलौज भी करता है।मुझे सब पता होने के बाद भी मैंने उसको कभी कुछ नहीं बोला, ना ही मैंने उसकी किसी के सामने बुराई की।मैंने सोचा और कितने दिन करेगा करने दो। मैंने उसको दो-तीन बार समझाने का प्रयास भी किया। मैंने बोला संजय भाई, मैं तेरा क्या बिगाड़ा तू मेरी इतनी बुराई क्यों करता है तो वह मेरे ऊपर ही पलट गया। फिर तो वहां दिन प्रतिदिन मेरी बुराई और ज्यादा करने लगा।जिसको भी मैं पॉलिसी देता उसके घर जाकर उसको मेरे बारे में उल्टी-सीधी बात बोलकर मेरे खिलाफ भड़काता रहता है।मेरे करीबी दोस्तों के घर जाकर भी मेरी बुराई करने लगा।मेरा जीना हराम कर रखा था संजय चौधरी आखिर में संजय चौधरी से परेशान होकर मैंने एलआईसी अभिकर्ता का काम भी छोड़ दिया।
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8) आसाराम मार्को
मैंने अपने रोजगार के लिए एक छोटा सा ढाबा खोला था।
आसाराम मेरे पास में काम करता था। वहां काफी ईमानदार और भरोसेमंद था।उसने काफी दिन मेरे साथ में काम किया।
पहले तो उसने मेरा पूरा भरोसा जीत लिया। अब धीरे-धीरे उसने मेरी पूरा काम संभाल लिया।मुझे भी उस पर विश्वास हो गया और मैंने उसको गल्ले पर बिठा दिया।फिर वहां मुझसे धीरे-धीरे ईमानदारी से पैसे मांगने लगा।कभी बच्चे की स्कूल फीस भरने का बोल कर मुझसे पैसे लेता तो कभी हॉस्पिटल जाने के लिए तो कभी बीवी कपडे दिलाने के लिए। मैंने सोचा गरीब आदमी है, अपने पास काम कर रहा है। धीरे-धीरे फेड देगा अपने पैसे काम में।जब आसाराम के ऊपर लगभग 18 से ₹20000 हो गए तो वहां मेरी दुकान छोड़कर चला गया और कभी वापस ही नहीं आया।मैंने उससे काफी बार संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन मुझे देखकर वह भाग जाता या तो फिर वह कहीं निकल जाता।उसने ना ही मुझे पैसे दिए ना ही काम पर वापस आया मेरे पास उसने मेरे भरोसे का पूरा फायदा उठाया और मुझे चुना लगा कर चला गया।
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